संपादकीय
भाजपा ने बिहार चुनाव के अपने घोषणापत्र से एक ऐसे मुद्दे को छेड़ा है जो देश के किसी भी चुनाव में शायद पहली बार इस्तेमाल हो रहा है। इसमें संकल्प लिया गया है कि अगर बिहार में भाजपा सत्ता में आती है तो मुफ्त कोरोना-टीकाकरण किया जाएगा। चूंकि भाजपा केन्द्र में भी न सिर्फ सरकार में है, बल्कि सरकार की मुखिया भी है, प्रधानमंत्री भी भाजपा के हैं, इसलिए बिहार की भाजपा को देश से अलग काटकर नहीं देखा जा सकता, और भाजपा भी देश की या दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी होने का दावा करते हुए अपने आपको बाकी दुनिया से काटकर नहीं देख सकती। इस नाते भाजपा ने यह घोषणा करके एक सवाल खड़ा किया है कि क्या केन्द्र में उसकी सरकार और उसके प्रधानमंत्री की जिम्मेदारी बाकी देश के लिए उतनी नहीं है जितनी कि बिहार में भाजपा की सरकार बनने पर वहां की राज्य सरकार उठाने का दावा कर रही है?
चुनावों में लोगों को मुफ्त के तोहफे, कई किस्म की रियायतें, टैक्स की छूट, और जनकल्याणकारी या सार्वजनिक विकास के कार्यक्रमों का लुभावना घोषणापत्र तो अब तक मिलते ही आया है, अगर बिहार में भाजपा गठबंधन वाली सरकार बनती है, तो पूरे बिहार को मुफ्त में कोरोना का टीका भी मिलेगा। अब सवाल यह उठता है कि क्या बाकी देश ने ऐसा कोई कुसूर किया है कि वहां चुनाव की नौबत नहीं आ रही, और भाजपा को बाकी देश में भी कोरोना का टीका मुफ्त में देने का वायदा नहीं करना पड़ रहा? यह सवाल छोटा नहीं है, क्योंकि आज देश की नीति कोरोना के टीके को लेकर अभी बनी भी नहीं है, और केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्री की घोषणा पर भरोसा किया जाए तो जुलाई 2021 तक देश में 20-25 करोड़ लोगों को कोरोना का टीका पहुंचाने की पूरी कोशिश केन्द्र सरकार करेगी। खुद मंत्री की कही बातों का सीधा-सीधा मतलब यह है कि जुलाई 2021 तक देश में सौ करोड़ से अधिक लोगों को कोरोना का टीका नहीं मिल पाएगा। अभी तक केन्द्र सरकार की यह नीति भी सामने नहीं आई है कि यह टीका किसी राष्ट्रीय कार्यक्रम के तहत लगाया जाएगा, या किसी तबके को खुद खरीदना होगा। अभी कुछ भी साफ नहीं है। और जहां तक इस महामारी का मामला है तो हमारी साधारण समझ से कोई भी केन्द्र सरकार किसी एक राज्य के साथ अलग बर्ताव नहीं कर सकती, और वह सभी राज्यों को बराबरी से ही देख सकेगी। आज जब कोरोना के टीके को लेकर कुछ भी साफ नहीं है, तब अगर भाजपा बिहार में चुनाव जीतने की हालत में लोगों से मुफ्त टीके का वायदा कर रही है, तो चुनाव हार जाने की हालत में उस पार्टी की केन्द्र सरकार क्या करेगी? भाजपा एक राष्ट्रीय पार्टी के रूप में क्या करेगी? बिहार की किसी भी पार्टी की सरकार अगर ऐसा करना भी चाहेगी तो क्या एक देश के भीतर ऐसा कोई कार्यक्रम किसी एक प्रदेश की सरकार अपने लोगों के लिए चला सकती है जहां पूरे देश की सरकार और पूरे देश की जिम्मेदारी देश के तमाम तबकों के लिए एक बराबर है? क्या बिहार या किसी भी दूसरी राज्य सरकार को ऐसा कोई हक रहेगा कि वे पूरे देश के लिए केन्द्र सरकार की बनाई गई नीति और कार्यक्रम से परे टीके खरीदकर अपने लोगों को लगा सकें? एक महामारी से देश की आबादी को बचाने के लिए जैसी खतरनाक नौबत आज देश के सामने खड़ी हुई है, उसे देखते हुए एक राज्य के चुनाव में ऐसी घोषणा लुभावनी चाहे जितनी हो, गैरजिम्मेदार बात है, और इसे लेकर पिछले कुछ घंटों में सोशल मीडिया पर बहुत कुछ लिखा भी जा रहा है।
