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हथिनि व बच्चे की मौत के बाद रेलवे का इंजन जब्त
22-Oct-2020 5:16 PM
हथिनि व बच्चे की मौत के बाद रेलवे का इंजन जब्त

असम ,22 अक्टूबर | खासकर पश्चिम बंगाल, असम और ओड़ीशा में ऐसी सबसे ज्यादा घटनाएं होती रही हैं. ऐसी हर घटना के बाद कुछ दिनों तक बैठकों का दौर चलता है, लेकिन कुछ दिनों बाद मामला शांत हो जाता है. अब पहली बार असम सरकार के वन विभाग ने ऐसे ही एक हादसे के लिए रेलवे का एक इंजन जब्त कर लिया है. यह देश में अपने किस्म का पहला मामला है. असम और पश्चिम बंगाल में कई संरक्षित वन क्षेत्र से नेशनल हाइवे और रेलवे की पटरियां गुजरती हैं. एक सींग वाले गैंडों के लिए मशहूर काजीरंगा नेशनल पार्क में भी हर साल सड़क हादसे में दर्जनों जानवरों की मौत हो जाती है. इसके बीचोंबीच नेशनल हाइवे गुजरता है. अब इस पार्क को दोबारा पर्यटकों के लिए खोल दिया गया है.

हादसे के बाद ट्रेन के ड्राइवर और सहायक ड्राइवर को पहले ही निलंबित किया जा चुका है. इस मुद्दे पर अब असम सरकार और पूर्वोत्तर सीमांत रेलवे के बीच ठन गई है. रेलवे का दावा है कि उसने ट्रेन हादसों में हाथियों की मौत पर अंकुश लगाने के लिए कई कदम उठाए हैं. लेकिन सरकार का कहना है कि अब पानी सिर के ऊपर से गुजर रहा है. बार-बार कहने के बावजूद रेलवे ने इन घटनाओं पर अंकुश लगाने के लिए कोई ठोस और असरदार कदम नहीं उठाया है.

दुर्घटना का ताजा मामला

बीते महीने के आखिर में ऊपरी असम के लामडिंग के पास एक ट्रेन हादसे में एक हथिनि और उसके बच्चे की मौत हो गई थी. इससे पहले दोनों ट्रेन की चपेट में आकर घिसटते हुए लगभग एक किलोमीटर तक चले गए थे. उसके बाद राज्य सरकार के कड़े विरोध के बाद रेलवे ने ट्रेन के ड्राइवर और सहायक ड्राइवर को तो निलंबित कर दिया था, लेकिन मामले की जांच आगे नहीं बढ़ रही थी. राज्य सरकार की दलील है कि हादसे की जगह से एक किलोमीटर दूर शवों के बरामद होने से साफ है कि ट्रेन की गति निर्धारित सीमा से ज्यादा थी. रेलवे की चुप्पी से नाराज वन विभाग ने अब उस इंजन को ही जब्त कर लिया है. इस इलाके में हाथी और अन्य वन्य जीवों की मौजूदगी को देखते हुए यहां से गुजरने वाली रेल पटरियों पर ट्रेनों की गति सीमा तय की गई है.

हालांकि बाद में वन विभाग ने रेलवे को माल की ढुलाई के लिए उस इंजन के इस्तेमाल की अनुमति दे दी. इसके एवज में रेलवे वन विभाग को 12 करोड़ का मुआवजा देगा. असम के वन मंत्री परिमल शुक्लवैद्य कहते हैं कि रेलवे इस ट्रेन से जरिए अपनी परियोजनाओं के लिए माल की ढुलाई का काम करता है. हादसे के समय इसकी गति बहुत ज्यादा थी. इसी वजह से ब्रेक लगाने के बावजूद ट्रेन रुक नहीं सकी. डीडब्ल्यू से बातचीत में उनका कहना था, "हम रेलवे से सुरक्षा मानकों और गति सीमा का पालन करने के लिए कह-कह कर थक चुके हैं. अब सरकार इस मामले में कड़ी कार्रवाई करेगी. आगे भी ऐसे घटनाओं से कड़ाई से निपटा जाएगा."

असम के चीफ वाइल्डलाइफ वार्डेन एमके यादव कहते हैं, "इस मामले में कानूनी कार्रवाई की जा रही है. इसलिए फिलहाल इस पर ज्यादा बोलना उचित नहीं है. लेकिन रेलवे को अपने तौर-तरीकों में सुधार लाना होगा.” वन विभाग की ओर से इस घटना की जांच कर रहे तेजपुर स्थित उत्तरी असम सर्किल के डिप्टी कंजर्वेटर आफ फॉरेस्ट्स राजीव दास कहते हैं, "इस मामले में इंजन सबसे अहम सबूत है. इसलिए हमने उसे जब्त किया था. फिलहाल इंजन रेलवे को लौटा दिया गया है. लेकिन जरूरत पड़ने पर उसे पेश करना होगा.”

