संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : कुछ मिसालों को देखकर हौसला पाया जा सकता है
27-Jul-2020 7:46 PM
‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : कुछ मिसालों को देखकर हौसला पाया जा सकता है

अमिताभ बच्चन के लिखे एक-एक शब्द करोड़ों बार दुहराए जाते हैं। वे 25 शब्दों का ट्वीट करते हैं, तो वह हिन्दुस्तान के हर अखबार, हर टीवी चैनल, और हर समाचार पोर्टल पर खबर बन जाता है। प्रकृति ने कहीं-कहीं आवाज गूंजने वाली जगहें बनाई हैं, कहीं पहाड़ से, तो कहीं गुफा में लोग कुछ बोलकर अपनी ही आवाज वापिस सुन लेते हैं। अमिताभ बच्चन की पूरी जिंदगी ही ऐसी हो गई है कि आधी रात वे कुछ ट्वीट करें, और अगली सुबह तमाम अखबार उसमें काफी कुछ जोड़-घटाकर उसकी बड़ी सी खबर ले लें। टीवी चैनल एक-एक ट्वीट पर टूट पड़ते हैं, और कई मिनटों का एयरटाईम उसी को समर्पित हो जाता है। शोहरत लोगों को इतनी अहमियत दिला देती है कि उनके एक-एक शब्द बहुत मायने रखते हैं। विराट कोहली जैसे मशहूर क्रिकेटर, या प्रियंका चोपड़ा जैसी मशहूर एक्ट्रेस के बारे में चर्चा रहती है कि वे इंस्टाग्राम पर एक-एक पोस्ट के लिए करोड़ रूपए से अधिक पाते हैं। अब ऐसी खबरों की हकीकत तो महज ऐसे सितारे, या आयकर विभाग बता सकते हैं, लेकिन चर्चा तो ऐसी ही रहती है। 

अब आज अमिताभ बच्चन की खबरों के सैलाब के बीच इस मुद्दे पर लिखा क्यों जा रहा है, यह भी एक सवाल है। और इसका जवाब यह है कि अमिताभ बच्चन की तंगदिली से, सामाजिक सराकारों से कोई वास्ता न रखने जैसी उनकी खामियों के बीच भी उनके व्यक्तित्व और उनकी जिंदगी की एक बात ऐसी है जिससे तमाम लोग काफी कुछ सीख सकते हैं। आज की पीढ़ी को शायद यह याद नहीं होगा कि कुछ दशक पहले अमिताभ बच्चन ने फिल्मों में काम करने से परे मनोरंजन उद्योग  का कारोबार शुरू किया था, और उसमें वे लंबे घाटे में चले गए थे, डूब गए थे। किसी एक इंटरव्यू में उन्होंने बतलाया था कि कर्ज से उस दौर में फिल्म उद्योग के ही दूसरे लोग अपनी वसूली के लिए अमिताभ के पास लोग भेजकर उन्हें किस तरह बेइज्जत करते थे। लेकिन उस पूरे दौर में दो बातें अमिताभ के साथ रहीं, और जो किसी को भी कैसी भी मुसीबत से उबरने में मदद कर सकती हैं। अमिताभ ने हिम्मत नहीं छोड़ी, मेहनत नहीं छोड़ी, वे लगातार संघर्ष करते रहे, और आज भी फिल्म उद्योग में सबसे अधिक मेहनत करने वाले लोगों में से वे एक हैं, रात 3 बजे, 4 बजे वे किसी रिकॉर्डिंग या शूटिंग से लौटते हुए भी ट्वीट करते हैं, लौटकर ब्लॉग लिखते हैं। यह तो हुई एक बात, और दूसरी बात यह कि मुसीबत के उस दौर में हिन्दुस्तान के कुछ ताकतवर लोग उनके करीबी दोस्त थे, उनके साथ थे, और ऐसी चर्चा है कि उन्होंने कर्ज से उबरने में अमिताभ की मदद की थी। 

