सामान्य ज्ञान
दुनिया भर में सीसे का इस्तेमाल कम हो रहा है लेकिन एशिया के कई देशों में अब भी रंग में सीसे की मात्रा अधिक है, जो लोगों की जान के लिए खतरा बन सकती है।
आजकल सीसे वाला पेट्रोल बहुत कम मिलता है। इसलिए विशेषज्ञ इंसानों के लिए खतरनाक सीसे के अलग अलग स्रोतों पर नजर रखते हैं। 2013 में न्यूयॉर्क विश्वविद्यालय की एक रिपोर्ट में लिखा है कि 1970 के बाद से सीसे की खपत विकासशील देशों में बढ़ी है। इसकी एक बड़ी वजह है पेंट। पेंट में सीसा मिलाया जाता है क्योंकि इससे पेंट में कम दरारें आती हैं और वह पारदर्शी नहीं रहता। सीसे से रंग भी ज्यादा दिखते हैं। यानी अगर सीसे की मात्रा ज्यादा हो तो पेंट का रंग और गहरा लगेगा। सीसे से पेंट जल्दी सूखता है और इसमें जंग कम लगती है, लेकिन खतरा नए पेंट से नहीं, पुराने पेंट से है जो सूखने के बाद दीवार से निकलने लगता है। इससे सीसे के कण हवा में आने लगते हैं और सांस लेने के साथ फेफड़ों में घुस सकते हैं।
चीन में हाल ही में ऐसे मामले हुए हैं जिसमें कई लोग सीसे की वजह से बीमार हुए। पेंट के अलावा खाना बनाने के बर्तनों में भी सीसे का इस्तेमाल किया जाता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) का कहना है कि सीसे से गुर्दों को नुकसान हो सकता है। ब्लड प्रेशर बढऩे और हृदय रोग होने का भी खतरा बढ़ जाता है, लेकिन सबसे ज्यादा परेशानी छोटे बच्चों को होती है। छोटी उम्र में सीसायुक्त पदार्थों के करीब आने से उनका मानसिक विकास रुक सकता है। इस वक्त सीसे से होने वाली बीमारियों का कोई इलाज नहीं है।
ज्यादा मात्रा में सीसे के करीब आने से कोमा, दौरे और यहां तक की मौत हो सकती है। अगर इससे बच्चे बच जाते हैं तो उनका मानसिक और शारीरिक विकास सामान्य बच्चों के मुकाबले कम हो जाता है। डब्ल्यूएचओ के मुताबिक केवल 30 देशों में सीसे इस्तेमाल पूरी तरह बंद हो चुका है। बाकी देशों में इसके इस्तेमाल को लेकर नियम हैं। डब्ल्यूएचओ चाहता है कि अगले साल तक 70 ऐसे देश हों जो सीसे के इस्तेमाल को कम करने के लिए कड़े नियम लागू करें। डब्ल्यूएचओ के मुकाबले हर साल छह लाख मामले आते हैं जिनमें बच्चों के मानसिक विकास को सीसे से नुकसान पहुंचा होता है।