संपादकीय
मोदी सरकार को अपने एक और फैसले का पेटी-बिस्तरा बांधकर लौट जाना पड़ा है। देश की नौकरशाही में, जहां पर कि लोग कुछ अपवादों को छोडक़र यूपीएससी से चुनकर आते हैं, आईएएस का इम्तिहान देकर भारत सरकार और राज्यों में सरकारी सचिवों के ओहदों तक पहुंचते हैं, वहां पर मोदी सरकार ने लोगों को थोक में सीधे बाहर से उठाकर केन्द्र सरकार में संयुक्त सचिव तक बनाना शुरू कर दिया था। यह अपने आपमें देश के नौजवानों के समानता के अधिकार के खिलाफ था, और यूपीएससी जैसी संस्था का पूरा काम ही मानो गैरजरूरी करार दे दिया गया था क्योंकि भारत सरकार नाम छांटकर यूपीएससी को दे देती थी, और वह इन लोगों को बिना किसी आरक्षण के छांट लेती थी। संविधान में आरक्षण की जो व्यवस्था की गई है, यह व्यवस्था उसके भी खिलाफ थी। इस लेटरल एंट्री के तहत मोदी सरकार ने अभी 45 लोगों को सीधे डायरेक्टर या संयुक्त सचिव बनाना तय किया था, और राहुल गांधी ने इसके खिलाफ एक बड़ा हल्ला बोला था।
आरक्षण को लेकर, दलित और आदिवासियों के हक को लेकर, ओबीसी समुदाय को नौकरशाही में जगह न मिलने को लेकर राहुल गांधी पिछले साल भर से लगातार देश में एक राजनीतिक अभियान चला रहे हैं। इसी के तहत जब बिहार के पल्टूराम के साथ कांग्रेस की सरकार थी, तो वहां जातीय जनगणना करवाई गई थी। राहुल गांधी ने लगातार यह अभियान वैसे भी चलाया हुआ था कि नौकरशाही में, भारत सरकार के सचिवों के स्तर पर ओबीसी समुदाय से आने वाले अफसरों की कितनी कमी है। यह बात भी समझने की जरूरत है कि जब यूपीएससी के इम्तिहानों में एसटी, एससी, और ओबीसी का आरक्षण होता है, तो फिर भारत सरकार के सचिव स्तर पर पहुंचते हुए इन आरक्षित वर्गों के अफसरों का अनुपात एकदम से कैसे गिर जाता है? बहुत से लोगों का यह मानना है कि जिस तरह सुप्रीम कोर्ट, और हाईकोर्ट में जजों की नियुक्ति में पिछले जजों के कुनबे जगह पाते रहते हैं, उसी तरह भारत सरकार के तमाम ताकतवर ओहदों पर आमतौर पर सवर्ण कही जाने वाली जातियों का ही बोलबाला रहता है। राहुल गांधी तरह-तरह के मौजूदा आरक्षण, संभावित आरक्षण, और आरक्षण में धोखाधड़ी के कई आरोप लगाते हुए इसे लगातार सामाजिक मोर्चे पर एक आंदोलन की शक्ल देते आए हैं। अब जब केन्द्र सरकार एक साथ करीब 45 पदों पर बाहरी लोगों को बिना किसी आरक्षण के लेटरल एंट्री से नियुक्त करने जा रही थी, तो राहुल गांधी ने इस पर बड़ा हल्ला बोला, और कहा कि यह आरक्षित वर्गों के लोगों के हक मारना है। उन्होंने यह राजनीतिक तोहमत भी लगाई कि मोदी सरकार आरएसएस के विचारधारा के लोगों को सरकार में घुसाने के लिए उस प्रावधान की आड़ ले रही है जिसके तहत पिछली सरकारों ने मनमोहन सिंह जैसे विख्यात अर्थशास्त्री को नियुक्त किया था, कुछ अंतरिक्ष वैज्ञानिकों को नियुक्त किया था, या आधार कार्ड बनाने वाले नंदन निलेकेणि को नियुक्त किया था। यह बड़ी हँसी की बात है कि मोदी सरकार एक साथ 45 लोगों को ऐसे विशेषज्ञ लोगों की मिसाल गिनाते हुए सरकार में लेटरल एंट्री दे रही है। अगर सचमुच ही कोई सरकार 45 ऐसे महान जानकार ढूंढ सकती है, तो देश तो फिर कामयाबी के अंतरिक्ष में ही पहुंचकर थमेगा। लेकिन देश के एसटी-एससी तबके, ओबीसी समुदाय राहुल की इस बात पर सहमत दिख रहे हैं कि लेटरल एंट्री आरक्षित तबकों के हक मारकर ही की जा रही है। उसमें कैसे लोग और क्यों लिए जा रहे हैं, यह एक अलग विवाद का मुद्दा है जो कि सिर्फ आरक्षण से जुड़ा हुआ नहीं है, बल्कि देश की सबसे बड़ी सर्विस में संदिग्ध और कथित विशेषज्ञता वाले लोगों को भरने की एक हरकत अधिक दिखती है। यह हैरानी की बात है 45 लोगों को बिना आरक्षण लेटरल एंट्री देने का मतलब आरक्षित तबकों के दो दर्जन लोगों के हक मारना है, और वह भी कई बरस की वरिष्ठता वाले आईएएस अफसरों से भरे जाने वाले संयुक्त सचिव जैसे वरिष्ठ पद के मामले में! यूपीएससी से मुकाबले में चुनकर आने वाले लोगों को भी इन ओहदों तक पहुंचने में एक जिंदगी लग जाती है, और सारा रिकॉर्ड ठीक रहने पर ही वे वहां पहुंचते हैं। इसलिए जब तक कोई वैज्ञानिक, विशेषज्ञ ऐसे न हों कि इनके बिना सरकार का कोई एक काम आगे ही न बढ़ सके, तब तो लेटरल एंट्री की बात समझ में आती है। एकमुश्त 45 ऐसे विशेषज्ञ ढूंढ पाने के लिए सरकार का जादूगर रहना भी जरूरी है।