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उत्तरप्रदेश के अयोध्या में हिन्दुओं की धार्मिक मान्यता और भावना के मुताबिक जो रामजन्मभूमि है, वहां पर बने राम मंदिर में सफाईकर्मी 20 साल की दलित युवती से 9 लोगों ने गैंगरेप किया है, और तीन अलग-अलग मौकों पर इस कॉलेज छात्रा के साथ बलात्कार का सिलसिला चलते रहा। इस बारे में गिरफ्तार 5 लोगों में से 4 के नाम उन्हें साफ-साफ हिन्दू बताते हैं, इसलिए इस मामले में साम्प्रदायिक तनाव खड़ा करने की गुंजाइश नहीं दिख रही है। दूसरी तरफ कुछ समय पहले अजमेर के 1992 के एक सामूहिक बलात्कार और ब्लैकमेलिंग के सैकड़ों लड़कियों तक बिखरे सिलसिले में उम्रकैद हुई है, और उसमें तमाम बलात्कारी और ब्लैकमेलर मुस्लिम थे, कांग्रेस के पदाधिकारी थे, और अजमेर की विख्यात दरगाह के खादिम (सेवादार) परिवारों के ताकतवर लोग थे।
इन दो घटनाओं से परे भी बहुत सी दूसरी घटनाएं हैं जिनमें धार्मिक जगहों से जुड़े हुए लोग थे। अब आसाराम जैसा बलात्कारी तो खुद ही अपने आपमें एक धार्मिक सम्प्रदाय था। लोगों को याद होगा कि 2018 में जम्मू-कश्मीर के कठुआ के पास एक मंदिर में 6 मर्दों और एक नाबालिग ने 8 बरस की मुस्लिम खानाबदोश बच्ची का अपहरण करके उससे सामूहिक बलात्कार किया, और उसका कत्ल कर दिया। इस मामले में 7 में से 6 लोग कुसूरवार करार दिए जा चुके हैं। उसे एक मंदिर में बंधक बनाकर चार दिन तक उससे बलात्कार किया गया जिसमें पुजारी भी शामिल था, और ग्राम प्रधान भी। बाद में सुबूत नष्ट करके लाखों रूपए रिश्वत लेने के मामले में दो पुलिसवाले भी गिरफ्तार हुए। और ये सारे के सारे हिन्दू थे, और हिन्दू समाज ने कठुआ में इन गिरफ्तारियों के खिलाफ धार्मिक झंडे और देश का तिरंगा झंडा लेकर बड़े-बड़े जुलूस निकाले थे, और इस बच्ची की तरफ से मुकदमा लडऩे वाली हिन्दू वकील को हर किस्म की धमकियां भी दी थीं।
हम धर्म की आड़ में, धर्म के नाम पर, धर्म की जगह पर, या किसी एक धर्म से जुड़े हुए लोगों द्वारा किए गए बलात्कार के बारे में चर्चा करना नहीं चाहते। धर्म से जुड़े हुए इस तरह के जुर्म चौंकाते भी नहीं हैं। चौंकाती सिर्फ एक बात है कि धर्म जिस तरह के कल्याणकारी ईश्वर की धारणा को बेचते हैं, क्या वह धारणा थोड़ी सी हद तक भी सच है? अब अगर देखें तो जो दलित लडक़ी भगवान राम के जन्मस्थान के उनके मंदिर में रोज सफाई का काम करती है, उस पर तो राम की खास मेहरबानी रहनी चाहिए थी। लेकिन हुआ क्या? तकरीबन तमाम हिन्दुओं वाले बलात्कारी-गिरोह ने अछूत समझी जाने वाली दलित लडक़ी से बार-बार गैंगरेप किया। जब बात देह की आ गई, तो फिर कुछ छुआछूत भी नहीं रह गया। लेकिन रामजी कहां थे? क्यों उनके इर्द-गिर्द के लोगों ने एक गरीब और बेबस लडक़ी से ऐसा किया, और उन पर ईश्वर ने मार क्यों नहीं किया? बात कुछ अजीब है क्योंकि ईश्वर को सर्वत्र, सर्वज्ञ, सर्वशक्तिमान, क्या-क्या नहीं कहा जाता है? इसी तरह कठुआ के मंदिर में जब 8 बरस की गरीब मुस्लिम खानाबदोश बच्ची के साथ 8-8 मर्द बलात्कार कर-करके उसे मार डाल रहे थे, तो कण-कण में विद्यमान रहने वाले भगवान कहां थे? उस बच्ची के नंगे बदन के नीचे उसके लहू और मर्दों की मर्दानगी से भीगे हुए फर्श के हर कण में भी तो भगवान रहे होंगे, लेकिन उन्होंने उस बच्ची को बचाना क्यों जरूरी नहीं समझा? इसी तरह जब अजमेर में ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह के खादिम परिवार के नौजवान बेकसूर छात्राओं को फंसाकर, उनसे बलात्कार करके उसकी तस्वीरें खींचकर उनको ब्लैकमेल कर रहे थे, खुदकुशी पर मजबूर कर रहे थे, उनकी जिंदगी जहन्नुम बना रहे थे, तब भी दरगाह की ताकत ने अपने ही खादिमों को क्यों नहीं रोका?
