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कचरा उठाने वालों के 500 बच्चों को मुफ्त पढ़ाता है दिहाड़ी मजदूर का इंजीनियर बेटा
08-Jul-2020 12:19 PM
कचरा उठाने वालों के 500 बच्चों को मुफ्त  पढ़ाता है दिहाड़ी मजदूर का इंजीनियर बेटा

इरप्पा नाइक ने 20 बरसों तक पैसे जमा किए ताकि वह गरीब बच्चों के लिए निशुल्क स्कूल खोल सकें।

-अनूप कुमार सिंह

इरप्पा नाइक का जन्म एक गरीब परिवार में हुआ था। उनके माता-पिता दिहाड़ी मजदूर थे। दो जून की रोटी का जुगाड़ भी बहुत मश्किल से हो पाता था ऐसे में पढ़ाई के बारे में सोचने का सवाल ही नहीं था। घर चलाने के लिए इरप्पा के दो बड़े भाइयों को भी मजबूर होकर पढ़ाई छोडऩी पड़ी।
 
द बेटर इंडिया से बात करते हुए नायक कहते हैं, मेरे दादा (बड़े भाई) बहुत ही होनहार छात्र थे लेकिन घर की खराब आर्थिक स्थिति के कारण उन्हें बीच में ही अपनी पढ़ाई छोडऩी पड़ी। हालांकि फिर भी उन्होंने मुझे पढ़ाया और स्कूल की फीस भरने के लिए उन्होंने एक्स्ट्रा शिफ्ट में मजदूरी की। जब नाइक 10वीं क्लास में थे तब एक दिन उन्होंने तय किया कि वह अपने भाई के निस्वार्थ मेहनत का कर्ज चुकाने के लिए जरूर कुछ करेंगे। वर्ष 2000 में उन्होंने महाराष्ट्र के मिराज शहर के बाहरी इलाके में गरीब बच्चों की शिक्षा के लिए एक निशुल्क स्कूल खोलकर उस वादे को पूरा किया।

51 वर्षीय नाइक ने बताया कि मेरे भाई ने गरीबी को आड़े नहीं आने दिया और मेरी पढ़ाई का पूरा खर्च उठाया। यह जीवन की एक ऐसी सीख थी जिसे मैंने हमेशा याद रखा। 10वीं की बोर्ड परीक्षा उत्तीर्ण करने से पहले ही मैंने यह ठान लिया था कि अपनी पढ़ाई खत्म करने के बाद मैं गरीब और वंचित बच्चों को पढ़ाऊंगा।

नाइक अपने फैसले पर अडिग रहे और वह पिछले 20 वर्षों में पहली से दसवीं क्लास तक के 500 बच्चों को पढ़ा चुके हैं। इनमें से ज़्यादातर छात्र दैनिक मजदूरी करने वालों और कचरा बीनने वालों के बच्चे हैं।

काम और स्कूल के बीच भागदौड़
साल 1987 में नाइक ने सांगली जिले के वालचंद कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग से इलेक्ट्रॉनिक इंजीनियरिंग में डिप्लोमा पूरा किया। नाइक परिवार के लिए यह एक बड़ी उपलब्धि थी। बेशक, नाइक के माता-पिता को उनसे एक अच्छी तनख्वाह वाली नौकरी की उम्मीद थी और वह उनकी उम्मीदों पर खरे उतरे।

नौकरी के साथ-साथ वह अपने क्षेत्र के आसपास के बच्चों को पढ़ाना चाहते थे, लेकिन उनकी बस्ती में कक्षा चलाने के लिए कोई जगह नहीं मिली। उन्होंने बताया कि स्कूल बनाने के सपने को तब पंख लगे जब मैं एक सरकारी ठेकेदार के रूप में काम कर रहा था। अच्छे क्लासरूम और यूनिफॉर्म के साथ ही मुझे स्कूल को रजिस्टर करने के लिए परमिशन की भी जरूरत थी। इसलिए मैंने अपना सपना पूरा करने के लिए पैसे बचाने शुरू कर दिए। उनके माता-पिता ने भी पूरा साथ दिया। पैसे इक_ा हो जाने के बाद उन्होंने शहर के बाहरी इलाके में एक छोटी सी जमीन खरीदी और दस कक्षाओं (हर ग्रेड के लिए एक कक्षा) का निर्माण कराया।

