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डैमेज कंट्रोल कर लिया गया
बीजापुर कलेक्टर के पद से अनुराग पांडेय को हटाए जाने के बाद प्रशासन में एक गलत संदेश जा रहा था। वह यह कि इस मामले में भाजपा के जिस पदाधिकारी अजय सिंह की धमकी काम कर गई, उसके खिलाफ खुद पहले ही कई आपराधिक मामले दर्ज हैं। कांग्रेस में अजय सिंह को ऊंचाई स्व. महेंद्र कर्मा से नजदीकी और झीरम घाटी कांड में नक्सली हमले से बच निकलने के बाद बढ़ी। पर बाद में कई गंभीर अपराधों में उनका नाम आ गया। कांग्रेस विधायक विक्रम मंडावी ने उनके खिलाफ मोर्चा खोल दिया था। सबका साथ वाली नीति पर काम करते हुए भाजपा ने अजय सिंह को पार्टी में शामिल कर लिया। पर, उनके तौर-तरीकों में कोई बदलाव नहीं आया। पांडेय को हटाये जाने के बाद अफसरों के बीच यह महसूस किया जा रहा था कि उन पर छोटे स्तर पर जायज-नाजायज दबाव डाले जा सकते हैं। खासकर, बस्तर जैसे संवेदनशील इलाके के लिए तो यह स्थिति ठीक ही नहीं थी। विधायक मंडावी और सर्व आदिवासी समाज का दबाव ही था, इधर कलेक्टर पद से पांडेय हटे और दो दिन बाद अजय सिंह की गिरफ्तारी हो गई। भले ही यह गिरफ्तारी दूसरे मामलों में हुई है, पर प्रशासन ने यह जताने की कोशिश की है कि इस तबादले और फोन पर दी गई धमकी-चमकी का आपस में कोई संबंध नहीं है।
अब तस्वीरें झूठ बोलती हैं
सोशल मीडिया पर दिखाई जाने वाली वीडियो और तस्वीरें कितनी सही है, इसका पता लगाना दिनों-दिन मुश्किल होता जा रहा है। ट्विटर (एक्स) पर एक वीडियो हाल में डाली गई, जिसमें बताया गया कि महाराष्ट्र के एक कोर्ट में महिला वकील अपने मंगेतर को जमानत नहीं देने वाली महिला जज से भिड़ गई। उनके बीच बरामदे में ही मारपीट हो गई और एक महिला पुलिस अधिकारी ने छुड़ाया। वीडियो के साथ दिए गए जानकारी में यह नहीं लिखा है कि यह महाराष्ट्र के किस कोर्ट की, कब की घटना है। कुछ वेब पोर्टल वालों ने भी इस वीडियो की क्लिप डालते हुए समाचार बना दिया है। उनमें भी यह जानकारी नहीं है। मगर इंटरनेट पर सर्च करने से खबर दूसरी ही निकलकर आई। यह महाराष्ट्र की नहीं, बल्कि उत्तर प्रदेश के कासगंज की है। आपस में लड़ रही महिलाओं में जज कोई नहीं है, बल्कि दोनों ही अधिवक्ता हैं। उनके बीच कोई आपसी विवाद था। यह घटना सन् 2022 की है। तब नवभारत टाइम्स ने इसकी सच्चाई उजागर की थी। सन् 2023 में जब यह वीडियो फिर वायरल हुआ तो दैनिक जागरण ने भी फैक्ट चेक डाला था।
प्यासे को पानी
कहते हैं कि प्यासे को पानी पिलाने से बड़ा पुण्य नहीं है। यही पुण्य दफ्तरों में ड्यूटी हो जाता है। ऐसे में भृत्य यह पुण्य नहीं कमाना चाहते। वे अब साहबों को ही पानी पिलाते हैं। नीचे के मातहत क्लर्क को तो सेल्फ सर्विस करना पड़ती है। यह स्थिति प्रदेश के प्रशासनिक मुख्यालय मंत्रालय की है। दादा, भैया कहने पर भी दिल नहीं पसीजता। वे केवल फाइलों को एक टेबल से दूसरे टेबल और एक सेक्शन से दूसरे तक लाने ले जाने का काम करते हैं। किसी क्लर्क या एसओ ने एक गिलास पानी मांग लिया तो मेरा काम नहीं कहकर निकल जाते हैं। तो कुछ ने एक रास्ता निकाल लिया है। सुबह मंत्रालय पहुंचते ही बिसलेरी की खाली बोतलों को भर कर टेबल पर रख देते हैं। और फिर बस। उनके इस व्यवहार से दो चार बहुसंख्यक अधिकारी कर्मचारी घरों से ही पानी लेकर जाने लगे हैं। इससे ये भृत्य और भी फ्री हो गए हैं । और साहबों के न होने पर समय का उपयोग ऑनलाइन बेटिंग गेम (सट्टा), या मोबाइल पर यूट्यूब देखने में करते हैं। ये तो बात हुई पुराने भृत्यों की ।और पीएससी पास आउट नए 80 भृत्य अभी स्थिति का आकलन कर रहे हैं। वे आगे क्या करते हैं, समय बताएगा।