सामान्य ज्ञान
गिल्ट फंड्स ऐसी म्यूचुअल फंड स्कीमें होती हैं, जो मुख्य रूप से गवर्नमेंट सिक्योरिटीज में निवेश करती हैं। इन गवर्नमेंट सिक्योरिटीज में डेटेड सेंट्रल गवर्नमेंट सिक्योरिटीज, स्टेट गवर्नमेंट सिक्योरिटीज और ट्रेजरी बिल शामिल होते हैं। गिल्ट फंड्स में निवेश करने के बाद इनवेस्टर्स को किसी तरह का क्रेडिट रिस्क नहीं होता है, क्योंकि इन सिक्योरिटीज की गारंटी केंद्र सरकार देती है। ये फंड्स लॉन्ग टर्म गवर्नमेंट सिक्योरिटीज पेपर्स में निवेश करते हैं।
इन स्कीमों में लिक्विडिटी और बायर्स की दिलचस्पी बढ़ाने के लिए रिजर्व बैंक ने कई कदम उठाए हैं। आरबीआई ने गवर्नमेंट सिक्योरिटीज में निवेश करने वाले गिल्ट फंड्स के लिए रिवर्स री-परचेज सुविधा का दायरा बढ़ा दिया है। सेंट्रल बैंक गिल्ट फंड्स ट्रांजैक्शन के लिए एक सब्सिडियरी जनरल लेजर एकाउंट और करेंट एकाउंट की सहूलियत देता है। गिल्ट फंड्स को रिजर्व बैंक की रेमिटेंस फैसिलिटी स्कीम के तहत एक सेंटर से दूसरे सेंटर में फंड ट्रांसफर करने की सुविधा दी गई है।
गिल्ट फंड्स पूरी तरह जोखिम से मुक्त नहीं होते हैं। इसमें इंटरेस्ट रेट रिस्क बना रहता है। इंटरेस्ट रेट बढऩे पर बॉन्ड की कीमत कम होती है। ऐसे में जब ब्याज दरों में तेजी आती है तो इसका प्रदर्शन अच्छा नहीं होता है। गिल्ट फंड्स में लिक्विडिटी रिस्क भी होता है। कोई सिक्योरिटी तब लिक्विड होती है, अगर उसे आसानी से खरीदा और बेचा जा सके। साथ ही उसके बायर्स और सेलर्स की संख्या लगभग बराबर हो। आमतौर पर ऐसा माना जाता है कि हायर लिक्विडिटी का मतलब कम रिस्क है।