एक स्थानीय विधायक की मदद से उन्होंने अपने स्कूल को महाराष्ट्र शिक्षा बोर्ड में रजिस्टर कराया और 20 बच्चों के साथ ‘क्रांतिवीर उमाजी नाइक हाई स्कूल’ नाम से मराठी-माध्यम स्कूल शुरू किया।

बच्चों की जिंदगी में बदलाव
नाइक के लिए बच्चों के माता-पिता को घर से इतनी दूर स्कूल में उन्हें पढऩे भेजने के लिए मनाना काफी मुश्किल काम था। लेकिन उन्होंने इस समस्या का भी हल निकाला और स्कूल बस की व्यवस्था करके एक ड्राइवर नियुक्त किया जो रोजाना बच्चों को स्कूल लाता और छोड़ता था। लेकिन एक और समस्या थी। नाइक ने आगे बताया,

अधिकांश माता-पिता ने खराब आर्थिक स्थिति के कारण अपने बच्चों को मुफ्त स्कूल में भेजने से मना कर दिया। कुछ बच्चे कंस्ट्रक्शन साइट पर अपने माता-पिता के साथ काम करने जाते थे। वे आजीविका के लिए अपने बच्चों से काम कराते थे और बाल श्रम जैसे गैरकानूनी काम को नजऱअंदाज करते थे।

तब उन्होंने अपना उदाहरण देकर बच्चों के अभिभावकों को समझाया कि कैसे इतनी गरीबी में उन्होंने पढ़ लिख कर नौकरी पाई। इसके बाद कुछ अभिभावकों ने अपने बच्चों को स्कूल भेजना शुरू किया।

बच्चों की संख्या बढऩे पर उन्होंने ग्यारह शिक्षकों को काम पर रखा। तीन साल पहले तक (जब उन्होंने अपनी नौकरी छोड़ी थी), उन्होंने अपनी सारी तनख्वाह लगा दी थी।

वर्तमान में राज्य शिक्षा विभाग तीन शिक्षकों के वेतन का भुगतान करता है जबकि बाकी शिक्षकों को नाइक तनख्वाह देते हैं। स्कूल विभाग छात्रों को मिड-डे मील भी देता है जिससे उनकी पोषण संबंधी आवश्यकताओं का भी ध्यान रखा जाता है। नाइक बच्चों के यूनिफॉर्म और स्टेशनरी जैसे अन्य खर्चे भी उठाते हैं। उन्होंने हाल ही में स्कूल के खर्चों को पूरा करने के लिए अपने परिवार की जमीन का एक हिस्सा बेच दिया। वह कहते हैं, स्कूल चलाने के लिए हम 50,000 रुपये हर महीने खर्च करते हैं। जब से मैंने अपनी नौकरी छोड़ी है, चीज़ें काफी मुश्किल हो गईं हैं। वह शिक्षा विभाग से अधिक वित्तीय सहायता प्राप्त करने की योजना पर काम कर रहें हैं। वह नहीं चाहते कि उनके छात्रों को पैसे के लिए शिक्षा से समझौता करना पड़े।

अंत में वह कहते हैं, मेरे 200 छात्रों ने दसवीं बोर्ड की परीक्षा उत्तीर्ण कर ली है और उच्च शिक्षा के लिए छोटे-छोटे व्यवसायों में लगे हैं। इससे मुझे स्कूल चलाने के लिए बहुत ताकत मिलती है और उम्मीद है कि मेरा स्कूल उनका जीवन बदल सकता है।

यदि आप नाइक को स्कूल चलाने में मदद करना चाहते हैं, तो बैंक खाते में सहायता राशि भेजकर योगदान कर सकते हैं –
क्रांतिवीर उमाजी नायक शिक्षा प्रसारक
बैंक ऑफ महाराष्ट्र
खाता संख्या : 20144935260
IFSC: MAHB0000235
आप इस नंबर पर इरप्पा नाइक से संपर्क कर सकते हैं : 9545262849
मूल लेख : गोपी करेलिया
संपादन : अर्चना गुप्ता
(hindi.thebetterindia)

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