संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : कोरोना और लॉकडाऊन पर कतरा-कतरा बातें
21-Jul-2020 5:26 PM
‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : कोरोना और लॉकडाऊन  पर कतरा-कतरा बातें

ये है यूपी की राजधानी में कोरोना कतार... वैसे तो एक सामान्य लाइन लग रही होगी। लेकिन तब आप खौफ से भर जाएंगे,जब ये पता चलेगा कि ये सभी कोरोना मरीज है। लखनऊ के सरकारी अस्पताल मे भर्ती होने के लिए लाइन में लगे हैं। सभी अस्पतालों में बेड फुल हैं। मरीजों के लिए जगह नहीं। तय आपको करना है कि घर पर रहना है या इसका हिस्सा बनना है। (टीवी पत्रकार बृजेश मिश्रा ने ट्विटर पर पोस्ट किया)

जैसा कि बहुत से लोगों को लग ही रहा था, हिन्दुस्तान एक बार फिर लॉकडाऊन की कगार पर खड़ा हुआ है। छत्तीसगढ़ में बीते कल हरेली का त्यौहार मना लिया गया, और आने वाले कल से बहुत से जिलों में लॉकडाऊन हो रहा है। हर जिले के फैसले उनके हिसाब से होंगे। इसी तरह देश में अलग-अलग कई प्रदेशों ने अगले एक या अधिक हफ्तों का लॉकडाऊन पिछले कुछ हफ्तों में अपने हिसाब से लागू किया है। लॉकडाऊन खोलने के बाद के दिनों में जिस तरह भयानक रफ्तार से कोरोना के मामले बढ़े हैं, उनसे राज्य सरकारें भी हिल गई हैं। आज तो पिछले चौबीस घंटों का आंकड़ा 40 हजार पार कर गया है, यह एक अलग बात है कि मौतें घट रही हैं, और लोगों के ठीक होने की रफ्तार बढ़ रही है। कोरोना पॉजिटिव निकलने पर जिस तरह एक-एक मरीज के पीछे एक-एक दफ्तर, या एक-एक इमारत बंद करनी पड़ रही है, उससे भी एक अघोषित लॉकडाऊन टुकड़े-टुकड़े में हो ही रहा है। जिस वक्त हम यह लिख रहे हैं उसी वक्त अलग-अलग खबरें आ रही हैं कि किस तरह एक निधन पर तीन सौ से अधिक लोग इक_े हुए, और उसमें से डेढ़ दर्जन पॉजिटिव निकल आए। एक दूसरी खबर में यह है कि शादी की किसी दावत में सैकड़ों लोग इक_ा हो गए, और सौ लोग पॉजिटिव निकल गए, अब मेजबान पर जुर्म दर्ज हो रहा है। सबसे भयानक एक खबर तो आज ही सुबह मिली है कि झारखंड में एक महिला की मौत हुई, दो दिन बाद उसके कोरोना पॉजिटिव होने का पता लगा। पूरे नर्सिंग होम को खाली कराया गया, और उसका अंतिम संस्कार करने वाले पांच बेटे एक-एक करके कोरोना पॉजिटिव होकर इस पखवाड़े में चल बसे, और छठवां बेटा कोरोनाग्रस्त होकर अस्पताल में गंभीर हालत में है। 

सरकारों का इंतजाम बहुत अधिक मायने रख सकता है, लेकिन अगर सरकारों ने पर्याप्त जांच की हुई है तो उन्हें कोरोना पॉजिटिव मिल भी रहे हैं, लेकिन बहुत से प्रदेशों में सरकारें जांच ही कम कर रही हैं। बिहार और उत्तरप्रदेश जैसे राज्य भयानक हालत में पहुंच रहे हैं, आज की ही एक तस्वीर है कि किस तरह उत्तरप्रदेश की राजधानी लखनऊ में कोरोना पॉजिटिव पाए गए लोग वार्ड में भर्ती होने के लिए सरकारी अस्पताल के बाहर लंबी कतार में खड़े हुए हैं। आज ही वहां के सीएम योगी आदित्यनाथ का बयान है कि राज्य में कोरोना पॉजिटिव लोगों को गंभीर लक्षण न होने पर कुछ शर्तों के साथ घर पर रहने की इजाजत दी जाएगी। इसका मतलब यही है कि सरकार का अपना इंतजाम चूक गया है, यही बात एक-दो महीने पहले जब पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बैनर्जी ने कही थी, तो उनकी खासी आलोचना हुई थी। लेकिन यह बात जाहिर है कि राज्य सरकार की अपनी सीमा है, और कुछ महीनों के भीतर उसे बढ़ाने की भी एक सीमा है। हम छत्तीसगढ़ की राजधानी में देखते हैं कि कई हफ्तों पहले से बड़े-बड़े स्टेडियम मरीजों के लिए वार्ड बनाकर तैयार रखे गए हैं, हालांकि आज तक उनकी जरूरत नहीं पड़ी है क्योंकि अस्पतालों की मौजूदा क्षमता अभी चुकी नहीं है। 