जानवरों की सुरक्षा के लिए रेलवे पर दबाव

वह हादसा होजाई जिले के पाथरकुला और लामसाखांग रेलवे स्टेशनों के बीच हुआ था. होजाई के डिवीजनल फॉरेस्ट ऑफिसर (डीएफओ) पुलक चौधरी कहते हैं, "संरक्षित इलाकों में अब तक ट्रेन से कट कर कई हाथियों की मौत हो चुकी है. गतिसीमा तय होने और वार्निंग प्रणाली होने के बावजूद इन मामलों पर अंकुश नहीं लग पा रहा है.” वह बताते हैं कि जिस पटरी पर दुर्घटना हुई वह लामडिंग रिजर्व फॉरेस्ट से होकर गुजरती है. वहां ट्रेन की अधिकतम गति सीमा 30 किमी प्रति घंटे तय की गई है. लेकिन जांच से पता चला कि उक्त ट्रेन 60 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से जा रही थी.

इस बीच, रेलवे की ओर से जारी बयान में कहा गया है कि उसने इस मामले को गंभीरता से लेते हुए जांच की है और दोषियों के खिलाफ कार्रवाई की जा रही है. एनएफ रेलवे के जनसंपर्क अधिकारी शुभानन चंदा बताते हैं, "हमने विभागीय जांच के बाद ड्राइवर व उसके सहायक को निलंबित कर दिया है. वे तय गति से ज्यादा रफ्तार से ट्रेन चला रहे थे.” वह बताते हैं कि रेलवे ने अपने इलाके में जानवरों की सुरक्षा के लिए कई कदम उठाए हैं. वर्ष 2017 में मधुमक्खियों जैसी आवाज के जरिए हाथियों को पटरियों से दूर भगाने के लिए प्लान बी (यानी मधुमक्खी) शुरू किया गया था. इसकी आवाज से हाथी करीब नहीं आते. इसी वजह से ऐसे हादसों में भारी गिरावट आई है.

लेकिन दूसरी ओर, वन मंत्री परिमल शुक्लवैद्य ने एक बयान में कहा है कि सरकार वन्यजीव सुरक्षा अधिनियम, 1972 के तहत इस मामले की गंभीरता से जांच कर रही है. असम में हाथियों की आवाजाही के लिए बने 67 अधिसूचित गलियारों में ट्रेनों की अधिकतम सीमा 30 किमी प्रति घंटे तय की गई है. लेकिन उन इलाकों में तेज गति की वजह से होने वाले हादसे नए नहीं हैं. असम सरकार के आंकड़ों के मुताबिक, वर्ष 2010 से ऐसे हादसों में 54 हाथी मारे जा चुके हैं.

इंसानों और जानवरों के बीच टकराव

असम के वन्यजीव विशेषज्ञ और एलीफैंट डॉक्टर के नाम से मशहूर पद्मश्री कुशल कुंवर शर्मा कहते हैं, "अनियंत्रित निर्माण और बढ़ती इंसानी बस्तियों की वजह से हाथियों के गलियारों की सीमाएं मिट गई है. नतीजतन हाथी इधर-उधर भटकने लगे हैं. इसी वजह से ऐसे हादसे तेजी से बढ़ रहे हैं.” वह बताते हैं कि लामडिंग वाली घटना से पहले वन विभाग ने रेलवे को अलर्ट किया था कि उस गलियारे से हाथी पार हो सकते हैं. लेकिन ड्राइवरों ने इस पर ध्यान नहीं दिया. अब इंजन जब्त करने की कार्रवाई और सरकार के कड़े रवैए से इस मामले में सुधार की उम्मीद है.

दिल्ली स्थित वाइल्डलाइफ ट्रस्ट आफ इंडिया की ओर से कुछ साल पहले जारी राइट आफ पैसेजः एलीफैंट कारीडोर्स आफ इंडिया शीर्षक रिपोर्ट में कहा गया था कि हर साल ट्रेनों की टक्कर, बिजली का झटका लगने और सड़क हादसों में औसतन सौ हाथियों की मौत हो जाती है. इसी रिपोर्ट में कहा गया था कि इंसानों व हाथियों के बीच लगातार तेज होते संघर्ष में हर साल चार से साढ़े चार सौ लोगों की मौत हो जाती है. हाथियों के जिन कारीडोर में इंसानी बस्तियां बढ़ रही हैं उनमें से सबसे ज्यादा 13 पश्चिम बंगाल में हैं. इसके बाद ओडीशा (नौ) और असम (आठ) का स्थान है. पश्चिम बंगाल हाथियों की मौत के मामले में दूसरे नंबर पर रहा है. कभी कर्नाटक तो कभी ओडीशा पहले नंबर पर रहते हैं. विशेषज्ञों और सरकार का कहना है कि बढ़ती तादाद और घटते भोजन की वजह से इंसानों और जानवरों के बीच संघर्ष की घटनाएं बढ़ी हैं.

एक गैर-सरकारी संगठन हिमालय नेचर एंड एडवेंचर फाउंडेशन के संयोजक अनिमेष बसु कहते हैं, "ट्रेन की पटरियों पर हाथियों की मौत पर अंकुश लगाने की दिशा में पहल काफी धीमी है. हाथियों को बचाने के लिए सरकार को दृढ़ इच्छाशक्ति का परिचय देते हुए रेलवे के साथ मिल कर एक ठोस योजना बना कर उसे लागू करना होगा. ऐसा नहीं होने तक बंगाल से असम तक रेलवे की पटरियां हाथियों के लिए कब्रगाह ही बनी रहेंगी.”(DW.COM)

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