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शाह फै़सल फिर से सरकारी नौकरी में लौटने के सवाल पर क्या बोले?
12-Aug-2020 7:22 PM
शाह फै़सल फिर से सरकारी नौकरी में लौटने के सवाल पर क्या बोले?

सिविल सेवा परीक्षा (UPSC) में जम्मू-कश्मीर के पहले टॉपर शाह फ़ैसल ने पिछले साल काफ़ी नाटकीय अंदाज़ में फैसला लेते हुए सरकारी नौकरी छोड़कर जम्मू-कश्मीर की उलझी हुई सियासत में कदम रखा. उन्होंने 10 साल पहले यूपीएससी परीक्षा में टॉप करके देशभर में चर्चा बटोरी थी और उसके बाद कश्मीर में ही अलग-अलग पदों पर काम किया.

पिछले साल इस्तीफ़ा देने के बाद उन्होंने जम्मू कश्मीर पीपल्स मूवमेंट नाम से अपनी राजनीतिक पार्टी की शुरुआत की. पार्टी की शुरुआत के वक़्त शाह फ़ैसल ने दो पन्नों का एक विजन डॉक्यूमेंट जारी किया था जिसमें लोगों को संवैधानिक मूल्यों के ज़रिए मज़बूत बनाने की बात कही गई थी.

कश्मीर की राजनीति में बतौर युवा नेता उनके उभरने के क़रीब दो महीने बाद ही भारत सरकार ने जम्मू कश्मीर का 70 साल पुराना विशेष राज्य का दर्जा 5 अगस्त 2019 को ख़त्म कर दिया.

कश्मीर के भारतीय संघ में पूर्ण विलय और इसे दो केंद्र शासित प्रदेशों में बांटने की प्रक्रिया के दौरान प्रशासन ने कश्मीर के सभी बड़े नेताओं को हिरासत में ले लिया. इनमें शाह फ़ैसल भी शामिल थे.

लंबे समय तक घर में नज़रबंद रहने के बाद इस सप्ताह 37 वर्षीय शाह फ़ैसल ने अपनी ही पार्टी के अध्यक्ष पद से इस्तीफ़ा दे दिया. इसी के साथ उनके दोबारा प्रशासनिक सेवा में लौटने की अफवाहें भी उड़ने लगीं.

खुद को हिरासत में रखे जाने को वो एक सीख मानते हैं. उनका कहना है कि उन्होंने राजनीति इसलिए छोड़ी है क्योंकि वो जम्मू कश्मीर की परेशान जनता से किए गए अपने वादे को पूरा नहीं कर सकते.

बीबीसी संवाददाता रियाज़ मसरूर को ईमेल पर दिए गए एक इंटरव्यू में शाह फ़ैसल एक नौकरशाह से लेकर अल्पकालिक नेता और अब बतौर एक कश्मीरी अपनी बात कह रहे हैं, जिनका मानना है कि सियासी जगह पूरी तरह कभी ख़त्म नहीं की जा सकती.

सवाल: आपने भारतीय प्रशासनिक सेवा से इस्तीफ़ा देकर राजनीति का रास्ता चुना लेकिन आपका ये सफ़र 5 अगस्त 2019 को हुए एक बड़े बदलाव की वजह से बेहद छोटा रहा. क्या कश्मीर की आंशिक स्वायत्तता का अंत आपकी राजनीतिक परिकल्पना की भी हार थी?

हां. मुझे यह क़ुबूल करने में कोई झिझक नहीं है.

मैंने संविधान के दायरे में रहकर लोकतांत्रिक प्रक्रिया को मज़बूत करने की बात कही थी. लेकिन पांच अगस्त के बाद ये सारा मामला इतना अधिक जज़्बाती हो गया कि अगर एक राजनेता कहता है कि हमें इस नई हक़ीक़त के साथ आगे बढ़ना है तो वो ईशनिंदा के जैसा समझा जाएगा

ज़मीनी हक़ीक़त बदल गई है और अब ये वो जगह बिल्कुल नहीं है. इसलिए मैं यहां के नए राजनीतिक हालात को लेकर अपनी समझ स्पष्ट करना चाहता हूं. राजनीतिक रूप से सही नज़र आए बिना यहां राजनीति करना बहुत मुश्किल है. मैं बहुत विनम्रता के साथ राजनीति छोड़ रहा हूं और लोगों को बता रहा हूं कि मैं झूठी उम्मीदें नहीं दिला सकता कि मैं आपके लिए ये करूंगा, वो करूंगा, जबकि मुझे पता है कि मेरे पास ऐसा कर पाने की ताक़त नहीं है.

आपका इस्तीफ़ा अब तक मंज़ूर नहीं हुआ, जिससे अफवाहें बढ़ रही हैं कि आप फिर से नौकरशाही में वापस जाना चाहते हैं. अपनी ही बनाई पार्टी छोड़कर आपने उन अफ़वाहों को और बल दे दिया है जिसे कश्मीर की जटिल राजनीति का एक दिन कहा जाता है.

मेरे इस्तीफ़े ने समस्याएं सुलझाने की बजाय और समस्याएं खड़ी कर दी हैं. जब इरादा असहमति जताने का था तो इसे देशद्रोह बता दिया गया. सिविल सेवाओं के नए प्रतिभागी भी काफ़ी हतोत्साहित हुए. मेरे सहकर्मी भी नाराज़ थे जब मैंने यह फैसला लिया.

