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नयी दिल्ली, 26 सितंबर। उच्चतम न्यायालय ने गुजरात सरकार की उस याचिका को खारिज कर दिया जिसमें बिलकीस बानो मामले में राज्य के खिलाफ की गई कुछ टिप्पणियों को लेकर फैसले की समीक्षा करने का अनुरोध किया गया था।
न्यायालय ने 2002 के दंगों के दौरान बिलकीस बानो से बलात्कार और उनके परिवार के सात सदस्यों की हत्या के मामले में 11 दोषियों को सजा में छूट देने संबंधी गुजरात सरकार के निर्णय को खारिज करते हुए उसके (राज्य सरकार के) खिलाफ कुछ टिप्पणियां की थीं।
न्यायमूर्ति बी. वी. नागरत्ना और न्यायमूर्ति उज्ज्वल भुइयां की पीठ ने समीक्षा याचिका को खुली अदालत में सूचीबद्ध करने के आवेदन को भी खारिज कर दिया।
पीठ ने कहा, ‘‘समीक्षा याचिकाओं, चुनौती दिए गए आदेश और उनके साथ संलग्न दस्तावेज का ध्यानपूर्वक अध्ययन करने के बाद, हम इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि रिकॉर्ड में कोई त्रुटि या समीक्षा याचिकाओं में कोई दम नहीं है, जिसके कारण आदेश पर पुनर्विचार किया जाए। तदनुसार, समीक्षा याचिका खारिज की जाती है।’’
गुजरात सरकार ने याचिका में कहा था कि उच्चतम न्यायालय का आठ जनवरी का फैसला स्पष्ट तौर पर त्रुटिपूर्ण था जिसमें राज्य सरकार को ‘‘अधिकार हड़पने’’ और ‘‘विवेकाधिकार का दुरुपयोग’’ करने का दोषी ठहराया गया था।
याचिका में कहा गया है कि शीर्ष अदालत की एक अन्य समन्वय पीठ ने मई 2022 में गुजरात राज्य को ‘‘उपयुक्त सरकार’’ कहा था और राज्य को 1992 की छूट नीति के अनुसार दोषियों में से एक के माफी आवेदन पर निर्णय लेने का निर्देश दिया था।
इसमें कहा गया है, ‘‘13 मई, 2022 (समन्वय पीठ के) के फैसले के विरोध में समीक्षा याचिका दायर नहीं करने के लिए गुजरात राज्य के खिलाफ ‘‘अधिकार हड़पने’’ का कोई प्रतिकूल निष्कर्ष नहीं निकाला जा सकता है।’’
याचिका के अनुसार अदालत ने कठोर टिप्पणी की कि गुजरात राज्य ने ‘मिलीभगत से काम किया और प्रतिवादी नंबर तीन/आरोपी के साथ साठगांठ की।’ याचिका में कहा गया, ‘‘यह टिप्पणी न केवल अनुचित है और मामले के रिकॉर्ड के खिलाफ है, बल्कि याचिकाकर्ता-गुजरात राज्य के बारे में गंभीर पूर्वाग्रह पैदा किया है।’’
उच्चतम न्यायालय ने आठ जनवरी के अपने फैसले में 11 दोषियों को सजा में छूट देने संबंधी राज्य सरकार के फैसले को रद्द कर दिया था और दोषियों को दो सप्ताह के अंदर जेल भेजने का निर्देश दिया था।
घटना के वक्त बिलकीस बानो 21 साल की थीं और पांच माह की गर्भवती थीं। बानो से गोधरा ट्रेन अग्निकांड के बाद 2002 में भड़के दंगों के दौरान दुष्कर्म किया गया था। दंगों में मारे गए उनके परिवार के सात सदस्यों में उनकी तीन साल की बेटी भी शामिल थी।
गुजरात सरकार ने सभी 11 दोषियों को 15 अगस्त, 2022 को सजा में छूट दे दी थी और उन्हें रिहा कर दिया था।
उच्चतम न्यायालय ने सजा में छूट संबंधी दोषियों में से एक की याचिका पर गुजरात सरकार को विचार करने का निर्देश देने वाली अपनी एक अन्य पीठ के 13 मई, 2022 के आदेश को ‘अमान्य’ माना था और कहा कि यह ‘अदालत से धोखाधड़ी’ करके हासिल किया गया। (भाषा)