विचार / लेख

महासम्मेलन में महाजन करें महास्वागत
19-Oct-2020 7:24 PM
महासम्मेलन में महाजन करें महास्वागत

प्रकाश दुबे

महाराष्ट्र नाम है। काम भी राष्ट्र से बड़ा होता है। विश्व मराठी सम्मेलन अगले वर्ष 28 से 31 जनवरी तक अमेरिका में होगा। सम्मेलन में भारत के मराठी संगठनों के साथ 27 देशों के महाराष्ट्र मंडल आयोजक हैं। अमेरिका के साठ राज्यों के संगठनों का सहयोग है। महाध्यक्ष, महासंरक्षक और महा स्वागताध्यक्ष के साथ पर्याप्त संख्या में विभिन्न देशों के अध्यक्ष, संरक्षक और स्वागताध्यक्ष हैं।

परमाणु वैज्ञानिक डा अनिल काकोडक़र महासम्मेलनाध्यक्ष हैं। साथ में नौ महानुभावों का अध्यक्ष मंडल है। सुमित्रा महाजन से गत वर्ष लोकसभाध्यक्ष का पद और लोकसभा की उम्मीदवारी छिन चुकी है। राज्यपाल की पात्रता पर किसी ने गौर नहीं किया। महासम्मेलन की महास्वागताध्यक्ष का जिम्मा संभालने की पूरी फुर्सत है। 25 स्वागताध्यक्ष की टीम साथ है। भोपाल में विश्व हिंदी सम्मेलन हुआ था। तत्कालीन विदेश मंत्री सुषमा स्वराज को कुछ नहीं करना पड़ा। सरकार के सहयोगी संगठन और स्वयंसेवकों ने मिलकर आप ही पूरी व्यवस्था संभाली थी। मराठी सम्मेलनों में सरकार की भूमिका कम है। वर्तमान और भूतपूर्व बत्तीदार भी गिने चुने हैं। महासम्मेलन के पीछे महा-मेधा को पहचानें। किसी को अमेरिका जाने की जरूरत नहीं है। सब कुछ आन लाइन है। है न, आम के आम और गुठली के दाम। 

 रंगे पत्रकार  

भारत (आप चाहें तो आर्यावर्त कहें) के पत्रकारों और उनके संगठनों की गिनती की हिमाकत  करना नासमझी है। अधिकृत तौर पत्रकार संगठन किसी राजनीतिक दल से संबद्ध नहीं होते।कर्ताधर्ताओं की बंदर कूदनी से रंग की पहचान हो जाती हैं। कोई लाल है, कोई नारंगी। मौसम के अनुसार रंग बदलने वालों की कमी नहीं है। पहली बार श्रमजीवी पत्रकारों के एक संगठन ने खुल्लमखुल्ला राजनीतिक दल के मजदूर संगठन से संबद्धता का दावा करते हुए उपराष्ट्रपति को पत्र लिखा है। आपका अनुमान गलत है। यह विक्रम उस आजीवन अध्यक्ष के नाम नहीं है, जो अपने आप को भाई का चंद बरदाई तथा नायडू का हमभाषी बताकर गर्वित होता है।

राज्यसभा टीवी से तीन दर्जन पत्रकारों को हाल में नौकरी से अलग कर दिया गया है। वर्किंग जनर्लिस्ट शब्द वाले संगठन ने राज्यसभा के पदैन सभापति वेंकैया नायडू को पत्र लिखा। नारंगी पहचान बतलाते हुए संगठन ने निकाले गए पत्रकारों पर दया की मांग की। कई सुझाव दे डाले। राज्यसभा टीवी और लोकसभा टीवी को मिलाकर एक करने या दोनों की जगह नया संसद टीवी बनाने की कोशिश है या महामारी मी मार? उपराष्ट्रपति जानते होंगे। 

सडक़ चलते वोट

घुमावदार मार्ग पर संकेतक पढ़ा था-हम सडक़ बनाते हैं ताकि आप जल्दी पहुंचें। असावधानी और हड़बड़ी करने पर गंतव्य फिसल सकता है। केन्द्रीय सडक़ परिवहन सहित कुछ मंत्रालयों की कमान नितीन गडकरी संभालते हैं। गडकरी  ने असम में ब्रह्मपुत्र और  बिहार में गंगा पर पुल के काम तेजी से कराए। हिमाचल प्रदेश और लद्दाख के बीच सीमा पर महत्वपूर्ण सडक़ आवागमन शुरु कराने सुरंग का काम पूरा किया। उद्घाटन, शिलान्यास आदि का गुरुतर दायित्व प्रधानमंत्री ने संभाला।

इन सब कामों में तेजी लाने वाले नितीन गडकरी को इन दिनों शिलान्यास या उद्घाटन में हाजिर रहने का कष्ट नहीं करना पड़ा। बिहार में कुछ विधानसभा क्षेत्रों में सडक़ और पुल के नाम पर वोट मांगे जा रहे हैं। यही हाल मध्यप्रदेश के दो दर्जन क्षेत्रों में उपचुनाव का है। बिहार विधानसभा चुनाव, मप्र, उत्तरप्रदेश आदि के उपचुनाव के लिए प्रमुख प्रचारकों की सूची में सडक़ बनवाने वाले का नाम शामिल नहीं है। कोरोना से बचाव को इसका कारण मान सकते हैं। यह भी सोच सकते हैं कि गडकरी की जरूरत चुनाव घोषणा के पहले तक ही थी।   

शक्तिरूपेण संस्थिता

राजनीति समेत समाज के हर वर्ग में बदलाव की रफ्तार सुस्त होती है। राजेन्द्र माथुर जैसे समतावादी संपादक की पहल के फलस्वरूप  देश के संपादकों की जानी-मानी और एकमात्र संस्था एडिटर्स गिल्ड में करीब तीन दशक पहले मृणाल पांडे महासचिव बनीं। नेताओं को मुफ्त सलाह देना विद्वान  संपादक अपना विशेषाधिकार मानते हैं। कभी-कभार स्वयं भी पालन करने का इरादा करते हैं। सो, कोशिश हुई कि इस बार एडिटर्स गिल्ड के सारे पद महिलाएं संभालें। बात नहीं बनी। आम राय की परंपरा टूटी। पहली बार मतदान की नौबत आई।

सच्चे झूठे वादों, जोड़ तोड़ और अरबों रुपए खर्च करने के बावजूद लोकसभा चुनाव का आंकड़ा 40 प्रतिशत  के पार ले जाने में राजनीतिकों की नाक में दम आता है। कोरोना की कृपा से संपादकों का किसी जगह जमा होकर प्रत्यक्ष मतदान करना संभव नहीं था। गहमागहमी के बावजूद ठीकठाक मतदान में संशय था। 70 प्रतिशत के आसपास मतदान हुआ। नवरात्र के दिन मतगणना हुई।  संपादकों के वोट से या देवी संपादकेषु शक्तिरूपेण संस्थिता कथन प्रमाणित हुआ। लगभग 75 प्रतिशत संपादकों ने समता तथा के विचार को समर्थन दिया। सीमा मुस्तफा  पहली महिला अध्यक्ष निर्वाचित हुईं।

(लेखक दैनिक भास्कर नागपुर के समूह संपादक हैं)

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