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मध्यप्रदेश में बन रहा है जुरासिक पार्क
24-Oct-2020 10:29 AM
मध्यप्रदेश में बन रहा है जुरासिक पार्क

           डॉयचे वैले पर विवेक शर्मा की रिपोर्ट-

आखिर साढ़े छह करोड़ साल पहले ऐसा क्या हुआ था कि विशालकाय जीव डायनासोर विलुप्त हो गए. ये सवाल सभी के मन में उठता होगा. भारत में भी ऐसे इलाके हैं जहां डायनासोर के जीवाश्म मिलते रहे हैं.

जिस पर्यावरण बदलाव ने अतीत में इन जीवों का नामो-निशान मिटा दिया, क्या ऐसा बदलाव भविष्य में भी हो सकता है, जिससे कई और जीव विलुप्त हो जाए? इन सवालों का जवाब जीवाश्मों (फॉसिल) के अध्ययन से मिलता है. मध्यप्रदेश के धार जिले की कुक्षी तहसील के पास विश्व प्रसिद्ध बाग गुफाओं वाले इलाके में कई वर्षों से डायनासोर के अंडे, नेस्टिंग साईट, हड्डियां और दांतों के जीवाश्म मिल रहे हैं. ये पहली बार नहीं है कि मध्यप्रदेश में डायनासोर के जीवाश्म मिले हैं. साल 1828 में जबलपुर के पास पहली बार डायनसोर के जीवाश्म मिले थे. वहां मांसाहारी डायनासोर पाए गए थे जिनके 60-70 घोंसले वहां मौजूद थे.

डायनासोर के अंडे और अतीत का अध्ययन

धार जिले के बाग इलाके के महत्व के बारे में भारत के मशहूर भूविज्ञानी प्रोफेसर अशोक साहनी बताते हैं, "1990 में मध्यप्रदेश की हथिनी नदी मैंने काफी काम किया है. 30 साल पहले मैंने डायनासोर का पहला जीवाश्म ढूंढा था. बाग ही ऐसा स्थान है जहां डायनासोर के घोंसले, हड्डियां और दांत मिले हैं. लंबे पेड़ भी हैं जो ये बताते हैं कि साढ़े छह करोड़ साल पहले कैसा पर्यावरण रहा होगा. विज्ञान का मकसद रिकंस्ट्रक्शन का होता है. पर्यावरण को रिकंस्ट्रक्ट करने में बाग के जीवाश्म मदद देते हैं. ये बहुत बड़ी विरासत है जो हमें संरक्षित करना चाहिए.” प्रोफेसर अशोक साहनी काफी समय से डायनासोर पर शोध करते रहे हैं और साल 2020 में उन्हें जियोलाजी, पेंलेटियोलॉजी में लाईफटाइम अचीवमेंट अवार्ड से नवाजा गया है.

धार जिले की बाग वाली साईट पर 2014 से रिसर्च कर रहे दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर जीवीआर प्रसाद बताते हैं. "ये साईट पृथ्वी से लुप्त होने के ठीक पहले की है. तो उस समय पर्यावरण में ऐसा क्या बदलाव हुआ कि डायनोसोर गायब हो गए? इस बात पर शोध करने के लिए ये साईट बहुत अहम है. भारत में सिर्फ दो ही ऐसी जगहें हैं, बाग और बालासिनोर जहां सबसे ज्यादा नेस्टिंग साईट मिलते हैं.” प्रोफेसर प्रसाद के मुताबिक, "डायनासोर के अंडे का आकार आम रेप्टाइल्स से बड़ा होता है. 20 सेंटीमीटर के व्यास के काफी बड़े अंडों की बाहरी सतह कैल्शियम कार्बोनेट से बनी होती है. उसका क्रॉस सेक्शन बताता है कि यहां पाए जाने वाले सभी डायनासोर शाकाहारी थे और उनकी प्रजाति टायटेनोसोर सायरोपोड थी.”

धार में 10 करोड़ साल पहले समुद्र था

मजेदार बात ये है कि इस इलाके में ना केवल डायनासोर आकर अंडे देते थे बल्कि उससे कई करोड़ साल पहले यहां समुद्र होने के भी प्रमाण मिलते हैं. जानकारों के मुताबिक उस समय पृथ्वी पर ऐसी घटनाएं हुई जिससे समुद्र भारत के मध्य भाग तक आ गया. कच्छ से एक भुजा समुद्र की अंदर आ गई और वो लाख वर्षों तक रही. और उसके जीव भी यहां पर आ गए. दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर प्रसाद कहते हैं इस इलाके में 10 करोड़ वर्ष पहले समुद्र था इसलिए डायनासोर के अलावा यहां समुद्री जीवों के जीवाश्म भी मिलते हैं.

