सामान्य ज्ञान

इस्लामिक स्टेट के नए खलीफा
09-Sep-2020 11:49 AM
इस्लामिक स्टेट के नए खलीफा

इस्लामिक देश के खलीफा अबु बकर अल-बग़दादी हैं। जिन्हें उनके समर्थक ख़लीफ़ा इब्राहिम कहते हैं, पहली बार जुमे की तकऱीर के दौरान दुनिया के सामने आए थे। इससे पहले उनकी तस्वीरें चोरी-छुपे दुनिया के सामने ज़रूर आईं थीं लेकिन आईएसआईएस (अब इसे इस्लामिक स्टेट यानी आईएस कहा जाता है) के नेता बनने के चार साल बाद भी उन्होंने अपना चेहरा किसी को नहीं दिखाया था।

जुलाई 2013 में बहरीनी विचारक तुर्की अल-बिनालि, ने बग़दादी की जीवनी लिखी। इसमें दावा किया गया था कि बग़दादी दरअसल इस्लाम के पैग़ंबर मोहम्मद के वंशज हैं। जीवनी में कहा गया है कि बग़दादी अल-बु बद्री क़बीले के हैं जो पहले समारा और दियाला में रहता था और ऐतिहासिक रूप से इस क़बीले के लोगों को पैग़ंबर मोहम्मद का वंशज माना जाता है।    तुर्की अल-बिनाली के अनुसार इराक़ में अमरीकी हमले से पहले बग़दादी ने बग़दाद के इस्लामिक विश्वविद्यालय से इस्लामी संस्कृति, इतिहास, शरिया, और न्यायशास्त्र में पीएचडी हासिल कर ली थी।  वह समारा की इमाम अहमद इब्न हनबल मस्जिद में धार्मिक शिक्षा देते थे, लेकिन उनके पास प्रमुख सुन्नी धार्मिक शिक्षण संस्थानों जैसे क़ाहिरा का अल-अज़हर विश्वविद्यालय या मदीना के इस्लामिक विश्वविद्यालय से कोई औपचारिक डिग्री नहीं है।  

2003 में इराक़ पर अमरीकी हमले के बाद कुछ सहयोगियों के साथ बग़दादी ने जमात जैश अह्ल अल-सुन्नाह वा-अल-जमात (जेजेएएसजे) का गठन किया।  यह संगठन समारा, दियाला और बग़दाद में सक्रिय था। इस संगठन में बग़दादी शरिया समिति के प्रमुख थे।  अमरीकी-नेतृत्व वाली सेना ने उन्हें फऱवरी से दिसंबर 2004 तक हिरासत में रखा लेकिन फिर छोड़ दिया, उस समय कोई उन्हें किसी बड़े ख़तरे के रूप में नहीं देख रहा था। साल 2006 की शुरुआत में जेजेएएसजे ने अपना नाम बदलकर मजलिस शुरा अल-मुजाहिदीन रख लिया।  अल क़ायदा के साथ वफ़ादारी की क़सम खाते हुए संगठन उसमें शामिल हो गया। इस नए संगठन में भी बग़दादी को शरिया कमेटी में शामिल किया गया। जब इस संगठन ने अपना नाम बदलकर आईएसआईएस रखा तब बग़दादी को संगठन के सर्वोच्च सलाहकार परिषद का सदस्य बनाया गया।   जब इस गुट के नेता अबु अमर अल-बग़दादी की अप्रैल 2010 में मृत्यु हुई तब अबु बकर अल-बग़दादी ने उनकी जगह ले ली।

अमरीकी पत्रकारों जेम्स फ़ाली और स्टीवन सोटलॉफ़ की हत्या ने पश्चिमी देशों के सामने एक बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है, इस्लामिक स्टेट से कैसे निपटा जाए? ब्रिटेन भी इस सवाल से जूझ रहा है। 

एक अनुमान के मुताबिक 500 ब्रितानी नागरिक इस्लामिक स्टेट और अन्य चरमपंथी समूहों की ओर से लडऩे के लिए इराक़ और सीरिया गए हैं। हालांकि ब्रिटेन ने कुछ क़दम उठाए हैं। इनमें पुलिस को उन लोगों के पासपोर्ट जब्त करने देने का अधिकार शामिल है जिनके खिलाफ जांच जारी है।  पिछले दिनों ब्रिटेन में चरमपंथी ख़तरे का स्तर भी बढ़ा दिया गया। इस्लामिक स्टेट ऑफ इराक एंड सीरिया यानी आइसिस या इस्लामिक स्टेट के कट्टरपंथी सैनिक उत्तर इराक पर कब्जा कर रहे हैं। अमेरिका भी इन्हें हराने के लिए हमले शुरू कर चुका है।  

इराक और सीरिया के बीच सरहद पर आइसिस ने इस्लामी स्टेट की घोषणा कर दी है। संगठन ने कट्टरपंथी इस्लाम के सख्त शरीया कानून को लागू किया है और महिलाओं को नकाब पहनने पर मजबूर किया। धार्मिक अल्पसंख्यक इराक से भागने लगे हैं और शिया मुसलमानों को जजिया देने पर मजबूर किया गया है। इस्लामी स्टेट ने इस बीच इराक और सीरिया में कई तेल खदानों पर कब्जा कर लिया है और इराकी सेना से अमेरिकी हथियारों को जब्त करने में सफल रहे हैं।
 

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