संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : कोरोना के चलते हुए ही घर, कारोबार, सरकार सभी सुरक्षित तरीके तलाशें
26-Jul-2020 6:08 PM
‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : कोरोना के चलते हुए ही घर, कारोबार, सरकार सभी सुरक्षित तरीके तलाशें

सरकार और समाज दोनों को आज ऐसी योजना बनाने की जरूरत है कि जब कभी कोरोना का खतरा खत्म होगा, उस वक्त आज बनाए गए ढांचे का क्या इस्तेमाल होगा। दुनिया के तकरीबन हर देश, और हिन्दुस्तान के तकरीबन हर प्रदेश ने इस दौरान मेडिकल जांच की क्षमता कई गुना कर ली है, अस्पतालों में मरीजों को दाखिल करने की क्षमता अंधाधुंध बढ़ा ली है। सरकारों ने अपनी बहुत सी गैरजरूरी इमारतों को अस्पतालों में तब्दील कर दिया है, मेडिकल मशीनें खरीद ली गई हैं। इसी तरह कारोबार में भी एक संक्रामक रोग के चलते अपने तौर-तरीकों को बदल डाला है, कई नई चीजें ईजाद की गई हैं। सरकारी दफ्तरों में काम का अंदाज बदल गया है। लोग कागजों से परहेज करने लगे हैं। बहुत से काम कहीं गए बिना वीडियो कांफ्रेंस से होने लगे हैं। अब यह एक नई पटरी बिछ गई है जिस पर कोरोना-प्रतिरोधक एक्सप्रेस दौड़ रही है।

यह मौका बंद कमरों में बैठकर योजनाएं बनाने वाले लोगों के लिए है जो कि हो सकता है कि आज एक कमरे में बैठक करने के बजाय किसी वीडियो कांफ्रेंस पर दूसरे जानकार-विशेषज्ञों से बात करके इसकी तैयारी कर सकते हैं कि कोरोना के बाद की दुनिया और जिंदगी में आज खड़े किए गए ढांचे,जुटाए गए साधन, और सीखी गई नई तकनीकों का क्या इस्तेमाल हो सकता है। ऐसा लगता है कि सरकारें अगर अभी से योजना बनाएं तो साल-छह महीने बाद कोरोना का खतरा खत्म होने पर सरकारें सरकारी दफ्तरों में आवाजाही घटा सकती हैं, वहां पर लोगों का इंतजार खत्म कर सकती हैं, जगह-जगह लगने वाली कतारों का कोई इलाज निकाला जा सकता है, और सरकार कागजों का काम घटा सकती है। सरकारी काम का सरलीकरण इसलिए जरूरी है कि सरकारी दफ्तर कोरोना फैलने की एक बड़ी वजह अगर आज नहीं भी थे, तो भी कल किसी और संक्रामक रोग के समय ऐसा हो सकता है,इसलिए जनता को सरकार के पास कम से कम जाना पड़े, ऐसा प्रशासनिक सुधार अभी से सोचा जाना चाहिए। दूसरी बात यह कि जिन लोगों को भी एक-दूसरे से कागज लेने पड़ रहे हैं, नोट लेने पड़ रहे हैं, पहचानपत्र देखने के लिए लेना पड़ रहा है, उन सब रोजमर्रा के चीजों के ऐसे डिजिटल रास्ते निकालने की जरूरत है जिसमें लोग अपने मोबाइल फोन को दूर से दिखाकर ही काम चला सकें, या पहचानपत्र को सुरक्षाकर्मी के फोन पर भेज सकें,ताकि एक-दूसरे का फोन भी छूने की जरूरत न पड़े। दुनिया को यह मानना ही नहीं चाहिए कि कोरोना खत्म होने के साथ दुनिया से संक्रामक रोग खत्म हो जाएंगे, या कम से कम सौ बरस पहले की पिछली संक्रामक महामारी की तरह अब अगली संक्रामक महामारी सौ बरस बाद आएगी। लोगों को ऐसी खुशफहमी में नहीं जीना चाहिए। हो सकता है कि कोरोना का कुंभ के मेले में बिछुड़ा हुआ कोई भाई अगले बरस ही आ जाए जिसके तेवर इसके मुकाबले भी कई गुना अधिक खतरनाक हों, जो कि इंसानों के साथ-साथ जानवरों को भी प्रभावित करने वाला हो। ऐसी हालत में सावधानी की तैयारी आज से भी कई गुना अधिक लगेगी, और समाज से लेकर सरकार तक, और कारोबार तक सबको इसके लिए आज के सबक और आज की तैयारी का इस्तेमाल करना चाहिए।

