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इंतजार किसका है? अब सरकार गिराओ : उद्धव ठाकरे— सरकार तीन पहिया, पर स्टेयिंरग मेरे ही हाथ में!
26-Jul-2020 6:06 PM
इंतजार किसका है? अब सरकार गिराओ : उद्धव ठाकरे— सरकार तीन पहिया, पर स्टेयिंरग मेरे ही हाथ में!

मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने आज एक जोरदार आह्वान किया, ‘जिस किसी को मेरी सरकार गिरानी हो वो आज ही गिराए! अभी, इस साक्षात्कार के दौरान ही गिराए। फिर देखता हूं मैं!’ मुख्यमंत्री ठाकरे के ‘सामना’ में प्रकाशित हो रहे साक्षात्कार ने कई मुद्दों का खुलासा किया और अनेक मुद्दों पर पड़ी धूल हट गई। महाराष्ट्र की अर्थव्यवस्था डगमगा गई है। लेकिन उसमें से मार्ग निकालेंगे, ऐसा विश्वास मुख्यमंत्री ने व्यक्त किया। मंत्रालय, सचिवालय नहीं हुआ है। नौकरशाही सरकारी आदेशों का ही पालन कर रही है, ऐसा उन्होंने दृढ़ता से कहा। उद्धव ठाकरे ने एक सच खुले मन से स्वीकार किया। सरकार तीन पहिया ही है। रिक्शा ही है वो गरीबों का। स्टेयरिंग मेरे हाथ में, लेकिन पीछे दोनों बैठे हैं!

मेरी सरकार का भविष्य विपक्ष के हाथों में नहीं, ऐसी गर्जना ही मुख्यमंत्री ने की।

उद्धव ठाकरे से अनेक विषयों पर चर्चा जारी ही रही। राज्य की अर्थव्यवस्था ठीक नहीं। यह संकट बड़ा है, मेरे ऐसा कहते ही मुख्यमंत्री ने तड़ाक से कहा, ‘ये संकट तो पूरे विश्व पर है!’

मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे का सोमवार, २७ जुलाई को जन्मदिन है। शिवसेना के युवा नेता के रूप में राजनीति में कदम रखनेवाले उद्धव ठाकरे कल उम्र के ‘साठ’वें में पदार्पण कर रहे हैं। साक्षात्कार की शुरुआत में ही उन्हें शुभकामना दी!

ऐसे हुई साक्षात्कार की शुरुआत…

करोड़ों लोगों को रोजगार देनेवाला यह राज्य है। इस राज्य की ही अर्थव्यवस्था डगमगा गई तो देश डगमगा जाएगा…

– इससे पहले मैंने उल्लेख किया कि प्रधानमंत्री मोदी ये समय-समय पर वीडियो कॉन्प्रâेंसिंग के माध्यम से देश के सभी मुख्यमंत्रियों से संवाद साधते हैं। इनमें से पहले या दूसरे संवाद में उन्होंने कहा था कि आप सभी ऐसी कोई योजना घोषित न करें कि जिसके कारण भविष्य में हमें कोई परेशानी हो। सस्ती लोकप्रियता के चक्कर में बेवजह छूट दी, माफी दी, ऐसी घोषणा मत करो। जैसे आपकी आर्थिक परिस्थिति कठिन है, वैसी ही हमारी यानी केंद्र सरकार की भी है। ये सत्य ही है कि यह वैश्विक परेशानी है। परंतु इस पूरे काल में हम सब मिलकर परिस्थिति सुधारने का प्रयास कर रहे हैं।

इसका उपाय क्या? उत्पादन और उद्योग बढ़ाना यही!

– हमने बीच में कुछ निवेश करार भी किए हैं। विश्वस्तरीय बड़ी कंपनियों के साथ हमने ‘एमओयू’ किया, निवेश करार किया। इसके अनुसार करीब १६ हजार करोड़ रुपए का निवेश महाराष्ट्र में आ रहा है। पूरे देश में रिवर्स गेयर डालने जैसी स्थिति होते हुए यह निवेश हमारी तरफ आ रहा है। इसलिए एक बात तो तय है कि सब कुछ खत्म हो गया या होनेवाला है, ऐसा मानने की कोई वजह नहीं। यह काल आपदा का है। चुनौतीभरा है। इससे निकलना जरूरी है। इसमें एक-दूसरे को संभालना बहुत जरूरी है। हम प्रयास कर रहे हैं। उद्योग-धंधे फिर से शुरू होनेवाले हैं। पचास हजार के आस-पास उद्योग राज्य में शुरू भी हो गए हैं। विशेषत: मुंबई और पुणे यह जो पट्टा है। सघन आबादी होने के कारण यहां कोरोना का प्रकोप बड़ा है। यहां यह महत्वपूर्ण औद्योगिक बेल्ट होने के कारण बंद या लॉकडाउन हम कर रहे हैं। लेकिन महाराष्ट्र में जब ग्रीन, ऑरेंज और रेड ऐसी श्रेणी थी, उस समय मतलब मई महीने के मध्य में या आखिर होगा, हमने ऑरेंज जोन में थोड़ी शिथिलता लाने का प्रयास किया। ऑरेंज यानी किसी जिले के किसी एक भाग में ही केसेस हैं, शेष मुक्त है, ऐसा भाग। ऐसे भाग में हमने उद्योगधंधे शुरू करने की सहूलियत दी। ग्रीन जोन में तो कोई भी परेशानी नहीं थी, वहां उद्योग शुरू हो गए हैं।

सरकारी काम भी बंद होने का दृश्य है। सच है क्या?

– यह पूर्णत: सच नहीं, सरकारी काम भी शुरू हैं। आपको बताता हूं, सड़कों की, बांधों की, कोस्टल रोड हुए, ग्रामीण भाग में कोई परियोजना हुई, कपास खरीदी हुई ये काम रुके नहीं। दूध खरीदी शुरू है। दूध खरीदी तो हम ३१ तारीख तक कर रहे हैं। मकई की खरीदी भी हो रही है। जिनके बीज बोगस निकले, उनकी हम नुकसानभरपाई भी करवा रहे हैं। ये सब हम कर रहे हैं। इसमें एक महत्व का मुद्दा ध्यान में रखें, संकट है इसलिए हम हाथ पर हाथ रखकर स्वस्थ नहीं बैठे हैं। साधारणत: १६ हजार करोड़ के ‘एमओयू’ अपने राज्य ने हस्ताक्षर किए हैं। एमओयू यह प्राथमिक अवस्था है। उसके बाद आगे की बातचीत अब शुरू है और इससे परे भी और कुछ हजार करोड़ के एमओयू यानी पूर्ण रूप से नए निवेश आ रहे हैं।

‘एमओयू’ पर कितना विश्वास रखते हैं आप? इससे पहले की सरकार में भी उद्योगमंत्री हमारे ही थे। उस समय भी ऐसे ही एमओयू हुए थे, लेकिन उनमें से कोई निवेश यहां आया नहीं…

– एक बात ध्यान में रखें, सिर्फ अकेला उद्योगमंत्री आपका होने से नहीं चलता। तुम्हारे सरकार की भूमिका भी महत्वपूर्ण होती है और उस समय मैंने पहले उल्लेख किया। वैसे ये निवेश के करार होने के दौरान नोटबंदी आ गई। एक प्रकार की अनिश्चितता निर्माण हो गई। ऐसी नीतियों की अनिश्चितता हो तो निवेश आएगा नहीं।

अब क्या स्थिति है?

