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अज़रबैजान और आर्मीनिया की जंग के 22वें दिन कैसे हैं हालात
19-Oct-2020 10:53 AM
अज़रबैजान और आर्मीनिया की जंग के 22वें दिन कैसे हैं हालात

आर्मीनिया और अज़रबैजान ने विवादित क्षेत्र नागोर्नो काराबाख़ में एक दूसरे पर संघर्ष विराम तोड़ने के आरोप लगाए हैं. दोनों ही पक्ष शनिवार रात 12 बजे से संघर्ष विराम लागू करने पर राज़ी हो गए थे.

लेकिन अब आर्मीनिया के रक्षा मंत्रलाय की एक प्रवक्ता ने कहा है कि अज़रबैजान ने संघर्ष विराम लागू होने के चार मिनट बाद ही तोप के गोले और रॉकेट दागे हैं. वहीं, बाद में एक बयान में अज़रबैजान की ओर से कहा गया है कि आर्मीनिया ने दो मिनट बाद ही गोलीबारी शुरू कर दी थी.

दोनों ही देशों ने बीते शनिवार भी रूस की मध्यस्थता के बाद संघर्षविराम के लिए समझौता किया था. हालांकि उस समझौते के बाद भी लड़ाई जारी रही थी. बीते महीने दोनों देशों के बीच उस विवादित क्षेत्र को लेकर लड़ाई शुरू हो गई है जिसे अंतरराष्ट्रीय जगत अज़रबैजान का हिस्सा मानता है लेकिन जिस पर आर्मीनियाई लोगों का नियंत्रण है.

इस लड़ाई में अब तक सैकड़ों लोगों की जान जा चुकी है. इस क्षेत्र को लेकर दोनों देशों के बीच छह साल लंबा चला युद्ध 1994 में समझौते के साथ समाप्त हो गया था. उसके बाद से ये अब तक का सबसे हिंसक संघर्ष है.

बीते सप्ताह जब रूस की मध्यस्थता में हुआ समझौता टूटा था तब भी दोनों देशों ने एक दूसरे पर पहले गोलीबारी करने के आरोप लगाए थे.

क्या है ताज़ा समझौता

दोनों ही देशों ने मानवीय समझौते की पुष्टि की है लेकिन इसके बारे में अधिक जानकारियां साझा नहीं की गई हैं. अज़रबैजान के विदेश मंत्रालय का कहना है कि ये फ़ैसला अमरीका, फ्रांस और रूस के राष्ट्रपतियों की ओर से जारी बयान पर आधारित है.

1992 में नागार्नो काराबाख़ विवाद के निपटारे के लिए ओएससीई मिंस्क ग्रुप की स्थापना की गई थी जिसके ये तीनों देश सदस्य हैं. आर्मीनिया के विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता एना नाग़दालयान ने ऐसा ही बयान जारी करते हुए कहा है कि वो संघर्ष क्षेत्र में संघर्ष विराम के प्रयासों का स्वागत करते हैं.

रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लावरोफ़ ने शनिवार को दोनों ही देशों के विदेश मंत्रियों से चर्चा की है और कहा है कि उन्हें समझौते का कड़ाई से पालन करना होगा. सर्गेई लावरोफ़ की मौजूदगी में ही बीते शनिवार को समझौता हुआ था.

फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुअल मैक्रों ने कहा है कि उनके देश भी संघर्ष विराम पर नज़दीकी नज़र रखेगा.

ज़मीन पर ताज़ा स्थिति क्या है?

आर्मीनिया के रक्षा मंत्रालय की प्रवक्ता शूशान स्टेपन्यान ने ट्विटर पर बताया है, "दुश्मनों ने 00.04 बजे से 02.45 बजे तक उत्तरी दिशा में तोपों से गोलाबारी की और 02.20 से 02.45 तक दक्षिणी दिशा में रॉकेट दागे."