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के कुछ बड़े शुभचिंतक राजनीतिक विश्लेषकों ने अभी लिखा है कि एशिया के इस हिस्से में भी लगातार जनआंदोलनों को अनदेखा करना मोदी के लिए ठीक नहीं होगा। पाकिस्तान में फौजी हुकूमत और शरीफ सरकार के तमाम जुल्म के बावजूद इमरान खान की पार्टी और उनके समर्थक बड़े हौसले के साथ डटे हुए हैं, जो कि सरकार और फौज के लिए परेशानी का सबब बने हुए हैं। दूसरी तरफ श्रीलंका ने भयानक जनआंदोलन देखा है जिसमें लोगों ने राष्ट्रपति भवन पर भी कब्जा कर लिया था क्योंकि सरकार ने मनमाने फैसले लिए थे। बांग्लादेश का मामला सबसे ताजा है जिसमें आरक्षण को लेकर सरकार जनभावनाओं को समझ ही नहीं पाई, और पिछली प्रधानमंत्री शेख हसीना आंदोलनकारी जनता को देश का गद्दार करार देते रह गई, और उन्हें पता ही नहीं चला कि उनके पांवों के नीचे से जमीन कब खिसक गई। भारत में जाति और आरक्षण, धर्म, साम्प्रदायिकता, ये इतने बड़े मुद्दे बन चुके हैं कि इन्हें अनदेखा करना किसी भी सरकार के लिए बहुत घातक साबित हो सकता है। बिहार में नीतीश कुमार के दलबदल की वजह से भाजपा को जातीय जनगणना के मुद्दे से अगले दलबदल तक तो राहत मिली हुई है लेकिन इसे स्थाई और राष्ट्रीय राहत मानना गलत होगा। सुप्रीम कोर्ट का ताजा फैसला एसटी-एससी समुदायों के भीतर जिस तरह उपजातीय आरक्षण का हक दे रहा है उसके असर को भी समझने की जरूरत है। ऐसा लगता है कि मोदी सरकार ने अपने सबसे ताकतवर दिनों में जिस अंदाज में नोटबंदी से लेकर किसान कानून तक दर्जन भर बड़े फैसले लिए थे, उसी अंदाज में लगातार काम करना सरकार के लिए भारी पड़ रहा है। लेटरल एंट्री के नाम पर देश के सबसे बड़े ओहदों पर पसंदीदा लोगों को छांट-छांटकर बिना आरक्षण इतनी बड़ी संख्या में कुर्सियों को भर देना लोगों को हक्का-बक्का कर गया है, और इसीलिए जो जनविरोध सतह पर आया उसे देखकर केन्द्र सरकार को मजबूर होकर लेटरल एंट्री को फिलहाल रोक देना पड़ा है, और संविधान और बाबा साहब जैसे भारी-भरकम शब्दों का इस्तेमाल करते हुए, आरक्षण के लिए मोदी की हमदर्दी का हवाला देते हुए यूपीएससी को लिखना पड़ा कि वह फिलहाल लेटरल एंट्री रोक दे।
जानकारों का कहना है कि यह बिना विचार-विमर्श, संसद में बहस बिना लिया गया एक फैसला था जिसमें विपक्ष को तो भरोसे में लेना दूर रहा, आरक्षित तबकों के सामने भी तर्क नहीं रखे गए, जिनके कि इतने बड़े हक मारे जा रहे हैं। ऐसे में सरकार को अपने कुछ पुराने और फैसलों को वापिस लेने की तरह इस फैसले को भी वापिस लेना पड़ा है क्योंकि देश में आज जातियों और आरक्षण का मुद्दा राहुल गांधी और उनकी कांग्रेस पार्टी ने एक अभूतपूर्व ताकत के साथ जिंदा कर दिया है, और सुप्रीम कोर्ट मानो आरक्षण को बिना बढ़ाए हुए उसे और अधिक असरदार बनाते हुए आरक्षण की बहस बढ़ा रहा है। ऐसे माहौल में मोदी सरकार के लिए अपने लिए यह ठीक है कि वह चाहे संविधान का हवाला देकर, चाहे बाबा साहब का नाम लेकर लेटरल एंट्री बंद करे। पूरे लोकसभा चुनाव में राहुल गांधी और इंडिया गठबंधन ने संविधान कुचलने की साजिश का जो आरोप मोदी सरकार पर लगाया था, शायद आरक्षित वर्गों के बीच उनकी बात असर कर रही है। मोदी सरकार को अगर करीब चार दर्जन लोग एकदम से इतने काबिल मिले हैं कि उनके बिना इस देश का काम नहीं चल सकता था, तो ऐसे लोगों को बड़े निजी कारोबारों में जगह दिलवानी चाहिए, जिससे देश की अर्थव्यवस्था का फायदा हो सके। (क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)