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क्या केरल सरकार का नया अध्यादेश मीडिया की स्वतंत्रता के लिए खतरा है?
23-Oct-2020 4:49 PM
क्या केरल सरकार का नया अध्यादेश मीडिया की स्वतंत्रता के लिए खतरा है?

     डॉयचे वैले पर चारु कार्तिकेय की रिपोर्ट-

केरल सरकार एक अध्यादेश ला रही है जिसके तहत मानहानिकारक सामग्री छापने वालों को पांच साल की जेल हो सकती है. विपक्ष और एक्टिविस्टों का आरोप है कि इस अध्यादेश से मीडिया की और आम लोगों की अभिव्यक्ति की आजादी का हनन होगा.

अध्यादेश का उद्देश्य केरल पुलिस अधिनियम में संशोधन करना है. सरकार अधिनियम में अनुच्छेद 118 (ए) जोड़ना चाहती है, जिसके तहत "यदि कोई किसी भी व्यक्ति को धमकाने, उसका अपमान करने या उसकी प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाने के इरादे से किसी सामग्री की रचना करेगा, छापेगा या उसे किसी भी माध्यम से आगे फैलाएगा उसे पांच साल जेल या 10,000 रुपये जुर्माना या दोनों की सजा हो सकती है."

केरल के मंत्रिमंडल ने बुधवार को फैसला लिया कि इस अध्यादेश को लागू करने के लिए राज्यपाल को अनुशंसा भेजी जाएगी. एक्टिविस्टों का कहना है कि आईपीसी की 499 और 500 धाराओं के तहत मानहानि का मामला दर्ज करने के लिए एक निवेदक की जरूरत होती है, लेकिन केरल के इस नए अध्यादेश के लागू होने के बाद पुलिस खुद ही किसी के भी खिलाफ मामला दर्ज कर सकती है.

केरल सरकार के अनुसार यह अध्यादेश सोशल मीडिया पर नफरत फैलाने वाली सामग्री और इंटरनेट के जरिए लोगों पर हमलों से लड़ने के लिए लाया जा रहा है. लेकिन अध्यादेश के आलोचकों का कहना है कि इसकी शब्दावली ऐसी रखी गई है कि इसकी परिधि में सिर्फ सोशल मीडिया नहीं, बल्कि प्रिंट और विज़ुअल मीडिया और यहां तक कि पोस्टर और होर्डिंग भी आ जाएंगे.

 
केरल सरकार के अनुसार यह अध्यादेश सोशल मीडिया पर नफरत फैलाने वाली सामग्री और इंटरनेट के जरिए लोगों पर हमलों से लड़ने के लिए लाया जा रहा है.

मुख्यमंत्री पिनरई विजयन ने कहा है कि "संशोधन का उद्देश्य रचनात्मक आजादी पर अंकुश लगाना या अभिव्यक्ति की आजादी में हस्तक्षेप करना नहीं है, बल्कि मानहानि करने की कोशिश करने वालों को डराना है." लेकिन एक्टिविस्टों का कहना है कि यह संशोधन आईटी अधिनियम के अनुच्छेद 66ए से भी ज्यादा क्रूर है, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने 2015 में निरस्त कर दिया था.

मीडिया में आई खबरों के अनुसार, कांग्रेस नेता और केरल विधान सभा में विपक्ष के नेता रमेश चेन्निथला ने कहा है कि चिंता यह है कि पुलिस इस संशोधन का इस्तेमाल उन पत्रकारों को गिरफ्तार करने के लिए ना करने लगे जो सरकार की खामियां उजागर करते हैं.

आईटी कानूनों के कई जानकारों ने भी कहा है कि इंटरनेट पर अभद्र या आपराधिक व्यवहार के लिए सजा देने के लिए मौजूदा कानून पर्याप्त हैं और इसके लिए ऐसे कठोर कानून लाने की कोई आवश्यकता नहीं है जिनसे पुलिस को लोगों की अभिव्यक्ति की आजादी का हनन करने का मौका मिले. (dw.com)

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