लेकिन इलाज से परे लॉकडाऊन के दूसरे पहलुओं को देखें, तो अभी बाजार ठीक से शुरू भी नहीं हो पाया था, और वह एक-एक हफ्ता बंद रहने जा रहा है। बाजार से सिर्फ  खपत के सामान नहीं लिए जाते, बहुत से कलपुर्जे ऐसे लिए जाते हैं जिनके बिना मजदूरों और कारीगरों का काम नहीं चलता। इस नौबत को देखें तो साफ है कि बाजार का कारोबार, लोगों के छोटे-छोटे धंधे और मजदूरों की रोजी-रोटी सभी ठप्प है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने दीवाली, और चुनाव के मुहाने पर खड़े बिहार के सबसे बड़े त्यौहार छठ तक के लिए को मुफ्त अनाज देने की घोषणा की है, लेकिन आज सबसे गरीब इंसान की जिंदगी भी अनाज के अलावा कई दूसरे खर्च मांगती है, और वहां पर आकर सरकार भी कुछ नहीं कर पा रही है। 

आज तमाम किस्म के कारखाने और कारोबार बैंकों की कर्ज अदायगी की हालत में नहीं रह गए हैं। यह एक अभूतपूर्व संकट है, और सरकारों को यह सोचना होगा कि अनाज से परे वह किस तरह सबसे जरूरतमंद गरीबों की कुछ और मदद भी कर सकती है, और काम-धंधों से बैंक कर्ज की वसूली किस तरह टाल सकती है। सुप्रीम कोर्ट ने भी एक पिटीशन पर रिजर्व बैंक और वित्त मंत्रालय से विचार करने को कहा है कि अभी जो बैंक किस्त नहीं ली जा रही है, उसका ब्याज आगे न वसूलने के लिए क्या किया जा सकता है। यह मामला सरकारी कमाई और खर्च से जुड़ा हुआ है, इसलिए अदालत की इस पर सीधे-सीधे कुछ नहीं कह पा रही है, लेकिन आज जो हालात दिख रहे हैं उनमें कर्ज से चलने वाले कारखाने-कारोबार को भी साल 2020 ब्याजमुक्त चाहिए। अगर यह रियायत नहीं मिलेगी, तो इतनी बड़ी संख्या में उद्योग-धंधे बंद हो जाएंगे कि उन्हें फिर खड़ा करना भी मुश्किल होगा। केन्द्र सरकार और रिजर्व बैंक को यह देखना चाहिए कि लॉकडाऊन शुरू होने के बाद कम से कम 31 दिसंबर तक तो कोई भी ब्याज न लिया जाए, और इसकी भरपाई के लिए कहां से टैक्स वसूला जा सकता है। यहां पर यह याद दिलाना ठीक होगा कि योरप और अमरीका में बहुत से खरबपतियों ने सरकारों से कहा है कि उन्हें अतिसंपन्न तबकों से कोरोना-टैक्स लेना चाहिए क्योंकि सरकारों को धरती की बाकी आबादी पर अंधाधुंध खर्च करना पड़ रहा है। लॉकडाऊन को लेकर हम किसी एक फार्मूले या समाधान की बात नहीं कर सकते, और इसी तरह कतरा-कतरा बातों से हम आज के माहौल पर, आज की दिक्कतों पर कुछ कह पा रहे हैं। लेकिन एक बात जो रह गई है, वह यह कि आम जनता अगर अभी सरीखी लापरवाही से काम लेगी, तो फिर न तो कोई सरकार, और न ही कोई ईश्वर मानव जाति को बचा सकेंगे। कोरोना खत्म होने तक अधिकतर सरकारें दीवालिया होने की हालत में रहेंगी, काम-धंधे बर्बाद हो चुके रहेंगे, लोग बेरोजगार हो चुके रहेंगे, और ऐसे में आज से लोग सावधानी बरतकर कोरोना से बचने का काम नहीं करेंगे, तो वे एक ऐतिहासिक अपराध करेंगे जिसका नुकसान उनकी आने वाली पीढिय़ों को भी भुगतना होगा।(क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक) 

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