सामान्य ज्ञान
पेनिसिलयम एक साधारण फफूंद है। यह एक प्रकार का कवक श्रेणी का मृतजीवी वनस्पति है। इसे नीली यी हरी फफूंद भी कहा जाता है। यह सड़ी-गली सब्जियों, कटे हुए फलों, रोटी, सड़े हुए मांस, चमड़े आदि पर उगता है। विशेष कर यह नींबू के ऊपर बहुत ही सहज रूप से उगता है।
पेनिसिलियम पौधे का शरीर पतले सूते जैसी रचनाओं से बना होता है। इन रचनाओं को हाइफी कहते हैं। इसके सारे शरीर को माइसेलियम कहते हैं। इसका कवक जाल अनेक शाखाओं में बंटा रहता है। इसमें विखंडन द्वारा वर्धी प्रजनन होता है। पेनिसियम में स्पोर नाम कोनिडिया की शृंखला पाई जाती है जिसके द्वारा यह अलैंगिक प्रजनन करता है। पेनिसिलियम के पौधे से पेनिसिलीन नामक उपक्षार प्राप्त होता है। यह एक चमत्कारी औषधि है। इसका व्यवहार तपेदिक तथा अन्य विभिन्न रोगों में किया जाता है।
पेनिसिलीन का आविष्कार ब्रिटेन के वैज्ञानिक सर अलेक्जेंडर फ्लेमिंग ने 1929 में किया था। इस खोज के लिए 1954 में उन्हें चिकित्सा शास्त्र के नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया। पेनिसिलीन पहला आधुनिक प्रतिजैविक था। पेनिसिलियम की कई जातियां पनीर-व्यावसाय में पनीर तैयार करने में इस्तेमाल होती हैं। कार्बनिक अम्ल के संश्लेषण में भी इसका उपयोग होता है। एल्कोहल बनाने में भी इसका इस्तेमाल किये जाते हैं। रंग तैयार करने में भी इसका उपयोग होता है।
यूनिफॉर्म सिविल कोड
भारत के गोआ राज्य में समान आचार संहिता या यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू है। सन् 1961 तक गोआ पुर्तगाल का उपनिवेश हुआ करता था, इसीलिए वहां 1867 का पुर्तगाली सिविल कोड और 1939 का कोड ऑफ सिविल प्रोसीजर लागू था।
सन् 1962 में संसद ने एक कानून पारित किया, जिसके अनुसार अगर गोआ की विधानसभा चाहे तो इसे बदल सकती है, लेकिन वहां के सभी लोगों पर अब भी यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू है चाहे वो हिंदू हों, ईसाई या मुसलमान। यह व्यवस्था भली-भांति चल रही है, लेकिन देश के अन्य राज्यों में शादी, तलाक, उत्तराधिकार और गोद लेने के बारे में विभिन्न धर्मों ेमानने वालों के लिए अलग-अलग आचार संहिता लागू है।
शून्यता
शून्यता को बौद्ध दर्शन में रिक्तता माना गया है, जो परम सत्य को संस्थापित करती है। शून्यता को अस्तित्व के निषेध के रूप में नहीं, बल्कि अभेदीकरण के रूप में देखा जाता है जिससे सभी आभासी अस्तित्व, विभेदीकरण एवं द्वैतवाद पैदा होते हैं। प्रारंभिक पालि रचनाओं में इस अïवधारणा का कभी -कभी उल्लेख होता था, लेकिन दूसरी सदी के भारतीय दार्शनिक नागार्जुन ने इसके पूरे निहितार्थ को विकसित किया। उनके द्वारा स्थापित दार्शनिक मत, माध्यमिक (मध्यमार्ग) को कभी-कभी शून्यवाद या सब खाली (शून्य) है, सिद्धांत भी कहा जाता है।
शून्यता शब्द का प्रयोग अनत्त, अर्थात पांच स्कंधों (अस्तित्व के मानसिक एवं शारीरिक तत्वों से अलग किसी अन्य स्व की अनुपस्थिति के लिए भी किया जा सकता है।