– अब मैं अपने राज्य के लिए कहूंगा कि अब नीतियों में अनिश्चितता नहीं। हम कई चीजें इस काल में भी कर रहे हैं। इसके अलावा ये सुविधाएं हम अपना कुछ गिरवी रखकर कर रहे हैं ऐसा नहीं है, लेकिन कुछ बातें हम जान-बूझकर कर रहे हैं। मतलब भूमि अधिग्रहण के नियम आसान हो, ईज ऑफ डुइंग बिजनेस हो, ये सभी चीजें हम कर रहे हैं और ये जो एमओयू किए गए हैं, उसे अमल में लाने की जिम्मेदारी अपनी ही सरकार की है और सरकार वैसा अनुकूल वातावरण तैयार कर रही है। निवेशकों में जो विश्वास चाहिए वो पैदा किया जा रहा है। उससे ही निवेश आएगा यह निश्चित है। इन निवेशों के आने के दौरान पहले से जो उद्योग धंधे हैं, उन्हें तो हमने गो अहेड दे दिया है। वे काम शुरू कर रहे हैं। हालांकि जहां

लॉकडाउन नहीं, वहां फिर से कोरोना का दुष्प्रभाव पाया गया तो न चाहते हुए भी दोबारा लॉकडाउन करने का निर्णय लेना पड़ेगा। अर्थात यह अस्थायी विकल्प है। इसलिए सब कुछ समाप्त हुआ ऐसा समझने की जरूरत नहीं। मैं बिल्कुल निराशावादी नहीं और मैं किसी को निराशावादी होने नहीं दूंगा।

आपके नेतृत्व में सकारात्मक कार्य हो रहे हैं, राज्य को ऊर्जा मिल रही है। ये सभी बातें लोगों ने स्वीकार की हैं…

– एक उदाहरण देता हूं। एक शब्द है संयम।

जो आपके बारे में हमेशा इस्तेमाल किया जाता है…

– बताता हूं। मेरा मुद्दा अलग है। इन शब्दों का भी खेल है। एक अक्षर से भी फर्क पड़ता है। शिवसेनाप्रमुख कहते थे, अक्षर अक्षर जोड़कर शब्द बनता है और उन शब्दों का मंत्र होता है। शब्दों से गीत भी बनता है और गाली भी। अब संयम का उदाहरण लो। इस संयम में से ‘सं’ निकाल दें तो क्या होगा?

यम होता है…

– फिर क्या चाहिए, आप तय करो। संयम चाहिए कि यम, तय करो।

देश और महाराष्ट्र की राजनीति में उद्धव ठाकरे यानी संयम ये समीकरण है।

– मुझमें आत्मविश्वास है, जो काम हाथों में लिया, उसे मैं पूरा करके ही दिखाऊंगा।

लेकिन पिछले पांच वर्षों में जो सरकार थी, उस सरकार में आप भी थे। इस काल में वेंâद्र हो, राज्य हो, मेक इन इंडिया, स्टार्टअप फेल हो गया…

– उस समय भी ‘सामना’ ने मेरा साक्षात्कार लिया है। उस समय का साक्षात्कार पढ़ो। मेरी उस समय की भूमिका देख पाएंगे।

स्टार्टअप, मेक इन इंडिया, उसके बाद एमओयू हुआ। लेकिन दुर्भाग्य से ऐसा कोई भी एमओयू आखिर तक प्रत्यक्ष साकार नहीं हुआ…

– ये निर्भर होता है उन उन सरकार की नीतियों पर। केवल उत्सवप्रियता हो तो कुछ होगा नहीं। अब महाविकास आघाड़ी के साथी साथ हैं। वे सकारात्मक हैं। शरद पवार साहब हैं। कांग्रेस की सोनिया जी हैं। इसके अलावा कांग्रेस के अन्य नेता लोग भी हैं। इन सभी के साथ तीनों दलों के अनुभवों से जो समझदारी आई है वो समझदारी अब हम अपने काम में दिखा रहे हैं। अब तक पीछे मुड़कर देखने पर अपने से क्या रह गया है, इसका भी विचार आता है। पार्टी का लेबल लगाकर मैं देखता नहीं। सरकार ये सरकार होती है। इस सरकार की ओर से क्या रह गया था, क्या अच्छा हुआ था। इसकी समीक्षा करके हम काम कर रहे हैं और जरूरी बात मतलब (मुस्कुराते हुए) १६ हजार करोड़ के एमओयू का काम भी मैंने घर पर बैठ कर किया है।

हां, हमने देखा वो…

– हां, घर बैठकर ही किया। मैं कहीं भी भटका नहीं। यहां जाओ, वहां जाओ ऐसा कुछ नहीं किया। हमारा जो सिस्टम है, उस सिस्टम में ही काम किया। सिस्टम में ही काम करते हैं। वीडियो कॉन्प्रâेंसिंग द्वारा इन निवेशों के संदर्भ में हमने बैठकें की, चर्चा करके पैâसले लिए। विदेश के लोग उनके देश से शामिल हुए थे। अपने कुछ लोग यहां से शामिल हुए। मैंने घर से हिस्सा लिया। सुभाष देसाई और सभी सहयोगी मंत्रालय से शामिल हुए।

इन निवेशों में चीन का निवेश कितना…

– चीन का निवेश कितना, इससे ज्यादा चीनी निवेश हमारे देश में होनी चाहिए या नहीं, ये जरूरी है। बीच में प्रधानमंत्री मोदी ने चीन के बारे में वीडियो कॉन्प्रâेंसिंग की थी, तब उसमें मैंने पूछा था कि आप देश की एक नीति तय करो। मेरी आज भी यह अग्रणी मांग है।

आपकी सटीक भूमिका क्या है इस विषय पर?

– अपने यहां क्या होता है कि पाकिस्तान के साथ संबंध अगर तनावपूर्ण हुआ तो फिर पाकिस्तान मुर्दाबाद । पाकिस्तान के साथ कोई भी संबंध नहीं चाहिए। उनके साथ खेल नहीं, ये नहीं, वो नहीं। और जब माहौल ठंडा हुआ कि भूमिका बदल जाती है। फिर खेल और राजनीति आप एक साथ मत लाओ। यह सब बौद्धिक ज्ञान दिया जाता है। लेकिन जब बात तनाव की हो तब आपकी भूमिका ‘खबरदार’, अगर ये किया तो…’ ऐसी रहती है। फिर वो खिलाड़ी भी नहीं चाहिए, कलाकार भी नहीं चाहिए, कोई उद्योग भी नहीं चाहिए। वैसा चीन के संदर्भ में होना नहीं चाहिए। आप चीन के संदर्भ में एक बार तय करो, वस्तु तो छोड़ो ही, पर उद्योग धंधे हमें लाना है कि नहीं लाना है। ये देश की नीति होनी चाहिए। राष्ट्रभक्ति यह सभी देशों की एक जैसी होनी चाहिए। मेरी है। हमने ये सभी करार होल्ड पर रखे हैं। नहीं चाहिए तो वापस भेज देंगे, लेकिन कल आप ‘हिंदी-चीनी भाई भाई’ कहकर चीन के प्रधानमंत्री को घुमाओगे तो यह मौका हम गंवाए क्यों? और गंवाना है तो एक बार दिशा तय करो, हम आगे बढ़ें।

आप जब मुख्यमंत्री नहीं थे तब भी कुछ परियोजनाओं के मामले में आपने विशेष रूप से ध्यान आकर्षित किया। विशेषकर मुंबई का कोस्टल रोड। फिलहाल वर्तमान की अर्थव्यवस्था का विचार करते हुए एक प्रश्न मन में आ रहा है कि कोस्टल रोड होगा कि नहीं?

– काम शुरू है। जोरों में शुरू है। कोस्टल रोड का काम कहीं भी रुका नहीं है। हमने उसके लिए पैसों का नियोजन कर रखा है।

बुलेट ट्रेन की जरूरत नहीं, ऐसा आपने भी कहा था। शरद पवार ने भी कहा था। बुलेट ट्रेन का अपने राज्य को फायदा न होने से अपने राज्य को निवेश करना योग्य नहीं। फिर भी महाराष्ट्र में ६० फीसदी जमीन का अधिग्रहण हो गया है अब तक। ऐसे में बुलेट ट्रेन का सही मायने में भविष्य क्या है?

