संपादकीय
दुनिया के इतिहास में जब से लोगों को मौत समझ आने लगी तब से ही लोगों में अमर होने की भावना भी पैदा होने लगी। और कभी कबीलों के सरदारों को झांसा देकर कोई बैगा-गुनिया लोगों की बलि देते थे, कभी किसी का खून पिलाते थे, और कभी कोई पूजा-अनुष्ठान करते थे। दुनिया का इतिहास अमर होने की हसरत से भरा हुआ है। अब महज राजा नहीं रह गए जो कि ऐसी हसरत पर खर्च कर सकें, और दुनिया के संपन्न कारोबारी भी इसके लिए अंधाधुंध खर्च कर रहे हैं, और विज्ञान इस पर लगातार शोध कर रहा है, लगातार लोगों की औसत उम्र बढ़ती चली जा रही है, और दुनिया के अतिसंपन्न लोग अपने गुजरने के बाद अपनी लाश को रसायनों में लपेटकर इस तरह संभालकर रखवा रहे हैं कि कभी दुबारा जिंदा करना मुमकिन हो सके, तो उनका शरीर उस तकनीक का फायदा उठाने के लिए तैयार रहे। इसके अलावा तरह-तरह की तकनीकों से बीमारियों को दूर करना, सेहत को बेहतर करना, और बुढ़ापे को दूर धकेलना लगातार जारी है। दुनिया के अतिसंपन्न लोगों के इस्तेमाल के लिए ऐसी चिकित्सा और ऐसी तकनीक प्रयोगशालाओं से निकलकर बाजारों में आ रही है। हालांकि अभी यह बात साफ नहीं है कि अगर किसी तकनीक से सेहत सुधारी जा सकती है, और उम्र अधिक लंबी की जा सकती है तो क्या उससे बुढ़ापे के वे बढ़े हुए बरस अच्छी हालत में होंगे, या फिर वे अपने ही बदन पर बोझ बने हुए होंगे?
इस मुद्दे पर आज चर्चा की जरूरत इसलिए है कि कानपुर में बूढ़ों को जवान बनाने के नाम पर ठगी का एक इतना बड़ा मामला सामने आया है जो कि चिकित्सा विज्ञान का नाम लेकर तो धोखा दे ही रहा था, वह प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का नाम लेकर भी धोखा दे रहा था। ठोक-पीटकर दो लाख रूपए में बनाई गई एक मशीन को इजराइल से आई हुई मशीन बताकर लोगों को धोखा दिया जा रहा था, और इसे 25 करोड़ का बताकर लोगों से 60 दिन के इलाज के लाखों रूपए लिए जा रहे थे, और कहा जा रहा था कि इससे लोगों की उम्र 20-30 साल कम दिखने लगेगी। राजीव और रश्मि दुबे, पति-पत्नी की तरफ से लोगों को यह भी झांसा दिया गया था कि बाद में इस मशीन से इलाज की कतार इतनी लंबी हो जाएगी कि चार बरस तक नंबर नहीं आएगा, और यह देखकर लोगों ने हड़बड़ी में लाखों रूपए जमा किए, और नेटवर्क मार्केटिंग की तरह इसे आगे बढ़ाने पर लोगों को आकर्षक कमीशन भी देने की बात कही। बारह सौ लोगों से 35 करोड़ रूपए ठगकर यह जोड़ा फरार हो गया। और जो लोग इस मशीन में पांच बार बैठकर अपनी उम्र 20-30 बरस कम हो जाने की उम्मीद कर रहे थे, वे लोग अब मोटी रकम गंवाकर कुछ और बूढ़े ही हो गए हैं।
ऐसा लगता है कि हिन्दुस्तान में लोगों की अमर होने की चाह जितनी अधिक है, उतनी ही अधिक उनकी बेसब्री ठगा जाने की भी है। जिनके पास हर महीने जिंदा रहने के बाद कोई रकम बाकी है, वे मानो सूरज की रौशनी में भी टॉर्च या मोमबत्ती लेकर जालसाजों को ढूंढने निकले रहते हैं। वे मोबाइल पर बेसब्री से इंतजार करते रहते हैं कि कब किसी जालसाज का फोन आए, और किस तरह वे उसके खाते में रकम ट्रांसफर करें। किस तरह कब कोई लडक़ी उन्हें फोन करके कपड़े उतारने कहे, और कब वे वीडियो कॉल पर उसकी बात मानकर अपना जीवन धन्य करें। पूरी जिंदगी सीमित कमाई के काम-धंधे देखते हुए लोगों को अचानक अंधाधुंध कमाई पर भरोसा होने लगता है, और वे शेयर बाजार से लेकर क्रिप्टोकरेंसी तक के वॉट्सऐप समूहों पर पैसा झोंकने लगते हैं। यह सिलसिला खत्म होते दिखता ही नहीं है। कुछ तो ऐसे मामले सामने आ रहे हैं जिनमें लोग शादी करवाने के लिए लाखों-करोड़ों देने को उतारू रहते हैं। मेडिकल कॉलेज में दाखिले से लेकर सरकारी नौकरी तक जाने किस-किस काम के नाम पर लोग पैसे लुटाने एक पैर पर खड़े रहते हैं।
