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तेजस्वी यादव 'सहवाग जैसी बैटिंग' ना कर सके, पर लालू की तरह सियासी पिच पर टिकने की चुनौती
21-Oct-2020 5:49 PM
तेजस्वी यादव 'सहवाग जैसी बैटिंग' ना कर सके, पर लालू की तरह सियासी पिच पर टिकने की चुनौती

- रजनीश कुमार

बिहार के दो युवा. एक 30 साल के तेजस्वी यादव और दूसरे 38 साल के चिराग पासवान. तेजस्वी यादव क्रिकेटर बनना चाहते थे, लेकिन क्रिकेट की दुनिया में ग़ुमनाम से रहे. चिराग पासवान अभिनेता बनना चाहते थे, लेकिन वे अभिनय की दुनिया में अनजान रह गए.

अब दोनों के पास अपने-अपने पिता की राजनीतिक विरासत है और उसी के सहारे वो नेता बन चुके हैं.

रोहन गावसकर के पास पिता सुनील गावसकर के क्रिकेट की विरासत थी, लेकिन वे चाहकर भी क्रिकेट में स्थापित नहीं हो पाए. लेकिन राजनीति में व्यक्तिगत परफ़ॉर्मेंस का मसला भारतीय लोकतंत्र से ग़ायब है, इसलिए नेता बनना क्रिकेटर बनने की तरह मुश्किल नहीं है.

तेजस्वी बताते हैं कि उनमें क्रिकेट की ललक इस क़दर थी कि उन्होंने नौंवी क्लास के बाद पढ़ाई छोड़ दी.

तेजस्वी का क्रिकेट प्रेम

सबा करीम तब अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट से संन्यास ले चुके थे. साल 2001 था. लालू प्रसाद यादव बिहार क्रिकेट असोसिएशन के अध्यक्ष थे. सबा करीम और राम कुमार क्रिकेट को लेकर लालू यादव से उनके आवास पर मिलने गए थे.

लालू यादव के सामने सबा करीम और राम कुमार ने बिहार की प्रतिभाओं को क्रिकेट में जगह देने के लिए कई तरह के प्रस्ताव रखे थे.

सबा करीम कहते हैं, ''लालू जी ने हमारी बातें ध्यान से सुनीं. वो हमारे प्रस्तावों को लेकर बहुत ही सकारात्मक थे. बातचीत के दौरान ही उन्होंने अपने बेटे तेजस्वी से मिलवाया. तब तेजस्वी की उम्र 10-12 साल रही होगी. लालू जी ने कहा कि देखो, ये मेरा छोटा बेटा है और क्रिकेट को लेकर बहुत उतावला रहता है. थोड़ा इस पर भी ध्यान दो. हमने 2002 में पटना में एक कैंप लगाया. उसमें 100 बच्चों को चुना गया. इन 100 में एक तेजस्वी यादव भी थे. हमें लालू यादव ने कहा था कि इसको थोड़ा देख लो और मदद करो. लालू तेजस्वी के क्रिकेट को लेकर बहुत गंभीर थे.''

सबा करीम कहते हैं कि तेजस्वी के साथ क्रिकेट की विरासत नहीं थी, लेकिन उनकी चाहत थी. हालांकि तेजस्वी चाहत के साथ लंबे समय तक नहीं रह पाए और उन्हें अपनी विरासत की ओर रुख़ करना पड़ा.

सबा कहते हैं कि लालू ने उस वक़्त उनसे तेजस्वी का बैट देखने को भी कहा था और सलाह माँगी थी कि उन्हें किस तरह के बैट से खेलना चाहिए.

लालू प्रसाद यादव से उस मुलाक़ात को याद करते हुए राम कुमार कहते हैं, ''तेजस्वी तब स्कूल का बच्चा था, लेकिन क्रिकेट को लेकर उसका सेंस बहुत अच्छा था. हम दोनों ने तेजस्वी से बात की थी. उससे क्रिकेट को लेकर बात हुई और उसने एक्सप्लेन किया था और लालू जी ने हमें क्रिकेट सिखाने के लिए कहा था.''

