विचार / लेख
जेके कर
छत्तीसगढ़ में बिस्तरों की और कमी होगी
जिस तरह से छत्तीसगढ़ में रोज-रोज कोरोना के मरीज बढ़ रहें हैं उससे स्थिति बदतर होती जायेगी। इसे रोज ठीक होने वाले तथा नये मरीजों की संख्या के आधार पर समझा जा सकता है। उदाहरण के तौर पर छत्तीसगढ़ में 24 जुलाई को 338 नये मरीज मिले जबकि 180 मरीज ठीक हुए। इस तरह से अस्पताल में 158 नये बिस्तरों की आवश्यकता होगी। 26 जुलाई को 305 नये मरीज मिले जबकि 261 मरीज ठीक हुए। इसके अनुसार अस्पताल में 44 बिस्तरों की और आवश्यकता होगी। 24 और 26 जुलाई के आंकड़ों के आधार पर ही 202 बिस्तरों की आवश्यकता होगी।
दुनियाभर तथा देश के साथ छत्तीसगढ़ में भी कोरोना संक्रमण अपना विकराल रूप धारण कर रहा है। रोज संक्रमितों की संख्या बढ़ती जा रही है। ऐसे में सवाल उठता है कि ऐसा कौन सा कारण है कि चंद्रमा और मंगलग्रह पर उपग्रह भेजने वाला मानव समाज कोरोना संक्रमण तथा उससे हो रही मौतों के सामने बेबस नजर आ रहा है। इसकी विवेचना करने के लिए हम तीन प्रस्थान बिन्दु तय कर सकते हैं। जिनके गहराई में जाकर स्थिति को समझने का प्रयास किया जा सकता है। उसके बाद फौरी तौर पर क्या हल निकाला जा सकता है उस पर भी सोचा जा सकता है।
पहली बात यह है कि कोरोना वाइरस से लडऩे के लिये अब तक न ही किसी सटीक दवा का ईजाद किया जा सका है और न ही कोई वैक्सीन अब तक बन पाई है। जो कुछ भी इलाज हो रहा है वह लक्षणों के आधार पर ही किया जा रहा है तथा जीवनरक्षक उपकरणों की मदद से मरीजों की जान बचाई जा रही है। दूसरा, पिछले कई दशकों से देश-दुनिया में गैर-संक्रमण से होने वाली बीमारियां कई गुना बढ़ी है जिस कारण से वैज्ञानिक-चिकित्सक तथा हेल्थ इन्फ्रास्ट्रकचर जीवन शैली के कारण होने वाली बीमारियों से जूझने में लगे हुए हैं। अब, अचानक कोरोना जैसे संक्रमण के महामारी बनने के कारण उससे लडऩे के लिये स्वास्थ्य व्यवस्था नाकाफी साबित हो रही है। तीसरा, केन्द्र तथा राज्य सरकारों ने कोरोना से लडऩे की जिम्मेदारी खुद ही उठा रखी है जिस कारण से सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं पर बोझ बढ़ गया है। हालांकि, बाद में कुछ हद तक निजी अस्पतालों को भी अधिकृत किया गया है लेकिन उससे इस विकराल समस्या का हल नहीं निकल सकता है।
एक बात को हम शुरू में ही साफ कर देना चाहते हैं कि हम जिस कल्याणकारी-राज्य की वकालत करते हैं उसमें स्वास्थ्य की जिम्मेदारी सरकार पर है तथा वह इसे मुफ्त में उपलब्ध कराये। लेकिन मौजूदा हालात में जब सरकारों ने स्वंय ही निजी स्वास्थ्य सेवाओं को बढ़ावा दिया है तथा उन्हें फलने-फूलने दिया है इस कारण से उनके वजूद को नकारा नहीं जा सकता। ऐसे समय में यदि कहा जाये कि कोरोना से लडऩे की जिम्मेदारी केवल केन्द्र तथा राज्य सरकारों की है तो यह जमीनी हालत को नकारने वाली अराजकतावादी सोच ही होगी। फौरी तौर पर कोरोना संकट से लडऩे निजी स्वास्थ्य क्षेत्र के चिकित्सकों, स्वास्थ्य कर्मियों तथा अधोसंरचना का उपयोग किया जाना चाहिये।
