अंतरराष्ट्रीय
यूरोप में इस्लाम से दुश्मनी के लिए यही समय क्यों चुना गया, क्या यूरोप ने भी इस्लाम के मुक़ाबले के लिए कमर कस ली है...
यूरोप के विभिन्न देशों और शहरों में इस्लामोफ़ोबिया और इस्लाम विरोधी कार्यवाहियों में होती वृद्धि से पता चलता है कि इन देशों में अंधा नस्लभेद अब भी कूट कूट कर भरा हुआ है।
यूरोप में इस्लामोफ़ोबिया उन विषयों में से है कि कभी तो उस पर ध्यान ही नहीं दिया जाता और कभी इसकी आग को बहुत अधिक भड़का दिया जाता है। हाल ही में यूरोप के कई देशों में इस्लामोफ़ोबिया की कार्यवाहियां हुईं हैं जिनसे पता चलता है कि इन देशों में अंधा नस्लभेद कूट कूट कर भरा हुआ है।
अभी हाल ही में स्वीडन में भी अजीबो ग़रीब घटना घटी और एक कट्टरपंथी गुट ने पवित्र क़ुरआन को आग लगा दिया। इसके कुछ ही घंटे बाद एक कट्टरपंथी महिला ने पवित्र क़ुरआन जलाने का एक वीडियो बनाया और सोशल मीडिया पर उसे वायरल कर दिया।
कुछ टीकाकारों का कहना है कि यूरोप में इस्लाम विरोधी इन कार्यवाहियों का मुख्य कारण इस्लामोफ़ोबिया है ताकि इस्लाम से लोगों को डरा सकें और लोगों के दिलों में इस्लाम का ख़ौफ़ पैदा कर सकें।
सोशल मीडिय के एक यूज़र अब्दुर्रहमान अलख़तीब ने ट्वीट किया कि स्वीडन और यूरोप के अन्य देशों में होने वाली इस्लामोफ़ोबिया की कार्यवाहियों पर किसी ने कुछ भी नहीं कहा इसीलिए स्वीडन के बाद बेल्जियम जैसे अब दूसरे यूरोपीय देशों में कट्टरपंथी लोग खुलकर यह कार्यवाहियां कर रहे हैं।
उनका कहना था कि अगर पहली बार ही मुसलमान एकजुट होकर कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त करते तो किसी अन्य देश में यह घटिया हरकत दोहराई न जाती।
यूरोप में पवित्र क़ुरआन के अनादर का मुद्दा अभी गरमाया ही हुआ था कि फ़्रांस की विवादित पत्रिका शार्ली हेब्दु ने एक बार फिर पैग़म्बरे इस्लाम का अपमानजनक कार्टून प्रकाशित कर दिया। इस पर सारे मुसलमान चुप रहे और इस्राईल व संयुक्त अरब इमारात के संबंधों की ख़ुशियां मना रहे हैं। कुछ टीकाकारों का कहना है कि यह काम बहुत ही व्यवस्थित ढंग से किया जा रहा है, जहां पूरी दुनिया इस्राईल और अरब देशों के बीच संबंधों की ख़ुशियों में रंगे हुए हैं वहीं यूरोप ने इस्लामोफ़ोबिया की मशीन तेज़ कर दी है।
अल्पसंख्यक मुसलमानों के अधिकारों का समर्थन करने वाली संस्था ने यूरोप में इस्लामोफ़ोबिया की घटना पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए लिखा कि मुसलमानों की भावनाओं को आहत करने की इन सारी घटनाओं में सबसे ध्यान योग्य बिन्दु यह है कि यह सारी घटनाएं पुलिसकर्मियों के समाने अंजाम दी गयीं।
इस संस्था का कहना है कि हालैंड, फ़्रांस, डेनमार्क और अन्य यूरोपी देशों में जो घटनाएं घटी हैं उनमें हमने देखा कि पुलिस के सामने कट्टरपंथी कार्यवाहियां अंजाम दे रहे हैं और पुलिस मूकदर्शक बनी हुई है।(PARSTODAY)