'वीरेंदर सहवाग की तरह बैटिंग'

राम कुमार कहते हैं, ''शुरुआत में हमने पटना में क्रिकेट सिखाना शुरू किया. एक अणे मार्ग में ही ट्रेनिंग शुरू कर दी, वहीं नेट लगाया गया. हमने देखा तो लगा कि लड़के में क्षमता है. उसकी समझ बहुत अच्छी थी. बल्लेबाज़ी और गेंदबाज़ी में जो हम तकनीक बताते, उसे वो बहुत जल्दी सीख लेता. उसके अंदर ललक थी. तेजस्वी में लगातार सुधार हो रहा था. फिर हमें लगा उसे ओपन जगह पर खेलना चाहिए, तो हम उसे बाहर आम क्रिकेटरों के साथ मिक्स-अप करने लगे. बाद में लोगों ने भीड़ लगाना शुरू कर दिया. तेजस्वी के बारे में लोगों को पता चल गया था कि वे मुख्यमंत्री के बेटे हैं.''

राम कुमार बताते हैं कि 2003 में तेजस्वी को दिल्ली शिफ़्ट करना पड़ा. वहाँ वे नेशनल स्टेडियम में प्रैक्टिस करने लगे. दिल्ली जाने के बाद उन्हें और भी एक्सपोजर मिला.

राम कुमार कहते हैं कि तेजस्वी वीरेंदर सहवाग की तरह बैटिंग करना चाहते थे.

तेजस्वी यादव के एक और कोच अशोक कुमार कहते हैं, ''तेजस्वी टीम मैन थे. व्यक्तिगत प्रदर्शन को लेकर बहुत उतावले नहीं होते थे. दिल्ली डेयरडेविल्स में उन्हें दो बार मौक़ा मिला. बेहतर खिलाड़ी थे, लेकिन सब कुछ इतनी जल्दी नहीं हो जाता है. जो तेजस्वी के क्रिकेट का मज़ाक उड़ाते हैं, उन्हें क्रिकेट की समझ नहीं है. मैं इसे एक उदाहरण के ज़रिए समझाता हूँ. झारखंड रणजी टीम की राजीव कुमार राजा ने कप्तानी की. राजीव छह इनिंग्स में बिल्कुल नहीं खेल पाए. अगले सीज़न में राजीव कुमार राजा ने बेहतरीन परफ़ॉर्म किया. तेजस्वी ने महज एक रणजी ट्रॉफ़ी मैच और विजय हज़ारे ट्रॉफी के दो मैच खेले और उसमें वो अच्छा नहीं खेल पाए, लेकिन इतने कम मैचों के आधार पर किसी का आकलन करना नाइंसाफ़ी है.''

अशोक कुमार कहते हैं, ''तेजस्वी ने दिल्ली अंडर-19 में भी खेला और उन्होंने एक बार 62 गेंद पर 100 रनों की पारी खेली थी. तेजस्वी एक अनुशासित खिलाड़ी थे. मेरा मानना है कि भले तेजस्वी ने डिग्री वाली पढ़ाई नहीं की, लेकिन उन्होंने क्रिकेट सीखने के क्रम में बहुत कुछ जाना और समझा. इसी दौरान उन्हें एक्सपोजर भी मिला. तेजस्वी ने क्रिकेट में बहुत मेहनत की थी. तेजस्वी में किसी भी चीज़ को अपनाने की क्षमता क़ाबिल-ए-तारीफ़ थी. दिल्ली आने के बाद तेजस्वी डीपीएस आरके पुरम में पढ़ाई कर रहे थे.''

अशोक कुमार 2010 में झारखंड प्रीमियर लीग के कोच बनकर गए. तेजस्वी जमशेदपुर जांबाज़ टीम में शामिल हुए. हालाँकि यहाँ भी वो कुछ ख़ास नहीं कर पाए.

शाम का वक़्त है. विपिन राम पटना के स्टेट गेस्ट हाउस में एक कुर्सी पर बैठ लालू यादव के पुराने वीडियो देख रहे हैं. वीडियो देखते हुए वे हँसते जाते हैं.

तभी बिहार के एक वरिष्ठ पत्रकार के साथ हमलोग वहाँ पहुँचते हैं. वीडियो में लालू की आवाज़ सुनते ही हमारे साथ आए वरिष्ठ पत्रकार ने हँसते हुए कहा- 'का जी, तुमको नौकरी नीतीश कुमार ने दी और वीडियो लालू यादव का देखते हो.'