चुनाव आते-जाते रहते हैं, लेकिन देश के प्रमुख राजनीतिक दलों को, केन्द्र और राज्य की सरकारों को, अपने आपको राष्ट्रीय मूलधारा और राष्ट्रीय भावना, राष्ट्रीय आपदा, और राष्ट्रीय जरूरत से काटकर अलग नहीं रखना चाहिए। अगर बिहार का कोई क्षेत्रीय दल ऐसी कोई घोषणा करता तो वह क्षेत्रीय दल का तंगनजरिया और उसकी तंगदिली का एक सुबूत रहता। लेकिन एक राष्ट्रीय दल जिसकी मौजूदगी आज देश के हर प्रदेश में है, वह बिहार को चुनाव के मौके पर अलग से ऐसे कौन से लुभावने वायदे दे सकता है जो कि बाकी देश की जिंदगियां बचाने के लिए जरूरी हैं, और जो पूरे देश को एक बराबरी से उपलब्ध कराना केन्द्र सरकार की जिम्मेदारी है।
हम बाकी चुनावी वायदों को लेकर कुछ नहीं कहते, कोई दस लाख नौकरी का वायदा कर रहा है, तो कोई और किसी दूसरी बात का। लेकिन महामारी से बचाव के लिए टीके को लेकर किया गया ऐसा वायदा सिवाय गैरजिम्मेदारी के और कुछ नहीं है। अभी यह समझना मुश्किल है कि जिस पार्टी की अगुवाई वाली केन्द्र सरकार के जिम्मे अपना विकसित किया हुआ, या दुनिया में कहीं से भी लाया हुआ टीका पूरे देश को एक नीति और एक कार्यक्रम के तहत बिना भेदभाव के उपलब्ध कराना है, उसकी पार्टी की सरकार बनने पर एक राज्य में किस तरह वह पूरी जनता को राज्य सरकार की तरफ से उपलब्ध कराया जाएगा? बात सिर्फ टीके के दाम की नहीं हैं, और यह दाम भी पूरे देश के लिए केन्द्र सरकार को ही देना चाहिए, क्योंकि एक महामारी से बचने का टीका महज पैसे वाले खरीदकर लगवा लें, और गरीब मर जाएं, ऐसा तो कोई सरकार कर नहीं सकती। अभी तो केन्द्र सरकार राज्य सरकारों से बात करके सीमित संख्या में आने वाले या बनने वाले कोरोना-टीकों को लगाने की प्राथमिकता तय करने वाली है। किस तरह यह काम होगा, वह तय होना भी अभी बाकी है। देश के लोग भी यह नहीं समझ पा रहे हैं कि स्वास्थ्यकर्मियों, सुरक्षाकर्मियों, सफाईकर्मियों से होते हुए कब बाकी जनता तक यह टीका पहुंचेगा। कोरोना से बचाव का टीका चावल या दाल नहीं है जिसे कोई राज्य सरकार पहले खरीदकर, पहले आयात करके अपने लोगों में बांट दे। इसलिए बिहार चुनाव में मतदाताओं को प्रभावित करने के लिए भाजपा के घोषणापत्र का यह मुद्दा जिम्मेदारी से तय नहीं किया गया है, इसलिए कि किसी राज्य सरकार की कोई भूमिका अभी तय ही नहीं है, कोरोना के टीके को लेकर कोई नीति या रणनीति ही अभी केन्द्र सरकार ने तय नहीं की है, ऐसे में कोई राज्य सरकार उसे लेकर क्या वायदा कर सकती है?
आज जब लॉकडाऊन और कोरोना के इलाज को लेकर, देश के स्कूल-कॉलेज में पढ़ाई के लिए स्मार्टफोन वाले, और बिना स्मार्टफोन के लोगों के बीच तरह-तरह की खाईयां खुद चुकी हैं, तब ऐसे में बिहार और बाकी प्रदेशों के बीच एक और खाई खोदना निहायत ही गलत बात है। एक महामारी से कोई एक प्रदेश अपने-आपको एक टापू की तरह नहीं बचा सकता, और बिहार में भाजपा को एक टापू-पार्टी की तरह बर्ताव नहीं करना चाहिए। आने वाले दिनों में बाकी देश में इस घोषणा पर और तबकों की प्रतिक्रियाएं सामने आएंगी, हो सकता है कि बिहार चुनाव में भाजपा को इसका फायदा मिल जाए, लेकिन यह हमेशा के लिए एक बहुत बुरी और नाजायज मिसाल की तरह दर्ज तो हो ही चुकी है।
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