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लैटरल एंट्री से नौकरशाही में नियुक्ति नई बात नहीं, नेहरू ने ही शुरू कर दिया था सिलसिला
04-Sep-2024 2:21 PM
लैटरल एंट्री से नौकरशाही में नियुक्ति नई बात नहीं, नेहरू ने ही शुरू कर दिया था सिलसिला

पी एन हक्सर (दाएं) के साथ इंदिरा गांधी

-रेहान फजल

लैटरल एंट्री को लेकर पिछले दिनों काफी विवाद रहा और मोदी सरकार ने 45 पदों पर होने वाली नियुक्ति रोक दी। लेकिन मोदी सरकार 2018 से अब तक बड़ी तादाद में पेशेवर लोगों को लैटरल एंट्री दे चुकी है और उसके पहले भी यह सिलसिला लगातार जारी रहा है।

दरअसल, इसकी शुरुआत देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने ही कर दी थी।

जब 1947 में भारत आजाद हुआ तो पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू और उनकी टीम के सामने सबसे बड़ी चुनौती थी कि किस तरह नए देश का बुनियादी ढाँचा खड़ा किया जाए।

नए देश के सामने युद्ध, सूखे और सांप्रदायिक तनाव की समस्या मुँह बाए खड़ी थी।

आईसीएस (अँग्रेजों के जमाने के इंडियन सिविल सर्विसेज) के लिए आखिरी परीक्षा सन् 1943 में हुई थी और आजादी के बाद कई आईसीएस अफसरों ने पाकिस्तान जाने का फैसला किया था।

एक पत्रकार को मिली विदेश सेवा में लैटरल एंट्री

खाली प्रशासनिक पदों को भरने के लिए तुरंत कोई परीक्षा कराई नहीं जा सकती थी इसलिए नेहरू सरकार ने इन पदों पर बिना परीक्षा के लोगों को भर्ती करना शुरू कर दिया था।

इनमें से कई लोग सेना, ऑल इंडिया रेडियो और वकालत के पेशे से चुने गए थे। सबसे पहले भारतीय विदेश सेवा के लिए चुने गए लोगों में पीआरएस मणि का नाम आता है।

उन्होंने सन् 1939 में ऑल इंडिया रेडियो मद्रास में पब्लिसिटी असिस्टेंट और उद्घोषक के तौर पर अपना करियर शुरू किया था।

अपने रेडियो के करियर के दौरान वो जवाहरलाल नेहरू के संपर्क में आए और जब 1946 में नेहरू ने मलाया का दौरा किया तो वो ‘फ्री प्रेस जर्नल’ के रिपोर्टर के तौर पर उनके साथ वहाँ गए।

मणि की पहली पोस्टिंग इंडोनेशिया की राजधानी जकार्ता में भारतीय दूतावास में प्रेस अताशे के तौर पर की गई थी।

कल्लोल भट्टाचार्जी अपनी किताब नेहरूज फस्र्ट रेक्रूट्स में लिखते हैं, मणि के प्रयासों का ही नतीजा था कि भारत के पहले गणतंत्र दिवस समारोह में इंडोनेशिया के राष्ट्रपति सुकर्णो मुख्य अतिथि के तौर पर पधारे थे। ये काम विदेश सेवा के किसी अधिकारी की बदौलत नहीं बल्कि पीआरएस मणि के उत्साही प्रयासों की बदौलत हुआ था।

सन् 1995 में इंडोनेशिया की सरकार ने पीआरएस मणि को अपने सबसे बड़े राजकीय पुरस्कार फस्र्ट क्लास स्टार ऑफ सर्विस से सम्मानित किया था। मणि के बाद ऑल इंडिया रेडियो में अंग्रेजी का समाचार पढऩे वाले रणबीर सिंह को भारतीय विदेश सेवा में सीधे नियुक्त किया गया था। इसके बाद ऑल इंडिया रेडियो के ही एआर सेठी को भारतीय विदेश सेवा में लिया गया था।

लैटरल एंट्री से नियुक्तियां

परमेश्वर नारायण हक्सर इलाहाबाद हाई कोर्ट में वकालत किया करते थे। वो कांग्रेस के नेता और इंदिरा गांधी के पति फिरोज गांधी के दोस्त हुआ करते थे।

उन्हें भी अक्तूबर, 1947 में नेहरू ने विदेश मंत्रालय में ऑफिसर ऑन स्पेशल ड्यूटी नियुक्त किया था। इसके बाद वो नाइजीरिया और ऑस्ट्रिया में भारत के राजदूत रहे। दो दशक बाद जब इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री बनीं तो उन्होंने उन्हें अपना प्रधान सचिव नियुक्त किया था।

इलाहाबाद विश्वविद्यालय से डिग्री लेने के बाद वो 30 के दशक में इंग्लैंड गए थे, जहाँ उन्होंने मशहूर एंथ्रोपॉलॉजिस्ट ब्रोनिसलॉ मेलिनोस्की की देखरेख में मानवशास्त्र की पढ़ाई की थी।

