विचार / लेख
घर से मांगकर 100 रुपये लाया है, 70 का पेट्रोल डलवाया। कुल 30 रुपये जेब में पड़े हैं। सुबह निकलते वक्त मां से मांगे थे। बाप ने सुनकर ताना भी दिया, इस उमर में भी तू इस लायक नहीं हुआ कि गाड़ी में पेट्रोल भरा सके। फिर हमेशा की तरह मां ने पिता से नजर बचाकर, बेटे को 100 रुपए दिए।
(मां साथ में पूछती भी जा रही है, देख तू झूठ तो नहीं बोल रहा न कि तेरी 3 महीने से सैलरी नहीं हुई है। इतना बड़ा पेपर है, सैलरी तो देते ही होंगे। आखिर में भरोसा करते हुए कहती है। देख जब सैलरी हो तो याद से दे देना। मेरे पास रखा हुआ अब सिर्फ 400 रुपए बचा है।)
शर्मिंदगी के हालत में बाहर वाले रूम में बैठे पिता से नजरें चुराते हुये, पत्रकार साहब ने बाईक उठाई। 10 मिनट किक मारने के बाद गाड़ी चालू हुई। शायद कई महीने से सर्विसिंग नहीं हुई थी।
आज उसे संपादक जी ने असाइनमेंट दिया है।
जबलपुर में कोरोना से सबसे ज्यादा प्रभावित कन्टेनमेंट जोन में जाना है। वहां के गरीबों और मजदूरों की दयनीय स्थिति पर ग्राउंड रिपोर्ट बनानी है।
वो गया। कोरोना का खतरा मोला लेते हुए गया। बहुत मार्मिक रिपोर्ट बनाई। उसका असर भी व्यापक हुआ।
अगले दिन कलेक्टर साहब खुद पहुंचे। रेडक्रेॉस सोसायटी के माध्यम से वहां के गरीब परिवारों को राशन पहुंचाया। नगर निगम आयुक्त ने क्षेत्र के अति गरीबों के लिए भोजन की व्यवस्था दुरुस्त करने के आदेश दिए।
और हां,
विधायक जी भी पहुंचे और सबको एक हफ्ते की सब्जी वगैरह मुहैया कराई। साथ ही उन्होंने अपने सहयोगी का नम्बर वहां दिवार पर लिखवाया, की किसी को कोई भी परेशानी हो तो, उन्हें कॉल करें।
गर्व महसूस करते हुए, वो पत्रकार घर लौटा। खुश था। गर्व होना भी चाहिये, सब कुछ उसकी रिपोर्ट के बाद हुआ। यह अलग बात थी कि उसका नाम कहीं नहीं था।
लेकिन वो खुश था। इस खुशी की उसे आदत हो गई थी।
बस इस खुशी के बीच एक चिंता उसे सता रही थी। कल की स्टोरी कैसे होगी।
जेब में 15 रुपये बचे हैं। गाड़ी में पेट्रोल लगभग खत्म है। मां से किस मुंह से पैसा मांगे। संपादक ने सैलरी के लिए साफ मना कर दिया है। किसी से मांग नहीं सकता, सब क्या सोचेंगे।
इतना बड़ा पत्रकार है, कलेक्टर एसपी विधायक से बात करता है। और पास में 100 रुपये नहीं, बड़ा पत्रकार बना फिरता..छी।