विचार / लेख

इस सादगी पे कौन न मर जाए ऐ खुदा..
14-Oct-2020 7:10 PM
इस सादगी पे कौन न मर जाए ऐ खुदा..

अपूर्व गर्ग

फिदेल कास्त्रो, जोस मुजीका से लेकर ज्योति बसु जैसे कम्युनिस्ट नेताओं ने सादगी, सरलता और सहजता के उदाहरण छोड़े हैं, आज के नेता उसे स्वीकार कर लें तो दुनिया बदलेगी ही नहीं बहुत खूबसूरत नजर आएगी।

याद करिये सरकारी अस्पताल में कतार में खड़े हुए उरुग्वे के तत्कालीन राष्ट्रपति जोस मुजीका की तस्वीर। अंतरराष्ट्रीय मीडिया ने तो जोस मुजीका को दुनिया का सबसे गरीब राष्ट्रपति कहा था। हिंदुस्तान में भी ईएमएस से लेकर माणिक सरकार को देखिये जोस मुजीका की छवि ही नजर आएगी।   

त्रिपुरा के सीएम रहे नृपेन चक्रवर्ती ने चुनाव हारने के बाद सिर्फ दस मिनट में लोहे के संदूक के साथ आवास खाली कर दिया था। सादगी का सबसे बड़े उदाहरण रहे माणिक सरकार की पत्नी मुख्यमंत्री की पत्नी रहते हुए भी आम नागरिक की तरह थैला लटकाये खरीददारी से लेकर सारे काम करती आ रहीं हैं।

पुरानी बात है ज्योति बसु के मुख्यमंत्री बनने के बाद एक बार वो अपने आवास में लौटे तो पाया कि मुख्य द्वार पर ताला लगा है पता लगा गार्ड गलती से चाबी लेकर चला गया। उस गार्ड को ब्लैक लिस्ट करके उस पर बंगाल पुलिस ने भारी जुर्माना लगाया।

ज्योति बसु की पत्नी श्रीमती कमल बसु जुर्माने की खबर से काफी विचलित हुईं, उन्होंने तत्कालीन डीजीपी सत्यव्रत बसु से आग्रह किया कि गार्ड कि सज़ा माफ़ की जाये पर सत्यव्रत बसु ने कहा- ये असंभव है, महोदया,उसने एक गंभीर अपराध किया है, और उसे सजा मिलनी ही चाहिए।

श्रीमती बसु ने उन्हें चिंतित होकर कहा- ठीक है पर बेचारा इतना गरीब है कि महीने का राशन खरीदने के लिए मुझसे रुपये उधर लेता है, वो रुपये कैसे अदा कर पायेगा, यह तो सोचिये। और कमल बसु ने पूरी चिंता के साथ उस गरीब पुलिस वाले को माफी दिलवाई ऐसी सादगी, सरलता और एक गरीब के राशन से लेकर उसकी नौकरी की चिंता दूसरा कौन कर सकता है ?

ऐसे ही महान कम्युनिस्ट नेताओं के सहयोगी -साथी आज भी हमारे बीच उसी सादगी, सरलता, सहजता और आम आदमी की चिंता के साथ मैदान में हैं, जिस मिट्टी से ये बने हैं वो मिट्टी बहुत दुर्लभ है। वर्ष 1977 में मुख्यमंत्री बनने के बाद मंत्रिमंडल की पहली बैठक में ज्योति बसु ने अपने मंत्रियों से कहा था-

हम अपनी योजनाओं को ऑफिस में बैठकर नहीं, फैक्ट्रियों और खेतों में काम करने वाले मजदूरों और किसानों के बीच, जहाँ हमारी ताकत मौजूद है, जाकर काम करेंगे।

मई-1996  में ज्योति बसु ही पीएम बनेंगे सीपीआई, कांग्रेस सहित पूरा तीसरा मोर्चा यह घोषणा कर चुका था। वाशिंगटन टाईम्स-  न्यूयॉर्क टाईम्स तक में उनके पीएम बनने की खबर सुर्खियों में थी पर ज्योति बसु अपनी पार्टी के फैसले के साथ जिस तरह खड़े रहे, ऐसे बड़े कद के नेता का ऐसा अनुशासन दुनिया में कहीं देखने को नहीं मिलेगा।

ज्योति बसु का नाम किसी कॉर्पोरेट समूह तो दूर बेटे चंदन बसु को 5 बार मुख्यमंत्री रहते हुए कोई फायदा पहुँचाया। ये और बात है बीच बीच में चन्दन को लेकर दुष्प्रचार जरूर होता रहा।

चन्दन बसु रातोंरात ज्योति बसु की ऊँगली पकड़ के उद्योगपति नहीं बने न ही उनकी संपत्ति  नेता पुत्र की तरह अचानक 1600 गुना बढ़ी।

ज्योति बसु ने चन्दन से साफ कहा था जो करना अपने बलबूते करना वो किसी भी रूप में मदद नहीं करेंगे और तमाम दुष्प्रचार के बावजूद कोई ज्योति बसु पर ऊँगली न उठा सका।

ज्योति बसु के विरोधियों को भी ये तथ्य पता था किस तरह चंदन ने पहले एक छोटी सी दुकान खोलकर पुस्तकें बेचीं, टेलेक्स पेपर बेचे धीरे-धीरे  बाद में 1980 में दुर्गापुर में बिस्किट  की फैक्ट्री डाली थी।

ज्योति बसु ने चन्दन को व्यापार में कोई मदद नहीं करी पर चन्दन जब अपनी फैक्ट्री के बिस्किट लेकर अपने पिता के पास पहुंचे तो बेटे की आत्मनिर्भरता से उनका चहेरा ख़ुशी से चमक उठा था और उन्हें यकीन नहीं हो रहा था कि ये चन्दन की फैक्ट्री के बिस्किट हैं। एक पिता को ये ख़ुशी  इसलिए ज़्यादा थी कि बिना सिफारिश उनका बेटा आत्मनिर्भर बना।

 

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