जयराम रमेश हक्सर की जीवनी ‘इंटरट्वाइंड लाइव्स पीएन हक्सर एंड इंदिरा गांधी’ में लिखते हैं, हक्सर के बारे में कहा जाता था कि आधुनिक भारत के नाजुक मोड़ पर वो न सिर्फ यहाँ के सबसे ताक़तवर नौकरशाह थे, बल्कि इंदिरा गांधी के बाद भारत के दूसरे सबसे ताकतवर इंसान भी थे और उनकी ताकत का स्रोत इंदिरा गांधी नहीं थीं।

चीफ ऑफ प्रोटोकॉल मिर्जा राशिद बेग

विदेश मंत्रालय में सीधे प्रवेश पाने वाले एक और शख्स थे मिर्जा राशिद अली बेग। बेग ने सेना के अफसर के तौर पर अपने करियर की शुरुआत की थी। इसके बाद वो मोहम्मद अली जिन्ना के निजी सचिव बन गए थे।

पाकिस्तान की स्थापना के मुद्दे पर उनसे मतभेद होने पर उन्होंने उनका साथ छोड़ दिया था।

सन् 1952 में उन्हें फि़लीपींस में तैनात किया गया था। वो बाद में भारत के सबसे सफल चीफ ऑफ प्रोटोकॉल बने।

अपने चर्चित कार्यकाल के दौरान उन्होंने दिल्ली में अमेरिकी राष्ट्रपति आइजनहावर, सोवियत प्रधानमंत्री ख्रूश्चेव, चीनी प्रधानमंत्री चाउ एन लाई, वियतनामी नेता हो ची मिन्ह, ब्रिटेन की महारानी एलेजाबेथ, मिस्र के राष्ट्रपति जमाल नासेर, सऊदी अरब के शाह सऊद, ईरान के शाह और संयुक्त राष्ट्र के महासचिव डैग हैमरशोल्ड जैसे नेताओं का स्वागत किया।

खुशवंत सिंह की भी हुई लैटरल एंट्री

आजादी के बाद खान अब्दुल गफ्फार खान के भांजे मोहम्मद यूनुस को भी नेहरू ने विदेश मंत्रालय में नियुक्त किया। यूनुस तुर्की, इंडोनेशिया और स्पेन में भारत के राजदूत रहे और 1974 में वाणिज्य सचिव होकर रिटायर हुए।

बाद में उन्हें ट्रेड फेयर अथॉरिटी का प्रमुख बनाया गया। वो अंत तक इंदिरा गाँधी के करीब रहे। 1977 में जब इंदिरा गांधी चुनाव हारीं और सांसद नहीं रह गईं तो उन्होंने उन्हें 12 विलिंग्टन क्रेसेंट का अपना घर रहने के लिए दे दिया था।

विदेश मंत्रालय में सीधी नियुक्ति पाने वालों में मशहूर कवि हरिवंशराय बच्चन भी थे। वो इलाहाबाद विश्वविद्यालय में अंग्रेजी के लेक्चरर थे।

कैंब्रिज विश्वविद्यालय से उन्होंने अपनी डॉक्टरेट की थी। वहाँ से लौटने पर वो आकाशवाणी इलाहाबाद में प्रोड्यूसर के तौर पर नियुक्त हो गए थे।

जवाहरलाल नेहरू की पहल पर उन्हें विदेश मंत्रालय मे हिंदी के इस्तेमाल को बढ़ावा देने के लिए ऑफिसर ऑन स्पेशल ड्यूटी के तौर पर नियुक्त किया गया था।

कल्लोल भट्टाचार्जी लिखते हैं, बच्चन की सलाह पर ही बाहरी मामलों के मंत्रालय का नाम विदेश मंत्रालय रखा गया था।

उन्होंने गृह मंत्रालय का नाम देश मंत्रालय सुझाया था लेकिन इसे सरकार ने स्वीकार नहीं किया था।

उन्होंने विदेश मंत्रालय में आने वाले कई अफसरों को हिंदी पढ़ाई थी। बाद में विदेश मंत्री बने नटवर सिंह उनमें से एक थे।

मशहूर लेखक खुशवंत सिंह को भी लैटरल एंट्री मिली थी। उस समय वो लाहौर में वकालत कर रहे थे। सूचना और प्रसारण मंत्रालय में उप सचिव अजीम हुसैन के कहने पर उन्हें लंदन में भारतीय उच्चायोग में सूचना अधिकारी की नौकरी मिली थी। बाद में इसी पद पर उनका तबादला कनाडा की राजधानी ओटावा में कर दिया गया था। वहाँ उन्होंने अपने पद से इस्तीफा दे दिया था।

