विशेष रिपोर्ट

गोला-बारूद की नहीं, बस्तर के स्कूलों में बच्चों की गूंज रही आवाज
30-Sep-2024 3:55 PM
गोला-बारूद की नहीं, बस्तर के स्कूलों में बच्चों की गूंज रही आवाज

तस्वीर / ‘छत्तीसगढ़’ / अभिषेक यादव

  आजादी के बाद पहली बार बीजापुर के कांवडग़ांव में बच्चे पढ़ रहे  

बीजापुर के कांवडग़ांव से लौटकर - प्रदीप मेश्राम

राजनांदगांव, 30 सितंबर (‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता)।  दक्षिण बस्तर के दुर्गम जिले बीजापुर के नक्सल प्रभाव वाले कांवडग़ांव गांव में गोला-बारूद के बजाय स्कूल में बच्चों के ककहरे की आवाज गूंज रही है।  आजादी के बाद पहली बार खुले प्राथमिक स्कूल में बच्चे अब प्राथमिक शिक्षा की बुनियाद समझ से रूबरू हो रहे हैं। अस्थाई रूप से बांस से निर्मित स्कूल में भले ही गिनती के बच्चे बुनियादी शिक्षा हासिल कर रहे हैं। हालांकि नक्सल खौफ से खुलकर कोई भी खुशी का इजहार नहीं कर रहा है। गांव में स्कूल का मुंह देखने के लिए ग्रामीणों को 70 बरस से ज्यादा का वक्त लग गया।

बीजापुर मुख्यालय से करीब 50 किमी दूर कांवडगांव में पुलिस की मदद से प्रशासन ने प्राथमिक स्कूल की नींव रखी। इस साल जुलाई में खुले स्कूल में कुल 35 बच्चे इमला सीख रहे हैं। कांवडग़ांव नक्सलियों के कब्जे में रहा है।  300 की जनसंख्या वाला यह गांव अब तक निरक्षर रहा है। गांव की मौजूदा पीढ़ी ने स्कूल का कभी रूख नहीं किया। 

स्कूल का पट खुलते ही आंगनबाड़ी और प्राथमिक स्कूल के बच्चों को विश्राम सिंह प्रजापति और एक अनुदेशक तालीम दे रहे हैं। स्कूल के पहले सत्र की शुरूआत से पहले बस्तर पुलिस को बारूद से भरे कांवडग़ांव के कच्चे रास्ते को पक्की सडक़ में बदलने के लिए कई दफे नक्सलियों से भिडऩा पड़ा। 

स्कूल के शिक्षक प्रजापति ने ‘छत्तीसगढ़’ को बताया कि आजादी के बाद पहली बार स्कूल खुलने से शिक्षा-दीक्षा के लिए बच्चों के हाथ कॉपी-पुस्तक देखकर सुखद माहौल बना है। कांवडग़ांव का इतिहास नक्सली आतंक के चलते काफी डरावना रहा है। नक्सलियों के कई बड़े कैडर कांवडग़ांव में आए दिन धमकते रहेे हंै, जिस जगह पुलिस की मदद से प्रशासन ने स्कूल का बांस से निर्मित ढांचा तैयार किया है। वहां नक्सलियों की बैठकें और फरमान जारी होता था। स्कूल के जगह को पत्थर के शिलालेख से घेरा गया है। शिलालेखों में हार्डकोर नक्सलियों की मौत की वजह और उनके नक्सल संगठन को दिए योगदान का जिक्र है।

बताया जाता है कि नक्सली मारे गए साथियों के योगदान को ग्रामीणों के लिए खुद को एक त्याग के रूप में पेश करते हंै, ताकि गांवों में बसे ग्रामीणों का संगठन से मोह भंग न हो। स्कूल प्रारंभ होने पहले बस्तर पुलिस की निगरानी में 8 किमी दूर कांवडगांव के कच्चे रास्ते पर पक्की सडक़ का निर्माण किया गया है।  

एक ग्रामीण ने नाम नहीं छापने  की शर्त पर बताया कि गांव में दाखिल होने से पहले एक  बेरियर में लोगों को सवाल-जवाब देना पड़ता था। यानी नक्सली नए चहेरों  को सघन जांच के बाद ही गांव में प्रवेश की अनुमति देते थे। पुलिस ने स्कूल खोलने से पहले गांव में नक्सलियों के ठिकानों को ध्वस्त किया। कांवडगांव में अब पीडीएस भवन, जल-जीवन मिशन की पानी टंकी और आंगनबाड़ी का नया भवन निर्माणाधीन है। कांंवडगांव में स्कूल खोलने से शिक्षा का एक उन्मृक्त माहौल बनने से पुलिस अपनेे अभियान को अगले गांव की ओर ले जाने की तैयारी कर रही है।

नक्सलियों को जवाब देने शिक्षा अहम हथियार- आईजी
सुरक्षा  के साथ शिक्षा को लेकर पुलिस का एक सकारात्मक अभियान चलाने को लेकर बस्तर रेंज आईजी सुंदरराज पी. का कहना है कि नक्सली नहीं चाहते कि बस्तर के लोग शिक्षित हो। नक्सली सिर्फ वनवासियों को ढ़ाल बनाकर अपने स्वार्थो की पूर्ति कर रहे हैं, इसलिए हमने नक्सलियों के हिंसक रवैये का  जवाब देने के लिए शिक्षा को हथियार बनाया है। जिसके बेहतर नतीजे भी सामने आ रहे हैं। पुलिस का शिक्षा के प्रति अभियान आगे भी जारी रहेगा।

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