इस इलाके में समुद्री जीवों के जीवाश्म पर काम कर रहे जंतुविज्ञानी प्रोफेसर विपुल कीर्ति ने मिजोजोइक काल के आखिरी दौर का जीवाश्म साल 2010 में खोजा और प्रोफेसर के सम्मान में इस जीवाश्म का नाम स्टीरियो-सिडेरिस "कीर्ति” रखा गया. प्रोफेसर कीर्ति बताते हैं, "जीवाश्म साढ़े सात करोड़ साल पुराना है. सी अर्चिन के जीवाश्म, धार की मनावर तहसील के सीतापुरी गांव से मिला है. इस तरह की स्टार फिश समुद्र में ही पाई जाती है. यहां पर सी अरचिन (बगैर भुजा वाली स्टार फिश) की वो प्रजाति मिली है जो विश्व में कभी नहीं मिली. नेचुरल हिस्ट्री म्यूजियम लंदन के सीनियर वैज्ञानिक रहे डा एंड्र्यू स्मिथ ने धार जाकर इस बात की पुष्टि भी की. प्रोफेसर कीर्ति द्वारा खोजी गई प्रजाति डायनासोर की तरह ही विलुप्त हो चुकी है.

डायनासोर के जीवाश्मों का संग्रह

समुद्री जीवाश्म एक्सपर्ट प्रोफेसर विपुल को भी अपनी रिसर्च के दौरान यहां डायनासोर के अंडे मिल चुके हैं. उनके मुताबिक "डायनासोर बाग वाले इलाके में रहते नहीं थे केवल यहां पर अंडे देने आते थे. ये उनकी मनपसंद साईट थी. डायनासोर जब जिंदा थे उस समय कार्बनडायआक्साइड का हिस्सा ज्यादा था और आक्सीजन का कम था और ऐसा ही भविष्य में होने जा रहा है. ये अच्छा तरीका है कि हम अतीत की स्टडी करें जिससे भविष्य समझ में आए. 7 करोड़ साल पहले ग्लोबल वार्मिंग थी और अब हम फिर से ग्लोबल वार्मिंग की तरफ बढ़ रहे है.”

मध्य प्रदेश के धार जिले में दशकों से डायनासोर के अवसेष मिलते रहे हैं

करीब 30 वर्षों से इन जीवाश्मों को इकट्ठा कर रहे धार जिले के रहने वाले शौकिया जीवाश्म शोधकर्ता और पेशे से भोतिकशास्र टीचर विशाल वर्मा बताते हैं, "मांडू में फॉसिल म्यूजियम में मैंने कई जीवाश्म डोनेट किए है.  2007 में मुझे पहली बार बाग में पूरी साईट मालूम पड़ी थी, हम लोग इस साईट को बचाने के लिए काम करते हैं क्योंकि वो बहुत सुंदर है. इन्हें प्रोटेक्ट करना जरूरी होता है उसके बाद शोध होता है. मैंने एक ही जिले से चार अलग-अलग काल खंड के जीवाश्म खोजे हैं. जब समुद्र नहीं था, जब समुद्र आ गया, तीसरा जब डायनासोर किनारे पर आकर अंडे देने लगे और चौथा जब ज्वालामुखी विस्फोट हो रहे थे और उसके बाद भी डायनासोर कई हजार सालों तक बचने में सफल हुए.”

टूरिज्म : नेशनल पार्क और म्यूजियम

तो क्या इन डायनासोर के अंडों को आम आदमी और पर्यटक देख सकते हैं. इसी मकसद से बाग में "डायनासोर जीवाश्म नेशनल पार्क” भी आकार ले चुका है. लेकिन पर्यटकों को इसमें घूमने के लिए थोड़ा इंतजार करना पड़ेगा. कुल 89 हेक्टेयर में फैले इस नेशनल पार्क में एक म्यूजियम बनाने की कोशिश भी जारी है जिसमें विशालकाय पेड़ों और डायनासोर के अंडों के जीवाश्म उनके मूल स्वरुप में जस के तस रखे जाएंगे, ताकि शोधकर्ता उसी स्थिति में जीवाश्मों को देख सके. धार जिले के जिला वन अधिकारी अक्षय राठौर के मुताबिक, "डायनासोर फॉसिल नेशनल पार्क का नोटिफिकेशन हो चुका है, फेंसिंग हो गई है, उसमें काफी नेस्टिंग है और जीवाश्म भी मौजूद है लेकिन इसे डेवलप करना बाकी है. फिलहाल यह वीरान सा है, एक मास्टर प्लान तैयार होना बाकी है जिससे अगले कुछ वर्षों में कैसा डेवलप किया जाए इसकी योजना बन जाए.” जिला वन अधिकारी के मुताबिक इस नेशनल पार्क का मुख्य गेट भी अभी बनना बाकी है, लेकिन फेंसिंग की वजह से काफी जीवाश्म संग्रहित हो पा रहे हैं. नेशनल पार्क में मार्च 2021 से टूरिस्ट आना शुरु हो सकते हैं..