अब हम कुछ आंकड़ों तथा तथ्यों पर गौर फर्माते हैं। केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा जारी रिपोर्ट "ढ्ढठ्ठस्रद्बड्ड: ॥द्गड्डद्यह्लद्ध शद्घ ह्लद्धद्ग हृड्डह्लद्बशठ्ठ’ह्य स्ह्लड्डह्लद्गह्य" के अनुसार गैर-संक्रमण से होने वाली बीमारियां जहां साल 1990 में 30 प्रतिशत थी वह साल 2016 में बढक़र 55 प्रतिशत हो गई। इसी तरह से साल 1990 में गैर-संक्रमण से होने वाली बीमारियों से 37 प्रतिशत मृत्यु हुई थी वह 2016 में बढक़र 61 प्रतिशत हो गई हैं। इससे यह साबित होता है कि हमारे देश में बीमारियों से जो मौतें हुई उनमें 61 प्रतिशत उच्च रक्तचाप, डाईबिटीज, दमा, कैंसर, किडनी तथा श्वशन रोगों के कारण हुई है। इस कारण से पूरा जोर इन्हीं बीमारियों से लडऩे के लिए रहा है। दूसरी तरफ संक्रामक तथा उससे जुड़े रोग 1990 में 61 प्रतिशत थे जो 2016 में गिरकर 33 प्रतिशत के हो गए।
यदि छत्तीसगढ़ से जुड़े आंकड़ों की बात करें तो संक्रामक तथा उससे जुड़े रोगों की हिस्सेदारी 37.7 प्रतिशत, गैर-संक्रमण से फैलने वाले रोग 50.4 प्रतिशत तथा चोट व दुर्घटना के कारण हिस्सेदारी 11.9 प्रतिशत की रही है।
ऐसे में अप्रत्याशित रूप से कोरोना वाइरस जब महामारी का रूप ले लेता है तो संपूर्ण स्वास्थ्य सेवायें उससे जूझने के लिए अपने-आप को असमर्थ पाती हैं। इस कारण से चिकित्सक, पैरा-मेडिक स्टाफ, मास्क, सैनिटाइजऱ, पीपीई किट, अस्पतालों में बिस्तरों की संख्या, ऑक्सीजन एवं वेंटिलेटर कम पड़े हैं अन्यथा अस्पतालों में कभी इनकी कमी महसूस नहीं की गई थी।
अब हम दूसरे (तीसरे) मुख्य मुद्दे पर आते हैं। यह अत्यंत महत्वपूर्ण है कि बीमार पडऩे पर कितने फीसदी लोग सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं की शरण में जाते हैं तथा कितने निजी क्षेत्र के चिकित्सकों तथा संस्थानों के पास जाते हैं। देशभर के आंकड़े थोड़े अलग-अलग है। यहां पर हम सरलता से समझने के लिए छत्तीसगढ़ का उदाहरण लेते हैं।
साल 2015-16 में जो नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे किया गया था उससे यह बात उभरकर सामने आई कि छत्तीसगढ़ में भी बड़ी संख्या में लोग बीमार पडऩे पर निजी चिकित्सा सेवाओं का लाभ उठाते हैं। जहां तक सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं की बात है तो 50.5 प्रतिशत लोग यहां जाते हैं शहरी क्षेत्र के 37.6 प्रतिशत तथा ग्रामीण क्षेत्र के 54.65 प्रतिशत। वहीं बीमार पडऩे पर शहरों के 59.7 प्रतिशत तथा गांवों के 33,3 प्रतिशत, कुलमिलाकर 39.6 प्रतिशत लोग निजी क्षेत्र के स्वास्थ्य संस्थानों में जाते हैं। कई ऐसे भी लोग हैं जो सीधे दवा दुकानों से दवा खरीद कर खाते हैं। इनमें शहरों के 2 प्रतिशत तथा गांवों के 11.6 प्रतिशथ, कुल मिलाकर 9.3 प्रतिशत लोग शामिल हैं।
