विचार / लेख
चीन के साथ तनातनी के बीच केंद्र सरकार ने बीएसएनएल और एमटीएनएल में किसी भी चीनी उपकरण के प्रयोग पर तत्काल रोक लगा दी लेकिन यही मोदी सरकार हवाई कंपनी को कुछ महीने पहले ही भारत में 5 प्रतिशत ट्रायल शुरू करने की अनुमति दे चुकी है, है न आश्चर्य की बात?
चीन के सामान के बहिष्कार की खबरें आती रही और कल ही चीन की ग्रेट वॉल मोटर (जीडब्ल्यूएम) ने महाराष्ट्र सरकार के साथ एक समझौता ज्ञापन (एमओयू) साइन कर भारत के ऑटोमोबाइल में एक बड़ी डील की घोषणा की है और महाराष्ट्र को क्या रोना? चीन की एसएआईसी मोटर कॉर्प गुजरात के पंचमहल जिले के हलोल में प्लांट लगा रही है एफआईसीसीआई की एक रिपोर्ट के मुताबिक पिछले 6 सालों में देश के ऑटोमोबाइल सेक्टर में 40 प्रतिशत, हिस्सा चीन के कब्जे में जा चुका है ओर जल्द ही पूरा चला जाएगा!, फिर कहा जाएगा आपका तथाकथित आत्मनिर्भर?
देश के बड़े-बड़े टेंडर जैसे मेट्रो रेल, सुरँग निर्माण जैसे ठेके भी चाइना की कम्पनियों को बेहिसाब ढंग से बाँटे गए हैं जो हम रोज अखबारों में देख रहे हैं हा अखबारों से याद आया। आपको याद होगा कि कुछ दिन पहले ही मोदीजी के प्रिय मित्र अडानी को दुनिया का सबसे बड़ा सोलर संयंत्र देश में स्थापित करने का ठेका दिया गया है।
साल 2011-12 तक भारत जर्मनी, फ्रांस, इटली को सोलर पैनल एक्सपोर्ट करता था। यानी भारत माल भेजता था लेकिन 2014 के बाद से चीन की सोलर पैनल की डंपिंग के चलते भारत से सोलर पैनल का एक्सपोर्ट रुक गया है सिर्फ चाइनीज सोलर पैनल की डंपिंग की वजह से देश में दो लाख नौकरियां खत्म हुई हैं। और यह सब किया गया इज ऑफ डूइंग बिजनेस के नाम पर आज हमने अपने सोलर पैनल उत्पादन को लगभग खत्म कर दिया है और सारा माल चीन से मंगाना शुरू कर दिया है चीन से इंपोर्ट होने वाले सोलर पैनल में एंटीमनी जैसे खतरनाक रसायन होते हैं, जिनके आयात की अनुमति नहीं होनी चाहिए। लेकिन उसके बावजूद यह अनुमति दी गई। नतीजा यह हुआ कि हमने अपनी सोलर पैनल इंडस्ट्री को पिछले 6 सालों में तबाह कर लिया।
और यह मैं नहीं कह रहा हूँ यह कह रही है अकाली दल के नरेश गुजराल की अध्यक्षता वाली संसद की वाणिज्य संबंधी स्थाई समिति। यह समिति अपनी रिपोर्ट में कहती है कि यह समिति चीन से सस्ते सामान के आयात की भत्र्सना करती है। बहुत ही दुखद बात है कि ‘ईज ऑफ डूइंग बिजनेस’ के नाम पर हम चीनी सामान को अपने बाजार में जगह देने के लिए बहुत उत्सुक हैं जबकि चीन सरकार अपने उद्योग को भारतीय प्रतिस्पर्धियों से बहुत चालाकी से बचा रही है। समिति ने पाया कि ब्यूरो ऑफ इंडियन स्टैंडर्ड्स (बीआईएस) जैसी संस्थाएं घटिया चीनी सामान को भी आसानी से सर्टिफिकेट दे रही हैं जबकि हमारे निर्यात को चीन सरकार बहुत देरी से और काफी ज्यादा फीस वसूलने के बाद ही चीनी बाजार में प्रवेश करने देती है।
चाइना के टीवी फोडऩे से, चीनी एप्प अन इंस्टाल करने से, या आ चुके चीनी सामान का बहिष्कार करने से कुछ भी नहीं होगा! हमें चीन की लकीर को छोटा करना है तो हमे बड़ी लकीर खींचनी होगी जिस तरह से भारत निजीकरण की तरफ बढ़ रहा है जिस तरह से बड़े-बड़े ठेके चीनियों को दिए जा रहे है ऐसे तो आप कितना भी हंगामा मचा लो चीन का हम कुछ भी नही बिगाड़ पाएँगे।