– हर कहानी का केवल एक ही पहलू नहीं होता। कई पहलू होते हैं। इसमें हमें स्थानीय लोगों का विचार करना बहुत महत्वपूर्ण है। राज्य को बुलेट ट्रेन की आवश्यकता होगी तो मैं कहूंगा, मेरे मुंबई-नागपुर को जोड़नेवाली बुलेट ट्रेन दो। मेरी राजधानी और उपराजधानी को जोड़नेवाली ट्रेन दो। जिसके कारण विदर्भ के मन में कारण न होते हुए भी जो दूरी बनाने का प्रयास किया जा रहा है, वह दूरी नष्ट होगी। जैसे समृद्धि महामार्ग बन रहा है, उसे अब शिवसेनाप्रमुख का नाम दिया है। उसी तरह मुंबई-नागपुर को जोड़नेवाली बुलेट ट्रेन दो। मुझे खुशी होगी।

मुंबई-सूरत बुलेट ट्रेन का क्या…

– उसकी अब कोई जरूरत नहीं लेकिन भूमि अधिग्रहण करते समय जिन्होंने विरोध किया है उनके पीछे शिवसेना… शिवसेना पार्टी के रूप में मजबूती से खड़ी है। सरकार के तौर पर जो कुछ करना है वह निर्णय हम लेंगे ही लेकिन जिन-जिन का विरोध है, उनके पीछे शिवसेना है। अब कुछ लोगों ने खुद से जमीन दी है तो हम क्या करें…

 

बुलेट ट्रेन होगी की नहीं? ऐसा मेरा सीधा सवाल है। क्योंकि इसमें राज्य सरकार का निवेश है…

– बताता हूं। पहले मैं जमीन का विषय लेता हूं। जिन्होंने खुद से जमीन दी है उनका व्यवहार अब तक पूरा हो गया होगा। लेकिन ग्रामीण भागों के जमीनी स्तर के लोगों का अभी भी विरोध है। जिनके पीछे शिवसेना मजबूती से खड़ी है। जैसे नाणार का विषय है। नाणार का भी सरकार ने करार किया था लेकिन उसे जनता ने नकार दिया। शिवसेना जनता के साथ खड़ी रही। अब सभी को मंजूर होगा तो सरकार करार करेगी। लेकिन बीच के दो-तीन महीने हमारे करोना में चले गए। जिसके चलते सारे विषय पीछे रह गए।

बुलेट ट्रेन का क्या?

– बुलेट ट्रेन हो तो भी बुलेट ट्रेन का विषय बैकसीट पर गया। उस पर किसी भी तरह की चर्चा नहीं हुई है और कोई पूछताछ भी नहीं कर रहा है। इस पर भी अब सरकार राज्य के हितों का विचार करके ही कोई निर्णय लेगी। मेरी भूमिका व्यक्तिगत अलग हो सकती है, जो जनता के हित में होगी, लेकिन राज्य के हित का विषय आया, उस समय इसमें हित है या अहित इसका विचार करना पड़ेगा। मेरा विचार ऐसा है कि सभी को एक साथ बुलाकर हमें ये निर्णय लेने की आवश्यकता है।

सरकार को ढाई सौ, तीन सौ करोड़ रुपए देने की क्या जरूरत है? ऐसा प्रश्न हम सबने मिलकर उपस्थित किया था…

– सही में। ये मेरा मुद्दा आज भी कायम है। लेकिन अब हमारी सरकार होते हुए ‘क्यों?’ को खत्म करने की जरूरत है। ‘क्यों?’ का कोई कारण है क्या? सही में इससे कोई फायदा होनेवाला है क्या, दिखाओ हमें। क्या होगा फायदा? कितना मुंबई से और सूरत से आना-जाना होगा? कितना आर्थिक घटनाक्रम होनेवाला है? ये सरकार में होते हुए मुझे जानकारी मिलने दो। यदि मुझे ठीक लगा तो मैं जनता के समक्ष रखूंगा। लेकिन कोई भूमिका मैंने एकतरफा ली होगी और अब अयोग्य लग रही होगी तो ये परियोजना मैं रद्द कर दूंगा।

आपकी महाविकास आघाड़ी क्या कह रही है?

– ठीक है।

बीच-बीच में नोक-झोंक शुरू ही रहती है…

– नहीं, ऐसा कुछ नहीं है। एक बात स्वीकारनी चाहिए और उसे मैं स्वीकार करता हूं। पिछले दो-तीन महीनों से फेस-टू-फेस मिलना-जुलना मुश्किल हो गया है। अभी मैंने पढ़ा कि और एक मंत्रालय कोरोना की जद में आ गया। इससे पहले जितेंद्र हों, अशोकराव रहे हों या धनंजय मुंडे ये बीमार हुए थे। ईश्वर की कृपा से वे ठीक हो गए। जितेंद्र तो बहुत ही गंभीर था। ऐसी परिस्थिति में ये मिलना-जुलना थोड़ा-सा मुश्किल हो गया था। इसलिए फोन पर या वीडियो के जरिए मुलाकात होती रहती है। अब हम वैâबिनेट मीटिंग भी करते हैं, अर्थात उसमें थोड़ा विस्तार किया गया है। मतलब कुछ मंत्री जो-जो अपने कार्यालय में या जहां होते हैं वहीं से मीटिंग में बैठते हैं। मैं घर से मतलब ‘मातोश्री’ से हिस्सा लेता हूं। मंत्रालय से कुछ लोग हिस्सा लेते हैं। ऐसा सभी लोग मिलकर वैâबिनेट लेते हैं। क्योंकि एक साथ एक ही जगह पर बैठकर फिलहाल ये संभव नहीं है। जनता को हम कानून बताते हैं और हम ही इसका उल्लंघन करें ये सही नहीं है। इसलिए हम इसका खयाल रखते हैं।

कुछ मंत्रियों का ऐसा आरोप है कि मंत्रालय का सचिवालय हो गया है। मतलब पूर्व के सचिवालय का मंत्रालय क्यों हुआ तो ये राज्य नौकरशाही नहीं चला रहे हैं तो क्या मंत्री चला रहे हैं।

– क्यों क्या हुआ?

मतलब नौकरशाही ही राज्य चला रही है और मंत्रियों को ही नहीं सुना जाता।

– नहीं। वैसा बिल्कुल नहीं है। और पल भर के लिए मान भी लें तो धारावी की प्रशंसा, राज्य की प्रशंसा, सर्वोत्तम मुख्यमंत्री ये प्रशंसा हो रही है। ये प्रशंसात्मक कार्य नौकरशाही ने सरकार का न सुनते हुए किया है क्या? निर्णय लेने का अधिकार सरकार का है ये मान्य, लेकिन इसे अमल में सचिव लाते हैं। अंत में यंत्रणा तैयार करने की हिम्मत तुम्हारे में होनी चाहिए। हर जगह ऑर्डर भी तुम ही दोगे और काम भी तुम ही करोगे, तो ये ऐसी सरकार नहीं हो सकती है।

नागपुर का उदाहरण है। वहां तुकाराम मुंडे मनपा के आयुक्त हैं। उनके और नगरसेवकों के बीच विवाद चल रहा है। इतना ही नहीं उन्होंने केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी से भी पंगा ले लिया है।

– सही है। फिर मेरा इस पर कहना है कि आप इस सचिव तंत्र को कचरे की टोकरी में फेंक दें। मंत्रालय या सचिवालय, यह विवाद क्यों चाहिए? सचिव पद्धति बंद कर दें। पिन टू पियानो अर्थात ए टू जेड ऑर्डर भी आप ही जारी करते हो, काम भी आप ही करते हो, मदद आदि का बंटवारा वगैरह सब आप ही करते हो।

राज्य के मुख्यमंत्री की हैसियत से आप तुकाराम मुंडे के पीछे हैं उस जनता द्वारा नियुक्त मनपा के, जो मुंडे के पीछे हाथ धोकर पड़ गई है?

– आपकी राय क्या है? किसके साथ हैं?

मुझे ऐसा लगता है कि तुकाराम मुंडे के आने से वहां अनुशासन लग गया है।

– फिर मुझे किसके पीछे खड़ा रहना चाहिए…

अर्थात अनुशासन के पीछे खड़े रहना चाहिए।

– फिर ऐसा ही है।

एक अधिकारी कठोर हो सकता है, सख्त हो सकता…

– होगा, लेकिन उसकी सख्ती आप जनता के हित में इस्तेमाल करते होंगे तो बुराई क्या है? उस समय उन्होंने कोई नियम, कुछ कानूनों को सख्ती से अमल में लाया था, कुछ लोगों को ये नागवार लगता होगा। परंतु तुकाराम मुंडे ने कोई बात सख्ती से अमल में लाई होगी तो ऐसे अधिकारी के पीछे सभी को खड़ा रहना चाहिए। आततायीपन कोई भी न करे। अनुशासित किया जाता होगा और जनता के हित की सुरक्षा की जा रही होगी तो बढ़ियां है। अंतत: जनता भी खुली आंखों से ये सब देखती होगी। उनके चेहरे पर मास्क होगा, फिर भी उनकी आंखें खुली हैं। ये भूलकर नहीं चलेगा। इसलिए मैंने पहले भी कहा था कि ये महाराष्ट्र है। इसका धृतराष्ट्र अभी नहीं हुआ है। और न ही हो सकता है।

आघाडी सरकार चलाते समय मर्यादा होती है, ऐसा मनमोहन सिंह हमेशा कहते थे। अटल बिहारी वाजपेयी भी ऐसा ही कहते थे। कई पार्टियां एक साथ होती हैं। उनकी भूमिका अलग होती है। मनमोहन सिंह एक बार हताश होकर बोले थे कि मैं कोई निर्णय नहीं ले सकता हूं। ये आघाडी की सरकार है। मर्यादा होती है। क्या आपका भी ऐसा ही मत है?

