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हज यात्रा पर पहली बार नहीं पड़ा असर, पहले भी हुई है कई बार रद्द
26-Jun-2020 10:43 AM
हज यात्रा पर पहली बार नहीं पड़ा असर, पहले भी हुई है कई बार रद्द

हज यात्रा पर पहली बार नहीं पड़ा असर, पहले भी हुई है कई बार रद्द
आरिफ़ शमीम
बीबीसी उर्दू, लंदन


सऊदी अरब की सरकार ने इस साल कोरोना वायरस को मद्देनज़र रखते हुए हज करने वालों की संख्या सीमित रखने का फ़ैसला किया है और सिर्फ़ सऊदी अरब में रहने वाले लोगों को हज करने की अनुमति दी है.

सऊदी न्यूज़ एजेंसी एसपीए के अनुसार 22 जून की रात सऊदी 'हज और उमरा मंत्रालय' की तरफ़ से जारी किये गए बयान में कहा गया है कि 'दुनिया के 180 से अधिक देशों में कोरोना वायरस जैसी महामारी फैली हुई है इस बात को ध्यान में रखते हुए सीमित संख्या में सिर्फ़ सऊदी में रहने वाले विभिन्न देशों के नागरिकों को हज करने का मौक़ा दिया जायेगा.'

जबकि सऊदी अरब के विदेश मंत्रालय की तरफ से ट्विटर पर भी सऊदी हज व उमरा मंत्रालय के इस फ़ैसले की जानकारी दी गई.

सऊदी हज व उमरा मंत्रालय ने अपने बयान में आगे कहा है कि 'कोरोना वायरस की महामारी से दुनियाभर में लगभग पांच लाख मौतें हो चुकी हैं और 70 लाख से अधिक लोग इस वायरस से संक्रमित हैं. कोरोना महामारी और रोज़ाना वैश्विक स्तर पर इस वायरस के संक्रमितों के बढ़ने की वजह से ये फ़ैसला किया गया है 'कि इस साल 1441 हिजरी (2020 ईस्वी) में हज के लिए सिर्फ़ सऊदी में रहने वाले विभिन्न देशों के नागरिकों को सीमित संख्या में अनुमति दी जाएगी.'

सऊदी हज व उमरा मंत्रालय के बयान में ये भी कहा गया है कि 'ये फ़ैसला इस बुनियाद पर लिया गया है कि हज सुरक्षित और स्वस्थ वातावरण में हो. कोरोना की रोकथाम का पूरा प्रबंध किया जा सके, हज यात्रियों की सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिए सोशल डिस्टेंसिंग पर अमल किया जा सके और मानव जीवन की सुरक्षा के बारे में इस्लामी शरीयत (क़ानून) के मक़सद को पूरा किया जा सके.'
याद रहे कि कोविड-19 को फैलने से रोकने के लिए सऊदी सरकार ने इससे पहले अपने पवित्र स्थानों पर उमरा करने पर भी पाबन्दी लगा दी थी.

ध्यान रहे कि सऊदी अरब में कोरोना की वजह से 1300 से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है जबकि संक्रमितों की संख्या एक लाख 61 हज़ार से अधिक है. सऊदी सरकार ने कोरोना की वजह से लॉकडाउन भी 22 जून से हटा दिया है जिसके बाद नियमित जनजीवन शुरू हो गया है.

अब जबकि सऊदी अरब ने कोरोना वायरस को मद्देनज़र रखते हुए इस साल हज को सीमित करते हुए सिर्फ़ सऊदी अरब में रहने वाले विदेशी नागरिकों को हज करने की इजाज़त दी है वहीं क्या आप जानते हैं कि इससे पहले हज कब-कब और कितनी बार रद्द किया गया है.

हज कब-कब रद्द हुआ?

इतिहास में पहली बार हज 629 ई. (छह हिजरी, इस्लामिक कैलेंडर) को मोहम्मद साहब के नेतृत्व में अदा किया गया था. इसके बाद हर साल हज अदा होता रहा.

हालांकि, मुसलमान सोच भी नहीं सकते कि किसी साल हज नहीं हो सकेगा. लेकिन इसके बावजूद इतिहास में लगभग 40 बार ऐसा हुआ है जब हज अदा ना हो सका और कई बार 'ख़ाना ए काबा' हाजियों के लिए बंद रहा.

