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केंद्र में इस रैंक पर नहीं आना चाहते आईएएस-आईपीएस, कैसे निजात पाएगी सरकार
03-Jul-2020 12:15 PM
केंद्र में इस रैंक पर नहीं आना चाहते आईएएस-आईपीएस, कैसे निजात पाएगी सरकार

जितेंद्र भारद्वाज

नई दिल्ली, 3 जुलाई। केंद्र सरकार में बतौर प्रतिनियुक्ति आईएएस और आईपीएस अधिकारी संयुक्त सचिव रैंक से नीचे के पदों पर नहीं आना चाहते। अधिकांश राज्यों के आईएएस अफसर केंद्र में प्रतिनियुक्ति पर निदेशक या उप सचिव जैसे पदों पर काम करने के इच्छुक नहीं हैं।

ऐसा ही हाल आईपीएस अधिकारियों का है। इनकी केंद्रीय प्रतिनियुक्ति रिपोर्ट पर गौर करें तो विभिन्न सुरक्षा बलों या जांच एजेंसियों में एसपी और डीआईजी के पचास फीसदी से ज्यादा पद खाली पड़े रहते हैं। अगर डीआईजी के पदों की बात करें तो यह आंकड़ा 70 फीसदी के पार पहुंच जाता है। 

इनके इंतजार में कैडर अधिकारियों को भी परमोशन नहीं मिल पाता। अब डीआईजी के अनेक पद, जो आईपीएस के लिए खाली रहते हैं, उन्हें कैडर के पाले में डाला जा रहा है। अगर आईजी या उससे ऊपर के पदों को देखें तो वे ज्यादातर भरे रहते हैं।

एक पूर्व आईएएस अधिकारी कहते हैं कि एसपी और डीसी के पद पर रौब होता है। ऐसे वे अपने मूल कैडर वाले राज्य में ही तैनाती को प्राथमिकता देते हैं।
केंद्र में एसपी, उप सचिव, निदेशक या डीआईजी जैसे पदों पर स्वतंत्र कार्यभार व जलवा नहीं होता है। आईएएस के पदों को भरने के लिए अब केंद्र सरकार लेटरल एंट्री के विकल्प की ओर बढ़ रही है।

डीओपीटी के एक अधिकारी बताते हैं कि प्रतिनियुक्ति कोटे को लेकर केंद्र सरकार चिंतित है। पिछले कुछ वर्षों का रिकॉर्ड देखें, तो अधिकांश राज्यों के लिए केंद्रीय प्रतिनियुक्ति का जो कोटा तय किया गया है, वह खाली रह जाता है।

खासतौर पर, उप सचिव और निदेशक के पद नहीं भर पाते हैं। इससे कई मंत्रालयों का कामकाज प्रभावित होता है। पिछले साल केंद्र सरकार ने संयुक्त सचिव स्तर पर लेटरल एंट्री स्कीम के जरिए नौ नियुक्तियां की थीं। अब सरकार उसी दिशा में कदम आगे बढ़ा रही है।

हो सकता है कि निदेशक और उप सचिव स्तर के पौने चार सौ से अधिक पदों को उक्त योजना के तहत भरा जाए। वाणिज्य मंत्रालय, रसायन, स्पेस तकनीक, ट्रांसपोर्ट, मेक इन इंडिया प्रोजेक्ट, रेलवे, दूरसंचार, एचआरडी, हेल्थ, कृषि सेक्टर और कई दूसरे ऐसे विभाग हैं, जहां पर लेटरल एंट्री के जरिए पदों को भरा जा सकता है।

इस बाबत काम शुरू कर दिया गया है। सभी मंत्रालयों और विभागों से खाली पदों की सूची मांगी गई है।

आखिर केंद्र में प्रतिनियुक्ति पर क्यों नहीं आ रहे आईएएस
केंद्र सरकार में करीब 1400 ऐसे पद हैं, जो सिविल सर्विस वाले अधिकारियों के लिए रखे गए हैं। इनमें ज्यादातर उप सचिव व निदेशक स्तर के पद हैं। हालांकि ये सभी पद आईएएस अधिकारियों के लिए नहीं हैं, इनमें दूसरी केंद्रीय सेवाएं जैसे आईएफएस व आईआरएस आदि सेवाओं के अफसर भी शामिल हैं।
छह सौ ऐसे पद हैं, जहां केंद्रीय सचिवालय सेवा के तहत पदोन्नति पाने वाले अधिकारियों को तैनात किया जाता है। आईएएस प्रतिनियुक्ति के तहत उपसचिव और निदेशक पदों पर अधिकारियों का इंतजार करना पड़ता है।