– मनमोहन सिंह को प्रशासन का अनुभव था। इसलिए उन्हें मर्यादा का  भान था। (मुस्कुराते हुए) मुझे प्रशासन का अनुभव नहीं है। इसलिए मुझे मर्यादा का भान नहीं है।

ये तीन पहियोंवाली सरकार है ऐसा कहते हैं…रिक्शा जैसी।

– हां ना, लेकिन वह गरीबों का वाहन है। बुलेट ट्रेन या रिक्शा में चुनाव करना पड़ा तो मैं रिक्शा ही चुनूंगा। मैं गरीबों के साथ खड़ा रहूंगा। मेरी यह भूमिका मैं बदलता नहीं हूं। कोई ऐसी सोच न बनाए कि अब मैं मुख्यमंत्री बन गया हूं, मतलब बुलेट ट्रेन के पीछे खड़ा रहूंगा। नहीं, मैंने इतना ही कहा कि मैं मुख्यमंत्री होने के नाते सर्वांगीण विकास करूंगा। मेरी राय है कि लोग मेरे साथ होने के कारण बुलेट ट्रेन नहीं, ये तो है ही परंतु अभी भी सर्वमत से बुलेट ट्रेन नहीं चाहिए होगी तो मैं नहीं करूंगा। इसलिए ३ पहिया तो ३ पहिया… वह एक दिशा में चलती है ना। फिर आपका पेट क्यों दुखता है! केंद्र में कितने पहिये हैं? हमारी तो ये तीन पार्टियों की सरकार है। केंद्र में कितने दलों की सरकार है, बताओ ना! पिछली बार जब मैं एनडीए की मीटिंग में गया था, तब तो ३०-३५ पहिए थे। मतलब रेलगाड़ी थी।

अब शिवसेना रूपी एक पहिया अलग हो गया है…

– इसके अलावा केंद्र में निर्दलीय भी हैं।

इन तीन पार्टियों में जो प्रमुख पार्टी है… शिवसेना है ही… कांग्रेस है, राष्ट्रवादी है… उनमें कांग्रेस का ऐसा कहना है कि मुख्यमंत्री का झुकाव राष्ट्रवादी की ओर है…

– मतलब क्या करते हैं? उनका स्नेह युक्त आक्षेप प्रारंभ में था लेकिन वह गलतफहमी बीच में मुझसे मिलने के बाद हो गई है और वह एतराज बहुत ज्यादा सख्त नहीं था। ऐसा है सभी लोग चुनाव लड़कर जीतते हैं। जनता की कुछ अपेक्षा उनसे होती है। इसीलिए जनता उन्हें मत देती है और वो अपेक्षा हम पूरी नहीं कर सकते हैं, ऐसा यदि किसी को लगता है तो या उनकी भूल है, ऐसी कोई बात नहीं है। इस तरह आशा और अपेक्षा व्यक्त करना कोई गुनाह नहीं है। जैसा कि आप कह रहे हैं प्रारंभ के दौर में उनके मन में कुछ रहा भी होगा लेकिन मुझसे किसी ने स्पष्ट रूप से ऐसा कुछ कहा नहीं कि आप हमें पूछते नहीं हो। पवार साहब से भी मेरी अच्छी बातचीत होती है। एकदम नियमित तौर पर तो नहीं लेकिन बीच-बीच में मैं सोनिया जी को भी फोन करता रहता हूं।

शरद पवार का कितना मार्गदर्शन मिलता है… राज्य चलाने का उन्हें भरपूर अनुभव है…

– उनके साथ मुलाकात एक अलग ही अनुभव होता है। वे मिलते हैं तब कुछ काम लेकर आते हैं ऐसा बिल्कुल नहीं है। कभी-कभी उनका फोन आता है कि कल क्या कर रहे हो? और ज्यादातर समय सब तालमेल बैठता होगा तो उनकी और मेरी मुलाकात होती है। मुलाकात में वे अपने पुराने अनुभव बताते रहते हैं। लातूर में भूकंप आया तब उन्होंने क्या किया था… चीन का मुद्दा निकला। रक्षा मंत्री रहते उनका अनुभव… उनका चीन दौरा… फिर चीन के प्रधानमंत्री के साथ क्या चर्चा हुई… उनकी पुरानी अनुभव की यादें वे बताते रहते हैं।

शरद पवार, महाराष्ट्र अथवा देश के किसानों के महत्वपूर्ण नेता हैं। सहकारिता क्षेत्र में उनका बड़ा योगदान है।

– निश्चित तौर पर है। इसमें कोई विवाद नहीं है।

महाराष्ट्र में शक्कर उद्योगपतियों को कोई परेशानी न हो, यह उनकी पहले से भूमिका रही है लेकिन हाल ही में ऐसा देखा कि राज्य के विपक्ष के नेता देवेंद्र फडणवीस शक्कर उद्योगपतियों की समस्या लेकर अमित शाह से मिले…

– वे पूरे देश के शक्कर उद्योगपतियों की चिंता कर रहे होंगे।

लेकिन गृहविभाग के पास शक्कर उद्योग की क्या समस्या हो सकती है?

– आखिर गृह में शक्कर भी लगती है न। गृहमंत्री मतलब जैसे कदाचित आदेश बांदेकर कार्यक्रम करते हैं… वैसे गृहमंत्री लगे होंगे।

अच्छा, मतलब ‘होम मिनिस्टर’…

– हां, इसीलिए शक्कर की समस्या लेकर वे गृहमंत्री से मिले होंगे।

राज्य की शक्कर उत्पादकों की समस्या मुख्यमंत्री के अधिकार क्षेत्र में नहीं आती है क्या?

– महाराज, मुझे अनुमान नहीं है।

लेकिन दिल्ली में जाकर एक घोषणा उन्होंने निश्चित तौर पर की, वह मतलब यह सरकार गिराने का हमारा इरादा नहीं है यह उन्होंने महाराष्ट्र सदन में जाकर कहा। आपके लिए यह कितने संतोष की बात है?

– मैं तो यहां बैठा ही हूं। उनका इरादा होगा या नहीं होगा… कुछ लोग कहते हैं कि अगस्त-सितंबर में सरकार गिराएंगे। मेरा कहना है कि इंतजार किस बात का करते हो, अभी गिराओ। मेरा साक्षात्कार चलने के दौरान सरकार गिराओ। मैं क्या फेविकॉल लगाकर नहीं बैठा हूं। गिराना होगा तो गिराओ। अवश्य गिराओ। आप को गिराने-पटकने में आनंद मिलता है ना। कुछ लोगों को बनाने में आनंद मिलता है। कुछ लोगों को बिगाड़ने में आनंद मिलता है। बिगाड़ने में होगा तो बिगाड़ो। मुझे परवाह नहीं है। गिराओ सरकार।

यह आपकी सोच है कि चुनौती है?

