विचार / लेख
ध्रुव गुप्त
हिन्दी सिनेमा के सौ साल से ज्यादा लंबे इतिहास में जिन कुछ अभिनेताओं ने अभिनय की नई परिभाषाएं गढ़ी, उनमें संजीव कुमार उर्फ हरिभाई जरीवाला एक प्रमुख नाम है। भावप्रवण चेहरे, विलक्षण संवाद-शैली और अभिनय में विविधता के लिए जाने जाने वाले संजीव कुमार अभिनय के एक स्कूल माने जाते हैं। जब भी हिंदी फिल्मों में अभिनय के कुछ मीलस्तंभ गिने जाएंगे, ‘कोशिश’ का गूंगा-बहरा किरदार, ‘आंधी’ की महत्वाकांक्षी पत्नी का परित्यक्त पति, ‘शोले’ का सब कुछ खो चुका अपाहिज ठाकुर और ‘खिलौना’ का पागल प्रेमी कैसे भुला दिए जाएंगे?
फिल्म ‘नया दिन नई रात’ में नौ रसों पर आधारित अपनी नौ अलग भूमिकाओं में उन्होंने साबित किया कि अभिनय को जीवन के इतना भी कऱीब ले जाया जा सकता है। इस फिल्म के निर्देशक ए भीमसिंह इस चुनौतीपूर्ण भूमिका के लिए दिलीप कुमार के पास गए थे। दिलीप कुमार ने उन्हें संजीव कुमार का नाम ही नहीं सुझाया, बल्कि फिल्म के आरंभ में आकर उन्हें दर्शकों से परिचित भी कराया था। कई छोटी और दूसरे-तीसरे दजऱ्े की फिल्मों से सफर शुरू करने वाले संजीव कुमार को संवेदनशील अभिनेता के तौर पर स्थापित किया 1970 की फिल्म ‘खिलौना’ ने। उसके बाद जो हुआ वह इतिहास है। उनकी बड़ी खासियत यह थी कि उन्होंने कभी अपने रोल की लंबाई नहीं देखी। छोटी भूमिकाओं में भी बड़े प्रभाव छोडऩे की कला उन्हें मालूम थी। नायक से ज्यादा चरित्र और सहायक भूमिकाओं में उनकी अदायगी निखर कर आती थी। गुलजार के वे सर्वाधिक प्रिय अभिनेता रहे थे जिनके साथ उन्होंने नौ फिल्में की।
सत्यजीत रे ने जब अपनी पहली हिंदी फिल्म ‘शतरंज के खिलाड़ी’ की योजना बनाई तो उनके सामने संजीव कुमार का ही चेहरा था। हेमामालिनी और सुलक्षणा पंडित के साथ अपनी अधूरी प्रेम कहानियों का यह असफल, अविवाहित नायक मात्र 47 साल की उम्र में दिल की बीमारी से चल बसा।
संजीव कुमार के जन्मदिन पर विनम्र श्रद्धांजलि!