संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : जिंदगी कितनी ऑटोमैटिक हो, जानलेवा हद तक?
27-Oct-2024 4:15 PM
‘छत्तीसगढ़’ का  संपादकीय : जिंदगी कितनी ऑटोमैटिक हो, जानलेवा हद तक?

कनाडा से दो ही दिन पहले खबर आई थी कि वहां चार भारतवंशी एक कार हादसे में मारे गए। वे बैटरी से चलने वाली सबसे मशहूर कार, टेस्ला, से जा रहे थे, गाड़ी फुटपाथ से टकराई, और उसमें आग लग गई। इस कार के दरवाजे इस हादसे के बाद लॉक हो गए जिन्हें भीतर बैठे लोग खोल नहीं पाए, और किसी तरह पास से गुजरते एक दूसरे कार वाले ने इस कार से एक लडक़ी को खींचकर निकाला, और बचाया। यह तो जख्मी हालत में अस्पताल में है लेकिन बाकी चार लोग बंद कार में जलकर मर गए। डिवाइडर से टक्कर के तुरंत बाद कार की बैटरी ने आग पकड़ ली थी, जिसकी आग को बुझाना कुछ मुश्किल होता है। मरने वाले चारों गुजरात के थे, और इनमें दो भाई-बहन भी थे। ऐसा कई जगह पर होता है कि जहां कारों में कोई ऑटोमेटिक लॉक रहते हैं, या सेंट्रल लॉक रहते हैं, तो वे किसी दुर्घटना के बाद नहीं खुल पाते, और पानी में गिरी हुई गाड़ी हो, या आग की लपटों में घिरी हुई, भीतर बैठे लोग संघर्ष करते हुए खत्म हो जाते हैं। इस मुद्दे पर लिखने की जरूरत नहीं लगी होती, अगर कल छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में इलेक्ट्रॉनिक ऑटोमेशन करने वाली एक शॉप में एसी फटने से भरे धुएं में दो लोग मारे नहीं जाते, और ऐसा इसलिए हुआ कि इस धमाके से इस दुकान के दरवाजे में लगे ऑटोमेटिक लॉक बंद हो गए, और फिर खुल ही नहीं पाए। लोगों को बचाने के लिए पुलिस को भीतर जाने को ये दरवाजे तोडऩे पड़े जिसके पीछे दुकान का मालिक भी धुएं में मर चुका था। यह कारोबार लोगों के घरों में ऑटोमेटिक लॉक वाले खिडक़ी-दरवाजे लगाने का ही था, और उसका एक बड़ा खतरा खुद इसके मालिक की मौत की शक्ल में सामने आया।

आज दुनिया का बाजार अपने प्रोडक्ट को दूसरों से बेहतर बताने के लिए, मुकाबले में आगे रहने के लिए उनमें बहुत सारी गैरजरूरी खूबियां जोड़ते चलता है। जिस तरह ऑटोमेटिक तालों से ये दो हादसे हुए, ऐसा ही कोई हादसा तब भी हो सकता है जब स्क्रीन लॉक लगा हुआ फोन हो, और उसके साथ किसी का एक्सीडेंट हो जाए। वैसे में लोगों को यह भी नहीं दिखेगा कि फोन किसका है, आखिर में कौन से नंबर लगाए गए थे, या इन केस ऑफ इमरजेंसी नाम से कोई फोन नंबर दर्ज हैं क्या। स्क्रीन लॉक के सौ अलग फायदे हो सकते हैं, लेकिन यह एक बड़ा नुकसान भी है कि किसी जख्मी के फोन से एम्बुलेंस को भी नहीं बुलाया जा सकता। स्क्रीन लॉक बनाने वालों को इमरजेंसी के लिए कुछ नंबरों और जानकारी को ताले के बाहर भी रखने का इंतजाम करना चाहिए था। आज घर और बाहर इस्तेमाल होने वाले छोटे-बड़े सभी किस्म के उपकरणों में बहुत सारी गैरजरूरी बातें जोड़ दी जाती हैं, जो कि उनके इस्तेमाल को जटिल बना देती हैं, और उससे कई बार तो सहूलियत कम और नुकसान अधिक होने लगता है। फिर ऐसी गैरजरूरी ‘खूबियों’ की वजह से सामानों के दाम भी बढ़ते हैं, और उनकी मरम्मत भी मुश्किल और महंगी हो जाती है। आज हालत यह है कि बहुत सी जटिल खूबियों वाले स्मार्टफोन की उलझनों से अपने बुजुर्ग मां-बाप को बचाने के लिए लोग बाजार में बहुत साधारण किस्म से बनाए गए ऐसे फोन लेने लगे हैं जो कि सिर्फ बात करा सकते हैं।