– ये मेरा स्वभाव है।

बहुत मुश्किल से बनाई गई यह सरकार है। इस सरकार का काम बढ़ियां चल रहा है। यह सरकार लोकप्रिय है। यह सरकार टिकनी चाहिए, ऐसी जनता की भावना है।

– इस सरकार का भविष्य विपक्ष के नेता पर निर्भर नहीं है। इसलिए मैं कहता हूं कि सरकार गिराना होगा तो अवश्य गिराओ। अभी गिराओ।

मध्यप्रदेश में कांग्रेस की सरकार गिराई, राजस्थान में गिराने का प्रयास हुआ लेकिन सफल नहीं हुआ…

– वहां कदाचित कोरोना की महामारी गंभीर नहीं होगी अथवा कोरोना की महामारी पहुंची नहीं होगी। क्योंकि यहां के कोरोना की अवस्था के बारे में गृह मंत्री के पास अथवा दिल्ली जाकर विपक्ष के नेता ने शिकायत की है। जबकि यह जो महामारी दुनियाभर में पैâली है, वह केवल महाराष्ट्र में ही होगी मध्यप्रदेश में नहीं होगी, राजस्थान में नहीं होगी।

अब नंबर महाराष्ट्र का, ऐसा दृढ़तापूर्वक कहते हैं…

– गिराओ। आपको सरकार गिरानी है ना, गिराओ।

राजस्थान की सरकार गिराने की कवायद शुरू रहते कांग्रेस के बागी नेता और भाजपा के कुछ नेताओं के बीच पैसों के लेन-देन से संबंधित कुछ टेप्स सामने आए। फोन टैपिंग गैर कानूनी है, फिर भी पैसे की ताकत लगाकर सरकार गिराने का काम चल रहा है…

– वे दूसरा क्या कर सकते हैं? यह उनका लोकतंत्र है ना। अर्थात यहां की हमारी सरकार लोकतंत्र विरोधी है और पैसे देकर तोड़कर यहां लाई जानेवाली सरकार लोकतंत्र के अनुसार होगी। यह उनके लोकतंत्र की व्याख्या है। लोकतंत्र का मजाक शिवसेनाप्रमुख को स्वीकार नहीं था। इसलिए वे कहते थे, यह आपका ऐसा बदहाल लोकतंत्र है। ये ऐसा। ये मुझे स्वीकार नहीं है।

यह जो राजनीति में पैसों का इस्तेमाल बढ़ रहा है इस बारे में आपका क्या कहना है? बालासाहेब तो इस पर प्रखरता से प्रहार करते थे। आप आज मुख्यमंत्री पद की कुर्सी पर बैठे हैं, आप जब यह देखते हैं तब क्या लगता है?

– ये सब घृणास्पद है। पैसे का इस्तेमाल करोगे तो गुनाह नहीं होता है लेकिन कोई आपके विरोध में होगा तो उसके पीछे जांच झमेला लगा देते हो। सब दिन समान नहीं होते हैं। यह याद रखो। दिन बदलते रहते हैं। हम कहते हैं ना, यह दिन भी चले जाएंगे सभी दिन गुजर जाते हैं।

‘ऑपरेशन लोटस’ महाराष्ट्र में सफल नहीं होगा…

– करके देखो ना। मैं भविष्यवाणी कैसे करूंगा? आप करके देखो। जोड़-तोड़ करके देखो। एक महत्वपूर्ण मुद्दा क्या है कि ऐसा कोई भी विपक्षी नेता दिखाओ जो दूसरी पार्टी  में जाकर सर्वोच्च पद पर पहुंचा है, मुख्यमंत्री बना है। आपको आपकी पार्टी में ऐसा क्या मिलता नहीं है कि आप दूसरी पार्टी में जाते हैं। कई जगह पर ऐसे उदाहरण हैं। ऐसे तोड़फोड़ होता है उसके पीछे ‘इस्तेमाल करो और फेंक दो’ यही नीति सबने अपनाई है।

पालकी ढोने की राजनीति है।

– यह हमारे यहां की राजनीति है। इसलिए दूसरी पार्टी को केवल ‘इस्तेमाल करो और फेंक दो’ करने के लिए अपना इस्तेमाल करने देना चाहिए या अपनी पार्टी में दृढ़तापूर्वक काम करते रहना चाहिए, यह हर किसी को तय करना चाहिए। ठीक है, कदाचित कोई व्यक्ति अथवा नेता अपनी पार्टी में आप पर अन्याय कर सकता होगा अथवा करता होगा, लेकिन इसलिए आपका उस पार्टी को त्याग कर दूसरों की पालकी ढोना… ऐसा करना चाहिए। आखिरकार पालकी ही ढोओगे ना या पालकी में बैठनेवाले हो? पैदल चलना…

स्वार्थ के लिए ऐसे दलबदल किए जाते हैं।

– हां, लेकिन पालकी में आपको बैठाने के लिए कोई तैयार है क्या? होगा तो अवश्य जाओ। मैं किसी के भी उज्जवल भविष्य के आड़े नहीं आ सकता हूं। नहीं आता। यदि तुम्हें दूसरी पार्टी में पालकी में बैठने का स्थान मिलता होगा तो अवश्य जाकर पालकी में बैठो लेकिन पालकी ढोने के लिए ना जाओ। मतलब क्या तो दूसरे की बारात जा रही है और आपके कंधे पर पालकी का बोझ है। इतना ही आपको संतोष है। पालकी का बोझ ढोना होगा तो जा सकते हो। कितने ऐसे दलबदल करनेवाले नेता दूसरी पार्टी में जाकर बड़े बने हैं? एक तय समय गुजरने के बाद उनका कार्य सीमित कर दिया जाता है। जो मूल सार होता है, आपकी पार्टी के विचार का वह महत्वपूर्ण होता है।

पालकी आपने भी बदल ली।

– ऐसा नहीं कह सकते हैं। मैंने भी गठबंधन किया है। क्यों किया? पहले जिनके साथ एक उद्देश्य के साथ गया था उनके उद्देश्य में खोखलापन है, यह मुझे बाद में समझ आया। इसलिए मैंने यह निर्णय लिया है और मैं फिर दुबारा कहता हूं कि मन में न होने के बाद भी मुख्यमंत्री पद की जिम्मेदारी मेरे कंधे पर आई। अन्यथा कभी सपने में भी यह अवसर मिलेगा, ऐसा लगा नहीं था। आप मुझे जानते हो।

आपके सपने में यह नहीं था लेकिन यह महाराष्ट्र अथवा जनता के सपने में था…

– सही है ना। फिर अब यह मेरी जिम्मेदारी है कि यदि मुझ पर मुख्यमंत्री पद की जिम्मेदारी आई है तो मैं मेरे राज्य की और जनता के सपनों को पूरा करूंगा ही।

फिलहाल आप राष्ट्रीय राजनीति की ओर किस नजरिए से देखते हैं?

– किस राजनीति की ओर देखूं… राजस्थान की देखूं, दिल्ली की देखूं, मध्यप्रदेश की देखूं… किस राजनीति की ओर देखूं। हम दोनों चश्मे वाले हैं। आपको जानकारी होगी कि

एक लंबी दूरी का चश्मा होता है और एक करीब का होता है। नंबर यदि ऐसे सरसरी तौर पर देखना होगा तो हमें किस दृष्टि से देखना चाहिए? लेकिन इतना कहता हूं, मैं सब तरफ दूर दृष्टि से देखता हूं।

आप चीन की ओर देखते हो कि नहीं?

– दूर दृष्टि से देखता हूं।

चीन ने हिंदुस्थान की सीमा में घुसकर हमारे २० जवानों की हत्या कर दी। आपकी नजर उस संकट तक गई या नहीं?

– गई, लेकिन हम क्या कर सकते हैं?

आज भी चीन के संदर्भ में होगा, पाकिस्तान के संदर्भ में होगा, जब हम देखते हैं तब ऐसा दिखता है कि हिंदुस्थान बड़ा देश है परंतु हिंदुस्थान के आसपास के एक भी देश से हमारा संबंध अच्छा नहीं है…

– आपकी बात सही है।

राज्य के मुख्यमंत्री की हैसियत से, शिवसेना का प्रमुख होने की हैसियत से आप इस नीति की ओर वैâसे देखते हैं…