इतना सुनते ही विपिन राम मोबाइल वीडियो बंद कर देते हैं और कहते हैं, ''सर, लालू जी को देख पुरानी बातें याद आती हैं, बहुत हँसी आती है. ये बात सच है कि नौकरी नीतीश कुमार ने दी, पर हँसाता तो लालू जी का ही भाषण है.''

विपिन राम स्टेट गेस्ट हाउस में नीतीश कुमार के मुख्यमंत्री बनने से पहले से ही रूम सर्विस का काम करते थे.

हालाँकि तब उनकी नौकरी पक्की नहीं थी और सैलरी भी महज़ 1700 रुपए मासिक थी.

नीतीश कुमार के मुख्यमंत्री बनने के बाद विपिन की नौकरी पक्की हो गई और आज की तारीख़ में विपिन हर महीने 26 हज़ार रुपए कमाते हैं.

विपिन से जब अकेले में बात की, तो उन्होंने बताया, ''सर, मैंने लालू जी की बहुत सेवा की है. हाथ-पैर ख़ूब दबाए हैं. जाते ही लालू जी कहते थे- अरे विपिनवा हाथ पैर दबाओ. हालाँकि नौकरी तो नीतीश कुमार ने दी. अगर लालू जी ही दे दिए होते, तो मेरे परिवार की स्थिति बेहतर होती. लंबा समय तो 1700 की सैलरी में बिता दिए.''

विपिन कहते हैं, "वो लालू जी का ज़माना था. उनके घर का दरवाज़ा कभी ग़रीबों के लिए बंद नहीं हुआ. उनके बेटे क्रिकेट खेलते थे तो हम गेंद फेंकते थे.''

विपिन हँसते हुए कहते हैं, "लेकिन वो हमसे केवल बॉलिंग करवाते थे, बैटिंग नहीं देते थे. अब भी घर जाते हैं, तो तेज प्रताप पहचान लेते हैं और हालचाल पूछते हैं, लेकिन तेजस्वी नहीं पहचानते हैं."

विपिन राम को भले लालू यादव ने नौकरी नहीं दी, लेकिन वो पुराने दिन याद कर आज भी भावुक हो जाते हैं. विपिन को शिकायत है कि लालू यादव की तरह उनके बेटे नहीं हैं.

तेजस्वी यादव में कई लोग उनके पिता लालू यादव को खोजने की कोशिश करते हैं. लेकिन जो भी ऐसा करते हैं, उन्हें निराशा हाथ लगती है और फिर कहते हैं कि लालू यादव कोई दूसरा नहीं हो सकता.

लेकिन क्या पिता के व्यक्तित्व में बेटे को देखना किसी के आकलन का सही तरीक़ा है?

इस पर आरजेडी के वरिष्ठ नेता शिवानंद तिवारी कहते हैं कि पिता से बेटे की तुलना करना बिल्कुल नाइंसाफ़ी है.

वे कहते हैं, ''अगर मेरी तुलना कोई मेरे पिता रामानंद तिवारी से करे, तो मैं तो उनके चरणों की धूल बराबर नहीं हूँ. मेरा बेटा भी मुझसे बिल्कुल अलग है. गांधी से उनके बेटे की तुलना नहीं की जा सकती. ये बात महत्वपूर्ण है कि आप अपनी संतान को कैसी परवरिश देते हैं, उसका असर बच्चों पर पड़ता है. तेजस्वी का व्यक्तित्व अलग है और वे अभी बनने की प्रक्रिया में हैं. हम लालू यादव से उनकी तुलना कैसे कर सकते हैं.''

जहाँ विपिन राम कहते हैं कि लालू के ज़माने में उनके घर का दरवाज़ा कभी बंद नहीं होता था, वहीं उनका कहना है कि 'तेजस्वी से मिलना अब इतना आसान नहीं रहा.'

बिछड़े सभी बारी-बारी

कभी आरजेडी में रहे और अब बीजेपी सांसद रामकृपाल यादव के बेटे अभिमन्यु दिल्ली में दो साल तक तेजस्वी के साथ बिहार निवास में रहे. तब राबड़ी देवी बिहार की मुख्यमंत्री थीं.