इसके बाद वो पत्रकारिता में चले गए थे और योजना, इलस्ट्रेटेड वीकली ऑफ इंडिया, हिंदुस्तान टाइम्स और नेशनल हेरल्ड के संपादक के तौर पर उन्होंने काफी नाम कमाया था।

केआर नारायणन की नियुक्ति

सरोजिनी नायडू की बेटी लीलामणि नायडू ने भी विदेश मंत्रालय में सीधे प्रवेश किया था। सन् 1941 से 1947 तक वो ओस्मानिया विश्वविद्यालय में अंग्रेजी विभाग की प्रमुख थीं।

इसके बाद वो हैदराबाद के निजाम कॉलेज में दर्शन शास्त्र विभाग की प्रमुख हो गईं थीं। वहाँ से उन्हें सीधे विदेश मंत्रालय में सीनियर स्केल में नियुक्त किया गया था।

सन् 1948 में पेरिस में हुए संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन में उन्हें भारतीय प्रतिनिधिमंडल का सलाहकार नियुक्त किया गया था।

नेहरू की सिफारिश पर विदेश मंत्रालय में नौकरी पाने वालों में केआर नारायणन भी थे जो आगे चलकर भारत के राष्ट्रपति बने।

वो लंदन स्कूल ऑफ़ इकॉनॉमिक्स के प्रोफेसर लास्की का नेहरू के नाम एक पत्र लेकर आए थे जिसमें लास्की ने उनकी बहुत तारीफ की थी।

सन् 1949 में उनकी पहली पोस्टिंग सेकेंड सेक्रेट्री के रूप में बर्मा में की गई थी।

सन् 1950 से 1958 के बीच उन्होंने टोक्यो और लंदन के भारतीय दूतावासों में काम किया था। सन 1976 में उन्हें चीन में भारत का राजदूत बनाया गया था।

इंडस्ट्रियल मैनेजमेंट पुल की स्थापना

सन 1959 में सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों के उच्च पदों को भरने के लिए जवाहरलाल नेहरू ने औद्योगिक प्रबंधन पुल (इंडस्ट्रियल मैनेजमेंट पूल) की स्थापना की थी।

इसमें पूरे भारत से कुल 131 पेशेवर लोगों को चुना गया था। इनमें से कई लोग जैसे मंतोष सोंधी, वी कृष्णामूर्ति, मोहम्मद फजल और डीवी कपूर जैसे लोग सचिव स्तर तक पहुंचे थे।

इससे पहले सन् 1954 में अर्थशास्त्री आईजी पटेल को पहले अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष में आर्थिक उप-सलाहकार नियुक्त किया गया था। बाद में वो आर्थिक मामलों के सचिव और रिजर्व बैंक के गवर्नर भी बने थे।

सन् 1971 में मनमोहन सिंह को वाणिज्य मंत्रालय में सलाहकार के तौर पर लाया गया था। इससे पहले वो दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में अर्थशास्त्र के प्रोफेसर थे।

मनमोहन सिंह आर्थिक मामलों के सचिव, रिज़र्व बैंक के गवर्नर, योजना आयोग के उपाध्यक्ष का पद संभालने के बाद भारत के प्रधानमंत्री पद तक पहुंचे थे।

जारी रहा सिलसिला

जनता सरकार के जमाने में रेलवे इंजीनयर एम मेंज़ेस को सीधे रक्षा उत्पादन मंत्रालय का सचिव बनाया गया था।

राजीव गांधी ने केरल इलेक्ट्रॉनिक डेवेलपमेंट कॉर्पोरेशन के प्रमुख केपीपी नाम्बियार को इलेक्ट्रॉनिक्स सचिव नियुक्त किया था।

उसी जमाने में सैम पित्रोदा को सीधे अमेरिका से लाकर सेंटर फॉर डेवेलपमेंट ऑफ़ टेलीमेटिक्स (सी-डॉट) का प्रमुख बनाया गया था।

1980 और 90 के दशक में कई टेक्नोक्रैटेस जैसे मोंटेक सिंह अहलूवालिया, राकेश मोहन, विजय केलकर और बिमल जालान जैसे लोगों को अतिरिक्त सचिव के स्तर पर नौकरशाही में शामिल किया गया था जो बाद में सचिव स्तर तक पहुंचे थे।

अटल बिहारी वाजपेयी के जमाने में आरवी शाही को निजी क्षेत्र से लाकर सीधे पावर सेक्रेट्री बनाया गया था।

मनमोहन सिंह सरकार के दौरान भी नंदन नीलेकणि को निजी कंपनी इन्फोसिस से लाकर भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण का प्रमुख बनाया गया था।

सन् 2018 से अब तक 63 लोगों को संयुक्त सचिव स्तर पर नौकरशाही में शामिल किया गया है, जिनमें से 35 अधिकारी निजी क्षेत्र से लिए गए हैं। (bbc.com/hindi)

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