– मैं ऐसा कभी नहीं कहूंगा कि आप हमें कहो, हमारे शिवसैनिक सरहद पर जाकर लड़ेंगे। कुछ लोग ऐसा कहते हैं, वैसा मैं कभी नहीं कहूंगा। परंतु हर किसी पर कुछ-न-कुछ जिम्मेदारी होती है। महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री पद की जिम्मेदारी मुझ पर है। देश के प्रधानमंत्री पद की जिम्मेदारी नरेंद्र भाई मोदी पर है। बीच में उन्होंने एक सर्वदलीय बैठक बुलाई थी। उसमें सभी दलों के नेताओं ने उनसे कहा था कि देश पर जब संकट आता है तब हम उसमें कुछ बाधित नहीं होने देंगे। आप आगे बढ़ो। हम एक दिल से आपके साथ हैं। उसी बैठक में मैंने कहा था कि एक नीति तय करो। बर्ताव वैâसा करना है? निश्चित तौर पर क्या करना है? उस बैठक में कई मुख्यमंत्रियों ने अपने विचार व्यक्त किए। सबसे अंत में बोलने वाला मैं था। मुझसे पहले लगभग सभी बोल चुके थे। इसमें से ज्यादातर लोगों ने चीनी माल का बहिष्कार करो ऐसी इच्छा जताई थी। भगवान की मूर्ति चीन से आ रही है। यह बंद करो। ये बंद करो, वो बंद करो। ऐसी मांगें उठी। ठीक है हमने चीन के ऐप पर बंदी लगाई लेकिन अब हम चीन को कब पटकेंगे? महज ऐप बंद करके चीन को सबक सिखा देंगे तो खुशी की बात है।

राममंदिर हमारी भावनाओं से जुड़ा मुद्दा है। शिवसेना ने राम मंदिर का मार्ग प्रशस्त किया, यह इतिहास कहता है। आप भी अयोध्या गए थे… मुख्यमंत्री बनने से पहले।

– मुख्यमंत्री बनने पर भी गया था…

मतलब आपने अपनी भूमिका में कोई बदलाव नहीं किया है।

– होगा भी नहीं!

राम मंदिर का भूमिपूजन ५ अगस्त को होगा, ऐसी तारीख घोषित की गई है। आप उस भूमिपूजन में जाओगे क्या?

– सिर्फ ‘हां’ या ‘ना’ में जवाब देने के लिए तो मैं इंसान के रूप में कुछ भी जवाब दे सकता हूं लेकिन आपने जैसा कहा है कि राम मंदिर के संघर्ष में शिवसेना की भूमिका इतिहास में दर्ज है। मैं मुख्यमंत्री नहीं था उस समय भी राम मंदिर में गया था। असल में संयोग में मेरी श्रद्धा है। मेरी भावना यही कहती है कि नवंबर, १८ में पहली बार मैं राम मंदिर में गया था, आप साथ में थे। शिवनेरी की मतलब शिवाजी महाराज की जन्मभूमि की एक मुठ्ठी मिट्टी मैं लेकर गया था। उसके बाद इस मुद्दे को काफी गति मिली। उससे पहले यह विषय ठंडा पड़ा था। किसी ने कोई विषय ही नहीं निकाला था। शिवसेना ने शुरुआत की। समय लगता होगा तो कानून बनाओ। सरकारी आदेश जारी करो जो आवश्यक हो करो लेकिन राम मंदिर बनाओ।

यह आप ही की मांग थी…

– यह शिवसेना की मांग थी। इसके लिए हम अयोध्या गए। आप संयोग कहें, कुछ भी कहें। जिस वर्ष १८ के नवंबर में मैं वहां गया उसके अगले नवंबर में राम मंदिर की समस्या हल हो गई और मैं मुख्यमंत्री बन गया। यह मेरी श्रद्धा है। जिसे कोई अंधश्रद्धा कहना चाहे तो वह कहे। लेकिन यह मेरी श्रद्धा है और रहेगी। मुद्दा क्या आता है कि फिलहाल सर्वत्र कोरोना से हाहाकार मचा है। मैं ठीक हूं। मैं कहूंगा मैं अयोध्या जाऊंगा ही। मैं मुख्यमंत्री हूं। लेकिन मुख्यमंत्री नहीं था तब भी मुझे वहां मान-सम्मान… सब कुछ मिला। मिला था। वह भी शिवसेनाप्रमुख और उनका बेटा होने की हैसियत से। वह पुण्य प्रताप मेरे पास है ही। अब तो मुख्यमंत्री हूं। मुझे सुरक्षा मिलेगी। मैं सही से जाऊंगा। मैं पूजा-अर्चना करके अथवा उस कार्यक्रम में सहभागी होकर वापस आऊंगा लेकिन यह मंदिर आम मंदिर नहीं है। किसी गांव में मंदिर बनाना होगा तो भी गांव वाले एक दिल से एकत्रित होते हैं। उस गांव के लिए वह अयोध्या जैसा ही राम मंदिर होता है। वे कई लोग अयोध्या नहीं जा सकते हैं। उनके लिए गांव का वह मंदिर महत्वपूर्ण होता है। गांव में कई कार्यक्रम, विवाह समारोह उस ईश्वर की साक्षी से संपन्न होते हैं।

अयोध्या का मंदिर मतलब संघर्ष है।

– फिर, यह राम मंदिर का मुद्दा है, जिसकी एक संघर्ष की पृष्ठभूमि है। गजब पृष्ठभूमि है। जिस पर बाबर ने आक्रमण करके मस्जिद बनाई थी। उस जगह फिर हमारा मंदिर बना रहे हैं। केवल हिंदुस्थान के हिंदू ही नहीं, बल्कि वैश्विक कौतूहल का विषय है। आज हमारे यहां कोरोना संकट होने के कारण सभी मंदिरों में जाने-आने पर पाबंदी है। मैं अयोध्या जाकर आऊंगा लेकिन लाखों राम भक्त जो उपस्थित रहने के इच्छुक होंगे, उनका आप क्या करोगे? उन्हें आप रोकोगे या उन्हें आने दोगे? जाने अनजाने में उनसे कोरोना का प्रसार होने दोगे क्या? क्योंकि यह आनंद का क्षण है। कई लोगों की वहां जाने की इच्छा होगी। अन्यथा आप वीडियो कॉन्प्रâेंसिंग के जरिए भूमि पूजन कर सकते हैं।

 

आपको याद होगा कि मुख्यमंत्री की हैसियत से जब आप गए थे तब सरयू के तट पर आपको आरती करने से रोका गया था क्योंकि कोरोना का प्रसार होने की आशंका थी…

– हां, आरती नहीं कर सके थे रोक दिया था।

वो कोरोना की शुरुआत का समय था।

– सही है। उसके पहले जब गया था, तब सरयू का घाट वैâसा था…

हां, उसका स्वरूप भव्य था।

– बहुत भीड़ थी। पैर रखने की भी जगह नहीं थी। राम मंदिर भावनात्मक मुद्दा है। उससे लोगों की भावनाएं जुड़ी हुई हैं। उसे आप वैâसे रोकोगे? मैं आना-जाना करता रहूंगा। मुख्यमंत्री रहते हुए मैं जाकर आऊंगा। अभी भी अधिकृत तारीख नहीं आई है। अधिकृत कार्यक्रम वैâसा होगा, यह नहीं पता। कार्यक्रम आने के बाद हम तय करेंगे लेकिन जो लाखों लोगों की भावना है कि वहां उपस्थित रहें, उन्हें आप वैâसे रोकोगे? क्योंकि वहां सरयू का किनारा ही महत्वपूर्ण है। जब राम मंदिर का आंदोलन चला था तब सरयू भी लाल हुई थी। राम भक्तों के खून से। ऐसे लाखों करोड़ों लोगों की भावना वहां से जुड़ी है।

आप इस मुद्दे से भावनात्मक रूप से जुड़े हैं…

– हूं ही। क्योंकि मैं दो से तीन बार अयोध्या गया हूं। मेरा अनुभव कहता है, मैं अंधश्रद्धालु नहीं हूं, यह ध्यान रखना। मेरे दादाजी और मेरे पिता का साफ मानना था, दादाजी का कहना मुझे अच्छी तरह से याद है। मेरे दादा नास्तिक नहीं थे। उनकी देवताओं और देवियों पर श्रद्धा थी। मेरे पिता अंधश्रद्धालु नहीं थे। श्रद्धा और अंधश्रद्धा में एक बारीक रेखा है। वह बहुत महत्वपूर्ण है। उसी भावना से मैं कहता हूं कि अब तक मैं तीन बार अयोध्या गया हूं। लेकिन वहां गर्भगृह में खड़े होने के बाद जो अनुभव आया, वह अद्भुत था। औरों को भी ऐसा अनुभव आया होगा, मैं इससे इनकार नहीं करता। इसलिए इस मामले में कोई मुझसे विवाद ना करे और ना ही मुझे कुछ सिखाए।

शिवसेना मतलब भीड़, ऐसा गत ५०-५५ साल का अनुभव है। शिवसेनाप्रमुख मतलब भीड़ का महासागर। आप भी शिवसेनापक्षप्रमुख हुए और भीड़ में ही रहे। शिवसेना की एक आवाज पर हजारों-लाखों लोग रास्ते पर उतर जाते हैं। आप लाखों की सभा करते हैं। लेकिन इस नए संकट की स्थिति में आप हमसे दूर हो गए या फिर भीड़ कम हो गई। शिवसेना का वर्धापन दिन भी बिना भीड़ के किया।

– भीड़ थी। लेकिन वह ई-भीड़ थी।

इस परिस्थिति में राजनीति कैसे आगे बढ़ेगी?