अभिमन्यु और तेजस्वी दिल्ली में 2002 से 2004 तक साथ थे. जब लालू यादव रेल मंत्री बन गए, तब तेजस्वी अपने पिता को मिले सरकारी घर में शिफ़्ट हो गए.

अभिमन्यु से हमने पूछा कि तेजस्वी को लेकर उनका क्या अनुभव रहा? तेजस्वी ने स्कूल की पढ़ाई बीच में ही क्यों छोड़ दी? तेजस्वी को एक नेता के तौर पर वो कितना परिपक्व मानते हैं?

तो जवाब में अभिमन्यु ने कहा, ''तेजस्वी मेरे बड़े भाई की तरह रहे. उनके साथ जब तक था, तब तक उन्होंने मेरा उसी रूप में ध्यान रखा. हमने अपने जीवन के बेहतरीन पल साथ गुज़ारे हैं. साथ में फ़िल्में, रेस्तरां, ट्रिप और क्रिकेट. ऐसा कभी नहीं लगा कि आने वाले दिनों में हालात इस क़दर बदलेंगे कि हमारे बीच बात ही बंद हो जाएगी.''

अभिमन्यु कहते हैं, ''उनका पूरा ध्यान क्रिकेट पर था. इसलिए उन्होंने पढ़ाई नहीं की. क्रिकेट को वो सबसे ज़्यादा वक़्त देते थे. एक नेता के रूप में उन्हें अभी बहुत कुछ करना है. लालू जी संघर्ष के दम पर नेता बने थे, लेकिन तेजस्वी को बहुत कुछ किया हुआ मिला है. लालू जी इन्हीं संघर्षों के दम पर जन-नेता बने थे, जबकि तेजस्वी के आसपास जो लोग हैं, वो उनसे ही घिरे हुए हैं. मेरा मानना है कि तेजस्वी की पढ़ाई पूरी हो गई होती, तो वो और अच्छे नेता बनते.''

अभिमन्यु और तेजस्वी के रिश्ते जितने मधुर थे, अब उतने ही ख़राब हो गए हैं.

रामकृपाल यादव लंबे समय तक लालू यादव के सबसे पक्के वफ़ादारों में से एक रहे. साल 2014 में पाटलिपुत्र लोकसभा क्षेत्र से वो आरजेडी का टिकट चाहते थे, लेकिन वहाँ से लालू यादव की बेटी मीसा भारती को टिकट मिला. अभिमन्यु कहते हैं कि यह उनके पिता के लिए किसी झटके से कम नहीं था.

अभिमन्यु ने कहा, ''बात लोकसभा टिकट की नहीं थी. सम्मान की थी. पापा ने यहाँ तक कह दिया था कि अगर यहाँ से राबड़ी जी चुनाव लड़ती हैं, तो उन्हें कोई दिक़्क़त नहीं. पापा आरजेडी के लिए बहुत मेहनत करते थे. बल्कि लालू जी के परिवार की ख़ातिर भी हमेशा समर्पित रहते थे. ऐसे में सांसद बनने की तमन्ना भला क्यों नहीं रहती. हालाँकि पापा के बीजेपी में जाने के पीछे कारण केवल टिकट का मामला नहीं है. पापा का अपमान हुआ था और ये असहनीय था. मैंने पापा से कहा कि जहाँ सम्मान ना मिले, उनके साथ रहने का कोई मतलब नहीं."

अभिमन्यु की 2017 में शादी हुई. लालू यादव को आमंत्रित किया गया, लेकिन वो नहीं आए.

लालू प्रसाद यादव और रामकृपाल यादव की फ़ाइल फ़ोटो

अभिमन्यु कहते हैं, ''मैंने तेजस्वी को आमंत्रित नहीं किया था. इससे पहले वो मेरी बहन की शादी में नहीं आए थे. उसके बाद आमंत्रित करने का कोई मतलब नहीं था.''

क्या तेजस्वी ने रामकृपाल यादव को मनाने की कोशिश नहीं की? अभिमन्यु कहते हैं कि तब तेजस्वी पार्टी में बहुत सक्रिय नहीं थे और सब कुछ लालू जी ही देखते थे. अभिमन्यु लालू परिवार से अपने रिश्तों को याद करते हैं, तो जितना कुछ कहना चाहते हैं वो अनकही सी रह जाती है.

