विचार / लेख

चीन की राजदूत की दखल से चिढ़े हैं लोग नेपाल में
10-Jul-2020 7:11 PM
चीन की राजदूत की दखल से चिढ़े हैं लोग नेपाल में

सचिन गोगोई

नेपाल में चीन की राजदूत हाओ यांकी पिछले दिनों राजनीतिक मतभेदों से जूझ रही सत्तारूढ़ नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी को संभालने में काफी व्यस्त रहीं, लेकिन उनकी अति राजनीतिक सक्रियता नेपाल में बहुत से लोगों को नागवार गुजर रही है।

नेपाल के कुछ अखबारों ने पिछले हफ़्ते अपने संपादकीय लेखों में राजदूत हाओ यांकी और चीन की देश की घरेलू राजनीति में दखल देने के लिए आलोचना की है।

ऐसी रिपोर्टें भी हैं कि छात्रों के एक गुट ने इस मुद्दे पर विरोध प्रदर्शन भी किया।

साल 2018 में देश की दो प्रमुख कम्युनिस्ट पार्टियों के विलय के बाद नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी (एनसीपी) का गठन हुआ था।

एनसीपी को शुरू से ही एक ऐसे गठबंधन के तौर पर देखा जाता रहा है जो कभी भी बिखर सकता है।

लेकिन इसकी वजह सिर्फ ये नहीं है कि इस विलय ने नेपाल के दो पुराने प्रतिद्वंद्वियों खड्ग प्रसाद शर्मा ओली और पुष्प कमल दहाल प्रचंड को एक मंच पर ला दिया।

नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी के भीतर जिस तरह से सत्ता के लिए संघर्ष चल रहा है, उसने पार्टी को बिखरने की कगार पर लाकर खड़ा दिया है।

दहाल और उनके समर्थकों ने ओली से प्रधानमंत्री और पार्टी अध्यक्ष का पद छोडऩे की मांग की है।

लेकिन ओली मैदान में बने हुए हैं, उन्होंने भारत पर उन्हें सत्ता से बेदखल करने की साजिश करने का आरोप लगाया है।

दोनों नेताओं के बीच सार्थक बातचीत की तमाम कोशिशें अभी तक नाकाम रही हैं।

हालांकि इस बीच चीन की राजदूत हाओ यांकी ने पार्टी को बिखरने से रोकने के लिए अपनी कोशिशें लगातार जारी रखी हैं।

उन्होंने नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी के सीनियर नेताओं से मुलाकात की और यहां तक कि चीन का संदेश लेकर वे राष्ट्रपति बिद्या देवी भंडारी से भी मिलने गईं।

हाओ यांकी की इस सक्रियता को नेपाल की घरेलू राजनीति में दखल के रूप में देखा जा रहा है। और एनसीपी ने चीन की तरफ़ से किसी दखलंदाज़ी की बात से इनकार किया है। लेकिन बहुत से लोग एनसीपी की सफाई से संतुष्ट नहीं दिखते। इस पर नेपाली अख़बारों की भी प्रतिक्रियाएं आई हैं।

दखलंदाजी कबूल नहीं है...

नेपाली भाषा के अख़बार ‘नया पत्रिका’ ने बुधवार को अपने संपादकीय लेख में लिखा कि चीन धीरे-धीरे नेपाल की घरेलू राजनीति में अपने ‘माइक्रो मैनेजमेंट का दायरा’ बढ़ा रहा है।

अख़बार ने अपने संपादकीय में लिखा, ‘सत्तारूढ़ नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी के मतभेदों को सुलझाने के लिए चीनी राजदूत का सक्रिय होना द्विपक्षीय संबंधों और कूटनीति दोनों ही लिहाज से ठीक नहीं है।’

एक और नेपाली अखबार ‘नागरिक’ ने भी ‘नया पत्रिका’ की तर्ज पर अपनी बात रखी है।

अखबार लिखता है, ‘ऐसा लगता है कि नेपाल के अंदरूनी मामलों में दखल न देने की अपनी पुरानी नीति से चीन पीछे हट गया है। नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी के अंदरूनी सत्ता संघर्ष में राजदूत हाओ यांकी की सक्रियता को सामान्य बात नहीं माना जा सकता है। इससे पता चलता है कि हम अभी तक स्वतंत्र रूप से फैसले लेने में सक्षम नहीं हो पाए हैं।’

कूटनीतिक आचार संहिता

अजीब बात ये हुई कि नेपाल के विदेश मंत्रालय को राजदूत हाओ यांकी की राष्ट्रपति बिद्या देवी भंडारी से हुई मुलाकात के बारे में जानकारी नहीं थी।

कुछ अधिकारियों ने अंग्रेज़ी अख़बार ‘काठमांडू पोस्ट’ से कहा कि राजदूत हाओ यांकी का ऐसा करना कूटनीति के नियमों के ख़िलाफ़ था।

एक अधिकारी ने नाम न जाहिर करने की शर्त पर ‘काठमांडू पोस्ट’ से कहा, ‘कूटनीतिक आचार संहिता के तहत ऐसा मुलाकातों के समय विदेश मंत्रालय के अधिकारियों को वहां मौजूद होना चाहिए। चूंकि इस मीटिंग का कोई आधिकारिक रिकॉर्ड मौजूद नहीं है, इसलिए हमें नहीं मालूम कि वहां किन मुद्दों पर बात हुई।’

चीन ने राजदूत हाओ यांकी की राष्ट्रपति बिद्या देवी भंडारी से हुई मुलाकात को ‘रूटीन मीटिंग’ बताया।

विशेषज्ञ क्या कहते हैं?

