विचार / लेख

बैंक के पास कई बातों का कोई जवाब नहीं
28-Jul-2020 6:29 PM
बैंक के पास कई बातों का कोई जवाब नहीं

स्मिता अखिलेश

डहरूराम एक बड़े शहर से प्रवासी मजदूर के रूप में अपने गांव वापिस आता है और उसके पास जमीन का एक छोटा टुकड़ा भी है जिन्हें वह जमानत में रखकर अपना किराना दुकान खोलना चाहता है। तो क्या सरकार द्वारा कोविड संकट से निपटने के लिए घोषित 20 लाख करोड़ का पैकेज उसके लिए कारगर है? इसी के मद्देनजर हमारे बैंक ने भी अपने यहां ऋण नीति की समीक्षा की थी। जिसमें कोरोना लॉकडाउन के बाद उपजी बेरोजगारी से निपटने के लिए 50000 तक रूपये उन वर्गो को मुहैया कराया जाना था जिनके पास जमीन को कोई छोटा टुकड़ा भी हो।

देखने में यह बहुत कारगर लगता है कि लोगों को अपने पैर में खड़े होने के लिए तुरंत बैंक द्वारा राशि मुहैया कराया जा रहा है जिससे ग्रामीण अपना छोटा-मोटा व्यवसाय शुरू करने में सक्षम हो सकेंगे। लेकिन इस योजना को लागू करने के बाद भी लोगों का रूझान उस ओर दिखता नजर नहीं आ रहा है क्योंकि मैदानी स्तर पर जब हितग्राही यह सवाल करता है कि क्या इस ऋण के ब्याज के लिए कोई राहत का प्रावधान है या इसके ईएमआई का भुगतान मोराटोरियम के अधीन है एक बैंकर्स होने के नाते हमारे पास इन सवालों का कोई जवाब नहीं होता है।

गौरतलब है कि मोराटोरियम शब्द को ईएमआई के जमा करने के लिए अस्थायी राहत या वित्तीय निलंबन के लिए उपयोग किया जाता है । लेकिन बैंकिग स्तर के सॉफ्टवेयर में अभी बदलाव नहीं किए गए है। बैंक आपको ईएमआई के लिए नहीं कह रहे हैं लेकिन ब्याज भी नहीं बढ़ रहा है इसकी कोई गारंटी भी नहीं है। जो लोग वित्तीय रूप से इन तकनीकियों को नहीं समझ रहे है उन्हें बैंक में जाकर अपने ऋणों के ब्याज के संदर्भ में तस्दीक जरूर कर लेनी चाहिए। साथ ही बैंकिग के लिहाज से देखा जाए तो अभी की परिस्थिति में बैंकों द्वारा कर्ज देना भी बहुत जोखिम का काम है और इन कर्जो के बढते एनपीए से भी इंकार नहीं किया जा सकता।

अगर कर्ज देने वाले ही डूबते कर्ज के बोझ से दबते जाएंगे, तो बैंकिग व्यवस्था कैसे चल पाएगी और बैंक कर्ज देने का जोखिम नहीं लेंगे तो कारोबार कैसे करेंगे। कर्ज देने और वसूली के जोखिम के बीच का रास्ता निकालते हुए संतुलन बनाने के लिए सरकार द्वारा और ठोस कदम उठाया जाना चाहिए। जिस तरह कल रिजर्व बैंक के गर्वनर ने कह भी दिया कि बैंकिग सेक्टर की मजबूती के लिए आवश्यक हुआ तो जरूरी कदम उठाये जायेंगे। लेकिन क्या बैंकों में नगदी प्रवाह ही बढ़ाकर इस समस्या का निराकरण किया जा सकता है।

फिलहाल डहरूराम बीड़ी सुलगाते हुए सोच रहा है कि इस चक्करघिनी में गोल गोल घूमू या नहीं। और मनरेगा की मजदूरी करते अपने सपनों को भी बीड़ी के साथ सुलगते हुए कातर नजरों से देख रहा है।

 

 

 

 

 

 

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