अब आपकों समझ में आ रहा होगा कि कोरोना वाइरस से संक्रमित होने पर क्यों हाहाकार मचा हुआ है। इसका कारण है कि जो लोग पहले निजी क्षेत्र में जाते थे वे भी सरकारी क्षेत्र में जाने के लिये मजबूर हो गए हैं तथा इस अतिरिक्त दबाव के कारण सरकारी स्वास्थ्य संस्थान नाकाफी साबित हो रहें हैं तथा लोगों को त्वरित चिकित्सा नहीं मिल पा रही है। कोरोना वाइरस से संक्रमण हुआ है कि नहीं उसकी जानकारी आने में ही दो-तीन दिन लग जा रहें हैं। उसके बाद कोरोना के लिये जिन सरकारी अस्पतालों को अधिकृत किया गया है वहां बिस्तर कम पड़ रहें हैं।
समाचार-पत्रों के हवाले से खबर है कि छत्तीसगढ़ में तीन निजी क्षेत्र के चिकित्सा संस्थानों को कोरोना के इलाज के लिए अधिकृत किया गया है। इनमें बिलासपुर के एक निजी क्षेत्र के कॉर्पोरेट अस्पताल का भी नाम है।
जब इन पक्तियों के लेखक ने इस अस्पताल से फेसबुक मैसेंजर के तहत जानकारी मांगी तो जवाब दिया गया कि कोविड-19 के इलाज के लिए मात्र 4 बिस्तर ही उपलब्ध हैं। जाहिर है कि निजी क्षेत्र की सुविधाओं का पूरा लाभ नहीं उठाया जा रहा है।
जरूरत इस बात की है कि छत्तीसगढ़ के कई शहरों के निजी-पैथोलैब को कोविड-19 की जांच के लिये अधिकृत किया जाये। हां, महाराष्ट्र सरकार के समान कोविड-19 टेस्ट के दाम जरूर तय कर दिये जाये। इसी तरह से निजी क्षेत्र के चिकित्सकों तथा संस्थानों को भी कोविड-19 के ईलाज़ के लिये अधिकृत किया जाये क्योंकि इसके करीब 85 प्रतिशत मरीजों को अस्पतालों में भर्ती करने की जरूरत नहीं पड़ती है। इससे सरकारी अस्पतालों पर पडऩे वाला बोझ कम होगा। हां, निजी चिकित्सक भी ढ्ढष्टरूक्र के दिशा-निर्देशों के अनुसार तथा सरकार द्वारा तय किये गये फीस के अनुसार ईलाज करेंगे।
केवल स्वास्थ्य सेवाओं पर एस्मा लगाना काफी नहीं है। जरूरत है दबाव न बनाकर निजी क्षेत्र के चिकित्सकों एवं संस्थानों को सरकार द्वारा पीपीई किट तथा दवा उपलब्ध करा के ईलाज़ करने के लिये माहौल बनाया जाए। जब तक कोरोना वाइरस की कोई दवा या वैक्सीन न बन जाए तब तक सरकारी तथा निजी क्षेत्र के चिकित्सकों तथा संस्थानों की मदद से मरीजों की मदद की जाए। हां, इस बात का ख्याल जरूर रखा जाये निजी एवं सरकारी क्षेत्र के सभी चिकित्सकों एवं संस्थानों से कोविड-19 का इलाज न कराया जाए। ज्यादातर को इससे मुक्त रखा जाए ताकि गैर-संक्रामक एवं जीवन-शैली के कारण होने वाले रोगों का इलाज बिना किसी बाधा के चलता रहे।