संपादकीय
उत्तरप्रदेश में 8 पुलिसवालों को मारने वाला खूंखार और पेशेवर मुजरिम विकास दुबे ने मध्यप्रदेश के उज्जैन में महाकाल के विख्यात मंदिर में आत्मसमर्पण किया। उसने गार्ड को बताया कि वह विकास दुबे है, लोगों को बताया, और भागने की किसी कोशिश के बिना आराम से चलते हुए वह पुलिस के साथ चले गया। उसके इस आत्मसमर्पण को मध्यप्रदेश पुलिस गिरफ्तारी कह रही है क्योंकि पुलिस ने उसे पकड़ा हो, या उसने आत्मसमर्पण किया हो, गिरफ्तारी तो एक कानूनी औपचारिकता है ही। अब 60 या अधिक कत्ल जैसे गंभीर अपराधों का यह आरोपी पुलिस के हाथ लग चुका है, तो इसकी मुठभेड़-हत्या की आशंका या संभावना थोड़ी सी कम है, और ऐसा लगता है कि एक बार फिर वह भारत की उसी अदालत में कटघरे में रहेगा जिससे वह पहले थाने में राज्यमंत्री दर्जा प्राप्त नेता का कत्ल करके दर्जनों पुलिसवालों के गवाह रहते भी बरी हो चुका है। इस बार तो किसी ने उसे गोलियां चलाते देखा नहीं है, वह अपने घर के भीतर से गोलियां चला रहा था, ऐसा पुलिस का कहना है। परिवार के लोग ही अगर उसके खिलाफ गवाही नहीं देंगे, तो यह केस कोर्ट में टिकेगा कैसे?
हिन्दुस्तान में जुर्म और मुजरिमों का यही हाल है। न्याय की भावना कही जाती है कि चाहे 99 मुजरिम छूट जाएं, लेकिन किसी एक बेकसूर को भी सजा नहीं होनी चाहिए। इसे पैमाना बनाकर हिन्दुस्तान की पुलिस, या दूसरी जांच एजेंसियां, हिन्दुस्तान की अदालतें, वहां सरकारी वकील, सुबूतों को परखने वाली अपराध-प्रयोगशालाएं, इतनी जगहों पर छेद रहते हैं कि सौ में 90 मुजरिम तो कभी सजा नहीं पाते, और जो 10 मुजरिम सजा पाते भी हैं, उनके लिए ऊपरी अदालतें भी हैं। कुल मिलाकर न्याय की भावना को जिस नाटकीयता के साथ बढ़ा-चढ़ाकर कहा जाता है, करीब-करीब वैसा ही हकीकत में होता भी है, और शायद ही कोई बड़ा मुजरिम सबसे बड़ी अदालत जाकर भी सजायाफ्ता ही रहता है।
उत्तरप्रदेश के इस कुख्यात मुजरिम के बारे में एक से अधिक राजनीतिक दलों का नाम सामने आया है कि उनसे इसका घरोबा था। बहुत से नेताओं के साथ इस मुजरिम और इसके गिरोह के दूसरे लोगों की तस्वीरें भी आई हैं कि वे कैसे करीब थे। लेकिन यह कोई रहस्य की बात नहीं है, और न ही ऐसी चर्चा पहली बार ही हो रही है। उत्तरप्रदेश और बिहार, उत्तर भारत के हिन्दी भाषी इलाकों के दो सबसे बड़े राज्य राजनीति और अपराध के ऐसे ही गठजोड़ के लिए कुख्यात रहे हैं। यहां के लोगों को यह विशेषण चुभ सकता है, लेकिन हकीकत यही है। और अगर देश के बीच के ये राज्य अगर आगे नहीं बढ़ सके हैं, तो उसके पीछे एक वजह यह भी है कि बाहर के पूंजीनिवेशक वहां जाने के पहले कई बार सोचते हैं कि वहां की रंगदारी से कैसे निपटेंगे? देश को सबसे अधिक प्रधानमंत्री देने वाले उत्तरप्रदेश में जुर्म का हाल भयानक है। मुलायम सिंह के लंबे राज में भी वही था, उनके बेटे के राज में भी वही था, और योगी राज में भी चर्चित मुठभेड़-हत्याओं के बावजूद मुजरिमों का हौसला कितना बढ़ा हुआ था, यह कानपुर की इस ताजा वारदात से समझ आता ही है। कुछ लोगों को शायद अभी तक यह बात याद होगी कि एक भूतपूर्व प्रधानमंत्री चन्द्रशेखर के उनके प्रदेश बिहार के कुख्यात बाहुबलि लोगों से खुले और करीबी संबंध थे, जिनको वे कभी छुपाते भी नहीं थे।
अब विकास दुबे के मंदिर में आत्मसमर्पण के बाद उसकी मां ने कहा है कि वह हर बरस महाकाल के दर्शन को उज्जैन जाता था, और महाकाल की कृपा से ही वह आज जिंदा है। अब हमारी सामान्य और स्थायी जिज्ञासा फिर सिर उठाती है कि जो हर बरस ईश्वर के दरबार में पहुंचता हो, उसे ईश्वर बुरे कामों से रोक क्यों नहीं पाता, उसे समझा क्यों नहीं पाता? और अपनी ड्यूटी पूरी करने गए पुलिसवालों को भी ऐसे मुजरिम की गोलियों से क्यों नहीं बचा पाता? ईश्वर का दुनिया के अच्छे कामों से लेना-देना इतना कमजोर क्यों है कि देश के हर किस्म के मुजरिम उसके दरबार में पहुंचते ही रहते हैं, और वह किसी के भी हाथ-पैर रोक नहीं पाता? हम पहले भी इसी जगह कई बार गिना चुके हैं कि हाजी मस्तान जैसे कुख्यात स्मगलर के नाम के साथ हाजी जुड़ा हुआ था, पंजाब में जनरैल सिंह भिंडरावाला बेकसूरों की थोक में हत्या करके जाकर स्वर्ण मंदिर में ही अपने ठिकाने पर डेरा डालता था। जेलों का अगर सर्वे किया जाए, तो सौ फीसदी मुजरिम आस्थावान-धर्मालु मिलेंगे, और शायद ही कोई नास्तिक वहां मिले, क्योंकि नास्तिक के पास किसी ईश्वर का सहारा नहीं रहता, वे किसी धर्म-दान से कालिख लगी अपनी आत्मा ड्राई-क्लीन नहीं कर सकते। इतने भयानक और खूंखार मुजरिमों के पास ईश्वर का सहारा होना भी बहुत ही अटपटी बात है। हो सकता है कि धर्म का कारोबार करने वाले लोग इसके पीछे की वजह बता पाएं।
फिलहाल उत्तरप्रदेश में सरकार के सामने यह एक बड़ी चुनौती रहेगी कि इतने बड़े मुजरिम को अदालत से सजा दिला पाए। अदालत में मुकदमा जीत जाने की इनकी ताकत देखते हुए ही कई प्रदेशों की पुलिस ऐसे मुजरिमों की मुठभेड़-हत्या को एक बेहतर रास्ता मानती है, और ऐसा करती भी है। लोगों को कुछ समय पहले हैदराबाद के पास के बलात्कारियों को गिरफ्तारी के बाद मार डालने की घटना याद भी होगी। अब विकास दुबे के इस केस में उसके गिरोह के बाकी लोगों के नाम देखना भी दिलचस्प है, और उन नामों से कुल मिलाकर जो बात निकलती है, उस पर भी कुछ लोगों को फिक्र करनी चाहिए। (क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)