स्थानीय जिला प्रशासन भी पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए नेशनल पार्क से बाहर के इलाके में म्यूजियम को नया रुप देने की कोशिश में है. इस इलाके का मशूहर पर्यटक स्थल मांडू है और उसके पास ही डायनासोर संग्रहालय फिर से शुरु होने को तैयार है, ताकि पर्यटक मांडू के साथ ही संग्रहालय भी देख सकें. धार जिले के कलेक्टर आलोक कुमार सिंह के मुताबिक "म्यूजियम वाला हिस्सा बना दिया है, पार्क और गार्डन उसमें डेवलप किया गया है, दो महीने बाद डायनसोर संग्रहालय की ओपनिंग करेंगे, इसके लिए 20 रुपए का टिकट होगा. पार्किंग और एंटरटेनमेंट की भी व्यवस्था की गई है. साथ ही डायनासोर के शेप में और अंडों के शेप में कुछ कमरे भी डेवलप किए जा रहे हैं जिसमें पर्यटक रुक सकेंगे, डायनासोर का इतिहास जानेंगे. लाइड एंड साउंड शो भी शुरु करने की तैयारी कर रही है और काकड़-खो की दीवार पर पूरी स्टोरी दिखाई जाएगी जहां पर नीचे नदी है सामने झरना गिरता है.”

भारत का जुरासिक पार्क

भारत का पहला डायनासोर म्यूजियम एवं फॉसिल पार्क गुजरात के महिसागर जिले के रायोली गांव के बालासिनोर इलाके में है. जून, 2019 में इसके उद्घाटन के बाद इसे पर्यटकों के लिए खोला गया. बालासिनोर की साईट पर डायनासोर को खोजने का काम कर चुके जियोलॉजिकल सर्वे आफ इंडिया के पूर्व डायरेक्टर एवं भूवैज्ञानिक सुरेश श्रीवास्तव ने पुरानी यादें ताजा करते हुए बताते हैं, "1982-83 के सत्र में मैंने इस क्षेत्र का मानचित्र बनाया और इस पूरे क्षेत्र का गहन अध्ययन किया. खुदाई के दौरान डायनासोर की 400 हड्डियां मिली, जिसमें पैर, हाथ, मुंह, पूंछ, रीढ़ की हड्डी और दांत के जीवाश्म मिले. साथ ही अमेरिका के जाने-माने भूवैज्ञानिक, प्रो. पॉल सेरेनो, डॉ. जेफ्री विल्सन और डॉ. अशोक साहनी के साथ मिलकर डायनासोर का आंशिक कंकाल बनाया जिसमें ब्रेन केस, हिप, पांव और पूंछ की हड्डियों के आधार पर एक नए मांसाहारी भारतीय डायनासोर की खोज की जिसका नाम ‘राजसोरस नर्मदेन्सिस' रखा गया जो लगभग 22 फीट लंबा था और उसके सिर पर एक सिंग भी था. इसका मॉडल बालासिनोर के डायनासोर म्यूजियम में रखा गया है.”

डायनासोर के इन जीवाश्मों का शैक्षणिक महत्व भी है. दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर प्रसाद के मार्गदर्शन में इस विषय पर छात्र ये जानने के लिए पीएचडी कर रहे हैं कि आखिर किस पर्यावरण में डायनासोर रहते थे. प्रोफेसर प्रसाद के मुताबिक "जब छात्रों ने बाग की साईट पर विजिट किया तो पेलेंटोलॉजी में रिसर्च में रुचि बढ़ गयी. छात्रों को प्रोत्साहित करने के लिए ये काफी अहम हैं." प्रोफेसर विपुल कीर्ति का मानना है कि इसे "सिलेबस में डालना चाहिए. पाठ्य पुस्तकों में इन सभी बातों को शामिल करना चाहिए. कई लोकल छात्रों ने अंडे नहीं देखे हैं जबकि विदेशों से लोग आ रहे हैं. इसका मतलब पूरे विश्व में इस चीज का आकर्षण है. जब पढ़ाई के रूप में आकर्षण बढ़ता है तो लोग ज्यादा आते हैं अध्ययन करते हैं.”(dw.com)

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