संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : एक ऐसा महान जिसके न पैसे लोगों के काम आते, और न जिसकी जुबान...
12-Jul-2020 1:55 PM
‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : एक ऐसा महान जिसके  न पैसे लोगों के काम आते,  और न जिसकी जुबान...

अमिताभ बच्चन और उनके बेटे अभिषेक बच्चन के कोरोना पॉजिटिव आने के बाद उन्हें मुम्बई के नानावटी अस्पताल में भर्ती किया गया है, और वहां से अमिताभ के भेजे गए एक वीडियो संदेश में इस अस्पताल के डॉक्टर-नर्सों का दिल से आभार किया गया है। इस पर हजारों लोगों ने अपनी प्रतिक्रिया दी है जिसमें से अधिकतर लोगों की नाराजगी निजी अस्पतालों से थी जो कि सिर्फ पैसे वालों का इलाज करते हैं, बहुत से लोगों की नाराजगी इस बात को लेकर भी है कि अमिताभ बच्चन ने लॉकडाऊन और कोरोना के इस दौर में जरूरतमंद लोगों के लिए क्या किया? 

हालांकि हमारी अपनी जानकारी यह है कि यह बात पूरी तरह से सही नहीं है। जब मुम्बई से सोनू सूद उत्तर भारत के लोगों को उनके घर भेजने का अभियान चला रहे थे, उसी बीच अमिताभ बच्चन ने भी कुछ सौ लोगों का बस का भाड़ा शायद दिया था। लेकिन सोनू सूद की रात-दिन की बस स्टैंड और रेलवे स्टेशन की मेहनत और सोशल मीडिया, ट्विटर, पर एक-एक जरूरतमंद को दिया जा रहा उनका भरोसा लोगों की नजरों में इतना विशाल हो गया था कि अमिताभ जैसी मदद शायद नजरों में न आई पाई हो। बहुत से लोगों ने आज एक टीवी चैनल की वेबसाईट पर अमिताभ की तंगदिली को लेकर उनके खिलाफ काफी कुछ भड़ास निकाली है। 

अब सवाल यह है कि अपनी कमाई हुई दौलत में से वे समाज के लिए कुछ दें न दें, यह उनकी अपनी मर्जी है। इस पर किसी का जोर नहीं चल सकता, और अमिताभ कभी भी अपनी दरियादिली के लिए नहीं जाने गए। जबकि वे वनमैन इंडस्ट्री की तरह काम करते रहे हैं, और एक साधारण सा अंदाज यह है कि वे सैकड़ों करोड़ रूपए सालना कमाते हैं। ऐसे में उनकी कोई भी रहमदिली अगर उस अनुपात में है, तब तो ठीक है, लेकिन जब दुनिया के पैसे वाले लोग अपनी आधी दौलत समाजसेवा में देने की घोषणा करते हैं, और उस पर अमल करते हैं, जब सोनू सूद सरीखे मामूली अभिनेता बेतहाशा मेहनत करते हैं, बेतहाशा हमदर्दी दिखाते हैं, और खर्च भी करते हैं, तो फिर अडानी के दिए सौ करोड़, या अमिताभ की कुछ बसें लोगों पर कोई असर नहीं डालतीं, बल्कि लोगों को यह खटकता है कि अपनी इतनी दौलत के बाद भी अमिताभ ने लोगों का साथ नहीं दिया। कुछ लोगों ने अमिताभ की राजनीतिक पसंद-नापसंद को लेकर भी उन पर हमले किए हैं कि अपनी पसंद की सरकार की किसी खामी के बारे में उनका मुंह नहीं खुलता। बहुत से लोगों ने सुशांत राजपूत जैसे कई मुद्दे गिनाए हैं कि उन पर भी अमिताभ का मुंह नहीं खुला, और अब महंगे अस्पताल का शुक्रिया अदा करने के लिए वे वीडियो जारी कर रहे हैं। 