आज नई-नई कारों को देखें, तो उनमें खूबियों के नाम पर इस तरह का ऑटोमेशन जोड़ा गया है जो कि निहायत गैरजरूरी भी लगता है, और अगर उसमें गड़बड़ी आए तो उस कार को शुरू करना भी मुमकिन नहीं रहता। किसी मुसीबत के वक्त आई ऐसी गड़बड़ी जानलेवा हो सकती है। ऐसे में कभी-कभी लगता है कि पुराने वक्त की कारें जिनमें हर दरवाजे अलग-अलग लॉक होते थे, और खुलते थे, खिड़कियों के शीशे हैंडल से चढ़ाने पड़ते थे, और कार तक पहुंचने के पहले उसका इंजन शुरू करके एसी चालू करने की सहूलियत नहीं होती थी, उनमें क्या कमी थी? हम किसी टीवी या कम्प्यूटर की जटिलता की बात नहीं करते, लेकिन सडक़ पर अपने मुसाफिरों, और दूसरे लोगों की जिंदगी को खतरे में डालने का खतरा रखने वाली कारों की जटिलता की बात जरूर करना चाहते हैं कि क्या छोटी-छोटी सी खूबियां इस लायक होनी चाहिए कि किसी हादसे की हालत में वे जानलेवा खामी में तब्दील हो जाएं? 

जिन दो घटनाओं से हमने यह बात शुरू की है वो दोनों ही बिल्कुल ही गैरजरूरी जटिलता की वजह से जानलेवा साबित हुईं। हादसे में अपने आप दरवाजों को लॉक कर देने वाली कारों के मामले बहुत बड़ी संख्या में हो चुके हैं, और यह सिलसिला खत्म किया जाना चाहिए। अगर तकनीक में सुधार नहीं हो सकता, तो ऐसी मामूली खूबी को हटा देना चाहिए। और घर-दफ्तर के खिडक़ी-दरवाजों को ऑटोमेटिक लॉक करने के कारोबार के लिए इससे अधिक बदनामी का प्रचार क्या हो सकता है कि हादसे की नौबत में इसके मालिक के दफ्तर का दरवाजा ऐसा लॉक हुआ कि लाश ही बाहर निकल पाई! 

गैरजरूरी ऑटोमेशन के कई किस्म के खतरे होते हैं। लोग अपने घर पर ऐसे उपकरण रखने लगे हैं जिन्हें जुबानी हुक्म देकर वो कई किस्म के काम करवाते हैं, कोई फोन नंबर लगवा लेते हैं, कोई सामान ऑर्डर कर देते हैं, या टीवी का चैनल बदलवा लेते हैं। लेकिन हुक्म मानने वाले ऐसे ही एक उपकरण ने अमरीका में कुछ अरसा पहले पति-पत्नी के बीच किसी बहस को सुनकर खुद ही पुलिस को बुला लिया था। लोगों का यह भी मानना है कि इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों की ऐसी लगातार जिंदा मौजूदगी लोगों की जिंदगी की निजता खत्म करती है। लोग यह आशंका भी रखते हैं कि उनके फोन, लैपटॉप, या इन दिनों कैमरे और माइक्रोफोन वाले टीवी लोगों की बातों को रिकॉर्ड करने लायक हैक किए जा सकते हैं। सडक़ हादसे से लेकर निजता खत्म होने तक, लोगों को यह सोच-विचार करना चाहिए कि उन्हें रोज की जिंदगी में कितने ऑटोमेशन की जरूरत है? और आज के वक्त में यह बात एक बड़ी समस्या भी हो सकती है कि बिना भयानक ऑटोमेशन वाले उपकरण बाजार में ढूंढे जाएं। आज बहुत से सामान तो ऐसी खूबियों/खामियों के बिना बाजार में हैं ही नहीं। फिर भी ये दो हादसे हमें कम से कम रोजमर्रा के इस्तेमाल के सामानों के बारे में सोचने-विचारने का मौका तो दे रहे हैं। (क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)

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