साल 2019 के अप्रैल में हमने रामकृपाल यादव का एक इंटरव्यू किया था. हम उनके बेडरूम में बैठे थे. बिस्तर के ठीक सामने की दीवार पर लालू और राबड़ी की एक तस्वीर टंगी थी.

इसके अलावा कोई और तस्वीर नहीं थी. रामकृपाल यादव से पूछा कि आपने केवल इनकी ही तस्वीर रखी है? ये पूछने पर वो भावुक हो गए और कहा कि उनके लिए दिल में जगह है और हमेशा रहेगी.

तेजस्वी की राजनीति

तेजस्वी यादव 2015 के विधानसभा चुनाव में राघोपुर से विधायक चुने गए. यह उनका पहला चुनाव था.

तब नीतीश कुमार और लालू यादव ने मिलकर चुनाव लड़ा था. चुनाव में इसी गठबंधन को जीत मिली और तेजस्वी पहली बार में ही प्रदेश के उप-मुख्यमंत्री बन गए.

दो साल भी नहीं हुए कि नीतीश कुमार फिर से बीजेपी के साथ चले गए और तेजस्वी को 16 महीने बाद उप-मुख्यमंत्री की कुर्सी छोड़नी पड़ी. उसके बाद वो विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष बने.

इस छोटे से राजनीतिक करियर में तेजस्वी यादव पर भ्रष्टाचार के भी आरोप लगे. आईआरसीटीसी लैंड स्कैम केस में उन्हें अगस्त 2018 में बेल मिली थी.

ये मामला पटना में तीन एकड़ ज़मीन को लेकर है. इस ज़मीन पर एक मॉल प्रस्तावित है. लालू यादव पर आरोप है कि उन्होंने 2006 में रेल मंत्री रहते हुए एक निजी कंपनी को होटल चलाने का कॉन्ट्रैक्ट दिया और इसके बदले उन्हें महंगा प्लॉट मिला.

सीबीआई का कहना है कि यह ज़मीन पहले आरजेडी के एक नेता की पत्नी के नाम पर ट्रांसफ़र की गई और बाद में कौड़ी के भाव राबड़ी देवी और तेजस्वी यादव के नाम पर ज़मीन दे दी गई.

नीतीश कुमार ने पूरे मामले पर तेजस्वी यादव को स्पष्टीकरण देने के लिए कहा था, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया. जबकि लालू यादव ने बीजेपी पर फँसाने का आरोप लगाया था.

पूरे मामले में तेजस्वी का नाम एक साज़िशकर्ता के तौर पर है. तेजस्वी का कहना था कि ज़मीन तब मिली, जब उनकी उम्र बहुत ही कम थी.

उन्होंने कहा था कि तब तो उनकी मूँछ भी नहीं निकली थी. नीतीश कुमार ने इन्हीं आरोपों का हवाला देकर आरजेडी से गठबंधन तोड़ दिया था.

तेजस्वी कितने आधुनिक?

2018 में तेजस्वी यादव से एक इंटरव्यू को दौरान हमने पूछा था कि क्या वो अंतरजातीय विवाह कर लेंगे? इस सवाल के जवाब में उन्होंने कहा था कि शादी माँ-बाप के मन से होता है और वो जो कहेंगे वही होगा.

कुछ दिन पहले ही चिराग पासवान से पूछा कि उनकी ज़िंदगी में धर्म और जाति की कितनी जगह है? इस सवाल के जवाब में चिराग ने कहा कि बिल्कुल नहीं. हालाँकि वो दलित राजनीति पर अपने पिता की तरह अब भी अपना अधिकार जताते हैं.

कई हलकों में मुलायम सिंह यादव के बेटे अखिलेश यादव से तेजस्वी की तुलना की जाती है. कई लोग मानते हैं कि अखिलेश अपने पिता से भी ज़्यादा समझदार हैं और वो हिम्मती भी हैं.

अखिलेश ने अपने पिता की राजनीति को चुनौती भी दी. अखिलेश यादव की राजनीति अपने पिता की छाया से बाहर हो चुकी है, जबकि तेजस्वी यादव के साथ ऐसा नहीं है.