उन्होंने बाद में बताया कि अज़रबैजान की ओर से नागोर्नो काराबाख़ के दक्षिणी इलाक़ों पर रविवार सुबह हमला किया गया. बीबीसी से बात करते हुए आर्मीनिया के विदेश मंत्री ज़ोहराब म्नातसाकान्यान ने कहा है कि संघर्ष विराम उल्लंघन के लिए उनका देश ज़िम्मेदार नहीं है.

उन्होंने अज़रबैजान पर तनाव कम करने में रूची ना लेने का भी आरोप लगाया है. उन्होंने कहा, "अज़रबैजान की यही नीति है, दूसरे पर आरोप लगा दो और आक्रमण जारी रखो."

वहीं अज़रबैजान के राष्ट्रपति के विदेश मामलों के प्रमुख हिकमत हाजीयेफ़ का कहना है कि ताज़ा लड़ाई के लिए आर्मीनिया ही ज़िम्मेदार है.

उन्होंने बीबीसी से कहा, 'आर्मीनिया मौजूदा संघर्षविराम का फ़ायदा अपनी स्थिति मज़बूत करने और अज़रबैजान के नए इलाक़ों पर क़ब्ज़ा करने के लिए उठा रहा है.'


उन्होंने कहा, 'कल उन्होंने अज़रबैजान की सेना पर घात लगाकर हमला किया और उन्हें मारने की कोशिश की. ये ऐसे सवाल है जिनका जवाब आर्मीनिया को देना चाहिए.'

अज़रबैजान ने आर्मीनिया पर मिसाइल हमला करने का आरोप लगाया है. शनिवार को हुए इस हमले में कम से कम 13 लोग मारे गए हैं और 45 घायल हैं. ये हमला गांजा शहर में हुआ है जो युद्ध क्षेत्र से काफ़ी दूर है.

विदेश मंत्रालय की ओर से जारी किए गए एक और बयान में आर्मीनिया पर नागरिक इलाक़ों पर अंधाधुंध हमले करने के आरोप लगाए गए हैं.

आर्मीनिया ने इन आरोपों को ख़ारिज करते हुए अज़रबैजान पर नागरिक इलाक़ों पर हमले करने के आरोप लगाए हैं.

स्टेपनयान ने फ़ेसबुक पर एक वीडियो जारी करते हुए नागार्नो काराबाख़ इलाक़े में हुई बर्बादी दिखाई है और अज़रबैजानी सैन्य बलों पर नागरिक इलाक़ों पर मिसाइल हमले करने के आरोप लगाए हैं.

अज़रबैजान का दावा, आर्मीनिया का लड़ाकू विमान दूसरी बार मार गिराया

अज़रबैजान की फ़ौज ने घोषणा की है कि उसने आर्मीनिया के दूसरे एसयू-25 विमान को जेबरैल के क्षेत्र में मार गिराया है. हालांकि उन्होंने सबूत के तौर पर कोई तस्वीर, वीडियो या फिर कोई दूसरा प्रमाण नहीं पेश किया है.

आर्मीनिया के रक्षा मंत्री ने दोनों ही बार विमान के मार गिराए जाने की बात से इनकार किया है. अज़रबैजान ने यह भी कहा है कि आर्मीनिया ने सीमा के उत्तरी हिस्से में उसके क्षेत्र में गोलीबारी की है. यह क्षेत्र तोवुज़ शहर के नज़दीक है.

हालांकि इस हमले की पुष्टि के तौर पर भी किसी ने कोई प्रमाण नहीं देखा है. आर्मीनिया के रक्षा मंत्रालय ने कहा है किसी ने भी उस क्षेत्र में गोलीबारी नहीं की है.

आर्मीनियाई फ़ौज ने आरोप लगाया है कि शांति समझौते की शुरुआत होने से ठीक पहले रेड क्रॉस ने घायलों को लड़ाई के मैदान से हटाने का प्रस्ताव रखा था लेकिन अज़रबैजान ने इससे इनकार कर दिया.

