विचार / लेख

क्या उम्मीद है कश्मीर के "गुपकार" गठबंधन से
17-Oct-2020 11:31 AM
क्या उम्मीद है कश्मीर के

  (dw.com)

कश्मीर में जिसे नेशनल कॉन्फ्रेंस (एनसी) और पीडीपी का अभूतपूर्व गठबंधन बताया जा रहा है वो असल में यहां की छह मुख्य पार्टियों की ओर से अगस्त 2019 में शुरू की गई साझा मुहिम है का ही विस्तार है.

फर्क यह आया है कि 2019 में जब इस अभियान की घोषणा हुई थी तब इसका लक्ष्य पूर्ववर्ती जम्मू और कश्मीर राज्य के विशेष दर्जे और अनुच्छेद 35 ए और अनुच्छेद 370 को बचाना और राज्य के विभाजन को रोकना था, जो कि अब हो चुका है. गुपकार घोषणा के अगले दिन ही केंद्र सरकार ने जम्मू और कश्मीर का राज्य का दर्जा ही खत्म कर इसे दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित कर दिया. इन पार्टियों ने 2019 की गुपकार घोषणा को बरकरार रखा है और इस गठबंधन को नाम दिया है "पीपल्स अलायंस फॉर गुपकार डेक्लेरेशन." एनसी और पीडीपी के अलावा इसमें सीपीआई(एम), पीपल्स कांफ्रेंस (पीसी), जेकेपीएम और एएनसी शामिल हैं.

अभियान की घोषणा करते हुए जम्मू और कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फारुख अब्दुल्ला ने कहा, "हमारी लड़ाई एक संवैधानिक लड़ाई है. हम चाहते हैं कि भारत सरकार जम्मू और कश्मीर के लोगों को उनके वो अधिकार वापस लौटा दे जो उनके पास पांच अगस्त 2019 से पहले थे." अब्दुल्ला ने यह भी कहा, "जम्मू, कश्मीर और लद्दाख से जो छीन लिया गया था हम उसे फिर से लौटाए जाने के लिए संघर्ष करेंगे." 2019 की 'गुपकार घोषणा' वाली बैठक की तरह यह बैठक भी अब्दुल्ला के श्रीनगर के गुपकार इलाके में उनके घर पर हुई. 

इस एक साल में जम्मू और कश्मीर में जो बदलाव आए हैं वो प्रशासनिक तौर पर पूरी तरह से लागू हो चुके हैं. ऐसे में यह स्पष्ट नजर नहीं आता कि ये पार्टियां पुरानी व्यवस्था की बहाली का लक्ष्य कैसे हासिल करने की उम्मीद रखती हैं. इनके अभियान में भी किसी काम की योजना के बारे में नहीं बताया गया है. कश्मीर मामलों के जानकार बताते हैं कि अभी तो इन पार्टियों का लक्ष्य है जम्मू, कश्मीर और लद्दाख इलाकों में जनता के बीच जाना, उनसे संवाद स्थापित करना और फिर उनके समर्थन से आगे की योजना बनाना.

क्या उम्मीद है इस अभियान से?

श्रीनगर में रहने वाले वरिष्ठ पत्रकार जफर इकबाल ने डीडब्ल्यू से कहा कि इस अभियान के तहत एक दूसरे की विरोधी रही इन पार्टियों का "साथ आना और एक साझा लक्ष्य के लिए अपने मतभेदों को एक ओर रख देना एक अच्छा कदम है." उन्होंने यह भी कहा कि"यह अभियान टिकेगा और कम से कम कुछ समय तक तो चलेगा ही."

वरिष्ठ पत्रकार और कश्मीर मामलों के जानकार उर्मिलेश का मानना है कि इस अभियान की अगुआई जो पार्टियां कर रही हैं (एनसी और पीडीपी) "एक दौर में जम्मू और कश्मीर की आवाम की निगाहों में उनकी साख गिर गई थी क्योंकि उन दोनों ने लोगों को एक तरह से निराश किया है." हालांकि वो यह भी कहते हैं कि अब जब कश्मीर को भारत का हिस्सा मानने वाले सारी कश्मीरी पार्टियां इन दोनों पार्टियों के साथ आ गई हैं तो हो सकता है कि जनता में इनकी प्रति विश्वास एक बार फिर बनना शुरू हो. वो मानते हैं कि संभव है कि जनता इस गठबंधन को एक मौका देने के बारे में सोंचे.

कुछ जानकार यह भी मानते हैं कि एक साल से भी ज्यादा से सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक हर तरह के लॉकडाउन में पड़े जम्मू और कश्मीर में इस गठबंधन के बनने की वजह से राजनीतिक गतिविधि की वापसी हुई है. वरिष्ठ पत्रकार संजय कपूर कहते हैं कि यह उम्मीद की जा सकती है कि अब कश्मीर मुद्दे पर "केंद्र का विरोध और बढ़ेगा" और "मुद्दे के अंतरराष्ट्रीयकरण की संभावना भी बढ़ेगी." उनका यह भी मानना है कि अगर अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप अमेरिका में आने वाले चुनावों में हार जाते हैं तो डेमोक्रैटिक पार्टी भी इस अभियान को समर्थन दे सकती है.

कांग्रेस की अनुपस्थिति

गुपकार घोषणा और गुपकार घोषणा 2.0 में एक फर्क यह भी है कि इस बार कांग्रेस इस गठबंधन में शामिल नहीं हुई है. 2019 में अब्दुल्ला के निवास पर हुई बैठक में प्रदेश कांग्रेस के उपाध्यक्ष ताज मोहिउद्दीन शामिल हुए थे. इस बार ना मोहिउद्दीन ने बैठक में हिस्सा लिया ना प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष गुलाम अहमद मीर ने. बैठक के बाद की घोषणाओं में भी सिर्फ बाकी छह पार्टियों का जिक्र है, और कांग्रेस का नहीं है. मीर ने कहा कि उन्हें बैठक में शामिल होने का निमंत्रण मिला था लेकिन वो स्वास्थ्य कारणों से शामिल नहीं हो सके.

कश्मीर में स्थानीय कांग्रेस नेताओं के लिए शायद यह एक असमंजस की स्थिती है. कश्मीरी कांग्रेस नेता सलमान सोज ने एक ट्वीट में कहा कि भले ही कांग्रेस इस गठबंधन का हिस्सा ना हो, लेकिन व्यक्तिगत रूप से इस पहल का समर्थन करते हैं.

उर्मिलेश कहते हैं कि यह कश्मीर को लेकर कांग्रेस की पुरानी झिझक का नतीजा है. वो कहते हैं कि कांग्रेस को हमेशा से यह लगता रहा है कि इस तरह के मुद्दों पर अगर वो कश्मीरी पार्टियों के साथ जाएगी तो देश के बाकी इलाकों में उसकी परेशानी बढ़ जाएगी, क्योंकि कश्मीर को लेकर शेष भारत में जो राय है वो भारत के सत्ता के ढांचे से प्रेरित रहा है. वो यह भी कहते हैं कि अनुच्छेद 370 को कमजोर करने का काम कांग्रेस ने ही किया था और अब तो बस उसका कंकाल बचा था जिसे बीजेपी ने बस जमीन के नीचे दफन करने का काम किया है.

अन्य पोस्ट

Comments

chhattisgarh news

cg news

english newspaper in raipur

hindi newspaper in raipur
hindi news