विचार / लेख

मिड-डे मील का विकल्प क्या हो?
27-Sep-2020 2:36 PM
मिड-डे मील का विकल्प क्या हो?

-अनुपमा सक्सेना

मैंने काफी पहले पढ़ा था किन्तु राज्य के बारे में यह सकारात्मक और महत्वपूर्ण  खबर सोशल मीडिया पर कहीं दिखी नहीं इसलिए सोचा लिख दूँ।  

देश में  बच्चों के बीच कुपोषण एक महत्वपूर्ण समस्या है। इसके समाधान के लिए बच्चो को स्कूलों में गर्म खाना प्रदान किया जाता है।  इस योजना का 60 प्रतिशत खर्चा केंद्र सरकार और 40 प्रतिशत खर्चा राज्य सरकार उठाती है। करोना के समय में यह समस्या और भी बड़ी हो जाती है क्योंकि लॉकडाउन के कारण स्कूल बंद हैं।  मध्यान्ह भोजन न मिलने की स्थिति में कुपोषण बढऩे और बच्चों का इम्युनिटी का स्तर कम हो जाने के खतरे होते हैं।  

मार्च में आई एक रिपोर्ट के अनुसार लॉकडाउन  के दौरान लगभग 11 करोड़ बच्चे मध्यान्ह भोजन न मिलने के कारण कुपोषित होने के कगार पर थे। जिसमे अधिकांशत: जनजातीय और अनुसूचित  जाति के बच्चे थे।   मार्च 2020 में इसी संदर्भ में उच्चतम  न्यायालय ने सभी राज्यों को आदेश दिया कि स्कूल जाने वाले बच्चों को मध्यान्ह भोजन मिलना सुनिश्चित  किया जाए। छत्तीसगढ़ में लॉकडाउन के ठीक पहले 21 मार्च को ही घोषणा कर दी गई थी कि स्कूल जाने वाले बच्चों के माता-पिता  अगले 40 दिनों का मध्यान्ह भोजन सूखे राशन के रूप में घर ले जा सकते हैं। उसके बाद पुन: 45 दिनों का राशन दिया गया। प्राइमरी स्कूल में पढऩे वाले प्रत्येक बच्चे के हिसाब से 4 किलो चावल, 800 ग्राम दाल और सेकेंडरी  में पढऩे वाले प्रत्येक बच्चे के हिसाब से 6 किलो चावल और 1200 ग्राम दाल प्रदान कर दी गई। पैकेट में सोयाबीन, तेल, नमक और अचार भी था।

ऑक्सफेम इंडिया के मई-जून 2020 के दौरान उत्तरप्रदेश, छत्तीसगढ़, बिहार, ओडिशा  और उत्तराखंड, इन पांच राज्यों में किए गए सर्वे के अनुसार मध्यान्ह भोजन बच्चों तक पहुंचाने के मामले में उत्तरप्रदेश की स्थिति सबसे खराब रही, जहाँ 90 फीसदी बच्चों को मध्यान्ह भोजन नहीं मिला और छत्तीसगढ़ का प्रदर्शन सबसे अच्छा रहा जहाँ 90 फीसदी बच्चों को मध्यान्ह भोजन मिला। इकानॉमिक टाईम्स के द्वारा एकत्रित आंकड़ों पर  01 अगस्त की उनकी रिपोर्ट के अनुसार के अनुसार भी छत्तीसगढ़ आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, गुजरात, मध्यप्रदेश ओडिशा और उत्तराखंड देश में बच्चों को मध्यान्ह भोजन देने के मामले में सबसे अच्छे रहे। देश के कई राज्य मध्यान्ह भोजन के मामले में बहुत पीछे रहे। समाचार पत्रों की खबरों के अनुसार बिहार में जहाँ बच्चो का पोषण का स्तर देश में सबसे खराब है, वहां मार्च अप्रैल के लॉकडाउन के दौरान बच्चों के मध्यान्ह भोजन के विकल्प की कोई व्यवस्था नहीं की गई। बिहार में मई से मध्यान्ह भोजन की व्यवस्था शुरू हो पाई।  दिल्ली में भी मार्च के महीने में तो व्यवस्था की गई किन्तु अप्रैल-मई-जून में व्यवस्था नहीं की गई। कारण यह दिया गया कि सार्वजनिक स्थानों पर खाने की व्यवस्था सबके लिए की गई है। महाराष्ट्र में भी अप्रैल से जून के बीच मध्यान्ह भोजन नहीं दिया गया।  

यह तो बात हुई मध्यान्ह भोजन के विकल्प को करोना काल में बच्चों तक पहुंचाने की।  इसमे तो हमारा राज्य सर्वश्रेठ राज्यों में रहा।  दूसरा पक्ष होगा, इन प्रयासों के परिणामों का। स्कूलों में मिलने वाले मध्यान्ह भोजन के विकल्प के रूप में देश में तीन मॉडल अपनाए गए।  केरल में पका हुआ खाना बच्चों के घरों में पहुँचाया गया। उत्तरप्रदेश, दिल्ली आदि में नगद राशि बच्चों के अकाउंट में ट्रांसफर की गई और छत्तीसगढ़ में सूखा राशन प्रदान किया गया।  आगे आने वाले दिनों में जब लॉकडाउन के दौरान कुपोषण के स्तर से संबंधित डाटा आने शुरू होंगे तब विभिन्न विकल्पों के प्रभाव का  भी पता लग सकेगा। 

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