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नई दिल्ली, 11 अगस्त। दिल्ली उच्च न्यायालय ने मंगलवार को केंद्र सरकार से कहा कि वह उस याचिका को एक प्रतिनिधित्व के रूप में मानें, जिसके अंतर्गत एक कंपनी पर उत्पाद बेचकर जनता को गुमराह करने का आरोप लगाया है और कंपनी ने दावा किया है कि यह भोजन और पीपीई किट को किटाणुरहित बनाता है। न्यायमूर्ति डी.एन. पाटिल और न्यायमूर्ति प्रतीक जालान की खंडपीठ ने ग्रीन ड्रिम फाउंडेशन की एक याचिका का निपटारा करते हुए कहा, "याचिका को प्रतिनिधि के तौर पर मानें और कानून, नियम और दिशानिर्देश के अनुसार निर्णय करें।"
याचिकाकर्ता के वकील नीलेश बिलानी ने जनहित याचिका में अदालत से नोवल कोरोनावायरस को मारने और उत्पादों को किटाणुरहित बनाने का दावा करने वाले उत्पादों के टेस्टिंग, लांचिंग और प्रमाणित करने के लिए दिशानिर्देश जारी करने का आग्रह किया।
सुनवाई के दौरान, अधिवक्ता समीर नंदवानी ने अदालत के समक्ष कहा कि 'लोग 9 मेटेरियल प्राइवेट लिमिटेड' ने दावा किया है कि इसके उत्पाद 'कोरोना ओवन' भोजन को किटाणुरहित बना सकता है।
उन्होंने कहा कि कंपनी ने यह भी दावा किया है कि यह पीपीई किट को भी किटाणुरहित बना सकता है, जिससे स्वास्थ्यकर्मी कोरोना रोगियों के इलाज के लिए फिर से प्रयोग मे ला सकते हैं।
याचिकाकर्ता ने अपने वकील के जरिए कहा, "उत्पाद को इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस, बेंगलुरू द्वारा स्वीकृति मिलने के बाद बेचा जा रहा है, जिसके पास ऐसे किसी भी उत्पाद के लिए सर्टिफिकेट जारी करने का अधिकार नहीं है।"
दरअसल, सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दाखिल की गई थी, जिसमें ऐसे किसी भी संगठन या संस्थान के खिलाफ कार्रवाई की मांग की गई थी, जो उत्पाद की बिना समुचित जांच के सर्टिफिकेट जारी करते हैं और बाद में इन रिपोर्टों का उपयोग हुआ या नहीं, यह पता नहीं लगाते।(ians)