दोनों ही तरफ से इस तरह की बयानबाजी हो रही है जिसकी कोई पुष्टि नहीं की जा सकती है. लेकिन समय समय इसके बारे में बताते रहना जरूरी है क्योंकि दोनों ही देश ना सिर्फ़ लड़ाई के मैदान में लड़ रहे है बल्कि वे हर संभव तरीके से सूचनाओं की लड़ाई (इनफॉरमेशन वार) में भी जुटे हुए हैं.

उधर, आर्मीनिया ने मरने वाले अपने जवानों की सूची में 40 नए नाम जोड़े हैं. अब आर्मीनिया के कुल 673 जवान मारे जाने वालों की सूची में शामिल हो गए हैं. वहीं दूसरी तरफ़ अज़रबैजान ने लड़ाई में मारे गए जवानों की अपनी सूची जारी नहीं की है.

अज़रबैजान और आर्मीनिया की जंग में पाकिस्तानी स्पेशल फोर्स

पाकिस्तान ने आर्मीनिया की ओर से लगाए इस आरोप को ख़ारिज कर दिया है कि पाकिस्तानी स्पेशल फोर्स अज़रबैजान की सेना के साथ मिलकर आर्मीनिया के ख़िलाफ़ लड़ाई में हिस्सा ले रही है.

पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय ने इस मामले में स्पष्टीकरण दिया है. पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय ने एक बयान जारी कर आर्मीनिया के प्रधानमंत्री निकोल पाशिन्यान की टिप्पणी को 'आधारहीन और अनुचित' बताया गया है.

15 अक्टूबर को आर्मीनिया के प्रधानमंत्री निकोल पाशिन्यान ने रूसी समाचार एजेंसी रोसिया सेगोदन्या को दिए एक इंटरव्यू में कहा था कि तुर्की की सेना के साथ मिलकर पाकिस्तान की स्पेशल फोर्स आर्मीनिया के ख़िलाफ़ नागोर्नो-काराबाख़ में जारी लड़ाई में शामिल है.

उनसे पूछा गया कि क्या उनके पास इस बात का कोई प्रमाण है कि अज़रबैजान की सेना को विदेशी सैन्यबलों का भी साथ मिल रहा है.

इस पर निकोल पाशिन्यान ने कहा कि "कुछ रिपोर्ट्स यह बताती हैं कि जंग में पाकिस्तानी फौज का विशेष दस्ता भी शामिल है. मेरा मानना है कि तुर्की के सैनिक इस लड़ाई में शामिल हैं. अब ये बात जगज़ाहिर हो चुकी है क्योंकि अंतरराष्ट्रीय मीडिया में इस बारे में लिखा जा रहा है."

पाकिस्तान का खंडन

पाकिस्तान ने इस बात का खंडन करते हुए बयान दिया है कि आर्मीनिया इस तरह के ग़ैर-जिम्मेदाराना प्रोपेगैंडा के माध्यम से अज़रबैजान के ख़िलाफ़ अपनी ग़ैर-क़ानूनी कार्रवाई को छिपाने की कोशिश कर रहा है, इसे तुरंत रोका जाना चाहिए.

पाकिस्तान ने अपने बयान में कहा है, "अज़रबैजान के राष्ट्रपति इल्हाम अलीयेव ने इस मसले पर साफ तौर पर कहा कि उनके देश की सेना अपनी मातृभूमि की रक्षा के लिए पर्याप्त तौर पर मज़बूत है और उसे किसी बाहरी सेना की जरूरत नहीं है."

हालांकि पाकिस्तान ने अपने बयान में यह साफ तौर पर कहा है कि वो अज़रबैजान को कूटनीतिक और राजनीतिक समर्थन देता रहेगा.

इससे पहले पाकिस्तान और तुर्की ने अज़रबैजान को नैतिक समर्थन देने की बात कही थी. वहीं, रूस दोनों देशों के बीच मध्यस्थता कर शांति कायम करने की कोशिशों में लगा हुआ है.