जो भी हो, कम से कम अमिताभ बच्चन किसी जुर्म की कमाई से कर्ज से नहीं उबरे थे, और उन्होंने कर्ज चुकाने के बाद लगातार शोहरत और कामयाबी के नए रिकॉर्ड कायम किए, और वन मैन आर्मी की तरह वे लगातार आगे बढ़ते चले गए। इस किस्से को सुनाने का एक मकसद यह है कि जो लोग आज कर्ज में डूब गए हैं, परेशानी में फंसे हैं, जिन्हें रौशनी की कोई किरण नहीं दिख रही है, उन्हें भी अमिताभ का उबरना देखना चाहिए। वे हिन्दुस्तान की एक सबसे बड़ी मिसाल हैं कि सबसे बुरे हालात से उबरकर कैसे आसमान पर पहुंचा जाता है। लेकिन उनके उबरने में, जैसी कि चर्चा है, अगर उनके कुछ बहुत ताकतवर और अतिसंपन्न दोस्त उनके मददगार रहे, तो लोगों को जिंदगी में इस बात का ख्याल भी रखना चाहिए। वैसे तो आदर्श स्थिति यह है कि दोस्ती बिना मतलबपरस्ती के होना चाहिए, लेकिन हकीकत यह है कि दोस्तों में कम से कम कुछ तो ऐसे रहें जो कि आड़े वक्त पर आकर खड़े रह सकें, किसी काम आ सकें। सोच-समझकर किसी संपन्न से किसी मकसद से दोस्ती नहीं की जा सकती। लेकिन आसपास अपने दोस्तों को छोटी-छोटी परेशानियों के वक्त छोटी-छोटी बातों के लिए कसौटी पर कस लेना चाहिए कि क्या आड़े वक्त पर वे साथ खड़े रहेंगे? और बात महज पैसों की मदद की नहीं होती है, हौसले की भी होती है, और खराब वक्त में सार्वजनिक रूप से साथ देने की भी होती है। अधिकतर लोग इस खुशफहमी में जीते हैं कि उनके दोस्त इतने भरोसेमंद हैं कि जरूरत पडऩे पर वे उनके लिए अपनी जान भी दे देंगे, लेकिन जिनसे किडनी पाने की उम्मीद रखी जाती है, वे वक्त पर एक दिन के अपनी कार भी देने से परहेज करते हैं। इसलिए जिंदगी में इस बात के लिए भी तैयार रहना चाहिए कि अपने आसपास के लोगों को तौल लिया जाए कि बुरे वक्त वे कितना कंधा देने तैयार रहेंगे। बहुत पहले एक बार इसी पन्ने पर हमने लिखा था कि लोगों को दो चक्कों वाली एक अर्थी, या जनाजा, बनवाकर रखना चाहिए, ताकि चार लोग न जुटें, तो दो ही लोग उसे धकेलकर ले जा सकें। लोगों को ऐसी नौबत के खतरे को अनदेखा नहीं करना चाहिए, और उसके लिए तैयार भी रहना चाहिए। 

इन दोनों बातों को मिला लें तो कुल मिलाकर बात यह बनती है कि दिन चाहे कितने ही खराब आ जाएं, हौसला नहीं छोडऩा चाहिए, उससे उबरना नामुमकिन नहीं मानना चाहिए। अंग्रेजी के शब्द इम्पॉसिबल के अंग्रेजी हिज्जों को तोडक़र ही एक दूसरा शब्द बनता है आई एम पॉसिबल। और इसकी एक बड़ी शानदार और अच्छी मिसाल अमिताभ बच्चन हैं। लेकिन ऐसी दूसरी भी बहुत सी मिसालें हैं जिन्हें लोगों ने दोनों पैर खो दिए, और दोनों नकली पैरों के साथ जो एवरेस्ट पर पहुंचे। ऐसे लोग जिनकी आंखें नहीं थीं, वे भी एवरेस्ट पर पहुंचे। कहीं कोई अकेली लडक़ी या महिला दुनिया के कई समंदर चीरते हुए एक बोट पर अकेले ही आधी दुनिया पार कर लेती है। ऐसे बहुत से असल जिंदगी के किस्से हैं, जो खालिस हकीकत हैं, और जो मुसीबत में फंसे लोगों को एक बढिय़ा रास्ता भी दिखाते हैं। अमिताभ बच्चन की बात चल रही है इसलिए यह भी याद करना ठीक होगा कि जिस वक्त वे मुंबई के फिल्म उद्योग में आए थे, उन्हें उनकी बहुत अधिक लंबाई के बारे में कहा गया था कि वे नीचे से पैर एक फीट कटाकर आएं। कोई उन्हें फिल्म देने तैयार नहीं थे। और आज उनकी हालत यह है कि हिन्दुस्तान के गहनों के सबसे बड़े ब्रांड की मॉडलिंग करके वे गहने बिकवाते हैं, और हिन्दुस्तान की सबसे बड़ी गिरवी रखने वाली कंपनी की मॉडलिंग करके सोने के गहने गिरवी भी रखवाते हैं। फिल्मों की कामयाबी, टीवी की शोहरत, मॉडलिंग और ब्रांड प्रमोशन के अलावा वे पता नहीं क्या-क्या करते हैं, और कैसे-कैसे कितना-कितना कमाते हैं। लेकिन यह याद रखने की जरूरत है कि एक फिल्म की शूटिंग के दौरान जख्मी होकर वे मौत के मुंह में जा चुके थे, और वहां से लौटकर आए थे। उन्हें पिछले दस-बीस बरस से एक बहुत गंभीर बीमारी चले आ रही है, और वे उसके साथ ही एक उद्योग की तरह रात-दिन काम करते रहते हैं। इसलिए महज दोस्तों से कुछ नहीं होता, महज संपन्न दोस्तों से कुछ नहीं होता, खुद का हौसला भी रहना जरूरी होता है, खुद मेहनत भी करनी होती है, और बुरे वक्त के लायक तैयार भी रहना होता है। यह बात हम आज इसलिए लिख रहे हैं कि आज चारों तरफ आम से काफी अधिक गिनती में आत्महत्याएं हो रही हैं, लोगों को ऐसा लगता है कि तकलीफ और दहशत के इस दौर में खुदकुशी बढ़ भी सकती है। लोगों को हौसला रखना चाहिए, और हो सके तो अपनी दीवारों पर उन लोगों की तस्वीरें चिपाककर रखनी चाहिए जिन्होंने दोनों नकली पैरों के साथ एवरेस्ट पर फतह हासिल की है। 

(क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक) 

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