सामान्य ज्ञान
12 अक्टूबर 1928 के दिन पहली बार अमेरिका के बोस्टन में चिल्ड्रन हॉस्पिटल में एक बच्ची के लिए आयरन लंग नाम की मशीन का इस्तेमाल किया गया। आठ साल की बच्ची का श्वसन तंत्र पोलियो या इन्फैंटाइल पैरालिसिस के कारण काम करना बंद कर चुका था। सांस नहीं लेने के कारण वह मरने की हालत में पहुंच गई थी। उस दौरान आयरन लंग रेस्पिरेटर का पहली बार क्लीनिकल प्रयोग किया गया। एक मिनट के अंदर उस बच्ची की जान बची और मशीन मशहूर हो गई।
ड्रिंकर रेस्पिटेर के नाम से मशहूर इस मशीन को फिलिप ड्रिंकर और लुइस अगासिज ने बनाया था। मशीन इलेक्ट्रिक मोटर से चलती थी और उसमें वैक्यूम क्लीनर वाले दो एयर पंप लगे हुए थे। एयर पंप से चौकोन, एयर टाइट मेटल बॉक्स के जरिए हवा फेंफड़ों से निकाली और उसमें डाली जा सकती है। इसे निगेटिव प्रेशर वेंटिलेटर कहा जा सकता है। इसे तब इस्तेमाल किया जाता है, जब किसी बीमारी के कारण सांस नहीं आ सके।
लाक्षागृह
लाक्षागृह का वर्णन महाभारत में आता है। यह लाख का बना एक भवन था जिसे दुर्योधन ने पांडवों के विरुद्ध एक षड्यंत्र के तहत उनके ठहरने के लिए बनाया था। इसे लाख से इसलिए बनाया गया था ताकि पांडव जब इस घर में रहने आएं तो चुपके से इसमें आग लगा कर उन्हें मारा जा सके। यह वार्णावत (वर्तमान बरनावा) नामक स्थान में बनाया गया था। पर पांडवों को यह बात पता चल गई थी। वे सकुशल इस भवन से बच निकले थे।
लाक्षागृह के भस्म होने का समाचार जब हस्तिनापुर पहुंचा तो पाण्डवों को मरा समझ कर वहाँ की प्रजा अत्यन्त दु:खी हुई। दुर्योधन और धृतराष्ट्र सहित सभी कौरवों ने भी शोक मनाने का दिखावा किया और अन्त में उन्होंने पाण्डवों की अन्त्येष्टि करवा दी।