आर्मीनिया और पाकिस्तान के बीच संबंध

अज़रबैजान और तुर्की के साथ पाकिस्तान से करीबी रिश्ते हैं. शायद इस कारण उसके आर्मीनिया के साथ अच्छे संबंध नहीं हैं.

नागोर्नो काराबाख़ में जारी विवाद को लेकर पाकिस्तान मानता है कि आर्मीनिया ने अज़रबैजान के इलाक़े में कब्ज़ा किया है और संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव के अनुसार इस विवाद का निपटारा होना चाहिए.

वहीं, आर्मीनिया के विदेश मंत्रालय के अनुसार भी पाकिस्तान के साथ उनके कूटनीतिक रिश्ते नहीं है.

आर्मीनिया का दावा, अज़रबैजान का इनकार

आर्मीनिया ने इससे पहले यह भी दावा किया था कि तुर्की केवल कूटनीतिक समर्थन नहीं कर रहा है, बल्कि सैन्य सहायता भी दे रहा है.

आर्मीनिया के प्रधानमंत्री निकोल पाशिन्यान ने बीबीसी वर्ल्ड सर्विस के साथ एक बातचीत में दावा किया था कि तुर्की के सैनिक अफ़सर और इंस्ट्रक्टर काराबाख़ में अज़रबैजान की सेना को सलाह दे रहे हैं और तुर्की ने अपने लड़ाकू विमान एफ़-16 भेजे हैं.

उन्होंने कहा था, "तुर्की पूरी तरह से अज़रबैजान की सैन्य मदद कर रहा है. तुर्की इसमें शामिल है." लेकिन तुर्की ने भी सैन्य मदद की बात को नकारा था और केवल नैतिक समर्थन को स्वीकार किया था.

आर्मीनिया और अज़रबैजान दोनों ही देश सोवियत संघ का हिस्सा रह चुके हैं. दोनों के बीच दशकों पुराना सीमा विवाद एक बार फिर भड़क उठा है. ताज़ा विवाद की शुरुआत भी दोनों देशों की तरफ से एक-दूसरे हमला करने के दावे के साथ हुई है.

नागोर्नो-काराबाख़ के बारे में कुछ बातें

ये 4,400 वर्ग किलोमीटर यानी 1,700 वर्ग मील का पहाड़ी इलाक़ा है.

पारंपरिक तौर पर यहां ईसाई आर्मीनियाई और तुर्क मुसलमान रहते हैं.

सोवियत संघ के विघटन से पहले ये एक सवायत्त क्षेत्र बन गया था जो अज़रबैजान का हिस्सा था.

अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर इस इलाक़े को अज़रबैजान के हिस्से के रूप में मान्यता दी जाती है, लेकिन यहां की अधिकांश आबादी आर्मीनियाई है.

आर्मीनिया समेत संयुक्त राष्ट्र का कोई सदस्य किसी स्व-घोषित अधिकारी को मान्यता नहीं देता.

1980 के दशक से अंत से 1990 के दशक तक चले युद्ध में 30 हज़ार से अधिक लोगों की जानें गईं. उस दौरान अलगावादी ताक़तों ने कुछ इलाक़ों पर कब्ज़ा जमा लिया.

उस दौरान अलगावादी ताक़तों ने नागोर्नो-काराबाख के कुछ इलाक़ों पर कब्ज़ा जमा लिया. 1994 में यहाँ युद्धविराम की घोषणा हुई थी, उसके बाद भी यहाँ गतिरोध जारी है और अक्सर इस क्षेत्र में तनाव पैदा हो जाता है.

1994 में यहां युद्धविराम हुआ जिसके बाद से यहां गतिरोध जारी है.

तुर्की खुल कर अज़रबैजान का समर्थन करता है.

यहां रूस का एक सैन्य ठिकाना है.(bbc)

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