– मुश्किल है। मैंने आपसे अभी कहा ना कि शिवसेनाप्रमुख की याद भीड़ के संदर्भ में भी आती है। जब भी विजयोत्सव होता था या शिवसेनाप्रमुख का जन्मदिन होता था, उस समय की भीड़ याद आती है। आखिरी के दिनों में वे नहीं उतरते थे। वे खिड़की में से ही हाथ दिखाते थे। वो फोटो भी है। नीचे इकट्ठा हुई भीड़ में जल्लोष होता था और जयघोष होता था। उस समय वे खिड़की में आकर उनका अभिवादन स्वीकार करते थे। मैं उनसे कहता था आप बार-बार मत उठिए… इस पर वे कहते यह मेरा टॉनिक है। मेरी तबीयत की चिंता मत कर। यह भीड़ ही मेरी टॉनिक है। शिवसैनिकों का और हमारा ऐसा रिश्ता है। इस रिश्ते का यह यथार्थ वर्णन है।

अब इस टॉनिक का आप क्या करनेवाले हैं?

– अब ये टॉनिक तो चाहिए ही। किसी भी परिस्थिति में मैं टॉनिक को नहीं छोड़ूंगा।

लॉकडाउन के दौरान प्रधानमंत्री मोदी ने आत्मनिर्भर होने का मंत्र दिया था। अच्छा मंत्र है। आत्मनिर्भर होना चाहिए। आप राज्य के मुख्यमंत्री के रूप में इसे किस तरह देखते हैं? आप अपने कार्यकाल में महाराष्ट्र को आत्मनिर्भर वैâसे बनाएंगे?

– शब्दों के कई पहलू हैं। शब्दों के कई अर्थ होते हैं। अर्थ का अनर्थ भी हो सकता है। आत्मनिर्भर मतलब क्या? सरकार के रूप में शुरुआत में ही मैंने कहा था तुम सावधानी बरतो, मैं जिम्मेदारी लूंगा। मैं आत्मनिर्भरता को ऐसे देखता हूं। सावधानी मतलब क्या? मैंने पहले जो बौद्धिक दिया, कोरोना के साथ जीने के बारे में उसकी सावधानी तुम बरतो। स्वास्थ्य सुविधाएं बढ़ाने और उपचार की जिम्मेदारी हम लेते हैं। फिर पटरी से उतरी जो गाड़ियां है, चाहे वो आर्थिक गाड़ी हो या कोई और उसे पटरी पर लाने की जिम्मेदारी हम लेते हैं। एक बार मेरी जनता सावधानी से रहने लगी तो हम इस वायरस से निपट लेंगे, ऐसा मैं कहता हूं। इसे सावधानी कहो या आत्मनिर्भरता कहो, कुछ भी कहो। देखिए ऐसा नहीं है कि कभी कोई बीमार नहीं पड़ेगा। कोरोना फ्लू का ही एक प्रकार है। इस वायरस के आने के पहले छह से सात प्रकार के वायरस हमारे देश में पहले से ही थे। उसी का यह अगला प्रकार है। १९ में आने के कारण इसे ‘कोविड-१९’ कहते हैं। उसका मुकाबला करने या उसका सामना करने के लिए बाहर घूमते-फिरते समय खुद को वैâसे बचाना है, अपने बचाव के तरीके को मैं आत्मनिर्भरता कहूंगा। सावधानी कहूंगा और उसके बाद आवश्यकता हुई तो जो दवाइयां हमारे पास उपलब्ध हैं, उसका उपयोग करके जान बचाने की जिम्मेदारी सरकार को लेनी चाहिए।

मुख्यमंत्री के रूप में आपने अपनी बात रखी। आप मुख्यमंत्री तो हैं ही लेकिन आखिरकार आपका पंचप्राण शिवसेना है। कई सालों से आप शिवसेना का काम कर रहे हैं। आप प्रमुख नेता हैं। मार्गदर्शक हैं। शिवसेनाप्रमुख ने आपको एक राह दिखाई है। उस रास्ते पर आप चल रहे हैं। आप हमेशा कहते आए हैं शत-प्रतिशत शिवसेना। कुछ समय के लिए आपने एक दल से युति की। तब दो दलों की सरकार थी। आज आप तीन दलों के साथ हैं।

– लेकिन मुख्यमंत्री हैं…

हां, आप मुख्यमंत्री हैं। उसमें आप अलग-अलग विचारों के दलों के साथ हैं। आपको पूरे महाराष्ट्र में शिवसेना पैâलानी है। आत्मनिर्भर शिवसेना बनानी है। यह आपका सपना कायम है।

– विरोधी दल का काम आप कर रहे हैं क्या?

हां, मैं हमेशा विरोधी दल में रहता हूं। मुझ पर ऐसा आरोप है…

– अरे, अभी हमारी गाड़ी कहां पटरी पर आ रही है। अब हमारी रिक्शा अच्छे से चलने लगी है। स्टेरिंग मेरे हाथ में है। पीछे दो लोग बैठे हैं। लेकिन एक बात बताता हूं, आप सत्ता की बात करें तो एक ही दल की सरकार जैसा बड़ा सपना नहीं है। यह आपका व्यक्तिगत सपना हो सकता है लेकिन उसका जरा-सा भी उपयोग नहीं है। कौड़ी की कीमत नहीं है। क्योंकि जब उस सपने में जनता का सपना शामिल नहीं होता तब तक एकतरफा सरकार नहीं आती। और जो सपना सरकार आने के बावजूद पूरा नहीं हो सकता तो जनता ही उसे गिराए बिना नहीं रहेगी। अब महाराष्ट्र में एक अलग प्रयोग किया गया है। तीन अलग-अलग विचारधाराओं के दल एक विचित्र राजनीतिक परिस्थिति में एक हुए हैं। उसमें सिर्फ और सिर्फ अपरिहार्यता के रूप में मुख्यमंत्री पद की कुर्सी मैंने स्वीकार की है। यह सम्मान है। सम्मान का पद है। बहुत बड़ा है। लेकिन यह मेरा सपना कभी नहीं था। लेकिन अब मैंने इसे स्वीकार कर लिया है।

…और कामों का धमाका ही कर दिया।

– आपको एक बात बताता हूं। इस जिम्मेदारी को स्वीकार करने के बाद मैंने पहला बजट पेश किया। इस बजट में जनता के हित के लिए हमने कई घोषणाएं कीं। उसमें कुछ बातें ऐसी हैं जो आज तक किसी ने नहीं कीं और शायद किसी ने विचार भी नहीं किया होगा। उन सबको पूरा करना मेरी जिम्मेदारी है। उस संदर्भ में प्रयास भी शुरू है। जब मैंने अपने काम की शुरुआत की थी, विरोधियों की भाषा में कहें तो मैंने घूमने की शुरुआत की थी, उस समय की सरकार ने भी नहीं किया होगा ऐसे विभागवार कामों का बंटवारा किया। मैंने हर विभाग की बैठक ली। मुझे पता है कि मराठवाड़ा के कुछ जिले रह गए हैं और विदर्भ का कुछ भाग, उत्तर महाराष्ट्र, पश्चिम महाराष्ट्र, कोकण, मुंबई और आधे महाराष्ट्र में जाकर मैंने अपने प्रशासन के सहयोगियों के साथ सर्वदलीय विधायकों की बैठक ली थी। उनके कामों को सुनकर उसे पूरा करने के ऑर्डर्स भी दिए हैं। जैसे ही काम की शुरुआत हुई, कोरोना आने के कारण वह रुक गया। मैं जिस विभाग में जाता, स्वाभाविक है मैं शिवसैनिकों से भी मिलता। कुछ शिवसैनिकों के भी कार्यक्रम होते थे। ये सारी बातें गत दो-तीन महीनों से रुकी हुई हैं। कोरोना काल समाप्त हो जाए, तो फिर से शुरू होगा। मुख्यमंत्री पद के बारे में शिवसेनाप्रमुख हमेशा कहते थे, यह बातें आती-जाती रहती हैं। हमेशा के लिए रहेगी वह मेरी पार्टी और प्रमुख पद। वह कायम है। शिवसेनाप्रमुख कहते, यह पद भी जब तक शिवसैनिकों का विश्वास है तब तक ही। इसलिए मैं इसे कभी नहीं छोड़ूंगा और पार्टी को बढ़ाने का प्रयास मैं करने ही वाला हूं, जैसा कि सारी पार्टियां करती हैं।