इसके कई कारण थे जिनमें बैतुल्लाह (पवित्र स्थल) पर हमले से लेकर राजनैतिक झगड़े, महामारी, बाढ़, चोर और डाकुओं द्वारा हाजियों के क़ाफ़िले लूटना और ख़राब मौसम भी शामिल है.

सन 865: अल-सफ़ाक का हमला

सन 865 में स्माइल बिन यूसुफ़ ने, जिन्हें अल-सफ़ाक के नाम से जाना जाता है, उन्होंने बग़दाद में स्थापित अब्बासी सल्तनत के ख़िलाफ़ जंग का एलान किया और मक्का(पवित्र स्थल) में अरफ़ात के पहाड़ पर हमला किया.

उनकी फ़ौज के इस हमले में वहां मौजूद हज के लिए आने वाले हज़ारों श्रद्धालुओं की मौत हो गई.

इस हमले की वजह से उस साल हज न हो सका.

सन 930: क़रामिता का हमला

इस हमले को सऊदी शहर मक्का पर सबसे घातक हमलों में से एक माना जाता है.

सन 930 में क़रामिता समुदाय के मुखिया अबु-ताहिर-अलजनाबी ने मक्का पर एक हमला किया इस दौरान इतने क़त्ल और लूटमार हुई कि कई साल तक हज ना हो सका.

सऊदी अरब में स्थापित शाह अब्दुल अज़ीज़ फ़ाउंडेशन फ़ॉर रिसर्च एंड आर्काइव्स में छपने वाली एक रिपोर्ट में इस्लामी इतिहासकार और हदीसों के विशेषज्ञ अज़्ज़हबी की किताब 'इस्लाम की तारीख़' के सन्दर्भ से बताया गया है कि '316 हिजरी(इस्लामिक कैलेंडर) की घटनाओं की वजह से किसी ने करामिता के डर की वजह से उस साल हज अदा नहीं किया.'
क़रामिता उस समय की इस्लामी रियासत को नहीं मानते थे और इसी तरह वो रियासत के तहत माने जाने वाले इस्लाम से भी इंकार करते थे. वो समझते थे कि हज में किए जाने वाले कार्य इस्लाम से पहले के हैं, इस प्रकार वे मूर्ति पूजा की श्रेणी में आते हैं.

शाह अब्दुल अज़ीज़ फ़ाउंडेशन की रिपोर्ट में कहा गया है कि अबु ताहिर ख़ाना-ए-काबा के दरवाज़े पर ज़िल्हिज्जा (इस्लामिक कैलेंडर का अंतिम महीना) की 8 तारीख़ को तलवार लेकर खड़े हो गए और अपने सामने अपने सिपाहियों के हाथों श्रद्धालुओं का क़त्लेआम करवाते और देखते रहे.

रिपोर्ट के अनुसार वो कहते रहे कि इबादत करने वालों को ख़त्म कर दो, काबा का गिलाफ़ (काबे के चारों ओर लगा कपड़ा) फाड़ दो और 'हजरे असवद'(पवित्र पत्थर) को उखाड़ दो.

इस दौरान काबे में 30 हज़ार हाजियों का क़त्ल हुआ और उन्हें बिना किसी जनाज़े, स्नान और कफ़न के दफ़ना दिया गया.
इतिहासकारों के अनुसार हमलावरों ने लोगों को क़त्ल करने के बाद कइयों की लाश ज़म-ज़म (पवित्र पानी) के कुएं में भी फेंकीं ताकि इसके पानी को गन्दा किया जा सके.

इसके बाद हजरे असवद को उखाड़कर अपने साथ उस समय के सऊदी अरब के पूर्वी प्रांत अलबहरीन ले गए जहां ये अबु ताहिर के पास उसके शहर अलअहसा में कई साल रहा. अंत में फ़िरौती की एक भारी रक़म के बाद इसे वापिस ख़ाना-ए-काबा में लाया गया.

सन 983: अब्बासी और फ़ातिमी ख़िलाफ़तों में झगड़े

हज सिर्फ़ लड़ाइयों और जंगों की वजह से रद्द नहीं हुआ बल्कि यह कई साल राजनीति की भेंट भी चढ़ा.

सन 983 ई. में इराक़ की अब्बासी और मिस्र की फ़ातिमी ख़िलाफ़तों के मुखियाओं के बीच राजनीतिक कशमकश रही और मुसलमानों को इस दौरान हज के लिए यात्रा नहीं करने दी गई. इसके बाद हज 991 में अदा किया गया.

