विचार / लेख

कोरोना के बहाने स्कूली किताबों से इतिहास हटा रही कर्नाटक सरकार ?
30-Jul-2020 9:16 AM
कोरोना के बहाने स्कूली किताबों से इतिहास हटा रही कर्नाटक सरकार ?

-इमरान क़ुरैशी

ऐसा लगता है कि सैकड़ों सालों पहले जो काम शासकों ने किया वही काम फिर से करने के लिए कोविड-19 महामारी ने एक सरकार को एक मौक़ा दे दिया है. कम से कम कर्नाटक सरकार तो यही मान रही है.

प्रदेश के प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा विभाग ने उस युग के शासकों के हथियार का इस्तेमाल करते हुए पाठ्यपुस्तकों से न केवल टीपू सुल्तान बल्कि शिवाजी महाराज, विजयनगर साम्राज्य, बहमनी, संविधान के कुछ हिस्से और इस्लाम और ईसाई धर्म से जुड़े कुछ हिस्से निकाल दिए हैं.

इसके पीछे वजह ये है कि कोरोना महामारी के कारण कक्षा छह से लेकर नौ तक पढ़ाई के लिए जो 220 दिन का समय था वो अब कम हो कर केवल 120 दिनों का रह गया है, और इस कारण पाठ्यक्रम को भी कम करना ज़रूरी हो गया है.

इन सभी विषयों को अब प्रोजेक्ट वर्क तक सीमित कर दिया गया है जिस पर छात्र घर से काम कर सकते हैं और चार्ट या प्रेज़ेन्टेशन बना सकते हैं.

पाठ्यक्रम से क्या कुछ हटाया गया है?

उदाहरण की बात करें तो कक्षा नौ के सामाजिक शास्त्र विषय में राजपूत राजवंशों, राजपूतों के योगदान, तुर्कों के आगमन, राजनीतिक निहितार्थ और दिल्ली के सुल्तानों के विषय पढ़ाने के लिए आम तौर पर छह कक्षाएँ होती थीं जिसे कम कर अब दो कर दिया गया है.

राजपूतों और दिल्ली के सुल्तानों के बारे में न पढ़ाने की दलील के पीछे तर्क ये है कि कक्षा छह में पहले ही इस विषय पर पढ़ाया जा चुका है.

इसी तरह मुग़लों और मराठाओं के बारे में पढ़ाने के लिए भी क्लास की संख्या पांच थी जिसके अब दो कर दिया गया है. इन चैप्टरों से मराठा राज के उत्थान, शिवाजी का प्रशासन और शिवाजी के उत्तराधिकारी के विषय को अब पाठ्यक्रम से हटा दिया गया है.

ऐसा करने के पीछे कारण ये बताया जा रहा है कि इस विषय पर कक्षा सात में पहले ही पढ़ाया जा चुका है.

पाठ्यक्रम कम करने को लेकर क्या है प्रतिक्रिया?

टीपू सुल्तान एक्सपर्ट टेक्स्टबुक कमिटी के प्रोफ़ेसर टीआर चंद्रशेखर ने बीबीसी हिंदी को बताया, "कोरोना महामारी के कारण विषयों का सारांश देते हुए पाठ्यक्रम को 30 फीसदी तक घटा कर कम कर देना सही है लेकिन इसका असर किसी चैप्टर के मूल पर नहीं पड़ना चाहिए. लेकिन किसी चैप्टर को पूरी तरह की पाठ्यक्रम से हटा देना सही नहीं है."

बीते साल बीजेपी विधायक अपाच्चु रंजन ने स्कूल के पाठ्यक्रम से टीपू सुलतान से जुड़े चैप्टर हटाने की मांग की थी जिसके बाद इस मामले पर एक कमिटी बनी थी. इसी कमिटी के प्रमुख थे प्रोफ़ेसर टीआर चंद्रशेखर.

उस दौरान प्रोफ़ेसर चंद्रशेखर और कमिटी के दूसरे सदस्यों ने सरकार से स्पष्ट कहा था कि पाठ्यक्रम से मैसूर का इतिहास और टीपू सुल्तान की भूमिका का हिस्सा नहीं हटाया जा सकता.

प्रोफ़ेसर चंद्रशेखर कहते हैं, "छात्रों को जो विषय पढ़ाया जाता है उसमें हर क्लास में क्रमिक वृद्धि होती है. जैसे कि टीपू सुल्तान से जुड़े विषय में छोटी कक्षा में केवल शुरूआती जानकारी होती है जो बेहद कम होती है. सातवीं कक्षा में इस विषय को थोड़ा और विस्तार से छात्रों को पढ़ाया जाता है जैसे कि तकनीकि युद्ध में उनका योगदान, कृषि विकास, पशुपालन, ग्रामीण अर्थव्यवस्था और हिंदू मंदिरों में उनके योगदान जैसे सामाजिक सुधार के उनके काम."