आपने जो पार्टी का काम शुरू किया शिवसैनिक के रूप में, नेता के रूप में, बाद में कार्याध्यक्ष के रूप में और बालासाहेब के बाद शिवसेनापक्षप्रमुख के रूप में…आपने ये सब एक वृहद स्तर पर किया। राज्य को शिवसेना का मुख्यमंत्री दिया। पार्टी सत्ता में है। जब आपने पार्टी का काम शुरू किया तब आप शिवसेना के युवा नेता थे, अब आप ६० वर्ष के होने जा रहे हैं।

– यस! मैं साठवें साल में मुख्यमंत्री भले ही हूं लेकिन इसके लिए जिद नहीं की थी। यह सिर्फ संयोग मात्र है। मुझे लगता है दुनिया में एकमात्र ऐसा मेरा ही उदाहरण होगा जिसकी सबसे कम अहमियत मानी गई, वही पार्टी का सर्वोच्च नेता बना और इसमें कुछ नहीं है, इसे कुछ समझता नहीं है, ऐसा कुछ लोग बोलते थे। लेकिन आज वही राज्य का मुख्यमंत्री बन गया।

जी और आप अच्छा काम कर रहे हैं। आपको राज्य की जनता का आशीर्वाद प्राप्त है।

– यह महत्वपूर्ण है। मैं आज आपको प्रमाणिकता से कहता हूं। मैं आज भी अपना हस्ताक्षर ‘आपका नम्र’ के रूप में ही करता हूं।

यह हम सबको बालासाहेब द्वारा दी गई सीख है।

– हां। यह बालासाहेब का तरीका है। मेरे दादाजी का भी यही तरीका था। मुख्यमंत्री पद की बात करें तो ऐसे पद आएंगे-जाएंगे लेकिन जनता से हमें विनम्र होकर व्यवहार करना चाहिए क्योंकि मैं मुख्यमंत्री रहूंगा या नहीं भी रहूंगा। लेकिन कहीं भी मां और बालासाहेब के बेटे के रूप में लोग मुस्कुराकर मेरा स्वागत करते हैं। प्रेम से आदरातिथ्य करते हैं। ‘आइए बैठिए’ कहते हैं। यह पूर्वजों के पुण्य कर्म की कमाई है। इसमें मेरा कर्तृत्व शून्य है।

आप युवा नेता थे और अब ६० वर्ष में प्रवेश कर रहे हैं। मतलब सीनियर सिटीजन कह सकते हैं।

– हां, अब मुझे बस की यात्रा मुफ्त में मिलेगी। हालांकि आप भी पीछे ही हैं। मैं आज बस में एक कदम रख रहा हूं। तो आप भी पैर रखने की तैयारी में हैं।

सच है। आपके साथ ही हूं। लेकिन मुझे बताइए कि आपकी यात्रा युवा नेता से लेकर शिवसेना के वरिष्ठ नेता…आनेवाला साठवां वर्ष…क्योंकि यह साठवां बहुत महत्वपूर्ण चरण है।

– बिल्कुल है। लेकिन पीछे मुड़कर देखो तो ऐसा बिल्कुल नहीं लगता। यात्रा बुलेट ट्रेन की गति से हुई। यहां-वहां देखने का समय ही नहीं मिला। मैं पूरी ईमानदारी से कहता हूं, कुछ लोग कहते हैं कि यह मेरा क्षेत्र नहीं है। यह सही बात है। सच में यह मेरा क्षेत्र नहीं है। मैं मूलत: एक कलाकार हूं। जब मेरी कला की यात्रा शुरू थी तो सिर्फ और सिर्फ अपने पिता यानी शिवसेनाप्रमुख की कुछ सहायता हो सके, उसमें थोड़ा-बहुत मैं योगदान कर सकूं इसलिए पार्टी का काम शुरू किया। मेरा पहला कदम था ‘सामना’। उस समय आपने देखा होगा कि शिवसेनाप्रमुख को जरा भी आराम नहीं था। उस समय आज की तरह साधन नहीं थे। हेलीकॉप्टर नहीं थे। हवाई जहाज नहीं थे। कहीं जाना होता तो गाड़ी से यात्रा करनी होती थी। उसमें भी एयरकंडीशन गाड़ी होना एक बड़ी लग्जरी बात होती थी। शिवसेना के कई नेता और शिवसैनिक आज भी मैं देखता हूं कि एसटी से यात्रा करते हैं। उस दौरान भी यात्रा करते ही थे। वामन राव महाडिक हों, दत्ताजी हों या उनके साथ के शिवसैनिक हों, उन सभी का कर्तृत्व बहुत बड़ा है। उन्होंने उस समय हर जगह पहुंचकर शिवसेना को पैâलाया है। बीजारोपण किया है और उस बीज से आए हुए ये जो अंकुर हैं, उन्हें मैं आज देख रहा हूं। जैसे कोकण में कहते हैं कि अगर नारियल का पेड़ दादाजी लगाते हैं तो उसका फल पोते को मिलता है। आज उनके द्वारा लगाए गए पेड़ों का फल हम चख रहे हैं। इसलिए उनका कर्तृत्व और उनका योगदान बहुत बड़ा है। सच में इसमें मेरा कोई कर्तृत्व नहीं है। सिर्फ और सिर्फ मैं इन कामों में मन से इनवॉल्व हो गया। जैसा आपने अभी कहा था कि कोरोना में डॉक्टरेट हो गया क्या? ऐसा नहीं है। कोई भी जिम्मेदारी स्वीकार करने पर उसमें पूरी जान लगा देनी चाहिए। जैसे ‘सामना’ हो, संगठन में अनुशासन हो या कोई यंत्रणा शुरू करनी हो, इनमें धीरे-धीरे काम करते-करते मैं चलता रहा। आपको याद होगा कि शुरुआत में मैं भाषण भी नहीं करता था।

हां, मुझे पता है।

– मतलब, मेरा कहना है कि मुझे भाषण करना नहीं आता था और आज भी नहीं आता। एक बार तो ऐसा हुआ कि एक जगह मुझे जबरदस्ती बुलाया गया और उसी समय मैंने तय किया कि आज भाषण करना ही है। लोगों को पता चलने दो कि मुझे भाषण करना नहीं आता। मैंने पहले भाषण लिखा। उसे याद किया। लेकिन माइक के सामने खड़ा होने पर मुझे भाषण याद ही नहीं आया। फिर मैंने उस समय जो मुझे सूझा, वही बोला और उस भाषण पर भी खूब तालियां बजीं। ऐसे ही भाषण करते-करते मैं यहां तक पहुंच गया। मतलब हर चीज का आपको अनुभव होना चाहिए, यह जरूरी नहीं है। आपका दिल, आपके अंत:करण में तड़प होनी चाहिए, वह महत्वपूर्ण है।

इसीलिए जब आप मुख्यमंत्री बने तो पूरे महाराष्ट्र ने तालियां बजाकर आपका स्वागत किया…

– यस। तड़प चाहिए और मैं तड़प के साथ काम करता हूं।

आपसे बात करते हुए ऐसा लगा ही नहीं कि मैं मुख्यमंत्री से बात कर रहा हूं। ऐसा लग रहा था अपने घर के ही किसी सदस्य से बात कर रहा हूं।

– मैं ऐसा ही हूं। आखिर मुख्यमंत्री मतलब क्या? उसे सींग उग आती है क्या? मुझे ऐसे ही रहना है! आखिरकार मेरे लिए जनता का आशीर्वाद महत्वपूर्ण है। वो है तब तक चिंता नहीं। (indisaamana.com)

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