विचार / लेख

ऐसी जल्दबाजी क्यों ?
27-Sep-2020 8:36 PM
ऐसी जल्दबाजी क्यों ?

राजीव

ऐसे समय में जब सरकार अपने सभी जरूरी कामों से अपना हाथ खींच रही हैं और पूंजीपतियों को सौंप रही है। सोचिए अगर सरकार आपके सस्ते अनाज से भी अपना हाथ खींच ले तो आप किसके पास जाएंगे। ऐसा क्या है इस बिल में कि सरकार दंगाई तक दिखने को तैयार है लेकिन पीछे हटने को तैयार नहीं जबकि हर नीति में उसका साथ देने वाले लोग भी उसके साथ खड़े होने से कतरा रहे हैं।

सत्ता अगर अपनी आँखे बंद कर लेगी तो क्या होगा। समझने के लिए इसे ऐसा समझिये की पिछले चार-पांच सालों में आपने ध्यान दिया होगा कि सभी दालें सौ रूपये या उसके ऊपर भाव में आकर टिक गई हैं। यही स्थिति सेब भी है अब डेढ़ सौ रुपए किलो के आसपास से सेब कभी कम नहीं रहता। इन दोनों चीजों पर अच्छी फसल, उसकी पैदावार का समय या अन्य किसी भी चीज का कोई प्रभाव नहीं पड़ रहा है और इसका भाव पिछले सालों में कभी कम नहीं हुआ। यह कैसे हो रहा है ? अगर इस पर आप ध्यान देंगे तो यह दोनों चीजें अब एक कंपनी स्टाक करके अपने हिसाब से, अपनी कीमत पर बाजार में उपलब्ध करा रही है। यही स्थिति खाने की अगर सभी चीजों में हो जाए तो सोचिए क्या होगा? आप की थाली इतनी महंगी हो जाएगी की आप कल्पना भी नहीं कर सकते।

जिन्हें आज प्राइवेट स्कूल और प्राइवेट अस्पताल की फीस चुभ रही है उनको कम से कम किसानों के लिए बोलना ही चाहिए। शिक्षा और स्वास्थ को सरकार ने बाजार के भरोसे कर दिया है और हम सब देख ही रहे है क्या हो रहा है। ये ही हाल सरकार आपके खाने के साथ करना चाहती है। अगर ये भी बाजार भरोसे हो गया तो फिर सत्ता के नुमाइंदों का एक ही जवाब होगा ‘खाना है तो पैसा देना ही होगा’।

मीडिया और आसपास फैली गैर जरूरी बहसों  और खबरों से अलग खाना आपको खाना ही है और महंगा कितना खा पाएंगे यह आपको तय करना है। अब बात सिर्फ किसानों को फसल के पर्याप्त पैसे की भी नहीं है बात अब  न्याय की भी है जो देश के हर नागरिक को मिलना चाहिए।

भरोसा रखिए दीपिका या किसी भी फिल्म सितारे को कुछ नहीं होगा, ताकत और पैसा उन्हें कुछ नहीं होने देगा लेकिन अगर आपने अपने हक की लड़ाई यूं ही जाने दी तो आपकी आने वाली पीढिय़ां आपसे सवाल जरूर पूछेंगी।

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