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सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों की अवहेलना, रेप की शिकार महिलाओं के फंड से किसी को मदद नहीं
22-Oct-2020 11:44 AM
सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों की अवहेलना, रेप  की शिकार महिलाओं के फंड से किसी को मदद नहीं

अब मिले 6 करोड़, 350 प्रकरणों में भुगतान कुछ दिनों में संभव

 विशेष रिपोर्ट 
 राजेश अग्रवाल 

बिलासपुर, 22 अक्टूबर (‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता)। यौन अपराधों से पीडि़त महिलाओं को क्षतिपूर्ति राशि विभागीय तालमेल के अभाव और बाबूशाही में फंस गई। पिछले साल यह राशि बिना किसी पीडि़त को सहायता पहुंचाये ही वापस हो गई। इन दो सालों में प्रावधान के मुताबिक विधिक सेवा प्राधिकरणों को ऐसी एफआईआर की सूचना ही नहीं दी गई। राज्य के किसी भी पीडि़त को सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन के अनुसार कोई मदद ही नहीं की गई।
 
मुख्यमंत्री द्वारा एक बैठक में अफसरों को फटकार लगाने के बाद अब पीडि़त महिलाओं और उनके आश्रितों सूची अब बनाई जा रही है। गृह विभाग ने इसके लिये 6 करोड़ रुपये का फंड पहले ही जारी दिया था, जो अब जाकर राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण को ट्रांसफर किया गया है।

निपुन सक्सेना विरुद्ध भारत सरकार के मुकदमे में सुप्रीम कोर्ट ने 5 सितम्बर 2018 को पीडि़त महिलाओं, बच्चियों के पुनर्वास व क्षतिपूर्ति के लिये नया 
अधिनियम बनाने का आदेश दिया था। इसमें पीडि़त महिलाओं, बच्चियों और उन्हें मिलने वाली सहायता का दायरा बढ़ाया गया। इसके पहले पीडि़त महिलाओं को कलेक्टर की ओर से राशि दी जाती थी, जिसका सीमित लोगों को लाभ मिलता था और पुनर्वास की कोई योजना उसमें शामिल नहीं थी। 

सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद 4 फरवरी 2019 को राज्य सरकार ने यौन उत्पीडऩ, अन्य अपराध पीडि़त महिलाओं, आश्रितों के पुनर्वास व क्षतिपूर्ति के लिये क्षतिपूर्ति योजना 2018 बनाई और इसे 2 अक्टूबर 2018 से प्रभावशील किया। योजना के तहत धारा 378 (क) से 376 (ड) तक 354 (क) से 354 (घ) तक, धारा 509 के अंतर्गत यौन उत्पीडऩ में तथा 34 ख, 326 क, 498 क में शारीरिक व मानसिक प्रताडऩा के मामलों में पीडि़त महिला या नाबालिग बच्ची को सहायता पहुंचाने का प्रावधान है। एसिड हमले के मामले में क्षतिपूर्ति का प्रावधान भी अलग से स्पष्ट किया गया है।

सुप्रीम कोर्ट ने इस योजना का संचालन राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण और अधीनस्थ राज्य तथा जिला विधिक सेवा प्राधिकरणों के माध्यम से करने का निर्देश दिया गया था। 13 फरवरी 2019 को राज्य शासन द्वारा जारी राजपत्र में साफ कहा गया है कि थाना प्रभारी या पुलिस अधीक्षक योजना के अंतर्गत आने वाले अपराधों की तुरंत रिपोर्टिंग राज्य एवं जिला विधिक सहायता प्राधिकरणों को करेंगे ताकि प्रकरणों का प्रारंभिक सत्यापन कर सके, लेकिन लापरवाही यह रही कि प्राधिकरणों तक कोई सूची ही बीते दो सालों में नहीं पहुंची। इसके चलते किसी भी पीडि़ता को राशि नहीं मिल पाई।

इस नये अधिनियम में अपराध की गंभीरता, मानसिक व शारीरिक क्षति, शिक्षा, रोजगार के अवसर की हानि, उपचार पर व्यय आदि को ध्यान में रखते हुए विधिक सेवा प्राधिकरण द्वारा क्षतिपूर्ति की राशि निर्धारित करने का प्रावधान है।

