विचार / लेख
पश्चिमी तट में एक गाँव का दृश्य।
संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार उच्चायुक्त मिशेल बाशेलेट ने इसराइल द्वारा काबिज फलस्तीनी इलाकों को गैरकानूनी ढंग से छीनने की योजना से पीछे हटने को कहा है। यूएन मानवाधिकार प्रमुख ने इसराइल की इस कार्रवाई का फलस्तीनियों और पूरे क्षेत्र के लिए चेतावनी भरे शब्दों में विनाशकारी असर होने की आशंका जताई है। इससे पहले यूएन महासचिव ने भी स्पष्ट शब्दों में कहा था कि ऐसी कोई भी एकतरफा कार्रवाई अन्तरराष्ट्रीय कानून का गम्भीर उल्लंघन होगी।
मानवाधिकार उच्चायुक्त बाशेलेट ने कहा कि ऐसी कोई भी कार्रवाई गैरकानूनी है जिस पर और बात हो ही नहीं सकती।
ज़मीन छीना जाना ग़ैरक़ानूनी है। बस। हड़पने की कोई भी कार्रवाई, फिर चाहे वो पश्चिमी तट का 30 फ़ीसदी हो या फिर पाँच फ़ीसदी।
उन्होंने कड़े शब्दों में कहा कि ऐसी कार्रवाई के झटके कई दशकों तक महसूस किए जाते रहेंगे और यह इसराइल और फ़लस्तीनी, दोनों के लिए बेहद नुक़सानदेह होगा। साथ ही उन्होंने समय रहते इस फ़ैसले को पलटने का आहवान किया है।
ग़ौरतलब है कि इसराइली प्रधानमन्त्री बिन्यामिन नेतान्याहू ने मार्च 2020 में राष्ट्रीय चुनावों के आखिरी दौर में प्रचार के दौरान फ़लस्तीनी इलाक़े छीनने की योजना को अपने चुनावी प्रमुख वादों में शामिल किया था।
मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक ऐसी काफ़ी सम्भावना है कि इसराइली प्रधानमन्त्री क़ाबिज़ फ़लस्तीनी पश्चिमी तट के इलाक़ों को एकतरफ़ा रूप से हड़पने के वादे पर एक जुलाई तक अमल कर सकते हैं।
इस योजना से पश्चिमी तट पर इसराइल की सम्प्रभुता लगभग 30 फ़ीसदी तक बढ़ जाएगी – इसमें जॉर्डन घाटी से सैकड़ों ग़ैरक़ानूनी इसराइली बस्तियों तक का क्षेत्र शामिल है। लेकिन फ़लस्तीनियों ने इस कार्रवाई का प्रतिरोध करने, यहाँ तक कि हिंसा की भी चेतावनी दी है।
हाल ही में यूएन प्रमुख एंतोनियो गुटेरेश ने भी सुरक्षा परिषद की वर्चुअल बैठक को सम्बोधित करते हुए कहा था कि अगर इलाक़े हड़पने की इस योजना पर अमल हुआ तो यह अन्तरराष्ट्रीय कानून का एक गम्भीर उल्लंघन होगा जिससे दो-राष्ट्र के समाधान की आशाओं और वार्ता शुरू होने की सम्भावनाओं को नुक़सान होगा।
मानवाधिकार प्रमुख मिशेल बाशेलेट ने महासचिव गुटेरेश की इस अपील का पुरज़ोर समर्थन किया है।
यूएन महासचिव एंतोनियो गुटेरेश ने इसराइली सरकार से इलाक़े छीनने की अपनी योजना को छोडऩे की पुकार लगाई थी और हम उस अपील का 100 फ़ीसदी समर्थन करते हैं।
उन्होंने इसराइली लोगों से अपने पूर्व वरिष्ठ अधिकारियों, जनरलों और दुनिया भर से उठी आवाज़ों को सुनने का आग्रह किया है जो इस ख़तरनाक रास्ते पर आगे ना बढऩे के लिए आगाह कर रही हैं।
शान्ति प्रयासों को झटका
मानवाधिकार प्रमुख ने स्पष्ट किया कि ज़मीन हड़पे जाने की इस कार्रवाई के असल नतीजों का अनुमान फि़लहाल नहीं लगाया जा सकता। लेकिन ये नतीजे फ़लस्तीनियों, इसराइल, और व्यापक क्षेत्र के लिए विनाशकारी होने की आशंका है।
उन्होंने कहा कि क़ाबिज़ फ़लस्तीनी इलाक़ों को छीने जाने का कोई भी प्रयास ना सिफऱ् क्षेत्र में स्थाई शान्ति की सम्भावनाओं को क्षति पहुँचाएगा बल्कि इससे मानवाधिकार हनन के मामले बढऩे की भी आशंका है।
आवाजाही की आज़ादी के अधिकार पर पाबन्दी होने से फ़लस्तीनी समुदाय के लिए मुश्किलें बढ़ जाने की आशंका है : उनके लिए अपने ही खेतों में काम करना, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाएँ हासिल करना और मानवीय राहत हासिल करना और भी ज़्यादा मुश्किल हो सकता है।
साथ ही उन पर छीने गए इलाक़ों से बाहर जाने का दबाव होगा और उन्हें जबरन अन्य इलाक़ों में भी भेजा जा सकता है।
छीने गए इलाक़ों से बाहर रहने वाले फ़लस्तीनियों का अपने प्राकृतिक संसाधनों तक पहुँचना बाधित हो सकता है और अपने ही देश को छोडऩे या लौटने की सम्भावनाओं पर भी असर पड़ेगा।
पहले से क़ायम इसराइली बस्तियाँ अन्तरराष्ट्रीय क़ानून का स्पष्ट उल्लंघन बताई गई हैं और अब उनका दायरा बढऩे से दोनों समुदायों के बीच पहले से पसरा तनाव और ज़्यादा गहरा सकता है।
मानवाधिकार उच्चायुक्त ने चिन्ता जताई कि छोटे स्तर पर भी ज़मीन छीने जाने से हिंसा और लोगों की जि़न्दगियाँ जाने का ख़तरा है क्योंकि दीवारें खड़ी की जाएँगी, सुरक्षाकर्मी तैनात किये जाएँगे और दोनों जनसमूह एक दूसरे के आस-पास रहेंगे।
एक ही क्षेत्र में दो स्तर वाले क़ानून की मौजूदा व्यवस्था और गहराई से समाहित होगी जिसका फ़लस्तीनियों के जीवन पर तबाहीपूर्ण असर होगा जिनके पास फि़लहाल क़ानूनी उपाय कम या ना के बराबर है। (news.un.org)