विचार / लेख

लडक़े ऐसे ही होते हैं, क्या करें
11-Aug-2020 8:12 PM
लडक़े ऐसे ही होते हैं, क्या करें

कनुप्रिया

लडक़ों से गलतियाँ हो जाती हैं, लडक़ों का मनचलापन समाजिक रूप से स्वीकार्य है। लडक़े होते ही ऐसे हैं तो ऐसे कहा जाता है मानो उनका स्वभाव कोई जेनेटिक डिसऑर्डर है जो सदियों पहले किसी कारण से इनकी प्रजाति में हो गया अब बदल नहीं सकता।

लडक़ों के इस मनचलेपन की कीमत लड़कियां सदियों से घरों में बंद होकर चुका रही हैं, उनके लिए खेल के मैदान नहीं हैं, वहाँ लडक़ों का कब्जा है, उनके लिए पार्क नहीं हैं, शाम गए सडक़ नहीं हैं, अगर मुहल्ले के किसी कोने पर मनचलों की टोली का ठिहा है तो लड़कियों का स्कूल भी बंद हो सकता है। लडक़ों का मनचलापन सडक़ों, पार्कों, मैदानों सब पर क़ब्ज़ा किए हंै और लड़कियों ने ये सब जगहें एक-एक करके खाली कर दीं, तब भी सुरक्षित रहने की जिम्मेदारी उन्हीं पर है। स्कूल से घर तक पीछा करने वाले लडक़ों के ग्रुप के भय से लगभग हर लडक़ी गुजरी होगी, कितनी बार रुट बदल दिए जाते हैं, लंबे रुट लिए जाते हैं, नहीं तो छोडऩे-लाने की जिम्मेदारी घर के किसी आदमी को सौंप दी जाती है, रक्षा भार। रक्षा सूत्र पर्व हो जाते हैं मगर लडक़ों का मनचलापन नहीं बंद होता।

इन सबके बीच से गुजरकर भी कोई लडक़ी सुदीक्षा अपने बूते 4 करोड़ की स्कॉलरशिप लेकर अमेरिका चली जाती हैं मगर जब अपने घर लौटती है तो कुछ नहीं बदलता, मनचले लडक़े अब भी खुले सांड की तरह सडक़ों पर मिलते हैं जिनको नगरपालिका भी बंद नहीं कर सकती। ऐसे साँडो के कारण हुई मौत यूपी पुलिस की नजऱ में अगर महज दुर्घटना ही है तो क्या आश्चर्य, परिवार वालों के लिए तो मर्डर ही है।

इस परिवार के सपनों की मौत तो दिखाई दे रही है कितने सपनों की मौत चुपचाप आँखों में ही हो जाती है, ऐसे ही मनचलों के कारण पढ़ाई छुड़ाई एक लडक़ी ने मुझे कहा था मैं हैंडबॉल प्लेयर बनना चाहती हूँ, मगर मेरे स्कूल के रास्ते में रोज बैठने वाले लडक़ों के कारण मेरा स्कूल छूट गया है, माँ-बाप काम पर जाते हैं। मैं छोटे भाई-बहनों को देखती हूँ, मैं बाहर मैदान में भी नहीं खेल सकती क्यों?

क्योंकि हमारे समाज में लडक़े ऐसे ही होते हैं, क्या करें। 

 

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