विचार / लेख
-अमिताभ पाण्डेय
दुनिया भर में महामारी की तरह फैल चुकी कोरोना की बीमारी लोगों के मन में तनाव को बढ़ावा दे रही है। कोरोना का नाम सुनते ही लोग भयभीत हो जाते हैं। कई बार तो इसका जिक्र करते ही लोगों को इतना अधिक मानसिक तनाव होने लगता है कि उनके मन में आत्महत्या के विचार आने लगते हैं। ऐसे लोगों की मानसिक स्थिति को समय रहते पहचान कर उसका उपचार शुरू न किया जाये तो जानलेवा घटनाएँ हो सकती हैं। पिछले कुछ महीनों में इंदौर तथा दिल्ली के चिकित्सालयों में भर्ती कोरोना संक्रमित मरीजों ने अस्पताल की ऊँची बिल्डिंगों से कूदकर आत्महत्या कर ली। कोरोना से संक्रमित आधा दर्जन लोग उपचार के दौरान अस्पताल से भाग गए जिनको बाद में पकड़ा गया। कुछ लोग ऐसे भी देखने-सुनने में आए जिन्होंने कोरोना पॉजिटिव रिपोर्ट की बात सुनते ही बिस्तर पकड़ लिया। वे बीमारी से ज्यादा डर के कारण बीमार हो गए।
कोरोना की बीमारी का डर ऐसा फैल गया है कि जिस घर-परिवार में कोई व्यक्ति कोरोना संक्रमित हो, उसके परिवारजन भी कई बार दूर होने लगते हैं। मोहल्ले, पड़ोस के लोगों के मन में भी ऐसा डर बैठ जाता है कि लोग कोरोना पॉजीटिव मरीज के घर से गुजरने में भी डरते हैं। कोरोना का भय, कोविड -19 बीमारी से भी बड़ा हो गया है। यह डर लोगों की जान ले रहा है। लोग निराशा के माहौल में डूबकर आत्महत्या करने की कोशिश करते देखे गए हैं। लोग बचाव और उपचार पर अपना ध्यान केंद्रित करने की बजाय इस बीमारी से ज्यादा भयभीत हो रहे हैं।
कोरोना का असर शरीर से ज्यादा मन-मस्तिष्क पर देखा जा रहा है। दरअसल आम जनता के मन में कोविड-19 को लेकर जो डर है वह अचानक नहीं आया है। इन दिनों हम अक्सर हमारे आसपास ऐसे शब्दों का प्रयोग बहुत बार बोलने-सुनने-देखने में कर रहे हैं जो सीधे कोरोना की बीमारी से जुड़े हैं। कोरोना पॉजिटिव, आइसोलेशन वार्ड, होम आईसोलेशन, सेल्फ आईसोलेशन, कोरनटाईन, कोविड वॉर्ड, कोविड सेंटर, मास्क, पीपीई किट, सायरन, एंबुलेंस, पुलिस, डॉक्टर जैसे शब्दों को बार-बार सुनकर लोग भयभीत हो रहे हैं। उनके मन में इतना गहरा डर है कि कोरोना पॉजिटिव का नाम सुनते ही लोग घर छोडक़र भाग जाने को तैयार हैं। कई लोग तो कोरोना पॉजिटिव रिपोर्ट आते ही अपना घर छोड़ कर भाग गए ऐसे लोगों को बमुश्किल पकडक़र अस्पताल भेजा गया।
अस्पताल में भी डरे हुए लोग कोविड वार्ड में ही आत्महत्याएँ कर रहे हैं। ऐसी घटनाएं मध्यप्रदेश के कुछ जिलों में देखी गयी हैं। कुछ मामलों में तो यह भी देखा गया है कि कोरोना संक्रमण पाए जाने पर पीडि़त का उपचार करने की बजाय उसे ही घर से बाहर निकाल दिया गया। कोरोना के कारण घर-परिवार-समाज में लोगों के रिश्ते बिगड़ रहे हैं। कोरोना की महामारी नौकरी, व्यापार-व्यवसाय, अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचाने के साथ ही सामाजिक बहिष्कार और सामाजिक भेदभाव का कारण भी बन गई है। कोरोना के बारे में आम जनता के मन में सोशल मीडिया, झूठी खबरों, अफवाहों के कारण जो डर बढ़ रहा है इस पर तत्काल प्रभावी रोक लगाने की आवश्यकता है।
सोशल मीडिया पर कोरोना के बारे में आने वाली सकारात्मक, उत्साहवर्धक खबरों से ज्यादा चर्चा नकारात्मक खबरों की होती है। नकारात्मक, निराशाजनक और डर को बढ़ाने वाली खबरों को फेसबुक, व्हाट्सएप्प, इंस्टाग्राम, लिंक्डइन, ट्विटर पर पढ़े-लिखे लोग बिना पढ़े ही फारवर्ड कर रहे हैं। इस पर तत्काल रोक लगाने की जिम्मेदारी केवल सरकार की नहीं समाज की भी है। ‘विश्व स्वास्थ्य संगठन’ (डब्यएमएचओ), भारत सरकार के ‘स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय,’ राज्य सरकारों के स्वास्थ्य विभागों से जुड़े वरिष्ठ डॉक्टरों ने कई बार यह कहा है कि कोरोना का संक्रमण हो जाने पर उसका समुचित और त्वरित उपचार शुरू कर दें तो कोरोना को हराना आसान है। कोरोना से लड़ाई मुमकिन है और इससे जीत भी संभव है। सच यह है कि हमारे देश में कई लोग अपनी मजबूत इच्छाशक्ति और बेहतर आत्मविश्वास के दम पर कोरोना को हरा चुके हैं। ऐसे लोग स्वस्थ होकर फिर से अपने काम-काज पर लौट आए हैं।
अब समय आ गया है कि क?र?नॉ के विरोध में प्रभावी जागरूकता अभियान चलाया जाए। कोरोना संक्रमण से संघर्ष कर जीतने वाले लोगों को समाचार पत्रों, सोशल मीडिया के सामने आकर यह बताना चाहिए कि कोरोना से आत्मविश्वास के दम पर, चिकित्सकों की सलाह और बेहतर उपचार के दम पर आसानी से विजय पाई जा सकती है। कोरोना काल का यह समय हम सभी के लिए सामूहिक संकल्प लेने का है कि हम सब मिलकर कोरोना से लड़ेंगे और जीतेंगे। (सप्रेस)
श्री अमिताभ पाण्डेय मानसिक स्वास्थ्य संबंधी विषय पर लगातार आलेख लिखते रहते हैं।