मैं ऐसा कोई काम नहीं करते रहना चाहता जब मुझे पता कि इससे कुछ बदलने वाला नहीं है. इसलिए मुझे लगा रुक जाना ही अच्छा है.

भारतीय प्रशासनिक सेवा में आपकी एंट्री ने हज़ारों युवाओं को इस तरफ आकर्षित किया कि वो प्रशासनिक सेवा में करियर बनाएं. फिर आपने एक नारा दिया- "हवा बदलेगी" और फिर बहुत से लोगों को लगा कि राजनीति अभिव्यक्ति का एक माध्यम है. आपको क्या लगता है, आपकी इस उलझन का असर आपसे नाराज़ युवाओं पर किस तरह पड़ेगा?

मुझे नहीं लगता इससे युवाओं को परेशान होना चाहिए. दरअसल इससे उन्हें नई राजनीतिक परिस्थिति को और अधिक निष्पक्ष रूप से देखने की ताक़त मिलनी चाहिए.

जिंदगी चलती रहनी चाहिए. हमें नई चुनौतियों का सामना करना होगा और अपनी ज़िंदगी को सार्थक बनाना होगा. हम लंबे समय तक नकार नहीं सकते. इससे तनाव बढ़ता है. हमें सकारात्मकता के साथ भविष्य की ओर देखना चाहिए और जो ज़िंदगी में आ रहा है उसे स्वीकार करना चाहिए.

राजनीति से आपका विदा होना क्या इस बात का संकेत है कि कश्मीर के मौजूदा राजनीतिक ढांचे से आपका भरोसा उठ चुका है?

मेरे अलग होने का मतलब भरोसा उठना नहीं है. इसका मतलब है नई राजनीतिक परिस्थिति को समझना और मुश्किलों का अहसास होना. अगर मेरे पास कुछ बदलने की ताक़त नहीं होगी तो मैं वहां जाऊंगा ही क्यों.

लोकलुभावन राजनीति से मेरे बहुत से चाहने वाले हो जाएंगे लेकिन उससे मैं कश्मीर में कुछ बदल नहीं पाऊंगा.

फ़ारूक़ अब्दुल्ला के सामने आप एक नौसिखिए थे. क्या फ़ारूक़, उमर और महबूबा को भी पीएसए के तहत बंद किए जाने पर आपको राजनीति में आने पर पछतावा हुआ था?

पीएसए के तहत मेरी ख़ुद की हिरासत भी मेरे लिए एक बड़ा सबक थी. इससे मुझे ज़िंदगी को अलग ढंग से देखने का मौका मिला. इससे मुझे अहसास हुआ कि स्थिति कितनी जटिल है.

ऐसा कहा जा रहा है कि आपका परिवार आपके प्रशासनिक सेवा में लौटने को लेकर बातचीत कर रहा है. आप क्या कहेंगे?

मेरा परिवार मेरे लिए ऐसी कोई बातचीत क्यों करेगा? मेरा परिवार बेहद मामूली पृष्ठभूमि का है और अगर मुझे कुछ बातचीत करनी होगी तो वो मैं खुद करूंगा और खुलेआम करूंगा.

राजनीति में आपका पहला साल पांच अगस्त 2019 के मद्देनज़र बुरी सार्वजनिक प्रतिक्रिया और कठोर सरकारी प्रतिक्रिया के साथ शुरू हुआ. अब क्या इससे बाहर निकलकरआप ये स्वीकार कर रहे हैं कि कश्मीर की राजनीति में यहां के मूल निवासियों की भूमिका को आंकने में आपसे चूक हुई?

किसी अन्य संघर्ष क्षेत्र की तरह कश्मीर की त्रासदी ये है कि यहां जीवन के छोटे-छोटे मुद्दों को लेकर सर्वसम्मति का अभाव है. हम एक ऐसे समाज में रहते हैं जहां भरोसा बहुत कम है. जब मैंने राजनीति चुनी तो मुझे कठपुतली कहा गया. जब मैं राजनीति छोड़ रहा हूं तब मुझे वही लोग फिर से कठपुतली कह रहे हैं. ऐसे लोगों पर मैं हंसता हूं. इससे मुझे फ़र्क नहीं पड़ता.

क्या आपको लगता है कि 5 अगस्त 2019 के बाद से कश्मीर पूरी तरह गैर-राजनीतिकरण के दौर से गुज़र रहा है, इसलिए आपने छोड़ दिया?

नहीं, मुझे लगता है मुख्यधारा की राजनीति जो कि चुनावी राजनीति है वो कभी ख़त्म नहीं हो सकती. हो सकता है राजनीतिक प्रक्रिया शुरू होने में वक़्त लगे लेकिन आप देखेंगे कि आखिरकार लोकतांत्रिक राजनीति शुरू होगी. मैं रहूं या ना रहूं.

क्या फिर से उसी सिस्टम में लौटना चाहते हैं जहां से आप कुछ बड़ा करने के लिए बाहर निकले थे?

मैंने कभी सिस्टम नहीं छोड़ा. मैं एक छोटे सिस्टम से दूसरे में शिफ्ट हुआ था. मेरी विशेषज्ञता लोक प्रशासन है और मुझे सरकार के साथ काम करने में कोई परेशानी नहीं है. लेकिन वो कब और कैसे होगा मुझे फिलहाल नहीं पता.(bbc)

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