बीमारियों और महामारियों की वजह से हज रद्द

शाह अब्दुल अज़ीज़ फ़ाउंडेशन की रिपोर्ट के अनुसार, 357 हिजरी में एक बड़ी घटना की वजह से लोग हज ना कर सके और यह घटना असल में एक बीमारी थी.

रिपोर्ट में इब्ने ख़तीर की किताब 'आग़ाज़ और इख़्तिताम' का हवाला देकर लिखा गया है कि अलमाशरी नामक बीमारी की वजह से मक्का में बड़ी संख्या में मौतें हुई.

बहुत से श्रद्धालु रास्ते में ही मर गए और जो लोग मक्का पहुंचे भी तो वो हज की तारीख़ के बाद ही वहां पहुंच सके.

सन 1831 में भारत से शुरू होने वाली एक महामारी की वजह से मक्का में लगभग तीन-चौथाई श्रद्धालुओं की मौत हुई. यह लोग कई महीने की कठिन यात्रा करके हज के लिए मक्का आए थे.
इसी तरह 1837 से लेकर 1858 में 2 दशकों में 3 बार हज को रद्द किया गया जिसकी वजह से श्रद्धालु मक्का की यात्रा नहीं कर सके.

1846 में मक्का में हैज़े की बीमारी से लगभग 15 हज़ार लोगों की मौत हुई. यह महामारी मक्का में सन 1850 तक फैलती रही लेकिन इसके बाद भी कभी-कभार इससे मौतें होती रहीं.

अधिकतर शोधकर्ताओं के अनुसार यह महामारी भारत से श्रद्धालुओं के ज़रिये आई थी जिसने ना सिर्फ़ उनको बल्कि मक्का में दूसरे देशों से आने वाले बहुत से दूसरे श्रद्धालुओं को भी संक्रमित किया था.

मिस्री श्रद्धालू जल्दी से जल्दी लाल सागर के तट की तरफ़ भागे जहां उन्हें क्वारंटीन में रखा गया. यह महामारी बाद में न्यूयॉर्क तक फैली. यहां एक अहम बात ये भी है कि उस्मानिया सल्तनत के दौर में हैज़े की महामारी के ख़ात्मे के लिए क्वारंटीन पर ज़ोर दिया गया था.

रास्ते में डाकुओं का डर और हज के बढ़ते हुए ख़र्चे

सन 390 हिजरी (1000 ई. के आसपास)में बढ़ती हुई महंगाई और हज की यात्रा के ख़र्चों में बहुत ज़्यादा वृद्धि की वजह से लोग हज पर न जा सके और इसी तरह 430 हिजरी में इराक़ और खुरासान से लेकर शाम और मिस्र के लोग हज पर नहीं जा सके.

शाह अब्दुल अज़ीज़ फ़ाउंडेशन की रिपोर्ट के अनुसार 492 हिजरी में मुस्लिम दुनिया में आपस में जंगों की वजह से मुसलमानों को बहुत नुक़सान हुआ जिससे हज की पवित्र यात्रा भी प्रभावित हुई.

654 हिजरी से लेकर 658 हिजरी तक हेजाज़ के अलावा किसी और देश से हाजी मक्का नहीं पहुंचे. 1213 हिजरी में फ़्रांसिसी क्रांति के दौरान हज के क़ाफ़िलों को सुरक्षा और सलामती की वजह से रोक दिया गया.

जब कड़ाके की सर्दी ने हज रोक दिया

सन 417 हिजरी को इराक़ में बहुत अधिक सर्दी और बाढ़ की वजह से श्रद्धालु मक्का की यात्रा न कर सके.

इस तरह बहुत ठन्डे मौसम की वजह से हज को रद्द करना पड़ा था.
किस्वा पर हमला
सन 1344 हिजरी में ख़ाना-ए क-बा के गिलाफ़, किसवा को मिस्र से सऊदी अरब लेकर जाने वाले क़ाफ़िले पर हमला हुआ जिसकी वजह से मिस्र का कोई हाजी भी ख़ाना-ए-काबा न जा सका.

ये ईसवी के हिसाब से 1925 का साल बनता है.

लेकिन ये बात भी महत्वपूर्ण है कि जब से सऊदी अरब अस्तित्व में आया है, यानी 1932 से लेकर अब तक, ख़ाना-ए-काबा में हज कभी नहीं रुका. (www.bbc.com)

 

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