समाजवादी पार्टी के प्रवक्ता घनश्याम तिवारी कहते हैं, ''अखिलेश यादव हिम्मती हैं. उन्होंने जितना बेबाक फ़ैसला अपने निजी जीवन में लिया, उतना ही राजनीतिक जीवन में भी. इतनी हिम्मत सबके वश की बात नहीं. अखिलेश यादव ने 90 के दशक की पार्टी को 21वीं सदी की पार्टी बनाया. वो जाति और धर्म की राजनीति नहीं करते. अखिलेश को आप इस रूप में भी देख सकते हैं कि उनकी टीम बहुत ही विविध होती है.''

तेजस्वी में लोग लालू को खोजते हैं, लेकिन अखिलेश में मुलायम सिंह यादव को क्यों नहीं खोजते?

इस पर वरिष्ठ पत्रकार सुनीता एरॉन कहती हैं, ''अखिलेश यादव पाँच साल मुख्यमंत्री रह चुके हैं. उन्होंने आते ही समकालीन राजनीति की. डीपी यादव को टिकट नहीं दिया. मेट्रो बनाई. लैपटॉप बाँटे और एक्सप्रेस-वे बनाया. अंग्रेज़ी को लेकर भी अपने पिता से अलग लाइन ली. तेजस्वी तो 16 महीने ही उपमुख्यमंत्री रहे और पार्टी में अब भी लालू प्रसाद यादव का पूरा दख़ल है. मुझे तो तेजस्वी यादव भी ब्राइट दिखते हैं. तेजस्वी यादव को मौक़ा मिलेगा, तो वे ख़ुद को साबित करके दिखाएँगे. अखिलेश यादव को भी मुलायम सिंह की छाया से बाहर निकलने में वक़्त लगा था.''

इस बार तेजस्वी ने बाहुबली अनंत सिंह, रामा सिंह की पत्नी वीणा सिंह और आनंद मोहन के बेटे चेतन आनंद को उम्मीदवार बनाया है.

रघुवंश प्रसाद सिंह जब तक ज़िंदा रहे, तब तक रामा सिंह की एंट्री का विरोध किए, लेकिन अब रामा सिंह और उनकी पत्नी दोनों आरजेडी में हैं.

नेतृत्व तेजस्वी को ही क्यों मिला?

सुनीता एरॉन कहती हैं, ''टिकट बँटवारे को उस वक़्त की चुनावी रणनीति के लिहाज़ से भी देखा जाना चाहिए. डीपी यादव को अखिलेश ने टिकट नहीं दिया तो इससे उनका कोई नुक़सान नहीं हुआ, लेकिन बिहार में लालू यादव का परिवार अपनी खोई राजनीति ज़मीन वापस करने में जुटा है.''

अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी में उनको चुनौती देने वाला अब कोई नहीं है, जबकि तेजस्वी के सामने उनके भाई तेज प्रताप यादव हैं. पिछले साल लोकसभा चुनाव में तेज प्रताप ने अपने लोगों को पार्टी से टिकट नहीं मिलने पर अलग से लालू-राबड़ी मोर्चा बना लिया था.

लालू प्रसाद यादव के नौ बेटे-बेटियाँ हैं. मीसा भारती सबसे बड़ी बेटी हैं और तेज प्रताप सबसे बड़े बेटे. लेकिन आरजेडी का नेतृत्व तेजस्वी को ही क्यों मिला?

इस सवाल के जवाब में आरजेडी नेता प्रेम कुमार मणि कहते हैं कि तेजस्वी लालू यादव की सभी संतानों में सबसे समझदार हैं.

वे कहते हैं, ''लोगों का मानना है कि राहुल गांधी से ज़्यादा समझदार प्रियंका गांधी हैं, लेकिन सोनिया गाँधी ने राहुल के पिछड़ने के डर से प्रियंका को जान-बूझकर पीछे रखा. लेकिन लालू जी के साथ ऐसा नहीं है. मीसा भारती को भी लालू जी ने मौक़ा दिया है. दो बार से वो चुनाव हार रही हैं और अभी राज्यसभा सांसद हैं. तेज प्रताप के तेवर से लोग परिचित ही हैं. ऐसे में तेजस्वी का चुनाव स्वाभाविक था.''(bbc)

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