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अनुच्छेद 370 हटने के बाद 'बी टू वी' कार्यक्रम के तहत पाई अपार सफलता : जम्मू-कश्मीर सरकार
05-Aug-2020 4:13 PM
अनुच्छेद 370 हटने के बाद 'बी टू वी' कार्यक्रम के तहत पाई अपार सफलता : जम्मू-कश्मीर सरकार

रजनीश सिंह 
श्रीनगर, 5 अगस्त (आईएएनएस)|
जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 को समाप्त हुए एक साल पूरा हो चुका है। इस बड़े बदलाव के बाद सरकार तेजी से विकास के मोर्चे पर फोकस करके लोगों का दिल जीतने में जुटी है। अधिकारियों का कहना है कि 'बैक टू विलेज' (बी टू वी) पहल, जिसमें लोगों के लिए 36 प्रमुख कार्यक्रम शामिल हैं, यह पर्याप्त तौर पर सफल होता दिख रहा है।

इस कार्यक्रम के तहत 20,000 विकास कार्यो को पहचाना गया है, जिससे लोग प्रत्यक्ष रूप से जुड़े हुए हैं। इस कार्यक्रम ने ऐसा उत्साह पैदा किया कि शोपियां जिले के एक निवासी ने इसके बारे में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लिखा, जिसके बाद उनके मासिक रेडियो कार्यक्रम 'मन की बात' में इसका उल्लेख भी किया गया।

अनुच्छेद 370 को खत्म करने के बाद जम्मू-कश्मीर सरकार ने लोगों तक पहुंचने के लिए पिछले साल जून में 'बैक टू विलेज' कार्यक्रम शुरू किया था। इसका उद्देश्य आम आदमी के सामने आने वाले मुद्दों का समाधान करना और गांवों में विकास की रफ्तार को तेज करना है। शासन को लोगों के घर-घर तक पहुंचाने और पंचायतों को सशक्त बनाने के उद्देश्य से यह कार्यक्रम शुरू किया गया है। इसके तहत अफसर जम्मू-कश्मीर की विभिन्न पंचायतों में जाकर लोगों की शिकायत सुनते हैं।

सरकार का कहना है कि 'बी टू वी' ने न केवल ग्रामीणों की समस्याओं के निवारण के लिए प्रशासन और अधिकारियों को घर-घर पहुंचाने की उपलब्धि हासिल की, बल्कि सरकार के प्रति जनता के विश्वास को फिर से स्थापित किया है। इस प्रक्रिया के जरिए लोगों के बीच व्याप्त कई मिथक भी टूटे हैं।

बडगाम जिले में ब्लॉक बी. के. पोरा के निवासी अब्दुल हमीद डार ने टिप्पणी की कि उनके गांव में उनके जल निकायों को डी-सिल्ट करने (गाद निकालना) का मुद्दा था, जो कि रेत, गाद और पॉलिथीन की अत्यधिक मात्रा के कारण जाम (चोक) हो गया था।

उन्होंने कहा, "हमने इस संबंध में निचले स्तर से लेकर ऊपर तक कोशिश की, लेकिन किसी ने भी हमारी वास्तविक शिकायत दर्ज नहीं की थी। लेकिन इस अभियान के दौरान उन अधिकारियों द्वारा इस मुद्दे का संज्ञान लिया गया, जो दो दिनों के लिए हमारे गांव आए थे।"

जम्मू-कश्मीर सरकार ने इस कार्यक्रम को अद्वितीय बताया है, जिसमें सभी स्तरों के लगभग 5,000 राजपत्रित अधिकारी शामिल हैं, जिन्हें प्रत्येक पंचायत की जिम्मेदारी दी गई है। यह अधिकारी अपने संबंधित गांव में दो दिन और रात गुजारते हैं और वहां पर व्याप्त तमाम समस्याओं की जानकारी प्राप्त करके उनका समाधान खोजते हैं।

जम्मू-कश्मीर सरकार ने कहा, "बैक टू विलेज ने पंचायतों को सक्रिय करने, सरकारी कार्यक्रमों के क्रियान्वयन पर प्रतिक्रिया जुटाने, विशिष्ट आर्थिक क्षमता पर गौर करने और गांवों की जरूरतों का आकलन करने जैसे चार सर्वोत्कृष्ट विषयों पर ध्यान केंद्रित किया है।"

सरकार ने कहा, "जैसे ही यह पहल शुरू हुई, इसे एक पूर्ण सफलता मिली। वास्तव में लोगों की इतनी अधिक प्रतिक्रिया रही कि व्यावहारिक रूप से हर आने वाले अधिकारी का बेहद गर्मजोशी से स्वागत किया गया। यह वास्तव में इस कार्यक्रम द्वारा उत्पन्न उत्साह ही है कि शोपियां जिले के एक निवासी ने इस कार्यक्रम के बारे में प्रधानमंत्री को लिखा, जिसके बाद प्रधानमंत्री ने अपने मन की बात कार्यक्रम में इसे 'विकास, जन भागीदारी और जन जागरूकता' का त्योहार कहा।"

कार्यक्रम का उद्घाटन करते हुए मुख्य सचिव बी. वी. आर सुब्रह्मण्यम ने भी बैक टू विलेज प्रोग्राम की सराहना की। उन्होंने कहा कि यह कार्यक्रम परिणाम-उन्मुख हैं।

इस कार्यक्रम के तहत सरकार ने सभी 4,483 पंचायत हलकों में राजपत्रित अधिकारियों की प्रतिनियुक्ति की। प्रत्येक अधिकारी को एक ग्राम पंचायत सौंपी गई, जहां पहले से चली आ रही प्रथाओं के विपरीत वे गांव में एक रात के ठहराव सहित कम से कम दो दिनों तक रहे। अधिकारी को पंचायत प्रतिनिधियों, बुजुर्गो और अन्य स्थानीय लोगों से उनकी चिंताओं, विकासात्मक जरूरतों और क्षेत्र की आर्थिक क्षमता के बारे में व्यापक प्रतिक्रिया प्राप्त करके पहले आकलन करना था।

इस पूरे अभियान के दौरान अधिकारी ग्रामीणों के साथ रहकर उनके दर्द और पीड़ा को पूरी तरह से समझते थे।

इस दौरान ग्राम सभाओं में सभी सामाजिक मुद्दों जैसे लिंगानुपात, साक्षरता दर, बालिका शिक्षा, जल संरक्षण और स्वच्छता के मुद्दों पर चर्चा की गई।

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