सामान्य ज्ञान
स्वेज नहर लाल सागर और भूमध्य सागर को संबंद्ध करने वाली एक नहर है। सन् 1859 में एक फ्रांसीसी इंजीनियर की देखरेख में स्वेज नहर का निर्माण शुरु हुआ था। यह नहर आज 165 किमी लंबी, 48 मी चौड़ी और 10 मी गहरी है। दस वर्षों में बनकर यह तैयार हो गई थी। सन् 1869 में यह नहर यातायात के लिए खुल गई थी। पहले केवल दिन में ही जहाज नहर को पार करते थे पर 1887 ई. से रात में भी पार होने लगे। 1866 ई. में इस नहर के पार होने में 36 घंटे लगते थे पर आज 18 घंटे से कम समय ही लगता है।
अब स्वेज नहर के विस्तार की योजना है। मिस्र के राष्ट्रपति अब्देल फतह अल-सीसी ने 6 अगस्त 2015 को स्वेज नहर के विस्तार की उद्घाटन किया। यह परियोजना वर्ष 2014 में शुरू हुई थी। इस परियोजना को नई स्वेज़ नहर नाम दिया गया है।
यह परियोजना स्वेज नहर प्राधिकरण के अंतर्गत विकसित की गई। इस परियोजना के अंतर्गत कुल 72 किमी का विस्तार किया जाएगा। परियोजना के अंतर्गत पहले से स्थित नहर के समानांतर एक नई नहर का निर्माण किया गया है। इसके अतिरिक्त बिटर लेक और ब्लाह बाई पास को गहरा और चौड़ा भी किया गया है।
इस विस्तार का मुख्य उद्देश्य नहर में यातायात गतिविधि को और सुगम बनाना है। यह विस्तार जहाजों को दोनों दिशाओं में आवागमन की सुविधा प्रदान करेगा। यह निश्चित रूप से जलमार्ग की क्षमता में वृद्धि करेगा और नहर की एक ओर से दूसरे और जाने में लगने वाले समय को कम करेगा। यह विस्तार मिस्र की राष्ट्रीय आय को बढ़ाने में मदद करेगा इसके अतिरिक्त इससे मिस्र में रोजगार के अवसर उपलब्ध होंगे।
ऋतुओं की गणना कैसे होती है?
हिंदू कैलेंडर में ऋतुओं की गणना चंद्रमा की गति के हिसाब से होती है। चंद्रमा का एक महीना साढ़े 29 दिन का होता है और एक चंद्र वर्ष में 354 दिन होते हैं। चंद्र वर्ष और सूर्य वर्ष के बीच 11 दिन का अंतर होता है। हर 32 महीने 16 दिन और आठ घड़ी के बाद सूर्य वर्ष और चंद्र वर्ष के बीच 29 दिन का अंतर आ जाता है।
चूंकि हम सूर्य वर्ष और चंद्र वर्ष दोनों के हिसाब से चलते हैं, ऐसे में इस गैप को भरने के लिए मलमास या अधिक वर्ष का कांसेप्ट बनाया गया है। 2012 में भी मलमास आने वाला है। इस गैप की ही वजह से अधिकतर हिंदू त्योहार दो दिन मनाए जाते हैं, क्योंकि कोई हिंदू कैलेंडर के हिसाब से गणना करके तारीख तय करता है तो कोई सूर्य वर्ष यानी अंग्रेजी कैलेंडर के हिसाब से।