हम अपने आसपास की बातों से कुछ दूर जाएं, और देखें कि किस तरह रोमन कैथोलिक ईसाईयों के धार्मिक मुख्यालय वेटिकन से जुड़े पादरी दुनिया भर में हजारों बच्चों का यौन-शोषण करते रहे, और पोप ने उनके खिलाफ कुछ नहीं किया। यह यौन-शोषण कानून के हवाले भी नहीं किया गया। धर्म की आड़ में यह सिलसिला चलते रहा, और ईसा मसीह के तो हाथ-पैर सलीब पर ठुके हुए थे, इसलिए हो सकता है कि वे उन बच्चों को बचाने के लिए न आ पाए हों। लेकिन सवाल यह उठता है कि जिस यीशु मसीह के आने के नारे चर्चों की दीवारों पर चारों तरफ लिखे जाते हैं कि वह आ रहा है, वह आता क्यों नहीं है? जब पादरी छोटे-छोटे बच्चों से बलात्कार करते रहते हैं, तब भी ऐसे पादरियों के गले में बड़े से क्रॉस पर टंगा हुआ ईसा मसीह उन पादरियों के सीनों को छेद क्यों नहीं देता?
हमारा सवाल बलात्कारियों से बिल्कुल नहीं है, क्योंकि वे मानव प्रजाति के मर्द हैं, जंगली जानवर तो हैं नहीं, इसलिए बलात्कार करना तो उनका मिजाज ही है, और पहला मौका मिलते ही वे बलात्कार तो करेंगे ही। हमारा सवाल ईश्वर की बनाई गई उस धारणा से है, उसे गढऩे वाले लोगों से है जो उसे कण-कण में व्याप्त बताते हैं। इस धारणा के हिसाब से बलात्कारी के बदन का हर कण भी ईश्वर से भरा होना चाहिए, और बलात्कार की शिकार लडक़ी या महिला का भी। फिर जब दोनों तरफ ईश्वर है, कण-कण में है, तो फिर वह इस जुल्म को रोकता क्यों नहीं है? और चूंकि वह हर जगह है, सबकुछ देखता-सुनता है, तो फिर वह ऐसे जुल्म होने क्यों देता है? और अगर वह इन्हें रोकने की ताकत नहीं रखता, तो उसे सर्वशक्तिमान, जनकल्याणकारी क्यों माना जाए? हमारा सवाल ऐसे काल्पनिक ईश्वर से है कि अगर उसकी कोई ताकत है, और वह आसमानी बिजली की तरह कुछ फेंककर भी लोगों को भस्म कर सकता है, तो किसी बच्ची या बच्चे के देह को बदनीयत से छूने वाले धार्मिक लोगों को तो उसे सबसे पहले भस्म करना चाहिए। लेकिन क्या किसी ने किसी बच्ची के बदन पर एक चुटकी राख देखी है जो कि गायब हो चुके बलात्कारी की रही हो?
इंसानों के बलात्कारी मिजाज पर कोई हैरानी नहीं है लेकिन लोगों के ऐसे अंधविश्वास पर हैरानी जरूर होती है जो कि ईश्वर की ऐसी धारणा पर भरोसा करते हुए अपनी आंखों से बलात्कार देखते रहते हैं, और उसके बाद भी आसाराम या बाबा राम-रहीम, या पादरियों, या मौलवियों पर भरोसा भी करते रहते हैं। अपने भक्तों के ऐसे अंधविश्वास को भी जो ईश्वर खत्म नहीं कर सकता, उसकी ताकत का अंदाज लगा लेना चाहिए, और किसी को भी यह उम्मीद नहीं करनी चाहिए कि वह किसी को बलात्कार से बचा सकेगा। वह तो अपने खुद के घर, पूजा-उपासना स्थल पर भी बेकसूर बच्चे-बच्चियों को नहीं बचा पाता, उससे सवाल पूछकर देखिए, अधिक गुंजाइश यही है कि उसका कोई जवाब नहीं मिलेगा।