अब कानपुर का यह ताजा मामला तो एकदम ही भयानक इसलिए है कि जिनके पास जवानी वापिस पाने की हसरत पर लगाने के लिए लाखों रूपए थे, उनके पास कोई न कोई डॉक्टर जरूर रहे होंगे, और यह तो पक्का है कि उनमें से किसी भी डॉक्टर ने ऐसी सलाह नहीं दी होगी। आकर्षक औरत-मर्द का एक जोड़ा अगर लोगों को ऐसी अविश्वसनीय बात कहकर भी उन्हें इस हद तक ठग सकता है तो इस ठगी की कामयाबी के लिए ठग जितने होशियार थे, उससे अधिक बेवकूफ ठगाने वाले लोग थे। लोग अगर प्रधानमंत्री मोदी का नाम सुनकर यह मान लेते हैं कि मोदी इसी मशीन की वजह से हर दिन इतने घंटे काम कर पाते हैं, तो फिर हिन्दुस्तान में किसी भी पैसेवाले को तो कभी बूढ़ा दिखना ही नहीं था। अमिताभ बच्चन को अब तक अभिषेक बच्चन से अधिक जवान दिखना चाहिए था क्योंकि 25 करोड़ की मशीन तो वे अपने घर पर ही लगवा सकते थे, और तमाम खाली वक्त उसी में बैठे रह सकते थे। लोगों के पास जरूरत से कुछ अधिक पैसा, और हकीकत से कुछ अधिक बड़ी हसरत ने मिलकर ठगों का यह धंधा अच्छा-खासा चलवा दिया।
लोगों को याद होगा कि एक वक्त पैसे पेड़ों पर उगते हैं जैसे नारे लगाते हुए देश में सैकड़ों प्लांटेशन योजनाएं चली थीं, और आखिर में इनमें से हर एक झांसा साबित हुई। आज शेयर मार्केट, क्रिप्टोकरेंसी, सट्टा बाजार का यही हाल है। फिर कानपुर की इस ताजा ठगी में जिस तरह एक चेन-योजना सामने रखी गई थी, कि खुद जवानी खरीदने वाले लोग अगर अपने आसपास के लोगों को भी ऐसी जवानी बेच पाएंगे, तो उनकी आगे की जवानी मुफ्त मिल जाएगी, या उनको मोटी कमाई भी हो जाएगी। जब अपनी नाक कटा चुके लोग ईश्वर दिखाने के नाम पर बाकी लोगों की नाक कटवाने पर उतारू हो जाते हैं, तो फिर उन्हें साक्षात ईश्वर भी आकर नहीं रोक पाते। कानपुर में अच्छे-खासे बुढ़ापे तक पहुंचे हुए लोग अब पुलिस में रिपोर्ट लिखाए बैठे हैं कि जवानी न सही कम से कम उन्हें बुढ़ापे की जमा रकम तो वापिस मिल जाए। और इस किस्म से बेवकूफ बनने वाले लोगों के लिए कोई सरकारी सावधानी अभियान भी कारगर नहीं हो सकता क्योंकि जो अपनी जमापूंजी लुटाने पर आमादा हैं, उनमें से हर किसी के हाथ तो सरकार बांधकर नहीं रख सकती। फिर भी अच्छी बात यही है कि ठगी की यह तरकीब एक साथ पूरे देश में शुरू नहीं हुई, और बहुत लंबी भी नहीं चली। स्थानीय कबाड़ को ठोक-पीटकर जिसे 25 करोड़ की इजराइली मशीन बताया जा रहा था, उस पर लोगों को कुछ जल्दी ही शक हो गया, लेकिन तब तक भी लोगों के 35 करोड़ रूपए तो डूब ही गए। इससे लोगों को सबक लेना चाहिए कि पेड़ों पर रूपए न 30-40 बरस पहले फल पाए, और न अभी फल पाएंगे। रातोंरात करोड़पति बनने जैसी ही हसरत कुछ महीनों में जिंदगी की घड़ी 20-30 साल पहले सेट कर देने के भरोसे जैसी ही रहती है। लोगों को ऐसे झांसों पर अंधविश्वास के बजाय अपनी बड़ी साधारण सी समझबूझ पर भरोसा करना चाहिए। (क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)