अंतरराष्ट्रीय
हॉन्गकॉन्ग, 4 जुलाई । हुवावे के बल पर वर्ष 2030 तक डिजीटल तकनीक की दुनिया पर राज करने का सपना देख रहे चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग को बड़ा झटका लगा है। दुनिया में चीन की ताकत का प्रतीक कहे जानी वाली हुवावे कंपनी पर अमेरिका ने ताजा प्रतिबंध लगा दिया है। इससे हुवावे की अमेरिकी तकनीकों तक पहुंच बहुत सीमित हो गई है। इन प्रतिबंधों के बाद के अब हुवावे के 5 प्रतिशत तकनीक मुहैया कराने के वादे पर सवाल उठने लगे हैं। संकट की इस घड़ी में भारत और पूरी दुनिया में बढ़ रहे चीन विरोधी माहौल ने हुवावे की मुश्किलों को और बढ़ा दिया है।
सीएनएन की रिपोर्ट के मुताबिक हुवावे इस समय बहुत ज्यादा दबाव में है। उसकी अमेरिकी तकनीकों तक पहुंच इससे पहले इतनी कम कभी नहीं थी। अब दुनियाभर में मोबाइल कंपनियां यह सवाल कर रही हैं कि क्या हुवावे समय पर अपने 5 प्रतिशत तकनीक मुहैया कराने के वादे को पूरा कर पाएगी या नहीं। यही नहीं लद्दाख में सीमा पर चल रहे भारी तनाव से दुनिया के विशालतम बाजारों में से एक भारत में चीनी कंपनी के लिए संकट पैदा हो गया है। यही नहीं पूरे विश्व में चीन विरोधी भावनाएं तेज होती जा रही हैं।
अमेरिका के विदेश मंत्री माइक पोम्पियो ने पिछले महीने घोषणा की थी कि हुवावे के खिलाफ माहौल बहुत खराब हो गया है क्योंकि दुनियाभर में लोग चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के सर्विलांस स्टेट के खिलाफ आवाज उठा रहे हैं। पोम्पियो ने चेक रिपब्लिक, पोलैंड और इस्टोनिया जैसे देशों की तारीफ की जो केवल विश्वसनीय वेंडर्स को ही अनुमति दे रहे हैं। पोम्पियो ने पिछले दिनों भारत की टेलिकॉम कंपनी जियो की भी तारीफ की थी जिसने हुवावे की तकनीक को नहीं लिया है।
वॉशिंगटन स्थित थिंक टैंक न्यू अमेरिकन सिक्यॉरिटी की शोधकर्ता कारिसा नेइश्चे ने कहा कि यूरोप में बदलाव की शुरुआत हो गई है। उन्होंने कहा कि यूरोप के देश और मोबाइल सेवा प्रदाता कंपनियां इस बात से बहुत चिंतित हैं कि अमेरिकी प्रतिबंधों से हुवावे के बिजनस को बहुत बड़ा झटका लगा है और वह सही समय पर 5 प्रतिशत तकनीक मुहैया नहीं करा पाएगी। दरअसल, अमेरिकी प्रतिबंधों के दायरे में ताइवान की कंपनी टीएसएमसी भी आ गई है जो हुवावे को चिप और अन्य जरूरी उपकरण मुहैया कराती है। (navbharattimes.indiatimes.com)