वो कहते हैं, "उस दौर में राजतंत्र हुआ करता था और और एक राजा दूसरे राजा से लड़ते थे इन लड़ाइयों से धर्म का कोई नाता नहीं था."

लेकिन बेंगलुरु के आर्चबिशप पीटर माचाडो ने बीबीसी हिन्दी से कहा, "हमें बताया गया था कि इस्लाम और ईसाई धर्म के बारे में कक्षा छह की किताबों से चैप्टर हटाए गए हैं क्योंकि इस विषय में छात्रों को कक्षा नौ में पढ़ाया जाएगा. अब कक्षा नौ के पाठ्यक्रम से ये विषय हटाए जा रहे हैं और कहा जा रहा है कि इस बारे में कक्षा छह में पहले ही पढ़ाया जा चुका है. ऐसे लग रहा है कि धोखा दिया जा रहा है और किसी एजेंडे पर काम किया जा रहा है."

आर्चबिशप का कहना है कि नन्ही सी उम्र में छात्रों को धर्म के बारे में जो जानकारी दी जाती है "उसमें कटौती करना ठीक बात नहीं है. ये वो उम्र है जब बच्चे किसी भी धर्म के क्यों न हो वो मानवता और सौहार्द्य की भावना के बारे में जानते-सीखते हैं और एक-दूसरे के साथ मिल कर जीना और उनकी सराहना करना सीखते हैं."

प्रदेश में विपक्ष में बैठी कांग्रेस के सवाल उठाने के बाद सत्तारूढ़ सरकार को इस मामले में विषय से जुड़े कमिटी की राय लेनी पड़ी थी.

प्रोफ़ेसर चंद्रशेखर कहते हैं, "हमें इस बारे में बुधवार को फ़ौन पर जानकारी दी गई है औक इस मामले में तीन अगस्त को बैठक होने वाली है."

क्या है सरकार का रुख़?

कर्नाटक टेक्स्ट बुक सोसायटी के प्रबंध निदेशक और विधायक मादे गौड़ा ने बीबीसी हिंदी को बताया, "हमने विषय से जुड़ी कमिटियों को इस मामले में फ़ैसला लेने के लिए कहा है. क्या हटानवा है ये हमने उनसे नहीं पूछा. अब प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा मामलों के हमारे मंत्री सुरकेश कुमार ने कहा है कि वो इस मामले में फ़ैसले की समीक्षा करेंगे. इसलिए, उन्होंने हमें इस पर फिलहाल फ़ैसला रोकने के लिए कहा है."

वो कहते हैं, ये जानकारी हमने कर्नाटक टेक्स्ट बुक सोसायटी की वेबसाइट पर प्रकाशित की है.

मादे गौड़ा बताते हैं कि हर कक्षा में छात्रों को संविधान की प्रस्तावना के बारे में भी बताया जाता है.

वो कहते हैं, "स्कूल की टेक्स्ट बुक से कोई चैप्टर नहीं हटाया गया है. किताब पहले ही छात्रों के पास पहुंच चुकी है और छात्रों के पास अब घर पर इसे पढ़ने का या प्रोजेक्ट बनने का विकल्प मौजूद है."

इधर अधिकारियों ने बताया है कि अगले साल के पाठ्यक्रम में इन चैप्टर्स को पढ़ाने के संबंध में कोई कमी नहीं की जाएगी.

इतिहास पढ़ना क्यों है ज़रूरी?

मैसूर विश्वविद्यालय में इतिहास के पूर्व प्रोफ़ेसर और टीपू सुल्तान के विशेषज्ञ प्रोफ़ेसर सेबेस्टियन जोसेफ़ कहते हैं, "आपका अतीत आपके भविष्य का ही प्रतिबिंब है इसलिए अतीत के बारे में जानना बेहद ज़रूरी है. आपके समाज को आपको उसी के अनुसार ढालना होगा. केवल राजनीतिक इतिहास ही नहीं बल्कि विज्ञान से जुड़े विषयों में भी इतिहास जानना महत्वपूर्ण है क्योंकि ये आपको कई बातों की प्रक्रिया के बारे में बताता है."

"जब तक हम सभी विषयों का इतिहास नहीं जानेंगे हम ये नहीं समझ पाएंगे कि हम आज जहां हैं, वहां हतक कैसे पहुंचे और हमें आगे किस दिशा में बढ़ने की ज़रूरत है."

वहीं आर्चबिशप पीटर माचाडो कहते हैं, "आप जानते हैं कि हमारे नेता मेड इन इंडिया और निर्यात बढ़ाने के बारे में बातें करते हैं, और जो सबसे अच्छी चीज़ हम पूरी दुनिया को निर्यात कर सकते हैं वो है हमारा धार्मिक सद्भाव और शांति है जो धार्मिक ध्रुवीकरण के बावजूद भी यहां मौजूद है."(bbc)

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