दरअसल दुनिया में लोग, लोगों की एक-दूसरे से तुलना करके ही अपनी राय बनाते हैं। हिन्दुस्तान में जब टाटा और उनकी कंपनियों ने 15 सौ करोड़ रूपए कोरोना से लड़ाई के लिए देने की मुनादी की, तो लोगों को अडानी-अंबानी के सौ-सौ करोड़ चुभने लगे। बात सही भी है, सडक़ किनारे फुटपाथ पर बैठा कोई भूखा अगर अपनी आधी रोटी किसी दूसरे को दे, तो वह तो टाटा के 15 सौ करोड़ से भी अधिक है, और अडानी-अंबानी की सौ-सौ करोड़ की चिल्हर से तो अधिक है ही।
 
सोशल मीडिया ने लोगों को अपने दिल की बात रखने की बेतहाशा ताकत दी है, और अराजकता की हद तक लोकतांत्रिक अधिकार भी दे दिए हैं। लेकिन यह कहते हुए भी हम इस बात को बहुत साफ समझते हैं कि सोशल मीडिया पर लोगों के मन की भड़ास को समाज की प्रतिनिधि-आवाज मान लेना गलत होगा। जिन लोगों को भड़ास अधिक निकालनी होती है, या भक्ति अधिक दिखानी होती है, वे ही लोग सोशल मीडिया पर अधिक सक्रिय रहते हैं। लेकिन जो लोग समझदारी और तर्क की बात कहना चाहते हैं, उनकी गिनती भी कम रहती है, और उनकी सक्रियता भी कम रहती है। इसलिए सोशल मीडिया पर दी गई गालियों को किसी बहुसंख्यक तबके के दिल से निकली गालियां मान लेना गलत होगा। समझदारी, और इंसाफपसंदगी हमेशा ही समाज में अल्पसंख्यक रहेंगे। 

अमिताभ बच्चन उन चर्चित लोगों में से हैं जो पिछले दस-बीस बरस में सोच-सोचकर राजनीतिक दलों और राजनीतिक मुद्दों का साथ देते रहे हैं, और बाकी मौकों पर अपने आपको गैरराजनीतिक करार देते रहे हैं। उनके बारे में हमने इसी जगह पर पहले भी लिखा था कि अपने ससुराल के शहर भोपाल में हुई गैस त्रासदी के शिकार लाखों लोगों की तबाह जिंदगी को बसाने के लिए अगर वे अपील करते, तो दुनिया भर से सैकड़ों करोड़ रूपए इक_े हो जाते। लेकिन उन्होंने कभी मुंह भी नहीं खोला। वे दिन इंदिरा और राजीव के थे, और अमिताभ उनके करीबी लोगों में से थे। फिर वे एक वक्त मुलायम सिंह के करीबी रहे, और अमिताभ की पत्नी जया आज भी मुलायम की पार्टी से सांसद हैं। खुद अमिताभ बच्चन मुलायम का सूरज डूबने के बाद मोदी के करीब चले गए, और गुजरात के ब्रांड एम्बेसडर रहे, बाद में केन्द्र की मोदी सरकार का चेहरा भी बने रहे। उनकी मौकापरस्त राजनीतिक सोच, उनकी सरोकारविहीन सामाजिक सोच, और पैसों को लेकर उनकी तंगदिली ने उन्हें इतनी शोहरत के बावजूद उतनी इज्जत का हकदार नहीं बनाया।  खुद की फिल्म इंडस्ट्री में जब-जब कोई जलता-सुलगता मुद्दा आया, अमिताभ बच्चन मुंह बंद किए घर बैठे रहे। जब वे ट्विटर जैसे सोशल मीडिया पर सुबह 3-4 बजे तक लिखते रहते हैं, तब भी वे देश की हकीकत पर कुछ नहीं लिखते। अमिताभ बच्चन पर एक इंसान के नाते इतना लिखना हमारा मकसद नहीं है, लेकिन एक इंसान अपनी सोच और अपने काम से किस तरह अपनी कामयाबी और शोहरत की भी पूरी इज्जत नहीं पा सकता, यह सोचने के लिए अमिताभ एक मिसाल जरूर हैं। (क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)

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