ऐसा नहीं है कि नेपाल की राजनीति में चीन की बढ़ती दिलचस्पी को लेकर केवल प्रेस और मीडिया शिकायत कर रहे हैं।

विपक्षी नेताओं, विदेश नीति मामलों के जानकार और यहां तक कि छात्र भी इस पर सवाल उठा रहे हैं।

पूर्व विदेश मंत्री और राष्ट्रीय प्रजातंत्र पार्टी के चेयरमैन कमल थापा ने ट्वीट किया, ‘क्या रिमोट कंट्रोल से चल रहा कोई लोकतांत्रिक गणराज्य नेपाली लोगों का फायदा कर सकता है?’

कमल थापा की टिप्पणी से ये साफ था कि वे राजदूत हाओ यांकी की नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी के नेताओं से हुई मुलाकात का हवाला दे रहे थे।

पूर्व कूटनयिकों और अंतरराष्ट्रीय मामलों के विशेषज्ञों का कहना है कि एक राजदूत का घरेलू राजनीतिक विवाद को सुलझाने के लिए सक्रिय भूमिका निभाना असामान्य बात है।

नेपाल के लिए पारंपरिक रूप से ये बात सही भी नहीं लगती है।

नेपाल में कम्युनिस्ट सरकार

भारत में नेपाल के राजदूत रह चुके लोकराज बराल ने ‘नेपाली टाईम्स’ से कहा, ‘कुछ साल पहले नेपाल में भारत जिस तरह से दखल देता था, चीन आज वही कर रहा है। चीन अपनी विदेश नीति के लक्ष्यों को हासिल करने के लिए नेपाल की राजनीति के माइक्रो मैनेजमेंट की दिशा में कदम बढ़ा रहा है।’

चीन मामलों के विशेषज्ञ रूपक सपकोटा इस मामले को उतनी तवज्जो नहीं देते हैं। हालांकि उन्होंने कहा कि चीन नेपाल में एक कम्युनिस्ट सरकार देखना चाहेगा।

थिंकटैंक ‘इंस्टीट्यूट ऑफ फॉरेन अफेयर्स’ के कार्यकारी निदेशक रूपक सपकोटा कहते हैं, ‘इस वक्त ये मुलाकात हालात का जायजा लेने के लिए की गई होगी। (बाकी पेज 7 पर)

 मुझे नहीं लगता कि सरकार का नेतृत्व कौन करेगा, इसे लेकर उनकी कोई पसंद या नापसंद होगी।‘

‘द हिमालयन टाईम्स’ की रिपोर्ट के मुताबिक छात्रों के एक ग्रुप ने इस हफ्ते की शुरुआत में चीनी राजदूत के मुद्दे पर विरोध-प्रदर्शन भी किया था। वे चीनी राजदूत से नेपाल के मामलों से दूर रहने की मांग कर रहे थे।

चीन की विदेश नीति

जानकारों का कहना है कि सत्तारूढ़ नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी के सत्ता संघर्ष को खत्म करने की हाओ यांकी कोशिश चीन की आक्रामक विदेशी नीति का ही हिस्सा है। पिछले पांच सालों से चीन हिमालय की गोद में बसे इस छोटे से देश में पांव पसारने की आहिस्ता-आहिस्ता कोशिश कर रहा है। नेपाल में चीनी राजदूत हाओ यांकी की बढ़ती सक्रियता ने भारत के लिए असहज स्थिति पैदा कर दी है।

साल 2018 में प्रधानमंत्री बनने के बाद से ओली ने चीन के साथ नजदीकियां बढ़ाई हैं वे भारत को नीचा दिखाने से उन्होंने कभी भी संकोच नहीं किया।

लेकिन नेपाल में बहुत से लोग इस बात को लेकर चिंतित हैं कि प्रधानमंत्री ओली ने एक देश की कीमत पर दूसरे देश का पक्ष लिया है।

उनकी चिंता है कि इससे राजनीतिक रूप से अस्थिर और आर्थिक तौर पर कमजोर नेपाल की मुश्किलें बढ़ सकती हैं।

विदेश नीति का ये असंतुलन

‘माई रिपब्लिका’ अखबार से विपक्ष के एक राजनेता ने कहा, ‘किसी एक देश का पक्ष लेते समय ओली सरकार को विवेक से काम लेना चाहिए। अगर इस बहुध्रुवीय दुनिया में हम किसी एक शक्ति का पक्ष लेते हैं तो विदेश नीति का ये असंतुलन लंबे समय में हमें नुक़सान पहुंचाएगा।’

संयुक्त राष्ट्र में नेपाल के स्थाई प्रतिनिधि रह चुके दिनेश भट्टाराई एक कदम और आगे बढक़र चेतावनी देते हैं कि अगर चीन को नेपाल की राजनीति में गहराई से उतरने का मौका लगा तो इसके उल्टे नतीज़े हो सकते हैं।

भट्टाराई ने अंग्रेज़ी अख़बार ‘द हिमालयन टाइम्स’ से कहा, ‘मुमकिन है कि चीन सत्तारूढ़ नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी में एकता देखना चाहता हो लेकिन अगर उसने पार्टी को एक रखने के लिए बार-बार दखल दिया तो नेपाल में मौजूद दूसरे ताक़तवर देशों को इससे परेशानी हो सकती है।’

राजनीतिक विश्लेषक जय निशांत भी दिनेश भट्टाराई की बात से सहमत लगते हैं। उन्होंने ‘द हिमालयन टाईम्स’ से कहा, ‘अगर चीन ने नेपाल में अपनी गतिविधियां बढ़ाई तो इससे नेपाल को मदद मिलने के बजाय केवल उसकी परेशानी बढ़ेगी।’ (बीबीसी)

अन्य पोस्ट

Comments

chhattisgarh news

cg news

english newspaper in raipur

hindi newspaper in raipur
hindi news