आज सरकार और समाज सबकी जिंदगी एक बहुत बड़े घाटे में आ गई है। यह भी एक वजह है कि सबको ऐसे रास्ते निकालने चाहिए कि खर्च घटे, खपत घटे, काम आसान हो। सरकारें आज तो युद्धस्तर पर काम करके मरीजों को बिस्तर देने के संघर्ष में लगी हैं, और यह क्षमता भी खत्म हो चुकी है इसलिए उत्तरप्रदेश जैसे बड़े प्रदेश के मुख्यमंत्री ने भी यह कह दिया है कि वह कुछ किस्म के कोरोना पॉजिटिव मरीजों को कुछ शर्तों के आधार पर घर पर रहने की छूट देंगे। ऐसी ही बात बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बैनर्जी पहले ही कर चुकी हैं। छत्तीसगढ़ में भी नौबत इसके करीब पहुंच रही है, हालांकि यहां स्वास्थ्य मंत्री इस रियायत के खिलाफ अड़े हुए हैं। ऐसे में यह कल्पना कर लेना जरूरी है कि अगले ही बरस अगर इससे भी अधिक जानलेवा कोई दूसरा संक्रामक रोग आता है, तो उससे बचने के लिए सरकार कैसे तैयार रहे, और जनता कैसे तैयार रहे। कैसे सरकार इस तकलीफ से गुजर रही जनता के बर्बाद हो चुके इस पूरे साल की भरपाई के लिए उसकी जिंदगी आसान कर सकती है। सरकार को जनता से कागज भरवाना और कागज लेना खत्म करना चाहिए। यह सरकार की किफायत के लिए जरूरी है, जनता की बचत के लिए जरूरी है, और दोनों की जिंदगी बचाने के लिए भी जरूरी है। पूरे देश में सरकारी कामकाज के जानकार, टेक्नालॉजी के विशेषज्ञ, और सामाजिक कार्यकर्ता साथ बिठाए जाने चाहिए कि वे सरकारी और कारोबारी कागजी खानापूरी को शून्य करने की तरफ कैसे बढ़ें। यह बात आसान नहीं होगी क्योंकि सरकार में तो जितने रोड़े अटकाए जा सकते हैं, ऊपरी कमाई की संभावना उतनी ही बढ़ती है। लेकिन अपने कर्मचारियों और अधिकारियों की जनता की कतारें लगवाने की हसरतों को खत्म करना चाहिए, और लोग घर बैठे सरकारी काम करवा सकें, इसके पूरे तरीके अभी से शुरू कर देना चाहिए क्योंकि अगली महामारी तो जब आए तब आए, आज भी गैरजरूरी सरकारी औपचारिकताएं जानलेवा हैं ही।

इसी तरह स्कूलों को, आने-जाने के साधनों को, ट्रेनों के सफर और उनमें खानपान को आसान करने की जरूरत है। हर विभाग और हर क्षेत्र को यह कहना चाहिए कि वे अपने काम को आसान बनाने का काम तेजी से शुरू करें। हर घर-परिवार को सावधानी से यह सीखना चाहिए कि वे किसी भी संक्रमण से बचने के लिए किस तरह सावधान रहें। खरीददारी से लेकर किसी दूसरी बीमारी के लिए भी अस्पताल, डॉक्टर, या मेडिकल स्टोर जाना कैसे कम किया जा सकता है, इसकी भी तरकीबें लोगों को खुद सोचनी चाहिए।

हम घूम-फिरकर बार-बार बचाव की बातों पर इसलिए आ जाते हैं, और मसीहाई अंदाज में नसीहत और बिन मांगी सलाह इसलिए देने लगते हैं कि बचाव ही सबसे सस्ता है, और कई मायनों में तो बचाव ही है जिससे कि जिंदगी बच सकती है, वरना आज हम देख रहे हैं कि सुरक्षाबलों के सेहतमंद जवान भी कोरोना में मारे जा रहे हैं। जो लोग एकदम फिट हैं, उनकी भी प्रतिरोधक क्षमता कोरोना के सामने जवाब दे रही है, और छत्तीसगढ़ में किसी एक तबके के लोग सबसे अधिक संख्या में कोरोनाग्रस्त निकले हैं, तो वे केन्द्रीय सुरक्षाबलों के लोग हैं जिनका कि जनता से वास्ता बहुत कम पड़ता है, जो सेहतमंद रहते हैं, जिनका खानपान फिट रहता है, और जिन्हें इलाज हासिल रहता है।

इसलिए कोई भी लोग अपने आपको महफूज न मानें, खतरा सब पर है, और सबसे है। ऐसे में इस बार के कोरोना या अगले बार के उसके किसी जुड़वां भाई से बचाव के लिए हर किसी को लेन-देन, आवाजाही, कागजी कार्रवाई, कतारें, इन सबको घटाना चाहिए। आज वक्त रहते अगर देशों और प्रदेशों की सरकारों ने इस पर सोचना शुरू नहीं किया तो थोक में आती मौतों को रोकना नामुमकिन भी रहेगा, और अंधाधुंध महंगा भी पड़ेगा। (क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक) 

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