दूसरी ओर राज्य सरकार के गृह विभाग ने सन् 2019 में इसके लिये फंड जारी किया था। राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण का मुख्यालय बिलासपुर में होने के कारण गृह विभाग ने अन्य सभी आबंटनों की तरह इसका फंड भी कलेक्टोरेट में भेज दिया और वहां राशि पड़ी रही। एक तो गलत एकाउन्ट में राशि भेज दी गई और राशि मिलने के बाद जिलाधीश कार्यालय ने इसे सही जगह भेजने में कोई रुचि नहीं ली। 

फंड के बारे में न तो पुलिस विभाग को पता चला, न ही विधिक सेवा प्राधिकरण को। वित्तीय वर्ष समाप्त होने तक खर्च नहीं होने के कारण यह राशि राज्य 
शासन को वापस चली गई। सन् 2020 की राशि 30 जुलाई 2020 को जारी की गई थी फिर भी सहायता शून्य थी। राज्यपाल ने हाल ही में इस बार सवाल किये और उसके बाद मुख्यमंत्री ने अधिकारियों की बैठक में नाराजगी जताई। 

मुख्यमंत्री की बैठक के बाद वीडियो कांफ्रेंस कर मुख्य सचिव, कलेक्टर और पुलिस अधीक्षकों पर नाराज हुए। इसके बाद अधिकारियों में हडक़म्प मचा। बिलासपुर में जिला प्रशासन और राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण के अधिकारियों के बीच बैठक हुई। तय हुआ कि सभी जिलों के पुलिस अधीक्षक और जिला विधिक सेवा समिति समन्वय के साथ सूची बनायेंगे और राज्य विधिक सहायता प्राधिकरण को प्रकरण भेजेंगे।

राज्य विधिक सेवा अधिकारी शशांक शेखर दुबे ने बताया कि पिछले हफ्ते जिला प्रशासन से सालसा को फंड ट्रांसफर हो गया है। पुलिस में दर्ज एफआईआर और न्यायालयों में चल रहे मामलों की जानकारी पुलिस अधिकारियों के माध्यम से जिला विधिक सेवा प्राधिकरणों में एकत्र की जा रही है, जो शीघ्र ही राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण के पास आ जायेगी। इसके बाद क्षतिपूर्ति राशि निर्धारित कर पीडि़तों अथवा उनके आश्रितों को राशि वितरित की जायेगी। प्रदेशभर से 350 के आसपास प्रकरण आने की संभावना है जिस पर 2 करोड़ रुपये खर्च होने का अनुमान है। वित्तीय वर्ष की समाप्ति तक प्रकरणों पर विचार कर अतिरिक्त राशि सहायता के लिये रखी जायेगी।

अपराध से पीडि़त महिलाओं की क्षतिपूर्ति के कुछ प्रावधान इस प्रकार हैं, एक से अधिक प्रावधानों में किसी महिला पात्रता रखती हैं तो सभी का लाभ उन्हें मिलेगा-
1. जीवन की हानि और सामूहिक बलात्कार पर 5 लाख से 10 लाख रुपये।
2. बलात्कार व अप्राकृतिक यौन हमले में 4 से 7 लाख रुपये।
3. स्थायी शारीरिक क्षति पर 2 लाख से 5 लाख रुपये।
4. 40 से 80 प्रतिशत तक विकलांगता पर 2 से 4 लाख रुपये।
5. 20 से 40 प्रतिशत तक विकलांगता पर 1 से 2 लाख रुपये।
6. गंभीर शारीरिक क्षति या कोई मानसिक क्षति जिसमें पुनर्वास हो, 1 से 2 लाख रुपये।
7. भ्रूण की क्षति, गर्भपात, 2 से 3 लाख रुपये।
8. बलात्कार के कारण गर्भधारण 3 से 4 लाख रुपये।
9. जलने से चेहरा विद्रूप होने पर 7 से 8 लाख रुपये।
10. 50 प्रतिशत से अधिक क्षति पर 5 से 8 लाख रुपये।
11. 50 प्रतिशत से कम क्षति पर 3 से 7 लाख रुपये।
12. 20 प्रतिशत से कम क्षति पर 2 से 3 लाख रुपये।
13. एडिस हमले से चेहरा विद्रूप होने पर 7 से 8 लाख रुपये।
14. ऐसे मामलों में 50 प्रतिशत से अधिक क्षति पर 5 से 8 लाख रुपये।
15. 50 प्रतिशत से कम क्षति पर 3 से 5 लाख रुपये।
16. 20 प्रतिशत से कम क्षति पर 3 से 4 लाख रुपये।

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