इसकी वजह है कि संबंधित अधिकारी अपने मूल कैडर में डिस्ट्रिक्ट कलेक्टर बन कर जाना ज्यादा अच्छा समझता है। वहां पर उसके पास बहुत से मामलों में स्वायत्तता होती है। एनडीएमए से सेवानिवृत हुए एक आईएएस का कहना है कि सारी बात दिखावे की है।

जब कोई आईएएस बनकर आता है तो उसका प्रयास होता है कि वह जिले में डीसी या डीएम लगे। इसके बाद जब वह उपसचिव के पद से आगे बढ़ता है, तो अपने राज्य की राजधानी में निदेशक बन कर बैठना पसंद करते हैं।

जैसे ही वे इस पद से आगे बढक़र संयुक्त सचिव या अतिरिक्त सचिव जैसे पदों पर पहुंचते हैं, तो वे केंद्रीय प्रतिनियुक्ति चाहने लगते हैं। वजह, केंद्र में इन पदों को बेहद प्रभावशाली माना जाता है। दायरा भी लंबा-चौड़ा होता है। देश के अलावा विदेशी दौरों की संभावनाएं बनी रहती हैं।

आईपीएस भी एसपी और डीआईजी के पद पर केंद्र में नहीं आना चाहते
यही हाल आईपीएस का है। अगर उन्हें केंद्र में किसी सुरक्षा बल, जांच एजेंसी या किसी अन्य विभाग में एसपी और डीआईजी का पद दिया जाता है, तो वे ज्वाइन करने में आनाकानी करने लगते हैं। वजह, राज्य जैसी सुविधाएं केंद्र में नहीं मिलेंगी।

जैसे बीपीआरएंडडी में डीआईजी आईपीएस के लिए 12 पद हैं, लेकिन उनमें से दस खाली पड़े हैं। यह हालत तो तब है जब आईपीएस के इंतजार में सात पद सीएपीएफ के कैडर अफसरों के लिए दे दिए गए हैं।

एसपी के 13 पदों में से छह खाली है। बीएसएफ में डीआईजी के 26 पद हैं। जब आईपीएस नहीं मिले तो 15 पदों को कैडर अधिकारियों से भरने के लिए कहा गया। इसके बावजूद छह पद खाली रह गए।

सीबीआई में डीआईजी के 35 स्वीकृत पद हैं, लेकिन 20 खाली पड़े हैं। एसपी के 59 पद हैं, मगर अभी 29 पद खाली हैं। सीआईएसएफ में डीआईजी के बीस में से 16 पद खाली हैं।

सीआरपीएफ में डीआईजी के 37 पद स्वीकृत हैं। जब आईपीएस नहीं आए, तो 18 पद अस्थायी तौर पर कैडर अफसरों की ओर शिफ्ट कर दिए। इसके बाद भी आधे पद खाली हैं। आईबी में डीआईजी के 63 पद हैं, लेकिन 28 खाली हैं।

एसपी के 83 पद हैं, जिनमें से 54 खाली पड़े हैं। केंद्र में आईपीएस के लिए डीआईजी के कुल 253 पद स्वीकृत हैं, लेकिन अभी 134 खाली हैं। इसी तरह एसपी के 197 स्वीकृत पदों में से 97 खाली हैं। बता दें कि ये संख्या तो तब है, जब बहुत से पद आईपीएस के न आने के कारण कैडर अफसरों को दे दिए गए।

सुप्रीम कोर्ट में चल रहा है आईपीएस बनाम कैडर अफसर विवाद
भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) और केंद्रीय अर्धसैनिक बलों (सीएपीएफ) के कैडर अफसरों का विवाद सुप्रीम कोर्ट में है। हालांकि दिल्ली हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट सीएपीएफ के पक्ष में फैसला दे चुके हैं, लेकिन प्रमोशन को लेकर वह फैसला लागू नहीं किया गया है।

कैडर अधिकारियों का कहना है कि जब तक नए सर्विस रूल नहीं बनते, तब तक इस फैसले का कोई औचित्य नहीं है। कोर्ट ने केंद्रीय अर्धसैनिक बलों में आईजी के पचास फीसदी पदों को प्रतिनियुक्ति के जरिए भरने पर रोक लगा रखी है।

केंद्र सरकार ने पिछले दिनों कोविड-19 को आधार बनाकर कहा था कि सीएपीएफ में आईजी के पदों को भरा जाना जरूरी है। सरकार ने अपनी दलील में तात्कालिकता यानी ‘अर्जेन्सी’ का हवाला देकर स्टे हटाने की गुजारिश की थी।

इससे कोर्ट सहमत नहीं हुई और केंद्र सरकार की याचिका को खारिज कर नए सिरे से आवेदन देने का आदेश जारी कर दिया। अगले सप्ताह सुप्रीम कोर्ट में इस मामले की सुनवाई है।

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